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Saturday, 22 February, 2025
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कंगना रनौत कहां हैं? BJP की पसंदीदा सांसद कैसे हुईं स्क्रिप्ट से गायब

इस साल के बजट सत्र में भाजपा सांसद कंगना रनौत लगभग नदारद रहीं. साथ ही साथ वे अपने निर्वाचन क्षेत्र में भी नज़र नहीं आईं और अदालती सुनवाई में भी शामिल नहीं हो रही हैं.

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नई दिल्ली: एक साल से भी कम समय पहले हुए आम चुनाव तक कंगना रनौत भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पोस्टर गर्ल थीं. अभिनेत्री के सांसद बनने के बाद, पार्टी ने 18वीं लोकसभा के पहले सत्र में विपक्ष के नेता राहुल गांधी का मज़ाक उड़ाने के लिए उनकी तारीफ की, लेकिन पिछले कुछ महीनों में, हिमाचल प्रदेश के मंडी से पार्टी की सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्र और संसद दोनों से ही लगातार गायब रही हैं.

पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के आंकड़ों के अनुसार, 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद अपने पहले संसदीय सत्र में 100 प्रतिशत उपस्थिति दर्ज करने के बाद, 2025 के बजट सत्र में कंगना की उपस्थिति शून्य रही. पिछले साल के बजट सत्र में उनकी उपस्थिति 80 प्रतिशत और शीतकालीन सत्र में 90 प्रतिशत थी.

कंगना न केवल संसद से गायब रहीं, बल्कि दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा के हाई-वोल्टेज अभियान से भी गायब रहीं. इसके अलावा, वे अदालती सुनवाई से भी दूर रहीं और अपने निर्वाचन क्षेत्र से भी अनुपस्थित रहीं.

भाजपा के मंडी जिला प्रमुख निहाल चंद शर्मा ने उनकी अनुपस्थिति पर निराशा जताई. शर्मा ने दिप्रिंट से कहा, “उनके संसदीय क्षेत्र में उनका कार्यालय है, लेकिन लोग उनकी उपलब्धता के बारे में पूछने के लिए मुझे फोन करते रहते हैं. वे शायद ही कभी अपने निर्वाचन क्षेत्र में आती हैं. उन्हें लोगों की समस्याओं को जानने के लिए अपने निर्वाचन क्षेत्र में ज़्यादा वक्त देना चाहिए.”

गीतकार और लेखक जावेद अख्तर द्वारा उनके खिलाफ दायर मानहानि के मामले में कंगना 5 फरवरी को मुंबई में हुई अदालती सुनवाई में भी शामिल नहीं हुईं. उनके वकील ने अदालत को बताया कि वह अपनी “संसदीय प्रतिबद्धताओं” के कारण नहीं आ पाईं, लेकिन अख्तर के वकील जय भारद्वाज की शिकायत में कहा गया कि वे पहले ही 40 अदालती तारीखों को छोड़ चुकी हैं.

तो, कई लोग यह सवाल पूछ रहे हैं: कंगना रनौत कहां हैं?

उनके कार्यालय ने कहा कि वे पिछले कुछ महीनों से मुंबई और मनाली के बीच आना-जाना कर रही हैं.

जनवरी में कंगना अपनी बहुप्रतीक्षित फिल्म इमरजेंसी की रिलीज़ में व्यस्त थीं, जो — हालांकि, उनकी पिछली कुछ फिल्मों की तुलना में कम फ्लॉप रही — बॉक्स ऑफिस पर उम्मीद के मुताबिक, प्रदर्शन नहीं कर पाई.

इसके बाद, जब फरवरी में बजट सत्र शुरू हुआ, तो कंगना बचपन के सपने को पूरा करने में व्यस्त थीं, मनाली में अपना पहला रेस्टोरेंट माउंटेन स्टोरी खोल रही थीं. लॉन्च का जश्न मनाते हुए इंस्टाग्राम पोस्ट में उन्होंने लिखा, “मेरा बचपन का सपना सच हो गया.”

कंगना के संसदीय प्रतिनिधि करण सिंह ने दिप्रिंट को बताया, “जिस दौरान संसद का सत्र चल रहा था, वे हिमाचल में अपने घर पर थीं और एक फिल्म के प्रमोशन में व्यस्त थीं.”


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भाजपा की स्टार उम्मीदवार

जब पिछले साल मंडी सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए कंगना रनौत को चुना गया था, तो दांव इससे ज़्यादा नहीं हो सकते थे.

यह सीट लंबे समय से हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के परिवार का गढ़ रही है. उनकी पत्नी, कांग्रेस नेता प्रतिभा सिंह इस सीट का प्रतिनिधित्व करती थीं. मंडी में जीत के महत्व को समझते हुए, भाजपा ने हिमाचल प्रदेश के विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को उनके अभियान की देखरेख करने का काम सौंपा.

मंडी के कोटली में लोकसभा चुनाव के लिए जनसभा के दौरान कंगना रनौत | ANI
मंडी के कोटली में लोकसभा चुनाव के लिए जनसभा के दौरान कंगना रनौत | ANI

मेहनत रंग लाई. कंगना ने वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह को 74,755 मतों के बड़े अंतर से हराया, जिससे हिमाचल प्रदेश में भाजपा को महत्वपूर्ण जीत मिली.

जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंडी लोकसभा क्षेत्र में प्रचार करने गए, तो उनका समर्थन उनके प्रति स्पष्ट था. पीएम ने कांग्रेस की सोशल मीडिया चेयरपर्सन सुप्रिया श्रीनेत पर कंगना के बारे में एक विवादास्पद पोस्ट करने के लिए हमला भी किया.

मोदी ने 24 मई को एक जनसभा में कहा, “आपने देखा है कि कांग्रेस पार्टी किस तरह से उन बेटियों का अपमान करती है, जिन्होंने अपनी मेहनत से सफलता पाई है, किस तरह से कांग्रेस पार्टी ने कंगना जी के लिए इस तरह के शब्द का इस्तेमाल किया. यह मंडी का अपमान है, हिमाचल का अपमान है और आपको इस अपमान के लिए कांग्रेस पार्टी को जवाब देना होगा.”

यह विवाद कुछ महीने पहले मार्च में तब शुरू हुआ था, जब श्रीनेत ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में लिखा था, “मंडी में क्या भाव चल रहा है?”.

इस टिप्पणी पर नाराज़ भाजपा ने कंगना का समर्थन किया और कहा कि यह अपमानजनक है. श्रीनेत ने माफी मांगी और पोस्ट को हटा दिया, कहा कि उनके अकाउंट से छेड़छाड़ की गई है.

ऊंची उड़ान

संसद के अपने पहले सत्र में कंगना हर जगह मौजूद थीं — अपने डिज़ाइनर आउटफिट्स और बैग्स को दिखाती हुई, पत्रकारों से फोटो खिंचवाती हुई और राहुल गांधी पर रोज़ाना टीवी पर साउंड बाइट देती हुई. वे कांग्रेस नेता का मज़ाक उड़ाने का कोई मौका नहीं चूकती थीं. जब विपक्ष के नेता के तौर पर गांधी ने अपना पहला भाषण दिया, तो कंगना ने इसे तुरंत “स्टैंडअप कॉमेडी” करार दिया और यहां तक ​​कि उनसे “थेरेपी” लेने का आग्रह भी किया.

कंगना ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, “विपक्ष के नेता के तौर पर अपने पहले भाषण में राहुल गांधी जी ने जो भी गैरजिम्मेदाराना बयान दिए, उसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि वे एक राहुल नहीं हैं. वास्तव में, उनके दो रूप हैं, एक अब संविधान के लिए जिएगा और दूसरे को उन्होंने मार दिया है. यह मज़ाक नहीं है, राहुल जी को तुरंत कुछ थेरेपी सेशन लेने चाहिए. बहुत से मनोवैज्ञानिक इस बात से सहमत होंगे कि परिवार/मां की ओर से किसी और की तरह बनने का दबाव किसी को भी पहचान का संकट दे सकता है…”

संसद में कंगना का शुरुआती रिकॉर्ड प्रभावशाली रहा है.

पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार, वे छह बहसों में शामिल रहीं, जिसमें उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र से संबंधित मुद्दों को उठाया, इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में आध्यात्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए रेलवे लाइन की ज़रूरत और राज्य में एक स्पोर्ट्स कैंपस बनाने के बारे में भी चर्चा की.

नई दिल्ली में शीतकालीन सत्र के दौरान संसद में मीडिया से बात करती सांसद कंगना | ANI/राहुल सिंह
नई दिल्ली में शीतकालीन सत्र के दौरान संसद में मीडिया से बात करती सांसद कंगना | ANI/राहुल सिंह

उन्होंने बजट बहस में भी भाग लिया और कुंभ मेले में पर्यटन के बुनियादी ढांचे से लेकर प्रधानमंत्री आवास योजना और ओटीटी कंटेंट के प्रभाव जैसे विषयों पर 26 सवाल पूछे, जिनमें से ज़्यादातर बिना तारीख के थे. पहले कुछ महीनों तक, कंगना की सुर्खियां बटोरने वाली टिप्पणियां और राहुल गांधी पर हमले पार्टी को पसंद आए.

लेकिन उनके और भाजपा के बीच यह समीकरण ज़्यादा दिन तक नहीं चला. भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि कंगना को पहली निराशा तब हुई जब उन्हें उम्मीदों के बावजूद कैबिनेट में जगह नहीं मिली.

उन्होंने मंडी में एक स्थानीय मीडिया आउटलेट से बातचीत के दौरान किसी भी मंत्रालय का प्रभार संभालने की इच्छा जताई थी, लेकिन जल्द ही उन्होंने असलियत से समझौता कर लिया क्योंकि पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं को भी कैबिनेट में शामिल नहीं किया गया था.

सम्मान में कमी

भाजपा ने कंगना से खुद को अचानक दूर नहीं किया, बल्कि लोकसभा चुनाव के नौ महीने बाद यह कदम उठाया. इसका एक मुख्य कारण उनके बार-बार विवादित बयानों से पार्टी की नाराज़गी थी, खासकर किसानों और सिखों से जुड़े बयानों से.

जब उन्होंने किसानों के मुद्दे पर बात की, तो वे मुश्किल में पड़ गईं — हरियाणा में विधानसभा चुनाव के बीच में, जहां किसानों का विरोध राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दा था और सिखों की आबादी पांच प्रतिशत से अधिक थी.

अगस्त में कंगना ने एक हिंदी अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा कि 2020-2021 के किसान आंदोलन के दौरान, “लाशें लटक रही थीं और बलात्कार हो रहे थे” और “भारत में बांग्लादेश जैसी स्थिति बनाने की योजना थी”. उनकी टिप्पणियों ने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया, जिससे हरियाणा और पंजाब के भाजपा नेताओं ने आलाकमान के समक्ष अपनी चिंता दर्ज कराई. विपक्ष ने उनकी टिप्पणी को “किसानों का घोर अपमान” करार दिया.

भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने न केवल कंगना को तलब किया, बल्कि पार्टी ने उनके बयान से खुद को अलग करते हुए उनसे भविष्य में इस तरह की टिप्पणी नहीं करने को कहा. पंजाब भाजपा प्रमुख सुनील जाखड़ ने अभिनेत्री को फटकार लगाई और उन्हें पंजाबियों और किसानों को गलत तरीके से पेश करने के खिलाफ चेतावनी दी. पार्टी की फटकार और सख्त निर्देशों के बावजूद, कंगना ने एक महीने बाद अब वापस लिए गए तीन कृषि कानूनों को फिर से लागू करने की मांग करके एक और राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया. उन्होंने मंडी जिले में कहा, “मुझे पता है कि यह विवादास्पद होगा…लेकिन मुझे लगता है कि निरस्त किए गए कृषि कानूनों को वापस लाया जाना चाहिए. किसानों को खुद इसकी मांग करनी चाहिए. वह देश के विकास के लिए ताकत के स्तंभ हैं और मैं उनसे अपील करना चाहती हूं, अपने भले के लिए कानून वापस मांगें.”

नई दिल्ली में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से उनके आवास पर कंगना की मुलाकात | ANI
नई दिल्ली में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से उनके आवास पर कंगना की मुलाकात | ANI

राहुल गांधी ने तुरंत कंगना की टिप्पणी पर निशाना साधा और भाजपा की मंशा पर सवाल उठाया. हरियाणा में चुनाव प्रचार के बीच भाजपा को एक बार फिर उनके बयान से दूरी बनाने और राजनीतिक नतीजों को रोकने के लिए मजबूर होना पड़ा. पंजाब के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने दिप्रिंट को बताया, “प्रधानमंत्री ने कृषि कानूनों को खत्म करके, गुरु गोविंद सिंह के बेटों के साहस का जश्न मनाने के लिए वीर बाल दिवस मनाकर, गुरुद्वारों का दौरा करके और करतारपुर साहिब खोलकर पंजाब के सिख किसानों को शांत करने के लिए बहुत बड़ी राजनीतिक पूंजी लगाई है, लेकिन कंगना ने सिख समुदाय के भीतर पुराने घावों को फिर से खोलना शुरू कर दिया. वे धीरे-धीरे सिख समुदाय में सबसे ज्यादा नफरत करने वाली शख्सियतों में से एक बन गई है, जो तब सामने आया जब एक महिला कांस्टेबल ने उन्हें थप्पड़ मारा. किसानों के विरोध पर उनके लगातार रुख और प्रदर्शनकारियों को खालिस्तानी कहने से कंगना के खिलाफ भारी गुस्सा पैदा हुआ. उन्हें लगा कि यह उनकी खासियत है, लेकिन पीएम और भाजपा के शीर्ष नेताओं ने उन्हें बढ़ावा न देने और सिख समुदाय को और अधिक परेशान न करने का फैसला किया.”

उनकी फिल्म इमरजेंसी का ज़िक्र करते हुए नेता ने कहा, “जब उनकी फिल्म भाजपा की मदद कर रही थी, तब भी सतर्क भाजपा ने सिख समुदाय में इसके परिणामों को जानते हुए उनकी फिल्म का प्रचार नहीं किया.”

कंगना को मिला साथ

कंगना के साथ भाजपा की असहजता तब स्पष्ट हुई जब उनकी फिल्म इमरजेंसी, जिसमें उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का किरदार निभाया था, उसे सितंबर में अपनी निर्धारित रिलीज़ से पहले देरी का सामना करना पड़ा. हरियाणा चुनाव अभियान के चलते, पार्टी सिख मतदाताओं की नाराज़गी के डर से फिल्म की रिलीज़ की अनुमति देकर सिख भावनाओं को भड़काने के मूड में नहीं थी.

कंगना की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हुईं.

केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) के अध्यक्ष भाजपा द्वारा नियुक्त प्रमुख प्रसून जोशी हैं और केंद्र में भाजपा की सरकार है, फिर भी फिल्म को सेंसर द्वारा मंजूरी नहीं दी गई. सिख समुदाय के चित्रण को लेकर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) और अकाली दल के विरोध का सामना करते हुए, सेंसर बोर्ड ने कई कट की मांग करते हुए इसका प्रमाण पत्र रोक दिया. हरियाणा और पंजाब के भाजपा नेताओं ने भी पुराने घावों को कुरेदने से बचने के लिए हाईकमान से कंगना की फिल्म को रिलीज़ न करने का आग्रह किया.

अमृतसर में फिल्म “इमरजेंसी” का विरोध करते एसजीपीसी समर्थक | एएनआई/रमिंदर पाल सिंह
अमृतसर में फिल्म “इमरजेंसी” का विरोध करते एसजीपीसी समर्थक | एएनआई/रमिंदर पाल सिंह

बोर्ड द्वारा कई कट मांगे जाने के फैसले की आलोचना करते हुए, गुस्से में कंगना ने “सेंसर एक्ट” को एक और “इमरजेंसी” कहा.

उन्होंने कहा, “मुझे नहीं पता कि हम तब क्या दिखाएंगे — क्या फिल्म में ब्लैकआउट है? यह मेरे लिए अविश्वसनीय वक्त है और मैं इस देश की इस स्थिति के लिए बहुत दुखी हूं.”

अपनी फिल्म को 6 सितंबर को मूल रिलीज़ की तारीख पर मंजूरी नहीं मिलने के बाद वे दुख जताती रहीं.

उन्होंने एक इंटरव्यू में यूट्यूब पत्रकार शुभांकर मिश्रा से कहा, “मेरी फिल्म पर भी आपातकाल लगा दिया गया है. यह बहुत निराशाजनक स्थिति है. मैं अपने देश और जो भी परिस्थितियां हैं, उससे काफी दुखी हूं. हम कितना डरते रहेंगे? मैंने इस फिल्म को बहुत आत्म-सम्मान के साथ बनाया है, यही वजह है कि सीबीएफसी कोई विवाद नहीं उठा सकता. उन्होंने मेरा प्रमाणपत्र रोक दिया है, लेकिन मैं फिल्म का बिना किसी कट के रिलीज़ करने के लिए दृढ़ संकल्पित हूं. मैं अदालत में लड़ूंगी और इसे बिना किसी कट के रिलीज़ करूंगी.”

सितंबर में रिलीज़ होने वाली इमरजेंसी आखिरकार जनवरी 2025 में सिनेमाघरों में आई, लेकिन कई कट्स के बाद और हरियाणा चुनाव खत्म होने के बाद.

लेकिन कई राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता को शायद इस बात से हैरानी हुई कि इस फिल्म को भाजपा और दक्षिणपंथी हलकों द्वारा प्रचारित नहीं किया गया. पार्टी के वैचारिक संदेश से जुड़ी अन्य फिल्मों के विपरीत, राष्ट्रीय राजधानी में इसकी कोई हाई-प्रोफाइल स्क्रीनिंग नहीं हुई और भाजपा के नेतृत्व वाली किसी भी राज्य सरकार ने इसे टैक्स-फ्री नहीं किया.

कंगना ने अपनी फिल्म के लिए अपना घर गिरवी रख दिया था और जनवरी का पूरा महीना इसके प्रमोशन और अलग-अलग क्षेत्रों में स्क्रीनिंग शेड्यूल करने में बिताया.

वे नागपुर में परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के लिए एक स्क्रीनिंग आयोजित करने में कामयाब रहीं, जहां महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस मौजूद थे, लेकिन इसके अलावा, भाजपा नेतृत्व ने इस फिल्म पर एक स्पष्ट चुप्पी बनाए रखी, जो 1975-77 के बीच की अवधि में संविधान के उल्लंघन के बारे में नैरेटिव को मजबूत करने के लिए तैयार की गई थी.

न तो मोदी और न ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आपातकाल की ज्यादतियों को उजागर करने के लिए फिल्म की प्रशंसा की. ऐसा तब हुआ जब पिछले साल ही शाह ने आपातकाल लागू होने के दिन 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में घोषित किया था, ताकि उस दौर की याद को लोगों के बीच, खास तौर पर युवाओं के बीच ज़िंदा रखा जा सके.

इसके उलट, जब फिल्म निर्माता विवेक अग्निहोत्री ने 2022 में कश्मीरी पंडितों के पलायन को दर्शाती विवादास्पद “द कश्मीर फाइल्स” रिलीज़ की, तो मोदी ने न केवल फिल्म बनाने के लिए अग्निहोत्री की प्रशंसा की, बल्कि भाजपा संसदीय दल की बैठक में इसका समर्थन भी किया.

माना जाता है कि मोदी ने कहा, “ऐसी फिल्में सच्चाई को उजागर करती हैं और इसे बदनाम करने की साजिश होती है.” उन्होंने आगे कहा, “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का झंडा बुलंद करने वाला पूरा जमात (गिरोह) पांच-छह दिनों से गुस्से में है. तथ्यों और कला के आधार पर फिल्म की समीक्षा करने के बजाय, इसे बदनाम करने की साजिश हो रही है.”

मोदी ने अग्निहोत्री और फिल्म से जुड़े अन्य लोगों को संसद में मिलने के लिए आमंत्रित भी किया और कई भाजपा राज्य सरकारों ने फिल्म की स्क्रीनिंग की और इसे टैक्स फ्री घोषित किया.

इसी तरह, जब अभिनेता विक्रांत मैसी अभिनीत “द साबरमती रिपोर्ट”, जिसमें 2002 के गोधरा ट्रेन अग्निकांड को दर्शाया गया था, रिलीज़ हुई, तो अश्विनी वैष्णव के नेतृत्व में सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने 3 दिसंबर को संसद की लाइब्रेरी में एक स्पेशल स्क्रीनिंग आयोजित की.

मोदी ने नड्डा, शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और पूरे मंत्रिपरिषद के साथ स्क्रीनिंग में भाग लिया.

जब सुदीप्तो सेन द्वारा निर्देशित एक और विवादास्पद फिल्म “द केरला स्टोरी” 2023 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले रिलीज़ हुई, तो न केवल मोदी ने अपने भाषणों में इसका उल्लेख किया, बल्कि भाजपा ने नड्डा की उपस्थिति में कर्नाटक में एक स्पेशल स्क्रीनिंग आयोजित की.

मोदी ने कर्नाटक में एक जनसभा के दौरान आरोप लगाया था, “केरला स्टोरी एक आतंकी साजिश पर आधारित है. यह आतंकवाद की घिनौनी सच्चाई को दिखाती है और आतंकवादी डिजाइन को उजागर करती है. कांग्रेस आतंकवाद पर बनी फिल्म का विरोध कर रही है और आतंकी प्रवृत्तियों के साथ खड़ी है.”

कंगना और मोदी की कोई मुलाकात नहीं

जबकि कंगना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया, वहीं किसान आंदोलन का समर्थन करने वाले कलाकार दिलजीत दोसांझ ने जनवरी में मोदी से मुलाकात की. यह मुलाकात वीएचपी और बजरंग दल की ओर से बहिष्कार की धमकी के बावजूद हुई क्योंकि दोसांझ ने अपने एक शो में कवि राहत इंदौरी की पंक्ति, “किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है” को उद्धृत करके कथित तौर पर मोदी पर कटाक्ष किया था.

मोदी ने इंस्टाग्राम पर उनकी बातचीत को साझा किया और दोसांझ की प्रशंसा करते हुए उन्हें “बहुमुखी कलाकार” बताया.

भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि दिलजीत के मामले की तुलना कंगना से नहीं की जा सकती.

पदाधिकारी ने कहा, “दिलजीत के सिख समुदाय, खासकर युवाओं में काफी फैन्स हैं. इसलिए, 2020 में किसानों के विरोध प्रदर्शन के लिए उनके समर्थन के बावजूद, प्रधानमंत्री ने उनसे मिलने के बारे में दो बार नहीं सोचा. राजनीति का मतलब है अपनी पहुंच बढ़ाना. दिलजीत की मुलाकात पार्टी के लिए फायदेमंद रही. भाजपा सांसद होने के बावजूद कंगना द्वारा किसानों के आंदोलन की आलोचना करना पार्टी के हित के खिलाफ है.”

इन महीनों में मोदी ने महान फिल्म निर्माता राज कपूर की शताब्दी मनाने के लिए पूरे कपूर परिवार से भी मुलाकात की, लेकिन कंगना को व्यक्तिगत रूप से मिलने की अनुमति नहीं दी गई.

जनवरी में यूट्यूब पत्रकार शुभांकर मिश्रा को दिए इंटरव्यू में उन्होंने अपनी निराशा और हताशा दिखाई. उन्होंने कहा, “मैं अपनी लाइफ में एक अकेली योद्धा हूं. कोई भी मेरे साथ नहीं है. जब मैं ज़िंदगी में स्ट्रगल कर रही थी, तब भी मैं अकेली थी. मैं निराश थी.”

उन्होंने कहा, “मैं इन वर्षों में पीएम से नहीं मिली हूं, यहां तक ​​कि जब वे मंडी में प्रचार करने आए थे, तब भी केवल शिष्टाचार का आदान-प्रदान हुआ था. मैं उनसे एक टीवी प्रोग्राम में मिली थी. मैंने उनसे कई बार मिलने की कोशिश की, लेकिन मैं उनसे व्यक्तिगत रूप से कभी नहीं मिली. बॉलीवुड के लोग कहते हैं कि वे प्रधानमंत्री से घंटों मिले हैं. मैं भी उनके साथ कई बातें शेयर करना चाहती हूं.”

दरकिनार किए जाने के बावजूद कंगना ने हर इंटरव्यू में मोदी की प्रशंसा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. कंगना ने पिछले साल 17 सितंबर को मोदी के जन्मदिन पर जारी ‘प्रधानमंत्री मोदी फ्रॉम रेड फोर्ट’ नामक किताब का संपादन भी किया था.

‘राजनीति उनके बस की बात नहीं’

कुछ भाजपा नेताओं का मानना ​​था कि कंगना राजनीति के लिए नहीं बनी है.

पंजाब के पूर्व मंत्री मनोरंजन कालिया ने दिप्रिंट से कहा, “राजनीति एक गंभीर मामला है. राजनीति उनके बस की बात नहीं है. उन्हें फिल्मों और एक्टिंग पर फोकस करना चाहिए. अपनी बेबाक टिप्पणियों के कारण वे एक आदतन अपराधी बन गई हैं. उन्होंने अक्सर पंजाब के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है. यहां तक ​​कि गांधी जी पर उनकी टिप्पणी भी अनावश्यक थी.”

पिछले साल गांधी जयंती पर, कंगना ने स्वतंत्रता संग्राम में गांधी की भूमिका को कमतर आंकते हुए एक इंस्टाग्राम स्टोरी पोस्ट की थी. उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की एक तस्वीर के साथ लिखा था, “देश के पिता नहीं, देश के तो लाल होते हैं. धन्य हैं भारत मां के ये लाल.” इस पोस्ट की भाजपा नेताओं ने काफी आलोचना की थी.

नाम न बताने की शर्त पर एक भाजपा पदाधिकारी ने कहा, “पूरी दुनिया स्वतंत्रता संग्राम में गांधी के योगदान को पहचानती है. राष्ट्रपिता का पीएम मोदी के दिल में विशेष स्थान है. प्रधानमंत्री को गांधी का अपमान करने वाले पसंद नहीं हैं.”

उन्होंने आगे कहा, “जब प्रज्ञा ठाकुर ने गांधी का अपमान किया, तो मोदी ने न केवल उनके खिलाफ बोला, बल्कि उन्हें भोपाल से अगले चुनाव से भी हटा दिया गया. इसी तरह, गांधी के स्वतंत्रता संग्राम को ‘ड्रामा’ कहने वाले छह बार के सांसद अनंत हेगड़े को 2024 के लोकसभा चुनाव से हटा दिया गया.”

अन्य नेताओं ने भी गांधी मुद्दे पर कंगना की आलोचना की.

पंजाब के एक भाजपा नेता हरजीत ग्रेवाल ने कहा, “उन्हें हर मुद्दे पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए. वे प्रवक्ता नहीं हैं और उन्हें अपने बयानों के मायनों का पता नहीं है. जब उन्होंने गांधी के बारे में बात की, तो उन्हें यह एहसास नहीं हुआ कि शास्त्री उनके सबसे बड़े अनुयायियों में से एक थे. यह उनके ज्ञान की कमी को दर्शाता है.”

लेकिन उनके और पार्टी नेतृत्व के बीच बढ़ती दरार के बावजूद, कई भाजपा नेता अभी भी मानते हैं कि कंगना रनौत का राजनीतिक करियर अभी खत्म नहीं हुआ है.

भाजपा के एक नेता ने कहा, “उनका ग्राफ नीचे गया है, लेकिन खत्म नहीं हुआ है. अगर वे अपना रास्ता सुधार लें और कम बोलें, तो पार्टी सभी को अच्छा नेता बनने का उचित मौका देगी.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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