मुंबई: उद्धव ठाकरे के महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के दो दिन बाद, महा विकास अघाड़ी (एमवीए) की तीन पार्टियां- शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) फिर से ड्राइंग बोर्ड पर वापस आ गई हैं.
दिप्रिंट को पता चला है कि बागी सेना नेता एकनाथ शिंदे के मज़बूती से महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री पद पर विराजमान होने और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के देवेंद्र फडणवीस के उनके डिप्टी के रूप में शपथ लेने के बाद सभी तीनों पार्टियां अपने-अपने विकल्प तोल रही हैं और अपने अगले कदम पर गौर कर रही हैं.
एमवीए गठबंधन 2019 में वजूद में आया, जब तीनों पार्टियों ने अपने राजनीतिक मतभेद किनारे रखकर सरकार बनाई थी, जिसमें शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने थे. एक सप्ताह से अधिक के राजनीतिक घठनाक्रम के बाद, बुधवार को आखिरकार एमवीए सरकार गिर गई. महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी ने जिस फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया था, उसमें दखल देने से सुप्रीम कोर्ट के इनकार के कुछ ही मिनटों के बाद ठाकरे ने इस्तीफा दे दिया.
सरकार के गिरने के बावजूद कांग्रेस तथा शिवसेना दोनों ने कहा है कि एमवीए गठबंधन जारी रहेगा. दिप्रिंट से बात करते हुए महाराष्ट्र कांग्रेस प्रमुख नाना पटोले ने कहा, ‘हम एमवीए बने रहेंगे. विपक्ष में अब तीन पार्टियां हैं. वो सब जो विपक्ष में हैं उन्होंने पहले ही एमवीए के नाम से एक ग्रुप बनाया हुआ है. सभी रणनीतियां वगैरह साथ मिलकर बनाई जाएंगी’.
इस बीच सेना के ठाकरे गुट को उम्मीद है कि गठबंधन एक साझा विपक्ष के रूप में बना रहेगा. सेना सांसद विनायक राउत ने दिप्रिंट से कहा कि ‘एमवीए एक है और ऐसा ही बना रहेगा’.
लेकिन एनसीपी, जिसके पास तीनों में सबसे अधिक सांसद हैं, उतनी ज़्यादा इच्छुक नज़र नहीं आती. एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने मंगलवार को शिंदे के शपथ लेने के बाद उन्हें बधाई दी लेकिन बाद में पुणे में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए, वो एमवीए सरकार के भविष्य को लेकर पूछे गए सवालों से कन्नी काट गए.
पवार ने कहा, ‘जो हुआ वो बस कल ही हुआ. इसलिए जल्दी क्या है? हम इस पर चर्चा करेंगे और हमें समय चाहिए होगा’.
चीज़ों को और जटिल करने के लिए गठबंधन में पहले ही मतभेद उभरने शुरू हो गए हैं: कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि उसके बहुत से नेता दो शहरों– औरंगाबाद और उस्मानाबाद का नाम बदलने के फैसले पर, पार्टी के सहमत होने से नाराज़ हैं. ये फैसला बुधवार को लिया गया जो ठाकरे के तहत आखिरी कैबिनेट बैठक साबित हुई.
ये भी अपेक्षा की जा रही है कि महाराष्ट्र में राजनीतिक मंथन का असर बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के अहम चुनावों पर भी पड़ेगा, जिनके मानसून के बाद कराए जाने की संभावना है. कांग्रेस और एनसीपी दोनों ही अकेले-अकेले चुनाव लड़ने की मंशा का ऐलान कर चुकी हैं.
ये भी देखना बाकी है कि महाराष्ट्र विधानसभा में अगला नेता प्रतिपक्ष (एलओपी) कौन होगा, हालांकि तीनों पार्टियों में एनसीपी के पास विधायकों की संख्या सबसे अधिक है.
सदन में एनसीपी विधायकों की संख्या 53 है, जबकि कांग्रेस के पास 44 विधायक हैं. इस बीच, सेना के ठाकरे गुट के पास 16 विधायक हैं.
महाराष्ट्र कांग्रेस प्रमुख पटोले ने कहा कि अगला एलओपी एनसीपी से होगा.
पटोने ने कहा, ‘एनसीपी के पास ज़्यादा संख्या है इसलिए उन्हीं में से होगा’.
लेकिन, अगला एलओपी कौन होगा, ये पूछे जाने पर एनसीपी प्रदेश प्रमुख जयंत पाटिल ने मुंबई में पत्रकारों से कहा कि तीनों पार्टियां ‘जल्द ही साथ बैठकर’ इस पर फैसला करेंगी.
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एमवीए में मतभेद
बुधवार को बढ़ते राजनीतिक संकट के बीच कांग्रेस और एनसीपी दोनों के मंत्री औरंगाबाद और उस्मानाबाद का नाम बदले जाने पर सहमत हो गए- एक ऐसा कदम जिसका मतलब था कि कांग्रेस और एनसीपी दोनों ने अपने लगभग तीन दशक पुराने वैचारिक रुख को त्याग दिया है.
औरंगाबाद का नाम बदलकर सांभाजी नगर करने की मांग शिवसेना लंबे समय से करती आ रही है. 1610 में निज़ाम शाही वंश के मलिक अंबर द्वारा बसाए गए शहर का- जिसे पहले खड़की कहा जाता था- उसके बाद औरंगाबाद नाम पड़ा, जब दक्षिण पर हुकूमत के दौरान ये औरंगज़ेब का मुख्यालय बन गया. 14 मई 1657 को मुगल सम्राट औरंगज़ेब ने श्रद्धेय मराठा राजा शिवाजी के बेटे सांभाजी की हत्या करा दी.
कैबिनेट ने उस्मानाबाद का नाम बदलकर- जिसका नाम हैदराबाद के आखिरी शासक मीर उस्मान अली खां के नाम पर था- धाराशिव किए जाने के एक दूसरे प्रस्ताव को भी मंज़ूरी दे दी. धाराशिव नाम शहर के नज़दीक स्थित छठी शताब्दी की गुफाओं से लिया गया है. ये बदलाव भी सेना के एजेंडा पर रहा था.
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि दोनों शहरों का नाम बदलने के फैसले ने पार्टी की महाराष्ट्र इकाई के बहुत से नेताओं को नाराज़ कर दिया है, जिसके नतीजे में प्रदेश इकाई और आलाकमान के बीच ऐसे समय मतभेद पैदा हो सकते हैं, जब एमवीए गठबंधन के तौर-तरीकों को तय किया जाना अभी बाकी है.
दिप्रिंट को पता चला है कि इस निर्णय पर स्पष्टीकरण मांगने के लिए कांग्रेस विधायकों ने प्रदेश नेतृत्व के साथ एक बैठक की मांग की है.
इसके अलावा, कांग्रेस सूत्रों का ये भी कहना है कि उनकी पार्टी और एनसीपी को ये भी चिंता है कि प्रदेश में सत्ता परिवर्तन और बीजेपी द्वारा केंद्रीय एजेंसियों के इस्तेमाल के नतीजे में आगे चलकर उनके और नेता पार्टी छोड़कर जा सकते हैं.
अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दिप्रिंट से कहा कि विचारधाराओं के अलग होने के बावजूद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ‘मज़बूती से उद्धव ठाकरे के साथ खड़े रहे’.
पदाधिकारी ने कहा, ‘हालांकि एमवीए के गठन के समय उनके (गांधी) मन में संदेह थे लेकिन उसके बाद से उन्होंने ठाकरे के साथ अच्छे कामकाजी समीकरण बना लिए हैं और वो ठाकरे के सरकार चलाने को भी सराहते रहे हैं. उस मायने में एमवीए बना रहेगा क्योंकि कानूनी और संवैधानिक कारणों से शिवसेना को ठाकरे परिवार से अलग नहीं किया जा सकता’.
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बीएमसी चुनावों से पहले बदलते समीकरण
महाराष्ट्र राजनीति में चल रहे मंथन से अगले बीएमसी चुनावों के भी प्रभावित होने की अपेक्षा है. बीएमसी जो देश का सबसे धनी नगर निकाय है, बरसों से शिवसेना का गढ़ रहा है और बीजेपी उसपर निगाहें जमाए हुए है.
हालांकि ये देखना अभी बाकी है कि एनसीपी- एक ऐसी पार्टी जिसका बीएमसी चुनावों में कोई खास असर नहीं है- आगे क्या करेगी लेकिन कांग्रेस नेताओं का कहना है कि उन्हें अकेले चुनाव लड़ने के अपने फैसले पर फिर से विचार करना पड़ सकता है.
महाराष्ट्र कांग्रेस के एक पदाधिकारी ने कहा, ‘हमने बीएमसी (चुनाव) अकेले लड़ने का फैसला इसलिए किया था क्योंकि नगर निकाय की 220 में से करीब 150 सीटों पर शिवसेना और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर है. बीजेपी 2014 के बाद ही बीएमसी में अपनी मौजूदगी दर्ज करा सकी थी’.
लेकिन उस फैसले पर अब फिर से विचार हो सकता है क्योंकि ‘सेना के मुंबई के विधायक भी एकनाथ शिंदे के साथ चले गए हैं’.
पदाधिकारी ने कहा, ‘काफी कुछ इस पर निर्भर करेगा कि उद्धव ठाकरे अब अपनी पार्टी को कैसे संभालते हैं’.
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