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Wednesday, 18 December, 2024
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वीएचपी राम मंदिर पर अध्यादेश चाहता है,जल्द करेगा आंदोलन की शुरुआत

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आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत पिछले हफ्ते के दौरान राम-मंदिर मुद्दे पर कई बार बयान दे चुके हैं. वीएचपी चाहती है कि भाजपा जल्द से जल्द फैसला ले.

नई दिल्ली: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत द्वारा अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के मुद्दे को उठाए जाने के एक सप्ताह बाद विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने भाजपा की अगुआई वाली एनडीए सरकार पर दबाव डालने के लिए आंदोलन शुरू करने का फैसला किया है. परिषद चाहती है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतज़ार न करके इस मामले में एक अध्यादेश लाये.

रविवार को एक बैठक में वीएचपी ने उत्तर प्रदेश इकाई के सदस्यों के साथ राम मंदिर के मुद्दे पर चर्चा की थी. विचार-विमर्श में शामिल एक नेता ने कहा कि मंदिर के समर्थन में एक आंदोलन शुरू करने के लिए बैठक में निर्देश दिए गए हैं.

उन्होंने कहा कि उद्देश्य सरकार पर दबाव बनाना है ताकि अध्यादेश लाया जा सके .


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वीएचपी राम मंदिर के मुद्दे पर 5 अक्टूबर को संतों की एक बैठक आयोजित करेगी जिसमें उनसे राम मंदिर के मुद्दे पर “निर्देश आमंत्रित ” किये जाएंगे. वीएचपी नेता ने बताया , “हम उनसे दिशानिर्देश प्राप्त करेंगे और तदनुसार काम करेंगे.”

“यह संभवतः एकमात्र तार्किक कदम हो सकता है क्योंकि सरकार पहले ही ट्रिपल तालक पर एक अध्यादेश ला चुकी है और एससी / एसटी के मुद्दे पर भी हस्तक्षेप कर चुकी है. अन्य राजनीतिक दलों को विरोध करने दें … सभी का पर्दाफाश होगा , ” उन्होंने कहा.

हालांकि, वीएचपी के कार्यकारी अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार ने चर्चाओं को खारिज किया.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “आज (रविवार), हमने एक बैठक अवश्य की थी लेकिन यह संगठनात्मक मुद्दों को हल करने के बारे में थी. हमने कुम्भ की तैयारी पर भी चर्चा की ”

उन्होंने कहा कि मंदिर के मुद्दे पर संतों की 5 अक्टूबर वाली बैठक में बातचीत होनी है.

आरएसएस का दबाव

पिछले हफ्ते आरएसएस प्रमुख कई बार दुहरा चुके हैं कि संघ की इच्छा “जितनी जल्दी हो सके”, अयोध्या में राम मंदिर बनाने की है.

इस विषय में एक त्वरित निर्णय की मांग ऐसे समय में हुई है जब लोकसभा चुनाव में बस कुछ ही महीने बचे हैं. भाजपा राम -मंदिर को लेकर अपने दावों को पूरा न कर पाने के फलस्वरूप अपने विचारधारात्मक गुरु आरएसएस और उसके सहयोगियों की आलोचना का शिकार भी हुई है.

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने पहले पहल इसका ज़िक्र विज्ञान भवन में हुए तीन दिवसीय सम्मेलन में किया था जहां उन्होंने इस मामले को “तत्काल” सुलझाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया.

दूसरी बार भागवत ने एक पुस्तक लोकार्पण कार्यक्रम में राम मंदिर के बारे में बात की थी जब उन्होंने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की उपस्थिति में कहा कि हालांकि अध्यादेश लाना सरकार का विशेषाधिकार है लेकिन राम मंदिर मुद्दे पर और देरी करना सही नहीं रहेगा.

भागवत ने इस कार्यक्रम में कहा, “केवल एक ही जन्मस्थान हो सकता है … लोग मानते हैं कि राम का जन्म यहीं हुआ था, जहाँ यह मंदिर बनना है…”

आरएसएस प्रमुख ने सवाल किया “… अगर कुछ लोग कहते हैं कि कोई राम नहीं था और न ही वहां कोई मंदिर था … तो यहां बैठे हम बौद्धिक और राजनेता संयम से काम ले सकते हैं . लेकिन गांवों में रहने वालों का क्या? क्या वे संयमित व्यवहार करेंगे?

भागवत ने यह भी कहा कि मंदिर के निर्माण में देरी “सत्य की अनदेखी” की तरह है.
भाजपा ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में राम मंदिर पर चर्चा भी नहीं की जिसके फलस्वरूप पार्टी पर मंदिर को लेकर गंभीर न होने के आरोप लगाए गए हैं.


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अब जबकि महत्वपूर्ण चुनाव होने हैं, इस मामले में त्वरित निर्णय लेने के लिए आरएसएस प्रमुख द्वारा भाजपा पर डाले जा रहे दबाव को एक सन्देश के तौर पर देखा जा सकता है.

मामला क्या है

सुप्रीम कोर्ट वर्तमान में अयोध्या में विवादित भूमि के स्वामित्व पर 2010 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलें सुन रहा है.

उच्च न्यायालय ने 2: 1 के अनुपात वाले अपने फैसले में में आदेश दिया था कि भूमि को तीन पक्षों – सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाडा और राम लला के बीच समान रूप से विभाजित किया जाए.

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