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Friday, 22 November, 2024
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UP के हरदोई की प्रधान यूक्रेन में कर रही थीं पढ़ाई, युद्ध के कारण सामने आया दोहरा जीवन

यूक्रेन में मेडिकल छात्रा वैशाली यादव ने युद्धग्रस्त देश से लोगों को निकालने की अपील करने के लिए एक वीडियो बनाया था. अब, यूपी की ग्राम प्रधान को ‘ड्यूटी से गैर-हाजिर’ होने के लिए उन्हें कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है.

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हरदोई: यूक्रेन पर रूसी हमले ने वहां पढ़ने वाले हजारों भारतीय एमबीबीएस छात्रों का जीवन संकट में डाल दिया गया, और तमाम लोगों ने उन्हें वहां से सुरक्षित निकालने के लिए मोदी सरकार से गुहार लगाई है. इनमें से ही एक हैं इवानो फ्रैंकिव्स्क नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी की छात्रा वैशाली यादव.

लेकिन जैसा सामने आया है, वैशाली यादव सिर्फ यूक्रेन के एक संस्थान में मेडिकल छात्रा ही नहीं हैं, बल्कि वह उत्तर प्रदेश के एक गांव की ग्राम प्रधान भी हैं—और उनके इसी ‘दोहरे जीवन’ ने उन्हें एक बड़े राजनीतिक विवाद में घसीट लिया है. यही नहीं इस मामले को लेकर उनके खिलाफ सरकारी कार्रवाई भी हो सकती है.

यूपी के विधानसभा चुनाव में यूक्रेन संकट एक बड़ा मुद्दा रहा है. ऐसे में वैशाली का वीडियो वायरल होने के बाद यह पता चलने पर कि वह तो एक निर्वाचित ग्राम प्रधान हैं, राज्य में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को समाजवादी पार्टी (सपा) पर निशाना साधने का एक मौका मिल गया, जिससे वैशाली के पिता जुड़े हैं.

भाजपा का कहना है कि वैशाली ने मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए यह वीडियो अपने पिता महेंद्र सिंह यादव के कहने पर ही बनाया था.

लेकिन वैशाली यादव और महेंद्र दोनों ने इस आरोप का खंडन करते हुए कहा कि भाजपा उन्हें राजनीतिक कारणों से निशाना बना रही है.

राज्य सरकार ने गांव के मुखिया के रूप में अपनी ड्यूटी से नदारत रहने के लिए उनके खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं. जांच के दौरान यह पता लगाया जाएगा कि उनकी गैर-हाजिरी के दौरान पंचायत में क्या लेन-देन हुए.

ताजा घटनाक्रम ऐसे समय पर सामने आया है जबकि करीब एक साल पहले ही 23 वर्षीय वैशाली ने यूपी के हरदोई जिले के तेरा पुरसौली गांव के ग्राम प्रधान के रूप में जीत का जश्न मनाया था.

ग्राम प्रधान-एमबीबीएस की छात्रा वैशाली कथित तौर पर वही कर रही थी जो आमतौर पर कई महिला प्रधान करती रहती हैं—यानी घर के किसी पुरुष रिश्तेदार पर निर्भर होना. हालांकि, उसके मामले में यह बात अलग है कि वह तो यूक्रेन में रह रही थी. चूंकि, वैशाली के पिता ब्लॉक प्रमुख चुनाव में खड़े होने की तैयारी कर रहे थे, यादव के परिवार ने उन्हें मैदान में उतार दिया था.

महेंद्र यादव ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारे परिवार से तीन लोग पंचायत प्रमुख के तौर पर काम कर चुके हैं. इसकी शुरुआत 1962 में मेरे चाचा ने की थी. फिर मेरे दूसरे चाचा और फिर मेरी मां ने यह जिम्मेदारी संभाली, जो 2016 तक दो बार प्रधान रहीं. इसके बाद, सीट एक एससी प्रत्याशी के लिए सुरक्षित हो गई. 2021 में यह ओबीसी कोटे में सुरक्षित हो गई. तब हमने अपनी बेटी को मैदान में उतारा.’

वैशाली के मामले में ट्विस्ट यह है कि वह मेडिसिन की पढ़ाई करने के लिए 2019 से यूक्रेन में रह रही हैं.

यद्यपि ग्रामीणों ने पुष्टि की कि वैशाली अप्रैल 2021 में चुनाव के समय गांव में थी क्योंकि वहां लॉकडाउन था, वहीं कुछ ने दावा किया कि उन्हें नहीं पता था कि उन्होंने बाद में यूक्रेन के लिए उड़ान भरी थी. नाम न छापने की शर्त पर एक ग्रामीण ने कहा, ‘हमें लगा कि वह पढ़ाई के लिए लखनऊ या इलाहाबाद में है.’

महेंद्र का दावा है कि ग्रामीणों को पता था कि वह यूक्रेन में है और अब इस मुद्दे का राजनीतिकरण उनके विरोधी ही कर रहे हैं.

कथित तौर पर अपनी ड्यूटी के उल्लंघन पर बढ़ते विवाद के बीच वैशाली यादव का दावा है कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है.

उन्होंने 2 मार्च को यूक्रेन से लौटने के बाद दिप्रिंट को बताया, ‘मैं एक पढ़ी-लिखी इंसान हूं. मेरे पिता एक अनुभवी व्यक्ति हैं. तो क्या हुआ अगर मैं उनसे सुझाव लेती हूं? अब तक, मुझे किसी भी सरकारी निकाय से कोई नोटिस नहीं मिला है, लेकिन आता है, तो मैं सारी जानकारी देने के लिए तैयार हूं और उन्हें अपनी बात समझाऊंगी.’

वैशाली ने सवाल उठाया, ‘कहां लिखा है कि एक व्यक्ति दो मोर्चों पर काम नहीं कर सकता? मैं कोई सरकारी नौकरी नहीं कर रही हूं. मैं डॉक्टर बनना चाहती हूं और अपने लोगों की सेवा करना चाहती हूं क्योंकि मेरे इलाके में अस्पताल नहीं है और लोगों को जिला अस्पताल जाना पड़ता है जो यहां से 55 किमी दूर है.’

उन्होंने कहा, ‘अपने वीडियो में, क्या मैंने कोई राजनीतिक उल्लेख किया है? मेरे उपनाम के कारण मुझे निशाना बनाया जा रहा है.’

पंचायत के लेनदेन के बारे में पता लगाने के लिए होगी जांच

2021 के यूपी पंचायत चुनाव में वैशाली यादव को तेरा पुरसौली गांव की प्रधान चुना गया था.

मई में निर्वाचित वैशाली ने सितंबर में लॉकडाउन खत्म होने के बाद गांव छोड़ दिया, और अपना कामकाज और 2019 में ग्राम पंचायत में प्रधानों के कामकाज में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए लाया गया आधिकारिक ‘डोंगल’ अपने पिता के हवाले कर दिया.

उसकी गैर-हाजिरी में महेंद्र, ग्राम पंचायत सदस्य बिरेश यादव के साथ एक निजी ऑपरेटर के जरिये डोंगल ऑपरेट कराते थे. वैशाली की यूक्रेन से सुरक्षित वापसी संबंधी अपील को लेकर गहराते विवाद के बीच यह आरोप भी लग रहा है कि उनकी अनुपस्थिति में उनकी ग्राम पंचायत में काम हो रहा था.

महेंद्र ने स्वीकारा कि जब वैशाली यहां पर नहीं थी तब पंचायत भवन निर्माण के लिए ग्राम निधि खाते से पैसे दिए गए थे.

उन्होंने कहा, ‘लगभग 12 लाख रुपये का उपयोग किया गया और यह पंचायत भवन के लिए उपयोग की जाने वाली एकमात्र राशि थी. ग्राम पंचायत के सचिव गौरव मिश्रा और ग्राम पंचायत सदस्य बिरेश यादव पर इसके हिसाब-किताब का जिम्मा था.’

बीरेश ने बताया कि वैशाली के आधिकारिक डोंगल का उपयोग करके ग्राम निधि खाते से मरम्मत के कार्य के लिए 4.5 लाख रुपये का भुगतान किया गया था, जबकि वह यूक्रेन में थी, लेकिन इस पर उसकी सहमति ली गई थी.

उन्होंने कहा, ‘मनरेगा भुगतान के लिए करीब 8 लाख रुपये से अधिक का उपयोग किया गया लेकिन यह सचिव और सहायक विकास अधिकारी (एडीओ) की मंजूरी से किया गया था, जिसमें प्रधान के हस्ताक्षर हो सकते हैं या नहीं भी हो सकते हैं.’

महेंद्र ने दिप्रिंट को बताया कि वे डोंगल को ऑपरेट करते थे जबकि वह रिमोट एक्सेस सॉफ्टवेयर टीमव्यूअर के माध्यम से पूरी प्रक्रिया पर नजर रखती थी.

यूपी सरकार ने मांगी रिपोर्ट

यूपी पंचायती राज विभाग ने मामले की जांच शुरू कर एडीओ से रिपोर्ट मांगी है.

हरदोई के जिला पंचायत राज अधिकारी गिरीश चंद्र ने कहा कि जब वैशाली के यूक्रेन में रहकर एमबीबीएस की पढ़ाई करने की सूचना मिली तो संबंधित एडीओ को रिपोर्ट देने को कहा गया.

उन्होंने पत्रकारों से कहा, ‘रिपोर्ट मिलते ही पंचायती राज अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत कार्रवाई की जाएगी. वह ग्राम पंचायत से गैर-हाजिर रही हैं. जांच ग्राम पंचायत से संबंधित कार्यों के संदर्भ में की जाएगी.’

यह पूछे जाने पर कि जांच एडीओ से कराई जा रही है तो क्या हितों के टकराव की स्थिति नहीं आएगी, क्योंकि वह कथित तौर पर खुद ही काम की सिफारिश करने वाली टीम का हिस्सा थे, चंद्रा ने कहा कि रिपोर्ट आने पर उपयुक्त कार्रवाई की जाएगी.

महेंद्र ने आरोप लगाया कि यह सब स्थानीय भाजपा समर्थकों की साजिश का हिस्सा है. उन्होंने बताया कि पिछले साल ब्लॉक प्रमुख चुनावों से पहले उन्हें ‘हत्या के प्रयास के एक झूठे मामले में फंसाकर’ जेल भेज दिया गया था.

उन्होंने कहा, ‘पहले तो एक साजिश के तहत मुझे पहले हत्या के प्रयास के मामले में फंसाया गया और फिर मतपत्रों में गड़बड़ी के कारण मुझे चुनाव हारने पर मजबूर किया गया. गांव मेरा समर्थन करता है लेकिन कुछ भाजपा समर्थक हैं जो इस सबके पीछे हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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