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Thursday, 21 November, 2024
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‘गीता प्रेस का शांति में क्या योगदान’, संस्थान को पुरस्कार मिलने से कांग्रेस-BJP में घमासान

जयराम रमेश ने पत्रकार अक्षय मुकुल की किताब ‘गीता प्रेस एंड द मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया’ का हवाला भी दिया. पूनावाला ने कहा कि कांग्रेस मुस्लिम लीग को धर्मनिरपेक्ष मानती है, लेकिन उसके लिए गीता प्रेस सांप्रदायिक है.

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नई दिल्ली: गोरखपुर स्थित धार्मिक ग्रंथों की विश्व प्रसिद्ध प्रकाशन संस्था को वर्ष 2021 के लिए ‘गांधी शांति पुरस्कार’ देने की घोषणा के बाद से ये केंद्र सरकार और विपक्ष के बीच इस मुद्दे पर वैचारिक मतभेद शुरू हो गया है.

गीता प्रेस को पुरस्कार देने के लिए कांग्रेस सांसद जयराम रमेश द्वारा केंद्र सरकार की आलोचना के बाद, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता मनोज कुमार झा ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली जूरी की आलोचना की, जो “18 जून को उचित विचार-विमर्श के बाद 100 साल पुराने प्रकाशक को सम्मानित करने का सर्वसम्मत” निर्णय पर पहुंची.

गीता प्रेस को पुरस्कार देने के ज्यूरी के फैसले पर आपत्ति जताने के लिए आलोचना का जवाब देते हुए मौजूदा और पूर्व केंद्रीय मंत्रियों सहित भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कई नेताओं ने कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों पर निशाना साधा.

वहीं, अमित शाह ने कहा कि गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार दिया जाना उसके भगीरथ कार्यों का सम्मान है.

गीता प्रेस के प्रवक्ता आशुतोष उपाध्याय ने दिप्रिंट से कहा, प्रकाशक पुरस्कार का स्वागत करता है और प्रधानमंत्री का आभारी है, लेकिन जूरी के फैसले पर राजनीतिक प्रतिक्रियाओं पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

संस्कृति मंत्रालय ने रविवार को एक बयान में कहा, प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एक ज्यूरी ने 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार गीता प्रेस, गोरखपुर को ‘‘अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में उत्कृष्ट योगदान’’ के लिए प्रदान करने का फैसला सर्वसम्मति से लिया है.

गांधी शांति पुरस्कार महात्मा गांधी की 125वीं जयंती के अवसर पर 1995 में भारत सरकार द्वारा स्थापित एक वार्षिक पुरस्कार है.

इसके प्राप्तकर्ता को एक करोड़ रुपये की पुरस्कार राशि, एक प्रशस्ति पत्र, एक पट्टिका और एक ‘‘उत्तम पारंपरिक हस्तकला / हथकरघा वस्तु’’ दी जाती हैं. पिछले पुरस्कार विजेताओं में इसरो, रामकृष्ण मिशन, बांग्लादेश के ग्रामीण बैंक, विवेकानंद केंद्र (कन्याकुमारी), अक्षय पात्र (बेंगलुरु), एकल अभियान ट्रस्ट और सुलभ इंटरनेशनल (नई दिल्ली) शामिल हैं.

लीला चित्र मंदिर गीता प्रेस गोरखपुर में पेंटिंग का काम | फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट
लीला चित्र मंदिर गीता प्रेस गोरखपुर में पेंटिंग का काम | फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट

पुरस्कार राशि स्वीकार नहीं

हिंदू धार्मिक ग्रंथों और पुस्तकों का दुनिया का सबसे बड़ा प्रकाशक ‘गीता प्रेस’ है. इसकी स्थापना वैशाख शुक्ल त्रयोदशी के दिन 29 अप्रैल, 1923 को सनातन धर्म के सिद्धांतों को बढ़ावा देने के लिए जयदयाल गोयनका और घनश्याम दास जालान ने की थी.

इस बीच, ‘गीता प्रेस’ की ओर से सोमवार को कहा गया कि प्रतिष्ठित ‘गांधी शांति पुरस्कार’ मिलना सम्मान की बात है, लेकिन किसी प्रकार का दान स्वीकार नहीं करने के अपने सिद्धांत के अनुरूप प्रकाशन संस्था एक करोड़ रुपये की नकद पुरस्कार राशि को स्वीकार नहीं करेगी.

प्रकाशन संस्था ने ‘गांधी शांति पुरस्कार’ के लिए चयनित होने पर केंद्र सरकार को धन्यवाद दिया. रविवार देर रात यहां गीता प्रेस के ट्रस्टी बोर्ड की बैठक में यह फैसला किया गया कि प्रतिष्ठित पुरस्कार तो स्वीकार किया जाएगा, लेकिन इसके साथ मिलने वाली एक करोड़ रुपये की धनराशि नहीं ली जाएगी.

त्रिपाठी ने सोमवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा, ‘‘हम केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार और विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘गांधी शांति पुरस्कार’ प्रदान करने के लिए धन्यवाद देते हैं. यह हमारे लिए बहुत सम्मान की बात है. किसी भी प्रकार का दान स्वीकार नहीं करना हमारा सिद्धांत है, इसलिए न्यास बोर्ड ने निर्णय लिया है कि हम निश्चित रूप से पुरस्कार के सम्मान के लिए पुरस्कार स्वीकार करेंगे, लेकिन इसके साथ मिलने वाली धनराशि नहीं लेंगे.’’

त्रिपाठी ने कहा कि न्यास बोर्ड के अध्यक्ष केशव राम जी अग्रवाल, महासचिव विष्णु प्रसाद चंदगोटिया और न्यासी देवी दयाल प्रेस का प्रबंधन देखते हैं.

हालांकि, वर्ष 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार मिलने की खबर मिलते ही गोरखपुर और गीता प्रेस में खुशी की लहर दौड़ गई.

गीता प्रेस के प्रबंधक लालमणि त्रिपाठी ने बताया कि प्रेस अब तक 93 करोड़ से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन कर चुका है और प्रेस का समस्त प्रकाशन कार्य गोरखपुर में होता है.

त्रिपाठी ने कहा कि वे 15 भाषाओं और 1,800 प्रकार की पुस्तकें प्रकाशित करते हैं. उन्‍होंने कहा कि वित्तीय वर्ष 2022-23 में पाठकों को दो करोड़ 40 लाख पुस्तकें उपलब्ध कराई गईं.

गीता प्रेस दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है, जिसने 14 भाषाओं में 41.7 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित की हैं. इनमें श्रीमद्‍भगवद्‍गीता की 16.21 करोड़ प्रतियां शामिल हैं.

गोरखपुर स्टेशन पर गीता प्रेस की एक दुकान | फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट
गोरखपुर स्टेशन पर गीता प्रेस की एक दुकान | फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट

यह भी पढ़ें: गीता प्रेस हुआ 100 साल का- जिसने हिंदू धर्म को भरोसेमंद, सस्ता और जन जन तक पहुंचाया


गीता प्रेस का विवाद

जूरी के फैसले की आलोचना करते हुए, कांग्रेस के जयराम रमेश ने रविवार को एक ट्वीट में कहा, ‘‘फैसला वास्तव में एक उपहास है और सावरकर और गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है’’.

उन्होंने पत्रकार अक्षय मुकुल की किताब ‘गीता प्रेस एंड द मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया’ का हवाला देते हुए कहा कि यह किताब ‘‘महात्मा के साथ उतार-चढ़ाव वाले संबंधों और राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक एजेंडे पर उनके साथ चली लड़ाइयों का खुलासा किया है’’.

अपनी किताब में मुकुल ने तर्क दिया, ‘‘गीता प्रेस और उसके प्रकाशनों द्वारा व्यक्त किए गए विचारों ने एक हिंदू राजनीतिक चेतना, वास्तव में एक हिंदू सार्वजनिक क्षेत्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.’’

राजद के राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा ने यह कहते हुए कि साहित्य में उनके योगदान से इनकार नहीं किया जा सकता है, पूछा कि गीता प्रेस-1923 के बाद से हिंदू धार्मिक ग्रंथों के दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशक ने पुरस्कार पाने के लिए शांति के प्रचार के लिए क्या किया है.

उन्होंने कहा, ‘‘वे किस तरह का सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन लाए हैं? उन्होंने अच्छा काम किया है, लेकिन शांति निर्माण में उनका क्या योगदान है? संगठन के चयन में कुछ पैरामीटर शामिल हैं. अगर आप गीता प्रेस का प्रचार करना चाहते थे तो आप उन्हें कोई भी राशि दे सकते थे लेकिन उनके साथ गांधी का नाम न जोड़ें.’’

आलोचना का जवाब देते हुए, केंद्रीय विदेश और संस्कृति राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी ने कांग्रेस पर ‘‘एक समावेशी समाज के मूल मूल्यों’’ को नकारने का आरोप लगाया और पूछा कि पार्टी ‘‘किस तरफ’’ थी.

सोमवार को एक ट्वीट में लेखी ने कहा कि गीता प्रेस के संस्थापक हनुमान प्रसाद पोद्दार – ‘‘अंग्रेज़ों द्वारा गिरफ्तार किए गए क्रांतिकारी’’ थे और गोविंद बल्लभ पंत ने बाद में उनके नाम की भारत रत्न के लिए सिफारिश की थी.

लेखी ने टिप्पणी की, ‘‘यह पहली पत्रिका है जिसमें कल्याण ने मंदिरों में दलितों के प्रवेश के लिए संघर्ष किया. कम लागत वाले प्रकाशनों ने लोगों को अपना विश्वास और गौरव बनाए रखने में मदद की. ब्रिटिश इन कृत्यों को देशद्रोही मानते थे और हिंदुओं द्वारा अभिव्यक्ति के ऐसे कृत्यों का आधुनिक भारत में पीएफआई पसंद लोगों द्वारा विरोध किया जाता है.’’

रमेश की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कांग्रेस को ‘हिन्दू विरोधी’ करार दिया और लोगों से सवाल किया कि गीता प्रेस पर उसके हमले से क्या कोई हैरान है?

उन्होंने एक ट्वीट में कहा, ‘‘गीता प्रेस को अगर ‘एक्सवाईजेड प्रेस’ कहा जाता तो वे इसकी सराहना करते… लेकिन चूंकि यह गीता है, इसलिए कांग्रेस को समस्या है.’’

पूनावाला ने कहा, ‘‘कांग्रेस मुस्लिम लीग को धर्मनिरपेक्ष मानती है, लेकिन उसके लिए गीता प्रेस सांप्रदायिक है. जाकिर नाइक शांति का मसीहा है, लेकिन गीता प्रेस सांप्रदायिक है. कर्नाटक में गोहत्या चाहती है कांग्रेस.’’

पूनावाला ने कांग्रेस नेता और पूर्व राज्यपाल शिवराज पाटिल के उस विवादित बयान का भी उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि लव जिहाद की बात सिर्फ इस्लाम में ही नहीं है, बल्कि ये भगवद् गीता और ईसाई धर्म में भी हैं. हालांकि, कांग्रेस ने उस समय कहा था कि इस तरह के बयान अस्वीकार्य हैं.

भाजपा प्रवक्ता ने कहा, ‘‘कांग्रेस ने कभी गीता की तुलना जिहाद से की थी (शिवराज पाटिल का बयान याद रखें). कांग्रेस ने प्रभु श्री राम के अस्तित्व को नकारा और राम मंदिर का विरोध किया. कांग्रेस गीता प्रेस से इसलिए नफरत करती है, क्योंकि वह सनातन के संदेश को कोने-कोने में फैला रहा है.’’

शाह ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘भारत की गौरवशाली प्राचीन सनातन संस्कृति और आधार ग्रंथों को अगर आज सुलभता से पढ़ा जा सकता है, तो इसमें गीता प्रेस का अतुलनीय योगदान है. 100 वर्षों से अधिक समय से गीता प्रेस रामचरितमानस से लेकर श्रीमद्भगवद्गीता जैसे कई पवित्र ग्रंथों को नि:स्वार्थ भाव से जन-जन तक पहुंचाने का अद्भुत कार्य कर रहा है.’’

उन्होंने कहा, ‘‘गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार 2021 मिलना उनके द्वारा किए जा रहे इन भगीरथ कार्यों का सम्मान है.’’

भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि अगर यह कांग्रेस के ऊपर है, तो सभी पुरस्कार और मान्यताएं ‘‘एक परिवार’’ की झोली में आ जाएंगी. उन्होंने सवाल किया कि क्या इस कदम पर सवाल उठा रहे हैं कि कांग्रेस नेता गीता प्रेस के योगदान के बारे में जानते भी हैं.

पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ‘‘माओवादी’’ मानसिकता वाले लोगों की पार्टी है.

यह टिप्पणी करते हुए कि कोई उस पार्टी से और कुछ भी उम्मीद नहीं कर सकता है जिसने ‘‘राम मंदिर के निर्माण के मार्ग में बाधाएं पैदा कीं और तीन तालक का विरोध किया’’. उन्होंने पूछा, ‘‘गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार पर उनकी टिप्पणी से ज्यादा शर्मनाक क्या हो सकता है.?’’

प्रसाद ने सोमवार को कहा, ‘‘हम इसकी निंदा करते हैं…मैं भारी मन से कहना चाहता हूं कि देश पर शासन करने वाली पार्टी में अब माओवादी मानसिकता वाले लोग हैं, वे राहुल गांधी के सलाहकार भी हैं…इसका पूरे देश को विरोध करना चाहिए.’’

भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘गीता प्रेस, गोरखपुर को ‘गांधी शांति पुरस्कार- 2021’ से सम्मानित किए जाने पर हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं देता हूं. भारत की गौरवशाली सनातन संस्कृति के संरक्षण व उत्कर्ष में पिछले 100 वर्षों का आपका योगदान प्रशंसनीय है. हमारे पवित्र ग्रंथों का वैश्विक प्रसार कर जो निःस्वार्थ सेवा आपने की है यह हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत है.’’

केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा, ‘‘गीता प्रेस भारत की संस्कृति से जुड़ी है. हमारे मूल्यों के साथ जुड़ी है. हिन्दू मान्यताओं के साथ भी जुड़ी है. किफायती साहित्य का निर्माण करती है. घर-घर में पहुंची हुई है. और आरोप कौन लोग लगा रहे हैं, जो मुस्लिम लीग को धर्मनिरपेक्ष मानते हैं.’’

कांग्रेस पर निशाना साधते हुए सिंह ने कहा कि वे भूल गए कि मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान बनने का श्रेय लिया था और मुस्लिम लीग ने ही दो राष्ट्र के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था.

उन्होंने कहा, ‘‘उसने ही देश का बंटवारा कराया और कांग्रेस के लिए वह धर्मनिरपेक्ष हो गई और ग्रीता प्रेस अप्रिय हो गई. गीता प्रेस ने विभाजन तो नहीं किया, जैसा मुस्लिम लीग ने किया.’’

बता दें कि पिछले दिनों विदेश दौरे के दौरान एक इंटरव्यू में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने केरल की इंडियन यूनियन ऑफ मुस्लिम लीग को धर्मनिरपेक्ष करार दिया था.

इससे पहले, भाजपा नेता और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व शर्मा ने इस फैसले की आलोचना के लिए कांग्रेस पर पलटवार करते हुए आरोप लगाया कि कर्नाटक में मिली चुनावी जीत के घमंड में चूर होकर वह अब भारतीय संस्कृति पर खुला प्रहार कर रही है.

उन्होंने एक ट्वीट में कहा, ‘‘वह चाहे धर्मांतरण विरोधी कानून को रद्द करना हो या फिर गीता प्रेस की आलोचना करना, भारत की जनता निश्चित रूप से दोगुनी शक्ति के साथ कांग्रेस के ऐसे प्रयासों को नाकाम करेगी.’’


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