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Sunday, 3 November, 2024
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वाजपेयी-आडवाणी से मोदी-शाह तक अपने दाग़ी मंत्रियों से कैसे निपटती रही हैं बीजेपी सरकारें

2010 में एक और घटना में, वाजपेयी के भांजे अनूप मिश्रा के बेटे, जो उस समय मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री थे, ग्वालियर के एक युवक की मौत के सिलसिले में, अभियुक्त बना दिए गए.

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नई दिल्ली: विपक्षी नेताओं ने भले उत्तर प्रदेश सरकार पर केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी को बचाने का आरोप लगाया हो, जिनका बेटा आशीष मिश्रा लखीमपुर खीरी हिंसा में अभियुक्त है, और उनके इस्तीफे की मांग की हो, लेकिन मंत्री अभी भी गृह मंत्रालय के विभिन्न कार्यक्रमों में शिरकत करते नज़र आ रहे हैं.

बीजेपी सूत्रों के अनुसार अजय ने इसलिए इस्तीफा नहीं दिया है, क्योंकि वो अभी भी अपने बेटे को बेगुनाह समझते हैं.

लखीमपुर खीरी हिंसा हाल ही की उन कई घटनाओं में से एक है, जिनमें बीजेपी पर दोषियों को बचाने का आरोप लगाया गया है. ये 1980 के दशक की बीजेपी और उसकी सियासत के बिल्कुल उलट है, जब ख़ुद को एक अलग तरह की पार्टी के तौर पर पेश करने किए, बीजेपी ‘नैतिक ज़िम्मेदारी की एक न्यूनतम सीमा’ बनाए रखने की कोशिश करती थी.

बंगारू लक्ष्मण और जॉर्ज फर्नांडिस से बाबू सिंह कुशवाहा तक

ऐसी बहुत सी मिसालें रही हैं जब वाजपेयी और आडवाणी ने, या तो ऐसे नेताओं को निष्कासित कर दिया या उन्हें टिकट नहीं दिए, जो भ्रष्टाचार या अपराध के मामलों में आरोपी थे.

2000 में, जब वाजपेयी पीएम थे तो अहमदाबाद की एक अदालत ने, तत्कालीन केंद्रीय रक्षा उत्पादन राज्य मंत्री हरिन पाठक के खिलाफ, 15 साल पुराने एक केस में आरोप तय कर दिए, जो 1985 के आरक्षण-विरोधी आंदोलन के दौरान, एक पुलिसकर्मी की हत्या से जुड़ा था

ख़बर सामने आने पर वाजपेयी ने क़ानून मंत्री अरुण जेटली को विचार-विमर्श के लिए बुलाया. जेटली ने कहा कि अगर चार्जशीट दायर कर दी गई है, तो मंत्री के लिए अपने पद पर बने रहना बुद्धिमानी नहीं होगी. इसके बाद वाजपेयी ने हरिन से इस्तीफा देने के लिए कह दिया.

2010 में एक और घटना में, वाजपेयी के भांजे अनूप मिश्रा के बेटे, जो उस समय मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री थे, ग्वालियर के एक युवक की मौत के सिलसिले में, अभियुक्त बना दिए गए.

मृत युवक के भाई ने 15 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी, जिनमें अनूप मिश्रा के बेटे अश्विन मिश्रा, अनूप के भाई अभय मिश्रा और अजय मिश्रा के नाम शामिल थे. जब विपक्ष ने अनूप मिश्रा के इस्तीफे की मांग की, तो बीजेपी के तबके मध्य प्रदेश प्रभारी अनंत कुमार, और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आडवाणी से राय मांगी. आडवाणी ने अनूप से इस्तीफा देने के लिए कह दिया.

1996 में हवाला काण्ड में लिप्त होने के आरोप लगने के बाद, आडवाणी ने ख़ुद बतौर सांसद इस्तीफा दे दिया था. बाद में हाईकोर्ट की ओर से बरी किए जाने के बाद, 1998 में वो फिर से चुने गए.

मार्च 2001 में, न्यूज़ पोर्टल तहलका द्वारा किए एक स्टिंग ऑपरेशन में, स्वर्गीय बंगारू लक्षमण को जो उस समय बीजेपी अध्यक्ष थे, हथियारों के एक फर्ज़ी डीलर से कथित रूप से रिश्वत लेते दिखाया गया था. पूर्व समता पार्टी प्रमुख जया जेटली पर भी, तब के रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नाण्डिस के सरकारी आवास पर, नक़द पैसा लेने का आरोप लगाया गया था. वाजपेयी ने बंगारू लक्षमण को पार्टी अध्यक्ष के पद से हटा दिया, और जॉर्ज फर्नाण्डिस ने रक्षा मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया.

2004 में, लोकसभा चुनावों से पहले, प्रमोद महाजन की सिफारिश पर, तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष वेंकैया नायडू ने यूपी के नेता, धरम पाल यादव को पार्टी में शामिल कर लिया, जिसका बेटा विकास यादव नितीश कटारा हत्या मामले में मुख्य अभियुक्त था

जब वाजपेयी प्रचार के लिए अपने संसदीय चुनाव क्षेत्र लखनऊ पहुंचे, तो मीडिया ने पार्टी में धरम पाल के दाख़िले पर उनसे सवाल किया. जैसे ही वाजपेयी दिल्ली वापस आए, उन्होंने नायडू को बुलाया और उन्हें धरम पाल को पार्टी से बाहर करने के लिए कहा. अगले ही दिन उसे निष्कासित कर दिया गया.

2011 में, पूर्व यूपी मंत्री और एनआरएचएम घोटाले के अभियुक्त बाबू सिंह कुशवाहा बीजेपी में शामिल हो गए. उस समय नितिन गडकरी बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. विवाद खड़ा होने के बाद आडवाणी ने अपनी नाराज़गी का इज़हार किया, और गडकरी को मजबूरन उन्हें निकालना पड़ा.

पहले भी कई बीजेपी मंत्री, जिन पर भड़काऊ भाषण देने के आरोप थे, उनसे इस्तीफा देने के लिए कहा गया है.

मसलन, 2013 में, महिलाओं के ख़िलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने पर, मध्य प्रदेश के तत्कालीन आदिवासी मंत्री विजय शाह से इस्तीफा मांग लिया गया.


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हेट स्पीच और फर्ज़ी डिग्रियों के आरोप, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं

लेकिन, ये मोदी-शाह राज के विपरीत है जिसमें पिछले सात वर्षों में, हेट स्पीच या आपराधिक मामलों के आरोपी मंत्री, जनता के आक्रोश और विपक्ष की नाराज़गी के बावजूद, अपने शक्तिशाली पदों पर बने रहे हैं.

एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने दिप्रिंट से कहा, कि वाजपेयी-आडवाणी के दौर में नैतिकता सार्वजनिक जीवन का हिस्सा हुआ करती थी, लेकिन अब ये फोकस अब संगठनात्मक विस्तार की ओर शिफ्ट हो गया है.

नेता ने कहा, ‘वाजपेयी और आडवाणी ऐसे दौर में उभरे, जब शास्त्री जी ने एक छोटे से रेल हादसे की नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए, अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. इसका मतलब है कि नैतिकता सार्वजनिक जीवन के मूल्यों का हिस्सा थी. उन्होंने हमेशा इस बात को रोकने का हर संभव प्रयास किया, कि कांग्रेस की बुराइयां जनसंघ या बीजेपी में न आ जाएं

‘आडवाणी-वाजपेयी जोड़ी का मुख्य घोषणापत्र था ‘पार्टी विद अ डिफरेंस’. किसी भी क़ीमत पर सत्ता हासिल करना हमारा लक्ष्य कभी नहीं था. लेकिन इस नए ज़माने में निरंतर संगठनात्मक विस्तार पर ज़ोर, सबसे प्रमुख लक्ष्य बन गया है. राजनीति को साफ करने की कोई इच्छा नहीं रह गई है’.

गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा इसकी सबसे ताज़ा मिसाल हैं. शनिवार को लखीमपुर खीरी हत्याओं के मामले में उनके बेटे को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन उसके पिता अभी भी गृह राज्यमंत्री के अपने पद पर बने हुए हैं.

पिछले सात वर्षों में केवल एक मंत्री एमजे अकबर ने, यौत उत्पीड़न के आरोप लगाए जाने के बाद अपने पद से इस्तीफा दिया था.

2019 में, केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल के बेटे प्रबल पटेल को कथित तौर पर, कुछ लोगों पर हमला करके उन्हें मारने के प्रयास में, दामोह में गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बावजूद, इस पूरे विवाद के दौरान उन पर कोई आंच नहीं आई.

2014 में, विपक्ष ने फर्ज़ी डिग्रियों के मामले में मोदी के मंत्रियों स्मृति ईरानी और राम शंकर कथेरिया को निशाने पर लिया. लेकिन पीएम ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की.

इसी तरह, बलात्कार के आरोपी सांसद निहाल चंद जैन, मोदी कैबिनेट का हिस्सा बने रहे.

2015 में एक इंटरव्यू में, आडवाणी ने कहा था कि जनता का विश्वास बनाए रखना, राजनीति में सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है. नैतिकता का तक़ाज़ा है कि राजनीति में पवित्रता बनाए रखना सबसे बड़ा राजधर्म है. उन्होंने स्वयं तय किया था कि वो तब तक चुनाव नहीं लड़ेंगे, जब तक उनका नाम हवाला काण्ड में लगाए गए आरोपों से मुक्त नहीं हो जाता.

पिछले साल दिल्ली में एक चुनाव रैली के दौरान, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कथित रूप से एक भड़काऊ नारा लगाया था, जिससे काफी नाराज़गी फैल गई थी. लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करने की बजाय, बीजेपी ने उन्हें तरक्क़ी देकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे दिया.

सीएसडीएस के डायरेक्टर संजय कुमार का कहना था, ‘वाजपेयी के ज़माने में, पार्टी का फिल्टर सिस्टम कड़ाई के साथ दाग़ी नेताओं को बाहर कर देता था. राजनीतिक पवित्रता का ज़्यादा इस्तेमाल इसलिए भी होता था, क्योंकि दोनों नेता नेहरू के दौर की उपज थे, और उन्होंने जनसंघ की स्थापना की थी, ताकि उसे कांग्रेस का एक व्यवहार्य विकल्प बनाया जा सके’.

‘लेकिन अब बीजेपी में किसी की भी राजनीतिक दिशा, चुनाव जीतने की क्षमता से तय होती है, और राजनीतिक रूप से सही होने का, अलग से कोई फायदा नहीं है’.


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