पटना: नीतीश कुमार या लालू प्रसाद यादव में से बिहार के लिए किसने ज्यादा अच्छा काम किया? इस सप्ताह राज्य में इस मुद्दे पर बहस छिड़ गई है क्योंकि नीतीश ने मुख्यमंत्री के तौर पर 15 साल पूरे कर लिए हैं. यह 1990 से 2005 के बीच लालू यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी के संयुक्त कार्यकाल के बराबर ही है.
नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में उसके सहयोगियों ने उन्हें विकास पुरुष के तौर पर सम्मानित किया है. हालांकि, विपक्ष ने ‘नाकामियों’ का जश्न मनाने के लिए उनका मजाक उड़ाया है. वहीं, स्वतंत्र पर्यवेक्षकों ने नीतीश के काम को लेकर मिलीजुली प्रतिक्रिया जताई है.
ए.एन. सिन्हा सामाजिक अध्ययन संस्थान, पटना के पूर्व निदेशक प्रोफेसर डी.एम. दिवाकर ने कहा, ‘पहले पांच साल बेहतरीन थे, दूसरे पांच साल में चीजें हाथ से निकलने लगी थीं और पिछले पांच सालों में नीतीश कुमार ने अपनी सुशासन वाली यूएसपी खो दी है.’
जदयू ने सरकार के 15 साल पूरे होने के मौके पर बुधवार को ‘समदर्शी नेतृत्व और समावेशी विकास के 15 साल : बेमिसाल ’ स्लोगन के साथ कई कार्यक्रम आयोजित किए.
इस मौके पर बुलाई गई पार्टी पदाधिकारियों की बैठक में जदयू अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा, ‘जब लालू के दौर में बाढ़ आती थी तो वह पीड़ितों का मजाक उड़ाते थे, उन्हें मछली पकड़ने को कहते थे. लेकिन अब, बाढ़ पीड़ित नीतीश जी को ‘क्विंटल बाबा‘ कहते हैं क्योंकि वह ये सुनिश्चित करते हैं कि प्रत्येक परिवार को एक क्विंटल खाद्यान्न मिले, ताकि उन्हें भूखा न रहना पड़े. लालूजी कुछ भी कह सकते हैं, लेकिन तथ्य यही है कि हमें अब लालटेन की आवश्यकता नहीं है क्योंकि नीतीश जी ने बिजली उपलब्ध होना सुनिश्चित किया है.’
पार्टी एमएलसी संजय सिंह ने बैठक में कहा, ‘याद कीजिए कि लालू राज के दौरान बिहार के लोगों को राज्य के बाहर किस तरह अपमान सहना पड़ा है? अब, यही गर्व में बदल गया है क्योंकि नीतीश जी के नेतृत्व में बिहार विकास की राह पर आगे बढ़ा है.’
हालांकि, बिहार में नेता विपक्ष और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख तेजस्वी यादव ने सार्वजनिक नीतियों संबंधी थिंक टैंक नीति आयोग के वार्षिक सतत विकास लक्ष्य सूचकांक की ओर इशारा करते हुए पूछा कि इस वर्ष जून में जारी की गई रिपोर्ट में बिहार का ओवरऑल स्कोर देश के अन्य सभी राज्यों की तुलना में सबसे कम क्यों था. तेजस्वी ने कहा कि नीतीश को इसका जवाब देना चाहिए कि बिहार ‘गरीबी और बेरोजगारी का केंद्र’ क्यों बना हुआ है.
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15 साल का लेखा-जोखा
विधानसभा चुनावों में एनडीए की जीत के बाद 24 नवंबर 2005 को नीतीश ने मुख्यमंत्री के तौर पर कामकाज संभाला था. यह दूसरी बार था जब उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी— 2000 में उनका कार्यकाल मात्र सात दिन ही चला था. लेकिन 2005 के बाद से वह लगभग लगातार ही राज्य में सत्ता के शीर्ष पर हैं. एकमात्र रुकावट तब आई जब उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनावों में जदयू के खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेने के साथ जीतन राम मांझी को आगे करते हुए पद से इस्तीफा दे दिया. हालांकि, नीतीश 2015 में पुनः इस पद पर आसीन हुए और तब से आज तक इस पर कायम हैं.
राज्य के तमाम नेता इस बात को लेकर अचरज जता रहे हैं कि जदयू ने शासन के 15 साल की सालगिरह मनाने का फैसला ऐसे समय पर क्यों लिया, जब जल्द कोई चुनाव नहीं हैं. राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने कहा, ‘आमतौर पर पार्टियां चुनाव से पहले अपनी उपलब्धियां इस तरह गिनाती हैं.’
तिवारी का आकलन कहता है कि इस समारोह का उद्देश्य जदयू की एनडीए से अलग पहचान बनाए रखना हो सकता है, जिसे चुनाव के समय इसमें ‘शामिल’ कर लिया जाता है. उन्होंने कहा, ‘हाल के दो उपचुनावों में नीतीश ने जोर देकर कहा था कि प्रत्याशी एनडीए के थे, न कि अकेले जदयू के. याद कीजिए जब जदयू ने 2010 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पोस्टरों में नीतीश की छवि का इस्तेमाल करने पर आपत्ति जताई थी.’
नीतीश और लालू दोनों को तिवारी पिछले 50 सालों से जानते हैं. नीतीश के कार्यकाल के संदर्भ में उन्होंने कहा, ‘पिछले 15 सालों में सड़कों और बिजली की उपलब्धता के लिहाज से बुनियादी ढांचे का विकास हुआ है. लेकिन असफलताएं भी जमकर रही हैं. बिहार आज भी अमीर राज्यों का उपनिवेश बना हुआ है जहां सस्ता श्रम मिलता है.’
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सड़कें, सत्ता और राजनीति
नीतीश के सत्ता में पहले पांच वर्षों में नदारत सड़कों की जगह अच्छी-खासी सड़कें बन गई थीं और सरकारी अस्पताल- जो कभी जर्जर हालत में होते थे और जहां कुत्ते डेरा डाले रहते थे- भी अचानक बेहतर ढंग से सक्रिय हो गए. स्पीडी ट्रायल की शुरुआत के साथ कानून-व्यवस्था की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ.
2010 में लोगों ने राज्य विधानसभा की 243 सीटों में से 206 के साथ नीतीश के नेतृत्व वाले गठबंधन को सत्ता में पहुंचाया. हालांकि, यह दूसरा कार्यकाल नीतियों से ज्यादा राजनीति के लिए चर्चाओं में रहा. उन्होंने बिजली उपलब्धता में सुधार के अपने वादे को पूरा किया और पीक आवर्स में कुल बिजली की खपत 2005 में लगभग 700 मेगावाट से बढ़कर 2020 में 5,932 हो गई.
हालांकि, बिहार में उसके बाद के वर्षों में तीन सरकारें आईं, जिसमें 2013 में नीतीश ने राजद के साथ गठबंधन के लिए भाजपा को छोड़ दिया. उन्होंने 2015 के विधानसभा चुनावों में कम सीटें जीतीं, लेकिन सत्ता में बने रहने में सफल रहे.
हालांकि, राजद के साथ उनके गठबंधन में शुरू से ही उनकी और लालू की कार्यशैली के बीच विरोधाभासों के कारण दरारें नजर आ रही थीं और इस वजह से 2017 में वह एक बार फिर टूट गया. नीतीश भाजपा में लौट आए लेकिन इसने एक विश्वसनीय सहयोगी की उनकी साख को खराब कर दिया. पिछले चार वर्षों में उन्हें सृजन घोटाले और पेपर लीक जैसे विवादों का सामना करना पड़ा है.
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बाद के सालों में लगे झटके
नीतीश को पिछले कुछ सालों में एक के बाद एक झटके झेलने पड़े हैं. कड़े विरोध के कारण उन्हें भूमि सुधार के अपने 2008 के प्रयासों से पीछे हटना पड़ा. उन्होंने पूर्व में भ्रष्टाचार पर काबू पाने के लिए कई सख्त कदम उठाए थे लेकिन इसकी गिरफ्त में आए भ्रष्ट अधिकारियों की संख्या में भारी गिरावट आई है- 2017 में अधिकारियों के खिलाफ 83 सतर्कता मामलों की तुलना में 2020 में यह आंकड़ा सिर्फ 12 रह गया. 2019 के भारत भ्रष्टाचार सर्वेक्षण ने बिहार को सबसे भ्रष्ट राज्य के तौर पर राजस्थान के बाद दूसरे नंबर पर रखा.
माना जाता है कि नीतीश के पहले कार्यकाल की तुलना में कानून-व्यवस्था की स्थिति भी बदतर हो गई है, जिसमें कई लोगों और व्यवसायों पर हमले की घटनाएं सामने आई हैं.
राज्य में उद्योगों में निवेश भी कम रहा है. केंद्र ने 3 नवंबर को बताया कि उसने बिहार में 17 इथेनॉल उत्पादन केंद्रों को मंजूरी दे दी है लेकिन कुल निवेश सिर्फ 3,400 करोड़ रुपये है.
नीतीश कुमार ने 2016 में शराबबंदी की शुरुआत की, लेकिन इसे लागू करने में काफी मशक्कत करनी पड़ी. जहरीली शराब से जुड़ी घटनाओं में 40 से अधिक लोगों की मौत के बाद भाजपा विधायक हरिभूषण ठाकुर बचोल ने शराबबंदी खत्म करने की मांग उठाई.
जदयू के एक विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘यह 2005 वाले नीतीश कुमार नहीं है. उनके अधिकार घट गए हैं. जब भाजपा के मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों की बात आती है तो उन्हें दूसरी तरफ देखना पड़ता है.
पंद्रह साल बाद, पटना की सूरत भी राज्य के अन्य विभिन्न शहरों की तरह बदल रही है. सड़कों और पुलों का निर्माण जारी है. लेकिन अस्पताल डॉक्टरों और नवनिर्मित स्कूल शिक्षकों के अभाव का सामना कर रहे हैं. नए इंजीनियरिंग और चिकित्सा संस्थान बन गए हैं, लेकिन तकनीकी कर्मचारियों की कमी है.
एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट, पटना के एक अर्थशास्त्री पी.पी. घोष ने नीतीश के मुख्यमंत्री के तौर पर 15 साल के कार्यकाल को मिले जुले असर वाला बताया.
उन्होंने कहा, ‘राज्य के पास नियुक्तियां करने के लिए पर्याप्त धन नहीं है और बड़ी संख्या में पद रिक्त पड़े हैं.’
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