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Thursday, 28 March, 2024
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चुनावी हार से नाराज बंगाल BJP दिल्ली को जिम्मेदार ठहरा रही, ‘वे बंगाली मानसिकता को नहीं जानते थे’

नेताओं का कहना है कि ‘टीएमसी से कचरा ले आने’, आधी-अधूरी रणनीति, ममता पर व्यक्तिगत हमले और ‘धनबल के दोषपूर्ण मॉडल’ के कारण पश्चिम बंगाल में भाजपा की हार हुई है.

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नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी को लगभग चार हफ्ते पहले सम्पन्न विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करने में नाकाम रहने के बाद पश्चिम बंगाल में अपने राजनीतिक लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.

तृणमूल कांग्रेस की आक्रामकता के खिलाफ अपना बचाव करते हुए और मतदान से पहले दल बदलने वालों की सत्ताधारी पार्टी में वापसी को देखते हुए भाजपा की राज्य इकाई ने प्रारंभिक आकलन करके इस नुकसान के लिए जिम्मेदार कुछ दोषियों की पहचान कर ली है.

इनमें से एक गलत टिकट वितरण था. दिल्ली के ‘निष्प्रभावी’ दिग्गज नेताओं के लिए राज्य के नेताओं को दरकिनार किया जाना एक और बड़ा कारण था.

उन्होंने यह भी कहा कि इसके अलावा ममता बनर्जी की तरफ से पूरे चाक-चौबंद तरीके से बंगाल की क्षेत्रीय पहचान यानी ‘बंगाली अस्मिता’ के मुद्दे को धार दिए जाने के आगे केंद्र का ‘हिंदू राष्ट्रीय गौरव’ का मास्टरप्लान पूरी तरह नाकाम हो गया.

नेताओं ने कहा कि निश्चित तौर पर ममता बनर्जी पर बुरी तरह व्यक्तिगत हमला किया जाना ताबूत में आखिरी कील साबित हुआ. इसने मतदाताओं, खासकर महिलाओं को पार्टी से दूर कर दिया.

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टिकट वितरण और उसके नतीजे

कुछ नेताओं ने एक निश्चित ग्रुप की तरफ से टिकट वितरण में ‘कुप्रबंधन’ को लेकर केंद्र को पहले ही पत्र भेजा है. उन्होंने इस मंडली में बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय, कभी ममता के खास रहे और अब प्रतिद्वंद्वी बने शुवेंदु अधिकारी, तृणमूल के एक और बड़े नेता रहे और दलबदलू राजीव बनर्जी और केंद्रीय नेताओं शिवप्रकाश और अरविंद मेनन को शामिल बताया है.

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले तृणमूल छोड़कर आए भाजपा के एक सांसद ने दिप्रिंट को बताया, ‘टिकट पाने वालों में 148 तृणमूल से आए दलबदलू थे जिसमें केवल छह जीते. बाकी बेअसर साबित हुए.’

सांसद ने कहा कि इतनी बड़ी संख्या में टीएमसी नेताओं के आने से भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओं में भी नाराजगी बढ़ी है, जिसने अभियान पर काफी हद तक असर डाला.

उन्होंने यह खुलासा भी किया कि 2019 में भाजपा को वामपंथियों का भी थोड़ा समर्थन मिला था क्योंकि दोनों एक ‘साझा दुश्मन’ तृणमूल कांग्रेस से लड़ रहे थे. ‘लेकिन इस बार ये ‘साझा दुश्मन’ भाजपा का हिस्सा बन चुका था. इसलिए माकपा समर्थक दूर रहे.’

भाजपा के बंगाल उपाध्यक्ष जयप्रकाश मजूमदार ने दोहराया कि पार्टी ने इतने सारे दलबदलुओं को पार्टी में शामिल करने की भारी कीमत चुकाई है. उन्होंने कहा, ‘जब असली मौजूद हो तो लोग दूसरी प्रति के लिए वोट क्यों देंगे? हो सकता है कि हमने 25 लाख वोट गंवा दिए हों.

भाजपा के एक अन्य सांसद की बातों में केंद्र विरोधी सुर झलक रहे थे. उन्होंने कहा कि दिल्ली के टिप्पणीकारों स्वपन दासगुप्ता और अनिर्बान गांगुली को साथ लाना काम नहीं आया. उन्होंने तर्क दिया, ‘कोई खुद को संभावित मुख्यमंत्री के तौर पर पेश कर रहा था…दोनों ने साक्षात्कार दिए, बैठकों की अध्यक्षता की. लेकिन वे बंगाली मानसिकता के बारे में कुछ नहीं जानते थे.’

हालांकि, दासगुप्ता ने कहा कि उनकी भूमिका सीमित है और टिकट वितरण में उनकी कोई भूमिका नहीं थी.

भाजपा नेता और त्रिपुरा और मिजोरम के राज्यपाल रहे तथागत रॉय ने भी ट्वीट के जरिये दिल्ली के दखल पर अपनी नाराजगी जताई. उन्होंने कहा, ‘हेस्टिंग्स के अग्रवाल भवन (भाजपा का चुनाव मुख्यालय) और 7 सितारा होटलों में बैठकर उन्होंने तृणमूल से आने वाले कचरे को टिकट बांटे.’

उन्होंने ‘केडीएसए (कैलाश विजयवर्गीय, दिलीप घोष, शिव प्रकाश और अरविंद मेनन)’ को 1980 से मोर्चा संभालने वालों की अनदेखी का दोषी ठहराया. उन्होंने सवाल उठाया कि हार के बाद वे कहां हैं, ‘वे पार्टी की टैली 3 से 77 पहुंचाने के बदले सिर्फ आराम कर रहे हैं.’

केंद्रीय नेतृत्व ने राय को नाराजगी जताने पर टिकट से वंचित किया और उन्हें सार्वजनिक रूप से अपनी राय जाहिर करने से रोक दिया.

बिष्णुपुर के सांसद और भाजपा युवा मोर्चा के प्रमुख सौमित्र खान ने भी पिछले हफ्ते एक बैठक में कहा था कि पार्टी नेतृत्व युवा विंग की क्षमताओं का पूरी तरह इस्तेमाल करने में नाकाम रहा है. खान ने बैठक में कहा, ‘इसके बजाये राजीव बनर्जी जैसे नेताओं को प्राथमिकता मिली. उन्होंने हर जगह चार्टर्ड विमानों से उड़ान भरी, लेकिन खुद अपनी सीट तक जीतने में नाकाम रहे.’


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एबीएम का गलत इनपुट, कमजोर स्थानीय संगठन और धनबल की संस्कृति

नेताओं ने कहा कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की चुनाव परामर्श संबंधी अपनी इकाई, एसोसिएशन ऑफ बिलियन माइंड्स (एबीएम) ने भी जमीनी स्थिति का पूरी तरह गलत आकलन किया.

टीम के पास सबसे अहम काम मतदाता की नब्ज समझना, प्रत्याशी चयन के लिए फीडबैक और इनपुट जुटाना और यहां तक कि रैलियों के प्रबंधन का था—यानी एक तरह से वह भूमिका निभाना जो प्रशांत किशोर ने ममता बनर्जी के लिए निभाई थी.

एक नेता ने कहा कि लेकिन ‘राजधानी में बैठे आईटी पेशेवरों’ ने अमित शाह को गुमराह किया. उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा, उनके नारे ‘दीदी ओ दीदी’ का भी जबरदस्त उल्टा असर हुआ.’

एक अन्य नेता ने कहा कि भाजपा के धनबल ने वास्तव में पार्टी की संभावनाओं को क्षति पहुंचाई है. उन्होंने कहा, ‘कैडर किसी पार्टी की विचारधारा में विश्वास करते हैं. वामपंथी और टीएमसी के लिए यह मायने रखता है. लेकिन हमारे मामले में हर जगह पैसे का बोलबाला रहा. इसने प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं को अलग-थलग कर दिया.’

आसनसोल दक्षिण से भाजपा विधायक अग्निमित्रा पॉल को आगे का रास्ता काफी कठिन नजर आ रहा है. उन्होंने कहा, ‘हम मूर्खों की दुनिया में नहीं रह सकते. हमें 2024 से पहले अपने बूथ और स्थानीय स्तर की ताकत को मजबूत करना होगा. हम एक मजबूत संगठन के साथ ही टीएमसी की दहशत की राजनीति का मुकाबला कर सकते हैं.’

कैलाश विजयवर्गीय नुकसान की तह में नहीं जाना चाहते. उन्होंने कहा कि पार्टी अपनी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी है, साथ ही बताया कि नेताओं की प्रतिक्रिया अब भी आ रही है. उन्होंने कहा, ‘ममता एक सशक्त नेता हैं और महिलाओं ने एकजुट होकार उन्हें वोट दिया है. हम जल्द ही फिर से गंभीर प्रयास करेंगे. फिलहाल तो हम कोविड से प्रभावित और हिंसा पीड़ितों की मदद पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.’

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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