नई दिल्ली: राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नेता तेजस्वी यादव का हालिया बयान कि “बीजेपी के विपरीत” बिहार में विपक्ष आगामी विधानसभा चुनाव में एक साफ-सुथरी छवि वाले मुख्यमंत्री चेहरे के साथ उतरेगा, कांग्रेस की आपत्ति से टकरा गया है.
मंगलवार को कांग्रेस नेतृत्व ने इस मुद्दे पर फिर सवालों को टालते हुए सिर्फ इतना कहा कि गठबंधन के साझीदार “सही समय आने पर साथ बैठकर” मुख्यमंत्री उम्मीदवार पर फैसला करेंगे.
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरू का टालमटोल भरा जवाब इस बात को साफ करता है कि पार्टी तेजस्वी को इंडिया गठबंधन का सीएम चेहरा बनाकर चुनाव में जाने से हिचक रही है.
अल्लावरू ने मीडिया से कहा, “जब वक्त आएगा, गठबंधन की सभी पार्टियां मिलकर (सीएम चेहरे पर) फैसला करेंगी. महागठबंधन पर सोचने में समय लगाने के बजाय मैं मीडिया से अपील करता हूं कि बिहार की जनता के मुद्दों पर, भारत की जनता के मुद्दों पर ध्यान दें, जैसे रोज़गार, अपराध, पेपर लीक, शराब माफिया.”
कांग्रेस का यह साफ राजनीतिक विकल्प सामने न रखना भले ही उलझनभरा लगे, लेकिन बिहार कैंपेन में शामिल पार्टी के अंदरूनी लोग मानते हैं कि यह एक सोची-समझी रणनीति है.
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया, “ऐसा अनुभव है कि तेजस्वी को चेहरा घोषित करने पर गैर-यादव और गैर-प्रमुख जातियां हमारे खिलाफ एकजुट हो जाती हैं. यह पहले कई बार हो चुका है. पार्टी के भीतर राय है कि साफ घोषणा करने के बजाय अगर हम तटस्थ रहें तो किसी वर्ग को अलग-थलग करने से बच सकते हैं, लेकिन आरजेडी इतनी आसानी से मानने वाली नहीं है.”
तेजस्वी लगातार दबाव बना रहे हैं. पिछले हफ्ते एक टीवी चैनल से बातचीत में उन्होंने कहा, “थोड़ा इंतज़ार कीजिए. पांच-दस दिन की देरी से क्या फर्क पड़ता है? यह सीट बंटवारे के बाद होगा. क्या हम बिना (सीएम) चेहरे के लड़ेंगे? हम चेहरे के साथ ही लड़ेंगे. क्या हम बीजेपी हैं जो बिना सीएम चेहरे के चुनाव लड़ेंगे?”
दोनों सहयोगियों के बीच यह टकराव उस समय सामने आया है जब सीट बंटवारे पर तनावपूर्ण बातचीत चल रही है.
दिलचस्प बात यह है कि जहां कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व सावधानी बरत रहा है, वहीं बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह, जिन्हें तेजस्वी और उनके पिता लालू प्रसाद का करीबी माना जाता है, वे खुले तौर पर तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने की पैरवी कर रहे हैं.
मार्च में बिहार कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाए गए और राकेश कुमार से बदले गए सिंह ने पत्रकारों से कहा, “कोई और विकल्प नहीं है. तेजस्वी यादव ही सीएम चेहरा होंगे. वे महागठबंधन की समन्वय समिति के अध्यक्ष हैं और बिहार में विपक्ष के नेता भी हैं. 2020 के चुनाव में भी वही सीएम चेहरा थे.”
आरजेडी की मुश्किलें
2005 में 15 साल तक बिहार की सत्ता में रहने के बाद जब आरजेडी ने सत्ता खोई, तब से पार्टी सिर्फ दो बार थोड़े समय के लिए जेडीयू के साथ गठबंधन सरकार में रह पाई, लेकिन अपने दम पर दोबारा सत्ता में लौटने के लिए वह लगातार जूझती रही है, क्योंकि गैर-यादव पिछड़ी जातियों का बड़ा हिस्सा उससे अलग हो गया.
आज भी सवर्ण जातियों और गैर-यादव पिछड़ी जातियों के लोग अक्सर “जंगल राज” के दिनों की शिकायत करते मिल जाते हैं. यह शब्द राजनीतिक अर्थों से भरा है और 1990 से 2005 के बीच आरजेडी शासनकाल में अपराध बढ़ने की ओर इशारा करता है.
उक्त कांग्रेस नेता के मुताबिक, “स्थिति यह है कि आरजेडी बीजेपी और जेडीयू से ज्यादा, इतने सालों तक विपक्ष में रहने के बावजूद, एंटी-इनकंबेंसी से लड़ रही है. यादव और मुस्लिम वोट बैंक अब भी मजबूती से आरजेडी के साथ हैं. 2020 के चुनाव में सीएसडीएस के सर्वे में पाया गया कि 75 प्रतिशत यादव और मुस्लिम विपक्षी गठबंधन के साथ थे, लेकिन अपनी पकड़ को और जातियों तक फैलाने में पार्टी की दिक्कतें बनी हुई हैं.”
इंडिया गठबंधन की अहम सहयोगी सीपीआई(एमएल) लिबरेशन ने भी संकेत दिया है कि वह बिना सीएम चेहरा घोषित किए चुनाव में जाने के पक्ष में है. हालांकि, कांग्रेस से अलग, उसने साफ कहा है कि अगर विपक्ष की सरकार बनी तो तेजस्वी ही मुख्यमंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार होंगे.
सीपीआई(एमएल) लिबरेशन के नेता दीपांकर भट्टाचार्य ने बिहार में पत्रकारों से कहा, “हम संसदीय प्रणाली की सरकार में रहते हैं. किसी चेहरे की घोषणा ज़्यादा राष्ट्रपति प्रणाली (जैसे अमेरिका में) के साथ मेल खाती है. भारत में परंपरागत तौर पर ऐसा नहीं हुआ है. अभी समय चुनाव जीतने पर फोकस करने का है.”
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