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Friday, 22 November, 2024
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जब हिंदुओं के उत्पीड़न के मुद्दे पर जिन्ना के अनुयायी पाकिस्तानी मंत्री ने इस्तीफ़ा दिया

अल्पसंख्यकों के साथ सलूक के मुद्दे पर बीते सप्ताह के आखिर में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और पाकिस्तान के एक मंत्री के बीच ट्वीट-युद्ध छिड़ गया.

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नई दिल्ली: पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ सलूक का मुद्दा पिछले सप्ताह के आखिर में ट्विटर पर छाया रहा, जब पाकिस्तान के सिंध सूबे में दो नाबालिग हिंदू लड़कियों के कथित अपहरण और जबरन मुसलमान बनाकर उनकी शादी कराए जाने के मुद्दे पर भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और पाकिस्तानी सूचना एवं प्रसारण मंत्री फवाद हुसैन चौधरी के बीच ट्वीट-युद्ध छिड़ गया.

पाकिस्तान का गठन अविभाजित भारत में हिंदुओं के संभावित प्रभुत्व से बचने के नाम पर एक मुस्लिम देश के रूप में हुआ था, लेकिन वहां अब भी आबादी का करीब 1.6 प्रतिशत हिस्सा हिंदुओं का है, जिनमें से अधिकांश सिंध में रहते हैं. बांग्लादेश वाला हिस्सा भी 1947 में विभाजन के दौरान पाकिस्तान में शामिल हुआ था, पर 24 साल बाद स्वतंत्र हो गया.

इधर भारत में मुसलमानों की हैसियत अल्पसंख्यकों की है और आबादी में उनका 14.23 प्रतिशत हिस्सा है. दोनों ही देशों में अल्पसंख्यक समुदायों को कथित रूप से तंग किए जाने का मुद्दा बीते वर्षों में इन पड़ोसियों के बीच विवादित विषयों में शामिल रहा है.


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इस मुद्दे पर तनातनी का एक शुरुआती उदाहरण विभाजन के तीन साल बाद तब दिखा, जब लियाक़त अली ख़ान के नेतृत्व वाले पाकिस्तान के प्रथम मंत्रिमंडल (1947-1951) के एक हिंदू मंत्री को इस्तीफ़ा देने के लिए विवश होना पड़ा था.

अपने अक्टूबर 1950 के इस्तीफ़े में मंत्री जोगेंद्र नाथ मंडल, जो पाकिस्तान की संविधान सभा के सदस्य भी रह चुके थे, ने हिंदू शब्द का 90 बार इस्तेमाल करते हुए पाकिस्तान सरकार पर हिंदू-विरोधी पूर्वाग्रह रखने का आरोप लगाया था.

‘ब्राह्मणों के हाथों उत्पीड़न’

मंडल 1904 में तत्कालीन बंगाल प्रेसीडेंसी के बारीसाल ज़िले में (अब बांग्लादेश में) एक दलित परिवार में पैदा हुए थे.

उनकी राजनीतिक यात्रा 1936 में शुरू हुई थी, जब वे बंगाल विधान सभा के लिए एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में बाकरगंज पूर्वोत्तर ग्रामीण सीट से निर्वाचित हुए. बंगाल के प्रमुख दलित नेता के रूप में उनकी ख्याति थी. मंडल राष्ट्रवादी नेता सुभाषचंद्र बोस और उनके बड़े भाई शरतचंद्र बोस से बहुत प्रभावित थे.

जब 1940 में बोस को कांग्रेस से निकाल दिया गया तो मंडल का पार्टी से विश्वास उठ गया और उन्होंने दूसरी राष्ट्रीय पार्टी मोहम्मद अली जिन्ना की मुस्लिम लीग का दामन थाम लिया.

अपेक्षाकृत बड़ी हिंदू लहर के विरुद्ध मुस्लिम लीग को उनका समर्थन इस उम्मीद पर था कि नए देश में निचली जाति के लोग ‘ब्राह्मणों के उत्पीड़न’ से बच सकेंगे.

माना जाता है कि निचली जातियों को पाकिस्तान के पक्ष में एकजुट कर मंडल ने सिलहट में जनमत संग्रह को प्रभावित किया था. और, पाकिस्तानी संविधान सभा में जिन्ना को क़ायदे आज़म (महान नेता) की पदवी देने के प्रस्ताव के समर्थन में उन्होंने पूरो ज़ोर लगा दिया था, जबकि बाकी अल्पसंख्यक सदस्यों में से लगभग सारे उस प्रस्ताव के खिलाफ थे.

जब आज़ादी और विभाजन से पहले अक्टूबर 1946 में अंतरिम भारतीय सरकार का गठन हुआ तो उसमें जिन्ना ने मुस्लिम लीग के पांच मनोनीत प्रतिनिधियों में मंडल को भी शामिल किया था. पर आज़ादी के तुरंत बाद मंडल का मोहभंग हो गया और उन्होंने पाकिस्तान में दलितों का उत्पीड़न जारी रहने का आरोप लगाया.

लियाक़त ख़ान को सौंपे अपने पत्र में मंडल ने पंजाब में बड़ी संख्या में दलितों के इस्लाम में धर्मांतरण कराए जाने के मुद्दे को भी छेड़ा था.

उन्होंने लिखा, ‘अधिकारियों से बार-बार गुहार लगाने के बावजूद मुसलमानों द्वारा अपहृत अनुसूचित जाति की दर्जन भर लड़कियों में से मात्र चार को ही बरामद किया गया है. सिंध और पाकिस्तान की (तत्कालीन) राजधानी कराची में थोड़ी संख्या में रह गए हिंदुओं की स्थिति बिल्कुल दुखद है.’

मंडल ने हिंदुओं को परेशान और उत्पीड़ित किए जाने के कई अन्य उदाहरण भी गिनाए, जिनमें विभाजन से पहले के मामले भी शामिल थे: ‘सिलहट के हबीबगढ़ में बेकसूर हिंदुओं, खासकर अनुसूचित जाति के लोगों पर पुलिस और सेना का अत्याचार, ढाका-नारायणगंज और ढाका-चटगांव के बीच ट्रेनों में और रेल लाइनों पर सैंकड़ों बेकसूर हिंदुओं को मारे जाने की ख़बर (ढाका दंगों के दौरान).’

अनुमानित 10,000 लोगों के हताहत होने तथा महिलाओं और बच्चों के मातम का ज़िक्र करते हुए मंडल ने लिखा कि वह खुद से एक ही सवाल कर रहे थे – ‘इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान में किसकी आमद हो रही है?’

उन्होंने हज़ारों लोगों की बलि लेने वाले अक्टूबर 1946 के नोआखली दंगों का भी ज़िक्र किया जहां बड़ी संख्या में ‘अनुसूचित जाति समेत हिंदू मारे गए और सैंकड़ो को इस्लाम में धर्मांतरित किया गया. हिंदू महिलाओं से बलात्कार किया गया और उनका अपहरण किया गया.’

मौत की धमकियों के बावजूद

मंडल ने ये भी लिखा कि 1946 के ‘सीधी कार्रवाई दिवस’ या ‘ग्रेट कलकत्ता किलिंग्स’ के बाद हुई मारकाट को लेकर क्रुद्ध हिंदुओं से मौत की धमकियां मिलने के बावजूद वे मुस्लिम लीग के लिए प्रतिबद्ध रहे. हज़ारों लोगों की हत्याओं का कारण बने दंगे बंगाल में प्रांतीय चुनाव में मुस्लिम लीग के सत्ता में आने के कुछ ही महीनों के भीतर ही हुए थे.

अपने पत्र में मंडल ने उल्लेख किया कि कैसे हिंदू समुदाय लीग मंत्रिमंडल से उनके इस्तीफ़े की मांग कर रहा था और उन्हें ‘लगभग रोज़ ही धमकी भरे पत्र मिल रहे थे.’

मंडल ने लियाक़त ख़ान को याद दिलाया कि हिंदुओं को हो रहे भयानक कष्ट से बेहद व्यथित होने के बावजूद ‘मैं अपनी नीति पर कायम रहा’ और ‘मुस्लिम लीग से सहयोग की नीति को जारी रखा’.


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1950 आते-आते वैसे भी उनका मोहभंग हो चुका था, पर माना जाता है कि नौकरशाही, जो अल्पसंख्यक नेताओं के खिलाफ थी, द्वारा अपने खुद के मंत्रालय में अलग-थलग कर दिए जाने के बाद वे इस्तीफ़ा देने के लिए बाध्य हो गए.

उन्होंने लिखा, ‘बेचैनी भरे लंबे संघर्ष के बाद, मैं इस नतीजे पर आया हूं कि पाकिस्तान हिंदुओं के रहने की जगह नहीं है और धर्मांतरण या उन्मूलन के ग्रहण ने उनका भविष्य अंधकारमय बना दिया है.’

मुस्लिम लीग के नेताओं द्वारा बारंबार घोषणा किए जाने कि ‘पाकिस्तान एक इस्लामी राष्ट्र है और रहेगा’ का उल्लेख करते हुए मंडल ने लिखा, ‘शरिया की व्यापक व्यवस्था में शासक सिर्फ मुसलमान ही हो सकते हैं, जबकि हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक ज़िम्मी हैं जो कीमत चुकाकर संरक्षण हासिल करने के हकदार हैं, और आप बाकियों से बेहतर जानते हैं प्रधानमंत्री जी, कि वो कीमत क्या है.’

इस्तीफ़ा देने के बाद मंडल भारत वापस आ गए, जहां 18 साल बाद उन्होंने अंतिम सांस ली.

पाकिस्तानी स्तंभकार अख़्तर बलूच ने दैनिक ‘डॉन’ में लिखा है कि ‘मुस्लिम लीग को मंडल का समर्थन, पाकिस्तान के लिए उनका त्याग, और मुसलमानों से उनके लगाव को कलंकित नहीं किया जा सकता.’ उन्होंने पाकिस्तान में उनके साथ हुए दुर्व्यवहार को पाकिस्तान के इतिहास का एक ‘काला अध्याय’ करार दिया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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