नई दिल्ली: आरएसएस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य राम माधव ने कहा है कि कश्मीर घाटी के बाहर किसी भी राजनीतिक दल ने अनुच्छेद 370 के हटाये जाने के फैसले का विरोध नहीं किया है. इसे देशभर में व्यापक समर्थन मिला है इसलिए इसे हटाए जाने के दो साल भी इसका विरोध नहीं किया गया है.
दिप्रिंट की कंट्रीब्यूटिंग एडिटर ज्योति मल्होत्रा को दिए एक इंटरव्यू में भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने कहा कि भारत की कोई भी बड़ी राजनीतिक पार्टी अनुच्छेद 370 का समर्थन नहीं करती थीं लेकिन कुछ राजनीतिक मजबूरी के कारण सभी इसे ढो रही थीं. .
अनुच्छेद 370, जिसने तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिया था, को मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को समाप्त कर दिया था. उसी समय राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों – जम्मू और कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया गया था .
माधव ने कहा कि अनुच्छेद 370 को बहाल करने को लेकर घाटी की पार्टियां अलग-थलग पड़ चुकी हैं. उन्होंने कहा कि पूरे देश का मानना है कि इसे पहले ही हटा दिया जाना चाहिए था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा किसी के पास ऐसा करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं थी.
माधव ने कहा, ‘क्या किसी राजनीतिक दल ने इसे एक बड़े मुद्दे के रूप में लिया है, क्या कांग्रेस ने इसे उठाया है? क्या भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने इसे उठाया है? कश्मीर में भी घाटी की पार्टियों के लिए खड़ा होने वाला कोई नहीं है. यहां तक कि अगर वे खड़े भी होते हैं, तो वे केवल सहानुभूति दिखाएंगे, इसके अलावा कोई भी अनुच्छेद 370 की बहाली के पक्ष में नहीं है. यह बात और अहसास घाटी के नेतृत्व को हो जाना चाहिए.’
माधव ने यह भी कहा कि जम्मू-कश्मीर में अब राजनीतिक दलों की प्रमुख शिकायत अनुच्छेद 370 नहीं है, बल्कि विशेष राज्य का दर्जा है. उन्होंने यह भी कहा कि गृह मंत्री अमित शाह उचित समय पर इसे भी बहाल कर देंगे.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया ‘लद्दाख एक केंद्र शासित प्रदेश रहेगा और जम्मू-कश्मीर राज्य का दर्जा बहाल कर दिया जाएगा.’
भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव ने 2016 में जम्मू-कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के बीच ऐतिहासिक गठबंधन के बारे में भी बात की. माधव ने कहा कि दोनों दलों के पास साथ आने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था.
2014 के विधानसभा चुनाव में खंडित जनादेश आने के बाद राम माधव ने गठबंधन को एक साथ जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. जम्मू क्षेत्र में जहां भाजपा को भारी समर्थन मिला, वहीं पीडीपी ने कश्मीर घाटी में अधिकांश सीटों पर जीत हासिल की.
उन्होंने कहा, ‘हमने यह भी सोचा था कि पीडीपी को गठबंधन में लाकर हम घाटी में नरम अलगाववाद को नियंत्रित करने में सक्षम होंगे और हम शायद इसे और अधिक मुख्यधारा में लाने में सक्षम होंगे, और मुझे लगता है कि हम सफल हुए हैं.’
पीडीपी की वर्तमान स्थिति पर टिप्पणी करते हुए आरएसएस नेता ने कहा कि आज बहुत कम नेता पार्टी के साथ हैं. उन्होंने कहा कि ज्यादातर नेता पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन और अपनी पार्टी के प्रमुख अल्ताफ बुखारी के साथ हैं.
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पेगासस ‘गैर-मुद्दा’, मोहन भागवत की मुस्लिम टिप्पणी
माधव ने पेगासस कांड को लेकर संसद में विपक्षी दलों द्वारा किए गए व्यवधान के बारे में बात की, और इसे बिना सबूत वाला मुद्दा बताया.
पिछले महीने लेखों की एक श्रृंखला में भारत से द वायर सहित अन्य अंतरराष्ट्रीय मीडिया वेबसाइटों ने खुलासा किया कि इजरायली साइबर टेक्नोलॉजी फर्म एनएसओ ग्रुप द्वारा विकसित पेगासस नामक एक स्पाइवेयर का कथित तौर पर कई प्रमुख नेताओं, राजनेताओं और पत्रकारों पर निगरानी का प्रयास करने के लिए इस्तेमाल किया गया था.
माधव ने कहा, ‘सिर्फ इसलिए कि कुछ अमेरिकी अखबारों, कुछ ब्रिटिश अखबारों और कुछ भारतीय डिजिटल एजेंसियों ने कुछ नाम और सुराग प्रकाशित किए हैं कि सरकार उनकी जासूसी कर रही है, इसे संसद में नहीं उठाया जा सकता है. अगली बार कोई भी ऐरा गैरा आकर कुछ भी आरोप लगाएगा.’
उन्होंने कहा, ‘न केवल भारत में, यहां तक कि दुनिया में, पेगासस पर लोगों के सामने एक भी वैध प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया गया है.’
आरएसएस नेता ने यह भी कहा कि पेगासस मुद्दे पर संसद को बाधित करने के बजाय, विपक्ष को संसदीय कार्य पर चर्चा में भाग लेना चाहिए.
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के उस बयान से उपजे विवाद के बारे में बात करते हुए कि हिंदू और मुस्लिम एक ही डीएनए साझा करते हैं, माधव ने कहा कि कुछ हिंदुओं ने भागवत के इरादे को गलत समझा.
उन्होंने कहा, ‘भागवत जी पहली बार ऐसी टिप्पणियां नहीं कर रहे थे, न ही वह इस तरह की टिप्पणियां करने वाले पहले नेता हैं. नेहरू की तरह गोलवलकर ने भी मुसलमानों से अपील की थी कि वे खुद को भारतीय समझें. मोहन भागवत हिंदुओं को कुछ भी नया नहीं बता रहे थे, उन्होंने कहा कि मुसलमानों को चिंतित नहीं होना चाहिए.’
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असम-मिजोरम संघर्ष
माधव, जिन्होंने महासचिव के रूप में भाजपा के पूर्वोत्तर मामलों की देखरेख की, ने 26 जुलाई को असम और मिजोरम के बीच सीमा संघर्ष को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताया. इस संघर्ष में सात पुलिसकर्मियों की मौत हुई थी.
‘मैं किसी को दोष नहीं दे रहा हूं, लेकिन सीमाओं के सीमांकन में पर्याप्त सावधानी नहीं बरती गई. लेकिन एक हफ्ते से अधिक समय से चीजें सामान्य हैं.’ उन्होंने कहा कि स्थिति को दोनों पक्षों द्वारा बेहतर तरीके से संभाला जा सकता था.
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