नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के क्रीमी लेयर फॉर्मूले को फिर से तय करने संबंधी एक प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डालने का फैसला किया है. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई है. यह फैसला ऐसे समय पर लिया गया है जबकि कुछ हफ्तों बाद ही उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं.
सरकारी सूत्रों के मुताबिक, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के पूर्व सचिव बी.पी. शर्मा के नेतृत्व में बनाई गई एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने ‘क्रीमी लेयर’ के निर्धारण के लिए वार्षिक आय सीमा—जितनी आय तक वाले लोग कोटा के पात्र होंगे—को मौजूदा 8 लाख रुपये से बढ़ाकर 12 लाख रुपये करने का प्रस्ताव रखा था.
सूत्रों ने कहा कि वेतन आय को सकल वार्षिक आय का एक हिस्सा बनाने का भी प्रस्ताव था जो आरक्षण के लिए उम्मीदवार की पात्रता निर्धारित करने का आधार होती है.
अभी वेतन को आय की गणना में शामिल नहीं किया जाता. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘एक्सपर्ट कमेटी ने पाया कि ये भेदभावपूर्ण है और वेतनभोगी वर्गों, खासकर सरकारी अधिकारियों को अतिरिक्त लाभ देता है.’
एक अन्य सूत्र के मुताबिक फरवरी में इस संबंध में कैबिनेट नोट लाया गया था. हालांकि, सरकार ने इस पर अधिक विस्तृत अध्ययन का फैसला किया है और इसलिए प्रस्ताव को पिछले महीने सामाजिक न्याय मंत्रालय को लौटा दिया गया.
सूत्र ने कहा, ‘यद्यपि इस बदलाव से गरीब वर्गों को निश्चित तौर पर लाभ होगा (12 लाख रुपये की आय सीमा के साथ अधिक लोग आरक्षण के दायरे में आएंगे), लेकिन बी और सी श्रेणियों के सरकारी कर्मचारियों की तरफ से इसका विरोध किया गया है, जो इसके प्रावधानों से प्रभावित हो सकते हैं (आय की गणना में वेतन को भी शामिल करने से कई लोग क्रीमी लेयर में आ सकते हैं और कोटा से वंचित हो सकते हैं).’
उन्होंने कहा, ‘कैबिनेट का प्रस्ताव वापस कर दिया गया है और सरकार की तरफ से कोई निर्णय लिए जाने के बाद इसे फिर से पेश किया जाएगा.’
ओबीसी को सरकारी नौकरियों और सरकार द्वारा वित्त पोषित शिक्षण संस्थानों में प्रवेश में 27 प्रतिशत आरक्षण मिलता है, हालांकि, उनमें से क्रीमी लेयर को ऐसे लाभ से बाहर रखा गया है.
मौजूदा नियमों के तहत 8 लाख रुपये या उससे अधिक वार्षिक आय वाले ओबीसी परिवारों को ‘क्रीमी लेयर’ की श्रेणी में रखा जाता है.
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जाति जनगणना को लेकर आलोचना
यह प्रस्ताव ऐसे समय पर लौटाया गया है जब सरकार को जाति-आधारित जनगणना के मुद्दे पर विपक्ष के साथ-साथ अपने सहयोगी दलों की तरफ से पहले ही की कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है.
सितंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट को दिए एक हलफनामे में सरकार ने जाति जनगणना को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह बोझिल और प्रशासनिक स्तर पर एक कठिन कार्य होगा.
उत्तर प्रदेश में अगले साल की शुरू में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव के साथ विपक्ष ने जाति जनगणना की मांग को एक प्रमुख मुद्दा बना दिया है.
एक सूत्र ने कहा, ‘यूपी चुनाव काफी करीब होने के कारण सरकार ऐसे संवेदनशील समय पर इस मुद्दे को छूना नहीं चाहती है. हालांकि, इससे गरीब तबके को फायदा होगा, लेकिन बहुत संभव है कि विपक्ष इसे गलत तरीके से पेश करके भ्रम की स्थिति पैदा कर दे.’
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