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Friday, 20 December, 2024
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MLC पत्नी की जीत के साथ ‘बाहुबली’ ने दिखाया, ‘माफिया विरोधी’ योगी राज में भी उसकी चलती है

जेल में बंद गैंगस्टर बृजेश सिंह की पत्नी अन्नपूर्णा ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर इसी सप्ताह वाराणसी-भदोही-चंदौली एमएलसी सीट जीती है, उनका कहना है कि अगर ‘आशीर्वाद बना रहा’ तो वह भाजपा का समर्थन करेंगी.

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लखनऊ: नई सरकार बनते ही बाहुबलियों के खिलाफ ‘बुलडोजर’ अभियान चलाने के वादे के बीच भाजपा ने 2022 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में क्लीन स्वीप किया. हालांकि, चुनाव के बाद भी पूर्वांचल के कम से कम एक बाहुबली का राजनीतिक दबदबा बरकरार है, भले ही भाजपा उसे संरक्षण देने के आरोपों से इनकार क्यों न कर रही हो.

कभी अंडरवर्ल्ड डॉन और 1993 के मुंबई बम धमाकों के आरोपी दाऊद इब्राहिम के ‘ईनामी शार्पशूटर’ के तौर पर कुख्यात रहे गैंगस्टर बृजेश सिंह फिलहाल जेल में हैं, लेकिन उनकी पत्नी अन्नपूर्णा अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा चुनाव क्षेत्र वाराणसी में अपनी राजनीतिक पहचान बना रही हैं.

इसी हफ्ते उत्तर प्रदेश विधान परिषद के द्विवार्षिक चुनाव में भाजपा को 36 में से 33 सीटें मिली हैं. भाजपा जिन सीटों पर हारी, उनमें एक तो वाराणसी-भदोही-चंदौली एमएलसी सीट थी, जहां निर्दलीय अन्नपूर्णा सिंह ने सफलता हासिल की है.

लेकिन, एक अहम बात यह है कि गैंगस्टर की पत्नी ने यूपी में योगी आदित्यनाथ सरकार की जमकर तारीफ की.

अन्नपूर्णा सिंह ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि वह विधान परिषद भाजपा का पूरा समर्थन करेगी, ‘अगर आशीर्वाद रहेगा.’

उन्होंने यह भी कहा कि उसने चुनाव एकदम निष्पक्ष तरीके से जीता है. उन्होंने कहा, ‘कोई बाहुबल, कोई धनबल नहीं, बस केवल जनबल.’ लोग आरोप लगाते रहते हैं और मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकती.’

इस सीट से भाजपा के उम्मीदवार डॉ. सुदामा पटेल, जिनकी जमानत तक जब्त हो गई, ने इसी महीने के शुरू में आरोप लगाया था कि भाजपा कार्यकर्ता ‘शांत’ हो गए थे और उनके लिए प्रचार तक नहीं किया था क्योंकि उन्हें डर था कि उन्हें बाहुबली बृजेश सिंह द्वारा ‘चिह्नित’ किया जा सकता है.

वाराणसी-भदोही-चंदौली एमएलसी सीट पर पिछले 24 साल से बृजेश सिंह और उनके परिवार का कब्जा है. गैंगस्टर खुद 2008 से सलाखों के पीछे है, लेकिन राजनीतिक रूप से सक्रिय रहा है और इस बीच ये आरोप लगते रहे हैं कि ‘हिंदू डॉन’ और उसके परिवार को भाजपा का समर्थन हासिल है.

बृजेश के भतीजे सुशील सिंह, जो सैयदराजा से विधायक और भाजपा नेता हैं, पर भी आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप लगते हैं.

यह पूछे जाने पर कि क्या भाजपा सरकार परोक्ष रूप से बृजेश सिंह जैसे गैंगस्टर का समर्थन कर रही है, भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा कि ऐसे आरोपों में कोई सच्चाई नहीं है, यह अन्नपूर्णा सिंह के खिलाफ पार्टी प्रत्याशी उतारने से ही स्पष्ट है, और यह सीट केवल एक ‘मामूली हार’ को दर्शाती है.

हालांकि, ऐसे आरोप इस साल एमएलसी चुनावों से पहले से ही लगते रहे हैं.


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‘धनबल, बाहुबल, और भाजपा का संरक्षण’

2017 में बृजेश सिंह के भतीजे और सैयदराजा विधायक सुशील सिंह ने कथित तौर पर कहा था कि उनके चाचा ‘प्रभावी तौर पर भाजपा के साथ’ हैं, भले ही 2016 में वाराणसी-चंदौली-भदोही सीट पर एमएलसी चुनाव उन्होंने एक निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीता था. उस समय इस पर भी काफी चर्चाएं चलती रही थी कि कैसे भाजपा भी—बसपा और कांग्रेस की ही तरह—एमएलसी निर्वाचन क्षेत्र में अपना उम्मीदवार खड़ा करने से परहेज कर रही है.

इससे पहले, बृजेश उर्फ अरुण कुमार सिंह ने 2012 का विधानसभा चुनाव चंदौली जिले की सैयदराजा सीट से प्रगतिशील मानव समाज पार्टी के टिकट पर लड़ा था लेकिन वह 2,016 मतों से चुनाव हार गए थे.

2012 के चुनावों में बृजेश सिंह ने एक हलफनामा दायर करके अपने खिलाफ 39 मामले दर्ज होने की जानकारी दी, जिनमें से 24 आईपीसी की धारा 302—हत्या—के तहत दर्ज थे. वहीं, एक मामला गैंगस्टर एक्ट का था और दो केस पूर्व में प्रभावी रहे आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम यानी टाडा के तहत दर्ज थे.

बृजेश सिंह का नाम जिन हाई-प्रोफाइल मामलों में शामिल है, उसमें एक 1993 में जे.जे. अस्पताल शूटआउट है. ‘बदले’ की कार्रवाई कही जा रही इस घटना में वह अरुण गवली गिरोह के एक सदस्य शैलेश हल्दनकर की हत्या में शामिल था, जिसके बारे में माना जाता था कि उसने दाऊद के बहनोई इस्माइल पारकर को मार डाला था.

हलफनामे में बताया गया था कि बृजेश सिंह को नौ मामलों में से दोषमुक्त या बरी किया जा चुका है.

अमरनाथ चौबे, जिन्होंने 2015 में अपने पिता राम बिहारी चौबे (जिनके बृजेश सिंह के साथ घनिष्ठ रिश्ते थे) की हत्या की ‘साजिश’ में बृजेश के भतीजे सुशील सिंह के शामिल होने के खिलाफ एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी है, के मुताबिक परिवार में कोई बदलाव नहीं आया है.

चौबे की एक याचिका के आधार पर ही सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में जांच को ‘फर्जी’ करार देते हुए यूपी पुलिस को 2015 में हुई हत्या के मामले को फिर से खोलने का आदेश दिया था. लेकिन उनका आरोप है कि पूर्वी यूपी में इस परिवार और उनकी ‘अवैध गतिविधियों’ की जांच में पता लगाने के लिए और भी बहुत कुछ है.

चौबे ने कहा कि सुशील सिंह के खिलाफ 24 मामले दर्ज होने के बावजूद (हालांकि, उनके चुनावी हलफनामे में केवल एक का ही जिक्र है) उन्हें हथियारों का लाइसेंस मिला है. उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि बृजेश का परिवार अवैध रेत खनन में शामिल है और कथित तौर पर ‘कोयला माफिया’ है, हालांकि दिप्रिंट इसकी पुष्टि नहीं कर सका.

उन्होंने कहा, ‘बृजेश सिंह 1986 में सिकरौरा में चार बच्चों सहित सात लोगों की सामूहिक हत्या का आरोपी था. लेकिन मुझे इस शासनकाल में उसके खिलाफ किसी कार्रवाई की उम्मीद नहीं है. ये सरकार के दामाद बने हुए हैं.’

बृजेश सिंह को सिकरौरा हत्याकांड—जो मामला तीन दशक से ज्यादा समय तक चला—में गवाहों के ‘विरोधाभासी बयानों’ एक स्थानीय कोर्ट द्वारा बरी किया जा चुका है. चौबे ने बताया कि शिकायतकर्ताओं ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक और लखनऊ यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख रहे रमेश दीक्षित ने दिप्रिंट को बताया कि बृजेश सिंह पूर्वी यूपी के प्रमुख माफियाओं में से एक हैं और राजनीतिक संरक्षण का फायदा उठाता रहता है. क्योंकि उसके जैसे डॉन अपने धनबल की वजह से ‘चुनाव के दौरान समर्थन प्रदान करते हैं.’

पिछले 40 सालों से प्रदेश की राजनीति पर बारीकी से नजर रखने वाले दीक्षित का कहना है, ‘पूर्वी यूपी और धनबाद और बिहार जैसी जगहों पर कोयला माफियाओं की मौजूदगी छिपी नहीं है. योगीजी की हिंदू युवा वाहिनी के स्थानीय माफिया से घनिष्ठ संबंध रहे हैं.’

‘राम भक्त बाहुबलियों के लिए अलग नियम’

उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) विक्रम सिंह का आरोप है कि बृजेश सिंह ने कथित तौर पर अपनी जाति और समुदाय के कारण उत्तर प्रदेश में अपना दबदबा बरकरार रखा है.

डीजीपी और दीक्षित दोनों का दावा है कि बृजेश सिंह जैसे ‘हिंदू डॉन’ मुख्तार अंसारी—जिन्होंने राजनीतिक दबदबा बना रखा है और जिनके बेटे अब्बास अंसारी मऊ से विधायक और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के सदस्य हैं—जैसे मुस्लिम माफिया की काट बने हुए हैं.

डीजीपी ने कहा, ‘बृजेश सिंह की मुख्तार अंसारी के साथ दुश्मनी किसी से छिपी नहीं है और वो मुस्लिम विरोधी माफिया का चेहरा हैं. सरकार में अगर बाहुबलियों के लिए कोई जगह नहीं है, तो जाति, पंथ या धर्म के आधार पर चुनने की कोई जगह भी नहीं होनी चाहिए.’

दीक्षित ने भी कुछ ऐसी ही टिप्पणी की, ‘बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी जैसे माफिया रेलवे, सड़क, खदानों आदि के ठेके के लिए लड़ते रहते हैं…भाजपा हिंदू माफिया और मुस्लिम माफिया का यह नैरेटिव बनाने में सफल रही है.’

उनके मुताबिक, ‘ब्राह्मण माफिया’ ने 1980 के दशक में पूर्वी यूपी की राजनीति में अपना दबदबा कायम कर लिया था और उसके बाद ‘राजपूत माफिया’, जिसमें बृजेश सिंह आता है, ने अपना वर्चस्व स्थापित किया.

दीक्षित ने आरोप लगाया, ‘हिंदू समुदाय के डॉन राम भक्त और हिंदू धर्म के रक्षक हैं और भाजपा सरकार में दूसरे समुदाय के बाहुबलियों को निशाना बनाया जा रहा है.’

हालांकि, भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने दिप्रिंट को बताया कि पार्टी बृजेश सिंह को कोई राजनीतिक संरक्षण नहीं दे रही है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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