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Saturday, 16 November, 2024
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विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत के बाद मोदी सरकार से आर्थिक सुधारों के एजेंडे की नई उम्मीद

भाजपा नेताओं को लगता है कि महामारी के दौरान मुफ्त राशन और डीबीटी के माध्यम से नकद ट्रांसफर जैसी कल्याणकारी योजनाओं ने चुनावी रूप से काम किया है. यह तथ्य अब काफी समय से लंबित सुधारों को शुरू करने के लिए सरकार को प्रोत्साहित करेगा.

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नई दिल्ली: सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को पांच में से चार विधानसभा चुनावों में मिली जोरदार जीत की वजह से नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा कई बड़े और महत्वपूर्ण सुधारों को बढ़ावा देने की संभावना है. इसमें दो राज्य के स्वामित्व वाले बैंकों के निजीकरण और लेबर कोड़ (श्रम संहिताओं) के कार्यान्वयन जैसे वे सुधार शामिल जिन्हें लागू करने से सरकार इस वजह से हिचकिचा रही थी क्योंकि इसे चुनाव परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव की आशंका थी.

चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, बीजेपी ने यूपी में 255, उत्तराखंड में 47, गोवा में 20 और मणिपुर में 32 सीटें जीतीं हैं.

भाजपा नेताओं को लगता है कि कोविड महामारी के शुरुआती दौर में प्रवासियों को हुए कष्ट के प्रभाव को कम करने के लिए चलाई गईं प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत मुफ्त खाद्यान्न (राशन) देने और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डायरेक्ट बेनेफिटी ट्रांसफर – डीबीटी) योजना के माध्यम से गरीबों के खाते में किये गए नकद हस्तांतरण जैसी कई कल्याणकारी योजनाओं ने चुनावी रूप से काम किया है, और इससे मिले अनुकूल परिणाम सरकार को और भी लंबित सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करेंगे.

हालांकि, जिन सरकारी अधिकारियों, राजनीतिक विश्लेषकों और अर्थशास्त्रियों ने दिप्रिंट से बात कि उनका कहना था कि भाजपा शासित दो राज्यों – गुजरात और हिमाचल प्रदेश- में इस साल के अंत में होने वाले चुनाव, अगले साल के नौ राज्यों के विधानसभा चुनाव और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए, केंद्र आर्थिक सुधार के लिए आगे तो बढ़ना चाहेगा, लेकिन पूरी सावधानी के साथ.

कुछ लंबित फैसलों में केंद्रीय बजट 2021-22 में घोषित राज्य के स्वामित्व वाले दो बैंकों और एक सामान्य बीमा कंपनी का निजीकरण, 2019 से लंबित चार श्रम संहिताओं का कार्यान्वयन, गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) की दरों (स्लैब) को युक्तिसंगत बनाया जाना तथा जीएसटी के तहत इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर को दुरुस्त करना आदि शामिल हैं .

दिसंबर महीने में संसद में एक सवाल का जवाब देते हुए, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अभी तक बैंकों के निजीकरण पर निर्णय नहीं लिया है. जीएसटी स्लैब को युक्तिसंगत बनाये जाने पर राजस्व सचिव ने पहले दिप्रिंट को बताया था कि इसे जीएसटी परिषद की अगली बैठक में विचार के लिए लिया जाएगा, जिसके मार्च के अंत में होने की संभावना है.

सरकार द्वारा अब तक किये गए सुधार

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मोदी सरकार ने अपने सात वर्षों के कार्यकाल में कुछ बड़े सुधार वाले उपाय शुरू किए हैं, जैसे कि जीएसटी, इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, लेबर कोड्स आदि.

एक सरकारी अधिकारी ने उनका नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘केंद्र द्वारा वित्तीय बाजार में सुधारों के संबंध में भी कुछ अच्छे प्रयास किए गए हैं ताकि एफडीआई पर लगी ऊपरी सीमा बढ़ाकर को निवेश के प्रवाह को सुचारु बनाया जा सके. लेकिन इनसे मिले नतीजे पर्याप्त नहीं हैं.’

इस सरकार की एक प्रमुख आलोचना इस बात के लिए होती रही है कि सुधारों को शुरू करने के बावजूद, यह उनमें से कई को उनके तार्किक निष्कर्ष पर नहीं ले जा पाई.

उदाहरण के लिए चार श्रम संहिताओं को लें. संसद द्वारा सितंबर 2020 में पारित वेज कोड और 2019 में तीन अन्य कोड्स (इंडस्ट्रियल रिलेशन्स कोड, ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड तथा सोशल सिक्योरिटी कोड) को पारित किये जाने के बावजूद, केंद्र सरकार ने अभी तक नियमों को इस आधार पर अधिसूचित नहीं किया है कि अभी भी कई राज्यों द्वारा अपने-अपने अधिकार क्षेत्र के तहत इन नियमों को अधिसूचित किया जाना बाकी है.

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने अपना नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘श्रम बाजार ही वह क्षेत्र है जहां इस वक्त सुधारों की सबसे ज्यादा जरुरत है. एनडीए सरकार ने श्रम संहिताएं तो बनाईं, लेकिन इसे अभी तक लागू नहीं किया गया है.’

इसी बात का एक और उदाहरण वे तीन कृषि कानून हैं जिन्हें मोदी सरकार ने 2020 में लागू किया था. पांच राज्यों के चुनावों से पहले ‘किसान विरोधी’ के रूप में देखे जाने की चिंता के कारण केंद्र ने दिसंबर 2021 में उन्हें निरस्त कर दिया, बावजूद इस तथ्य के कि वह साल भर तक इस बात पर दृढ़ता के साथ टिकी थी कि वह इन कानूनों को वापस नहीं लेगी.

विश्लेषकों का कहना है कि सरकार का यह पुनर्विचार साल भर चले किसान आंदोलन के कारण जरूरी हो गया था.

मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल की शुरुआत में भी विभिन्न हितधारकों द्वारा किये गए हो-हंगामे के बाद भूमि अधिग्रहण कानून को ठंडे बस्ते में डाल दिया था

ऊपर उद्धृत सरकारी पदाधिकारी ने कहा कि पिछली यूपीए सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण को अत्यधिक दुरूह कार्य बनाने के बाद आर्थिक गतिविधियों को गति देने के लिए भूमि सुधार की बहुत अधिक आवश्यकता है.

इस सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘पीएम मोदी हर चुनावी जंग जीतने के फायदे को जानते हैं और उसी दिशा में अपने कदम बढ़ाते हैं. शौचालयों का निर्माण, सभी के लिए आवास, सौभाग्य योजना, नल के पानी की आपूर्ति जैसी सभी पहलें कल्याण-उन्मुख थीं, और ये एक प्रमुख राजनीतिक निवेश बनती जा रहीं हैं.’

इस सरकारी पदाधिकारी ने आगे कहा कि ये सभी पहलें लोकलुभावन होने की बजाए लोगों के लिए अधिक कल्याणकारी हैं, और पीएम मोदी तथा भाजपा लोकप्रियता एवं चुनावी लाभ दोनों मामलों में इनका भरपूर लाभ उठा रहे हैं.

दूसरी तरफ, राजनीतिक विश्लेषक सुहास पल्शिकर के अनुसार, मोदी सरकार चुनाव परिणामों को सुधारों से अलग करने में सफल रही है. उन्होंने कहा, ‘जहां तक सुधार के एजेंडे को आगे बढ़ाने की बात है तो इसे चार राज्यों में भाजपा जीत से जरूर मजबूती मिलेगी. लेकिन मुझे लगता है कि इन चुनाव नतीजों का असर अर्थशास्त्र से ज्यादा संस्कृति पर पड़ेगा. यह भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे को और बढ़ावा देगा. ‘

पल्शिकर ने कहा कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में हिंदुत्व के मोर्चे पर विशेष रूप से जोर दिया गया है. उन्होंने कहा, ‘यह एक तरह से आर्थिक मोर्चे पर सरकार के कम प्रभावशाली प्रदर्शन के खिलाफ बीमे जैसा है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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