लखनऊ : यूपी की राजनीति में जाति फैक्टर हमेशा से अहम माना गया है. योगी सरकार के दौरान ब्राह्मणों की उपेक्षा की बात पिछले दिनों तेजी से उठने लगीं. ऐसे में इस बड़े वोटबैंक को जुटाने में सारे दल जुट गए हैं. यूपी की देवरिया सीट पर आगामी 3 नवंबर को होने वाले उपचुनाव के लिए सभी ने ब्राह्मण कैंडिडेट को टिकट दिया है. खास बात ये है कि सबका उपनाम (सर नेम) त्रिपाठी ही है.
सपा ने पूर्व कैबिनेट मंत्री ब्रह्माशंकर त्रिपाठी को मैदान में उतारा है. बीजेपी ने यहां पर डिग्री काॅलेज के शिक्षक डॉ. सत्यप्रकाश मणि त्रिपाठी को टिकट दिया है. वहीं कांग्रेस ने अपने स्थानीय नेता मुकुंद भाष्कर मणि त्रिपाठी और बसपा ने सरकारी नौकरी छोड़कर आए अभयनाथ त्रिपाठी को उम्मीदवार बनाया है. चारों उम्मीदवारों का एक ही सरनेम होने से यहां स्थानीय लोगों में एक नारा प्रचलित हो गया है -‘वोट किसी को दो जीतेगा त्रिपाठी ही.’
बता दें कि देवरिया सीट बीजेपी से विधायक रहे जन्मेजय सिंह के निधन हो जाने से खाली हुई. 1967 में अस्तित्व में आई देवरिया सदर सीट पर अब तक हुए 14 चुनाव हुए हैं, जिनमें छह बार पिछड़े वर्ग के उम्मीदवार ने चुनाव जीता है. इसके अलावा ब्राह्मण, भूमिहार और मुस्लिम समुदाय से जुड़े लोग दो-दो बार और एक बार ठाकुर व एक बार कायस्थ ने यहां चुनाव जीता है.
सबके लिए मजबूरी बने ब्राह्मण उम्मीदवार
माना जा रहा है कि यूपी के मौजूदा राजनीतिक समीकरणों को ध्यान में रखते हुए सभी दल इस सीट पर ब्राह्मण कैंडिडेट पर जोर लगाए हैं. देवरिया सदर के रहने वाले स्थानीय लेखक संदीप पांडे की मानें तो इस सीट पर लगभग 20 से 25 प्रतिशत के बीच ब्राह्मण वोटर है. इसी फैक्टर को ध्यान में रखते हुए सबसे पहले कांग्रेस ने भास्कर मणि का टिकट तय किया.
इसके बाद बसपा ने अभयनाथ त्रिपाठी को उम्मीदवार बनाया. अभयनाथ 2017 में भी बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े हैं. फिर समाजवादी पार्टी ने इस सीट पर पूर्व कैबिनेट मंत्री ब्रह्माशंकर त्रिपाठी को टिकट दे दिया जो कि ‘हैवीवेट’ कैंडिडेट माने जा सकते हैं. जब तीन दलों ने ब्राह्मण कैंडिडेट की घोषणा कर दी तो बीजेपी को भी ब्राह्मण कैंडिडेट उतारना पड़ा. संदीप के मुताबिक, अगर बीजेपी ऐसा नहीं करती तो ब्राह्मणों की उपेक्षा का जो आरोप उस पर लग रहा है उसे और बल मिल जाता.
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लखनऊ यूनिवर्सिटी के पाॅलिटिकल साइंस के प्रोफेसर कविराज की मानें तो यूपी की पाॅलिटिक्स में मौजूदा समय में ब्राह्मणों को हर दल लुभाना चाह रहा है. इसका कारण है कि लगभग 12 प्रतिशत ब्राह्मण यूपी में किसी भी दल के लिए बड़ा वोटबैंक साबित हो सकता है. वहीं ‘ब्राह्मण बनाम ठाकुर’ नैरेटिव को ध्यान रखते हुए भी सभी दल खासतौर से विपक्षी पार्टियां ब्राह्मणों पर दांव लगा रही हैं.
ब्राह्मण पाॅलिटिक्स के बनते समीकरण
योगी सरकार से ब्राह्मणों की नाराजगी की बात तो सरकार बनने के साथ ही शुरू हो गई थी, जिसे कानपुर के बिकरू कांड के अपराधी विकास दुबे के नाटकीय एनकाउंटर के बाद और चर्चा में ला दिया. तमाम ब्राह्मण संगठनों से इस पर सवाल उठाए. अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा (रा.) की ओर से कहा गया कि यूपी में बीते दो साल में 500 से अधिक ब्राह्मणों की हत्याएं हुई.
इसके बाद कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद की ओर से ‘ब्राह्मण चेतना संवाद’ शुरू किया गया. वहीं समाजवादी पार्टी की ओर से पूर्व मंत्री अभिषेक मिश्र की ओर से ब्राह्मणों को लुभाने के लिए लखनऊ में 108 फिट की परशुराम की प्रतिमा लगाने की घोषणा की गई. इस घोषणा के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने प्रेस कांफ्रेंस करके कहा कि अगर वह 2022 में सत्ता में आएंगी तो परशुराम की इससे भी बड़ी प्रतिमा लगाएंगी. इसके बाद से सभी दलों में ब्राह्मणों को लुभाने की होड़ मच गई है.
कांग्रेस ने दिये सबसे अधिक टिकट
यूपी में 3 नवंबर को देवरिया, बांगरमऊ समेत सात सीटों पर उपचुनाव होना है, जिसके लिए सबसे अधिक कांग्रेस ने तीन सीटों ( देवरिया, बांगरमऊ और मल्हनी) पर ब्राह्मण कैंडिडेट उतारा है. वहीं, बसपा ने 2 और सपा व बीजेपी ने एक-एक सीट पर ब्राह्मण कैंडिडेट पर दांव लगाया है.
दिप्रिंट से बातचीत में जितिन प्रसाद ने कहा कि सभी दल अब ब्राह्मणों के हित की बात करने लगे हैं, ये देखकर अच्छा लगा क्योंकि पिछले तीन साल से यूपी में लगातार ब्राह्मणों की उपेक्षा ही की जा रही है. बीजेपी सरकार इसकी जिम्मेदार है. लेकिन अब ब्राह्मणों ने एकजुट होकर अपनी ताकत का अहसास सबको करा दिया है. यही कारण है कि सब ब्राह्मणों पर दांव लगा रहे हैं.