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Friday, 22 November, 2024
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उच्च जातियां ‘सवर्ण’ हैं या ‘सामान्य वर्ग’? हिमाचल प्रदेश में आंदोलन के बीच BJP ने क्या रुख अपनाया

हिमाचल प्रदेश सरकार उच्च जाति समूहों के लिए एक पैनल में उनके संदर्भ में ‘सामान्य वर्ग’ का उल्लेख करने को लेकर आलोचनाओं के घेरे में आ गई है. हालांकि, सत्तारूढ़ दल दलित मतदाताओं को अलग-थलग रखने का जोखिम नहीं उठा सकता.

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नई दिल्ली: ‘सवर्ण’ (उच्च जाति) और ‘सामान्य वर्ग’ (जनरल कैटेगरी) शब्दों को लेकर छिड़ी बहस ने हिमाचल प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार को मुश्किल में डाल दिया है, खासकर ऐसे समय में जब इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.

उच्च जाति की आबादी वाला तबका और साथ ही पार्टी में उनका प्रतिनिधित्व करने वाले नेता इस वर्ग की शिकायतें दूर करने के लिए बनाए जा रहे पैनल के लिए ‘सवर्ण आयोग’ शब्द के इस्तेमाल के लिए आंदोलन कर रहे हैं, वहीं पार्टी इसके बजाये इसका नाम ‘सामान्य वर्ग आयोग’ रखने के अपने फैसले पर अडिग है, ताकि दलित और ओबीसी मतदाता अलग-थलग न हो जाएं.

भाजपा सूत्रों ने बताया कि इस सप्ताह के शुरू में शिमला में बंद कमरे में हुई एक बैठक में पार्टी के अनुसूचित जाति (एससी) मोर्चा के नेताओं ने राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बी.एल. संतोष को बताया कि अगर सवर्ण शब्द का इस्तेमाल किया गया तो राज्य में दलित वोट बैंक प्रभावित हो सकता है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, हिमाचल प्रदेश की आबादी में दलितों की संख्या लगभग 25 प्रतिशत है.

संतोष ने इस प्रतिक्रिया को गंभीरता से लिया. इस पर जोर देते हुए कि भाजपा और आरएसएस सबके कल्याण के लिए काम करते हैं, उन्होंने हिमाचल प्रदेश में पार्टी के सदस्यों से कहा कि वे सामान्य तौर पर ‘सवर्ण’ शब्द के इस्तेमाल से परहेज करें और ‘सामान्य’ पर ही टिके रहें, ताकि जाति-आधारित भेदभाव जैसी बात न उठे और इसका दलित और ओबीसी समुदायों के बीच कोई ‘गलत’ संदेश न जाए.

भाजपा के एक पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि इस पर बात तब शुरू हुई जब संतोष ने राज्य के अनुसूचित जाति मोर्चा प्रमुख नितिन कुमार से पूछा कि क्या वह आरएसएस में अपने समकक्ष के साथ समुदाय के मुद्दों पर नियमित चर्चा करते हैं. इस पर, नितिन कुमार ने कथित तौर पर जवाब दिया कि उन्होंने उन्हें बताया था कि ‘सवर्ण’ शब्द का उपयोग अनुसूचित जाति समुदाय को आहत करने वाला है और इसका इस्तेमाल उच्च जातियों को अनुचित रूप से प्रमुखता देता है. भाजपा पदाधिकारी ने बताया कि संतोष ने तब कहा कि सार्वजनिक सभाओं और बातचीत के दौरान कभी भी इस शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए.


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शब्दावली को लेकर लंबे समय से जारी खींचतान

पिछले साल, ओबीसी विधेयक पारित होने के तुरंत बाद कुछ राज्यों में उच्च जातियों के कल्याण के लिए ‘सवर्ण आयोग’ के गठन की मांग को लेकर आंदोलन हुए थे.

हिमाचल में भी दिसंबर 2021 में इस मुद्दे पर जमकर विरोध प्रदर्शन हुए, जिसके बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने विधानसभा के शीतकालीन सत्र में घोषणा की कि उच्च जातियों के लिए एक आयोग का गठन किया जाएगा.

फरवरी में, राज्य सरकार ने इस वर्ग की जरूरतें पूरी करने और शिकायतों को दूर करने के लिए एक आयोग के गठन की अधिसूचना जारी की. हालांकि, इस खबर को लेकर विरोध और ज्यादा तेज हो गया, कुछ तो इस आयोग का नाम ‘सामान्य वर्ग आयोग’ रखे जाने के कारण और कुछ अधिसूचना की प्रकृति के कारण.

10 मार्च को शिमला में उच्च जाति समूहों के प्रदर्शनकारियों ने स्थानीय प्रशासन पर पथराव किया और मांग की कि आयोग को एक अधिसूचना के बजाये अधिनियम के जरिये गठित किया जाना चाहिए और इसे ‘सामान्य वर्ग’ जैसे अधिक अस्पष्ट शब्द के बजाये ‘सवर्ण’ नाम से संदर्भित किया जाना चाहिए. उच्च जाति समूहों की यह भी मांग थी कि आयोग को एससी/एसटी अधिनियम का दुरुपयोग रोकना चाहिए.

गौरतलब है कि भाजपा शासित राज्य मध्य प्रदेश में भी पिछले साल विरोध के बाद उच्च जातियों के लिए एक आयोग का गठन किया गया लेकिन इसका नाम ‘सवर्ण आयोग’ ही रखा गया है.


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हिमाचल में क्या है जाति समीकरण

हिमाचल प्रदेश में उच्च जातियों को बोलबाला है, जहां राजपूतों (लगभग 32 प्रतिशत) और ब्राह्मणों (18 प्रतिशत) को मिलाकर कुल आबादी में उनकी हिस्सेदारी लगभग 50 प्रतिशत है. एससी आबादी 25 फीसदी, एसटी 6 फीसदी और ओबीसी 13 फीसदी है.

राज्य में उच्च जातियां भाजपा की पारंपरिक मतदाता रही हैं लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी दलित वोट-बैंक पर अधिक जोर दे रही है.

इसकी एक बड़ी वजह 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन है. 68 सीटों वाली हिमाचल प्रदेश विधानसभा में एससी के लिए आरक्षित 17 सीटों में से भाजपा ने 13 सीटें जीती थीं.

हालांकि, यह वोट-बैंक फिलहाल उच्च जातियों के आंदोलन और आयोग के गठन को लेकर असहज है और भाजपा स्पष्ट तौर पर इसे साधने की कोशिशों में जुटी है. उदाहरण के तौर पर पार्टी ने राज्य की एकमात्र राज्य सभा सीट के लिए दलित विद्वान डॉ. सिकंदर कुमार को नामित किया और उन्हें पिछले महीने निर्विरोध चुन भी लिया गया.

गौरतलब है कि राज्य के पार्टी प्रमुख सुरेश कश्यप भी एक प्रमुख दलित नेता हैं और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री राजीव सैजल भी इसी वर्ग से आते हैं.


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चुनाव की तैयारी

हिमाचल में भाजपा सरकार के सत्तासीन होने के मद्देनजर भी पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व इस बार चुनाव में पहाड़ी राज्य की ओर काफी ध्यान दे रहा है.

इस सप्ताह हिमाचल के दौरे पर पहुंचे बी.एल. संतोष ने चुनावी तैयारियों की समीक्षा के लिए राज्य के शीर्ष नेताओं के साथ बैठक की.

राज्य के नेताओं के साथ अपनी बातचीत में संतोष ने मतदाताओं और सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों के घरों में जाकर व्यक्तिगत स्तर पर उनकी प्रतिक्रिया जानने और उनके बीच पैठ बढ़ाने की जरूरत पर बल दिया.

हिमाचल प्रदेश में भाजपा के ओबीसी मोर्चा के प्रमुख ओम प्रकाश चौधरी ने दिप्रिंट को बताया, ‘उनका संदेश स्पष्ट था—बूथ बैठक और सम्मेलन करना सामान्य संगठनात्मक कार्य हैं लेकिन उनसे वास्तविक तस्वीर सामने नहीं आएगी क्योंकि पार्टी कार्यकर्ता आमतौर पर केवल अच्छी बातें ही कहेंगे. आपको कमियों सहित वास्तविक तस्वीर तभी मिलती है, जब आप प्रमुख मतदाताओं और लाभार्थियों के घरों में जाते हैं और उनसे उनकी समस्याओं के बारे में जानते हैं.’

चौधरी के मुताबिक, संतोष ने पार्टी की हर विंग के लिए एक महीने में एक लाख लाभार्थियों के घरों तक पहुंचने का लक्ष्य रखा है.

पिछले हफ्ते, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी पार्टी नेतृत्व के साथ बैठक के लिए अपने गृह राज्य हिमाचल प्रदेश का दौरा किया था. उन्होंने इस शुक्रवार को कांगड़ा जिले में रोड शो भी किया.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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