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Monday, 17 June, 2024
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BJP में छिपे भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करना चाहते हैं तथागत रॉय, पार्टी उन्हें मानती हैं बोझ

दिप्रिंट के साथ विशेष बातचीत में पूर्व राज्यपाल तथागत रॉय ने दावा किया कि उन्हें अभी तक भाजपा की 'सक्रिय सदस्यता' नहीं दी गई है, जिसे उन्होंने 2015 में त्रिपुरा का राज्यपाल बनने के बाद छोड़ दिया था.

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कोलकाता: अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी जैसे भाजपा के दिग्गजों के साथ उनकी तस्वीरें कोलकाता स्थित उनके कार्यालय की दीवारों पर सजी हुई हैं और उनके किताबों की अलमारी (बुकशेल्फ़) में जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी पर उनके द्वारा स्वयं लिखी गई पुस्तक भी शामिल है.

तथागत रॉय के अनुसार, पार्टी में उनकी साख भी काफी प्रभावशाली रही है – उन्होंने 2002 और 2006 के बीच चार वर्षों तक भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई का नेतृत्व किया, और 13 वर्षों (2002-2015) तक इसकी राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे.

इसके अलावा रॉय ने त्रिपुरा (2015-2018) और मेघालय (2018-2020) के राज्यपाल के रूप में भी कार्य किया.

लेकिन रॉय का कहना है कि पिछले एक साल से, जब से उनका राज्यपाल वाला कार्यकाल अप्रैल 2020 में समाप्त हुआ है, वह भाजपा की ‘सक्रिय सदस्यता’ प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि 2015 में त्रिपुरा का राज्यपाल बनने के बाद उन्होंने अपनी सदस्यता छोड़ दी थी.

सक्रिय सदस्यता का मतलब भाजपा की सामान्य सदस्यता, जिसके लिए केवल पार्टी के एक विशेष नंबर पर मिस्ड कॉल देना शामिल होता है, से एक कदम ऊपर है. साधारण सदस्य भाजपा के नियमित कार्यक्रमों में हिस्सा नहीं लेते हैं. सक्रिय सदस्यता के लिए आवेदन करना होता है तथा एक फॉर्म भर कर इसके साथ 200 रुपये का शुल्क जमा करना होता है. सक्रिय सदस्य पार्टी का हिस्सा बनते हैं, पार्टी कार्यालय जा सकते हैं और पार्टी के काम-काज में शामिल हो सकते हैं.

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दिप्रिंट के साथ एक विशेष बातचीत में रॉय ने कहा कि उन्होंने अपनी सक्रिय सदस्यता दुबारा प्राप्त करने के लिए बार-बार अनुरोध किया, आवेदन भेजे और पार्टी के महासचिवों बी.एल. संतोष और कैलाश विजयवर्गीय से मुलाक़ात की मांग की, लेकिन इस सभी की उपेक्षा की गई.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘इसके बजाय सुंदर महिलाओं, जिनमें से ज्यादातर नवोदित फ़िल्मी कलाकार थीं और जिनका कभी राजनीति से कोई वास्ता ही नहीं था’, को तत्काल पार्टी की सदस्यता और एक निश्चित सीट मिल गई.’

वे सवालिया लहजे में कहते हैं, ‘यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है कि पार्टी नेताओं के एक समूह ने तृणमूल के गुंडों का चुनाव किया और मेरे जैसे पार्टी के वफादार सैनिकों को बाहर छोड़ दिया. क्या मैं सक्रिय सदस्यता के लायक भी नहीं था? मैंने चार दशकों से भी अधिक समय तक पार्टी की सेवा की है और इसके कई उच्च पदों पर रहा हूं. ये नेता मुझे इस तरह कैसे अपमानित कर सकते हैं? एक वफादार कार्यकर्ता होने के नाते मैंने एक मिस्ड कॉल दिया और पार्टी का साधारण सदस्य बन गया.’

रॉय के करीबी सूत्रों ने कहा कि उन्होंने राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति में खुद को शामिल किये जाने की भी वकालत की थी, लेकिन उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया गया, जबकि तृणमूल के पूर्व मंत्री राजीव बनर्जी को अक्टूबर में इस समिति में शामिल कर लिया गया. इसके दो हफ्ते बाद ही बनर्जी भाजपा छोड़ तृणमूल में लौट गए.


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‘बीजेपी के व्हिसलब्लोअर’

विवादास्पद माने जाने वाले रॉय, जिनका सांप्रदायिक टिप्पणी करने का इतिहास रहा है, अपनी इस उपेक्षा को कतई हल्के में नहीं ले रहे हैं. वह अब खुद को एक ‘व्हिसलब्लोअर’ बताते हैं, और उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि वह ‘भाजपा में भ्रष्ट लोगों को बेनकाब करने’ के अभियान पर हैं. उनका ट्विटर बायो भी उनके इस ‘मिशन’ को दर्शाता है.

सत्तर के पार की उम्र के इस नेता ने कहा, ‘जब राज्यपाल के रूप में मेरा कार्यकाल समाप्त हुआ, तो मैंने पार्टी में फिर से शामिल होने और बंगाल की राजनीति में अपना योगदान देने की इच्छा व्यक्त की. मैंने कभी अपने लिए कोई पद या टिकट नहीं मांगा. मैं विजयवर्गीय और तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष के पास गया और उनसे मिला. मैंने उनसे मुझे फिर से पार्टी में शामिल करने का अनुरोध किया और यह भी कहा कि मैं घोष के नेतृत्व में काम करूंगा. लेकिन किसी अज्ञात कारण से उन्होंने कभी मेरे अनुरोधों का जवाब नहीं दिया. मैं कई रहस्यों से परिचित हूं, और मैं उन्हें बेनकाब करूंगा.’

रॉय ने आगे कहा कि वह पार्टी की सक्रिय सदस्यता इसलिए चाहते थे क्योंकि 2015 में जब वह राज्यपाल बने थे तो उन्होंने अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़ दी थी.

वे कहते हैं, ‘अब मैं समझ सकता हूं कि वे मुझे पार्टी के अंदर क्यों नहीं आने देना चाहते थे. कई चीजें बहुत गलत थीं. आम चुनाव (2019) में 18 सीटें जीतने वाली पार्टी उसी साल तीनों उपचुनाव हार गई, उस पर कभी कोई विश्लेषण नहीं किया गया, जबकि हर गंभीर पार्टी ऐसा करती है. विजयवर्गीय और उनके मोहरे दिलीप घोष ने पार्टी के लिए बिलकुल काम नहीं किया. पुराने सदस्यों को एक खास वजह से दरकिनार कर दिया गया है. केंद्रीय नेताओं ने खुद को पैसे और महिलाओं के मामले में लिप्त करना शुरू कर दिया था.’

रॉय ने दावा किया कि वह पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बी.एल. संतोष और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा से दिल्ली में मिले और उन्हें एक रिपोर्ट प्रस्तुत की.

उन्होंने बताया, ‘मैंने नड्डाजी को 10 पन्नों की एक रिपोर्ट सौंपी. मैंने उन्हें सब कुछ समझाया और उन्होंने मुझे समर्थन का आश्वासन भी दिया. लेकिन यहां कुछ नहीं हुआ.’

रॉय अपनी पार्टी के नेताओं, खासकर विजयवर्गीय और घोष के खिलाफ ट्वीट करते रहे हैं. उनका दावा है कि उनके ट्वीट पर पार्टी के किसी भी शीर्ष नेता या आरएसएस के किसी पदाधिकारी ने उनसे कभी कोई सवाल नहीं किया.

वे कहते हैं, ‘सोशल मीडिया ही एकमात्र ऐसी जगह है जहां मैं अपने विचार व्यक्त कर सकता हूं और लोगों को इन्हें जानने की जरूरत है. अगर सोशल मीडिया न होता तो मेरी आवाज ही गुम हो जाती. मैं कभी भी पार्टी को शर्मिंदा नहीं करना चाहता था और इसलिए मैंने अपनी चिंता व्यक्त करने के लिए हर संभव पदाधिकारी तक पहुंचने की कोशिश की. लेकिन मुझे अनसुना ही रखा गया.’

‘रॉय एक बोझ बन चुके हैं’

हालांकि, बीजेपी के शीर्ष नेताओं को लगता है कि रॉय अब पार्टी के लिए एक बोझ बन गए हैं.

एक शीर्ष केंद्रीय नेता ने उनका नाम न छापने की इच्छा व्यक्त करते हुए कहा, ‘वह हमारे लिए कुछ भी नहीं है. दिल्ली में बैठे हमारे वरिष्ठ नेता उनके बारे में सब कुछ जानते हैं. वह बस हतोत्साहित हैं. वह पार्टी संरचना की प्रक्रिया को अच्छी तरह से जानते हैं, लेकिन फिर भी इस बात ने उन्हें बंगाल चुनावों में हार के बाद से पार्टी को लगातार शर्मिंदा करने से कभी नहीं रोका. नड्डाजी ने उन्हें कुछ समय चुप रहने और पार्टी का समर्थन करने के लिए कहा, लेकिन वे नहीं माने. बी.एल. संतोष जी ने उन्हें इतना मुंहफट होने के लिए डांटा भी, लेकिन वह इसके बाद भी नहीं रुके. वह पार्टी को शर्मिंदा कर रहे हैं और हमारे लिए एक बोझ बन गए हैं.’

रॉय के आरोपों पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार करने वाले विजयवर्गीय ने कहा, ‘ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके बारे में हमारे केंद्रीय नेताओं को पता न हो. जो कुछ भी हो रहा है, उससे वे अच्छी तरह से वाकिफ हैं. उन्होंने मुझे फिर से महासचिव बनाया है. इसलिए पार्टी ने मुझ पर से अपना विश्वास नहीं खोया है. तथागत रॉय से कोई फर्क नहीं पड़ता.’

घोष, जो अब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के पद पर नहीं हैं, ने कहा, ‘हम वास्तव में उन्हें इतना महत्व देते हीं नहीं हैं. यह कठिन समय है और हमें अपने कार्यकर्ताओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होने की जरूरत है. यह सार्वजनिक झगडे या दोषारोपण का समय नहीं है. हम सभी को उनसे थोड़ी परिपक्वता दिखाने की उम्मीद थी. उन्होंने पार्टी को क्या दिया और पार्टी ने उन्हें क्या दिया? किसी दिन उन्हें इस पर भी विचार करना चाहिए.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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