लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले कल्याण सिंह की विरासत आगे बढ़ाने की कोशिश के तहत योगी आदित्यनाथ सरकार ने अयोध्या में राम मंदिर परिसर की ओर जाने वाली सड़क का नाम भाजपा के वरिष्ठ नेता और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री, जिनका शनिवार को निधन हो गया था, के नाम पर रखने की योजना बनाई है.
यूपी सरकार की तरफ से सोमवार को जारी एक बयान में घोषणा की गई, ‘अयोध्या के अलावा, लखनऊ, प्रयागराज, बुलंदशहर और अलीगढ़ में एक-एक सड़क का नाम भी ‘कल्याण सिंह मार्ग’ रखा जाएगा.’
कल्याण सिंह अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) के सबसे बड़े नेताओं में से थे, जिन्होंने 1990 के दशक में भाजपा को हिंदी पट्टी में स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई थी. उनकी निगरानी में ही 6 दिसंबर 1992 को ‘कारसेवकों’ की भीड़ ने अयोध्या में विवादित ढांचे को ध्वस्त कर दिया था.
यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने सोमवार को कहा, ‘बाबू जी (कल्याण सिंह) का जन्म अलीगढ़ में हुआ था, इसलिए वहां एक सड़क का नाम उनके ऊपर रखा जाएगा. उन्होंने एटा और बुलंदशहर में काम किया. दोनों ही जगह उनकी ‘कर्मभूमि’ थीं इसलिए वहां भी सड़क बनेगी. जब वे मुख्यमंत्री थे तब लखनऊ में रहते थे और एक बार उन्हें प्रयागराज में गिरफ्तार किया गया था जब वे ‘मंदिर आंदोलन’ के दौरान चित्रकूट जा रहे थे. यहां सड़कों को उनके नाम पर करना उन्हें हमारी श्रद्धांजलि है.’
मौर्य ने कहा, ‘राम मंदिर निर्माण में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है.’
यूपी भाजपा के एक पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा कि पार्टी अगले कुछ दिनों में उनके सम्मान में स्मृति कार्यक्रमों के आयोजन की योजना बना रही है.
पदाधिकारी ने कहा, ‘पार्टी राम मंदिर आंदोलन में कल्याण सिंह के योगदान और राज्य में ओबीसी के कल्याण के लिए उनके योगदान को याद करेगी. हम कई जिलों में उन्हें याद करने के लिए स्मृति समारोहों के आयोजन करने वाले हैं. वह हममें से कई लोगों के लिए हिंदुत्व का चेहरा और रोल मॉडल थे.’
भाजपा उन्हें हिंदुत्व और ओबीसी ‘आइकन’ के तौर पर पेश करेगी
भाजपा के सूत्रों ने कहा कि पार्टी ने उन्हें राज्य में हिंदुत्व के साथ-साथ ओबीसी ‘आइकन’ के तौर पर पेश करने की योजना बनाई है, जहां अगले साल की शुरुआत में चुनाव होने वाले हैं. कल्याण सिंह लोध समुदाय से आते थे, जिसकी राज्य की आबादी में कुल हिस्सेदारी कम से कम सात फीसदी है और पश्चिमी यूपी के कई जिलों में उनका खासा प्रभाव है.
अलीगढ़ में सोमवार को मीडिया को जारी एक बयान में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस बात का उल्लेख किया कि ‘गरीबों और पिछड़ों ने अपना शुभचिंतक खो दिया है.’
शाह ने कहा, ‘बाबू जी का निधन भाजपा के लिए एक बड़ी क्षति है. उन्होंने जो शून्य छोड़ा है उसे भर पाना मुश्किल होगा. राम मंदिर के शिलान्यास समारोह के बाद उन्होंने कहा था कि उनके जीवन का लक्ष्य पूरा हो गया है. राम जन्मभूमि आंदोलन के लिए उन्होंने बिना कुछ सोचे-समझे तत्काल मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी थी.’
राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान जब विश्व हिंदू परिषद और भाजपा ने राम मंदिर के लिए ‘कार सेवा’ की घोषणा की थी, तब मस्जिद की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई गई थी. उस समय, कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दिया था जिसमें यह सुनिश्चित करने का वादा किया गया था कि ढांचे को कोई नुकसान नहीं होगा.
हालांकि, 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद को गिरा दिया गया था. उन्होंने उसी दिन इस्तीफा दे दिया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.
इससे पहले रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कल्याण सिंह के लखनऊ स्थित आवास पहुंचे, जहां उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री को अमर करने का एकमात्र तरीका यही है कि उनके आदर्शों को आगे बढ़ाया जाए और उनके सपनों को पूरा किया जाए.
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘हमने एक सक्षम नेता खो दिया है. हमें इस क्षति की भरपाई के लिए उनके मूल्यों और संकल्पों को आगे बढ़ाने की दिशा में हरसंभव प्रयास करना चाहिए… हमें उनके सपनों को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए.’
#WATCH | Lucknow: PM Narendra Modi speaks on the demise of former UP CM Kalyan Singh. He says, "We have lost a capable leader. We should make maximum efforts by taking his values & resolutions to compensate for him; we should leave no stone unturned in fulfilling his dreams…." pic.twitter.com/I61qz8H0Yx
— ANI (@ANI) August 22, 2021
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यालय के एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि कल्याण सिंह के नाम पर कई घोषणाएं करने की तैयारी है. अभी मुख्यमंत्री और कई अन्य मंत्री पूर्व सीएम को अंतिम सम्मान देने के लिए अलीगढ़ में हैं. उनके लौटने के बाद इन योजनाओं के बाबत बैठक की जाएगी.
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2022 के चुनावों में भाजपा के लिए कल्याण सिंह की अहमियत
दो बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल चुके कल्याण सिंह की यूपी भाजपा की राजनीति में एक अलग ही अहमियत थी.
लखनऊ यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर कविराज के मुताबिक, ओबीसी में आने वाले लोधों की रुहेलखंड (बरेली, बदायूं, रामपुर आदि) और ब्रज क्षेत्र (आगरा, अलीगढ़, एटा, हाथरस आदि) की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका है. इन क्षेत्रों के कई विधानसभा क्षेत्रों में इस समुदाय की हिस्सेदारी 15 प्रतिशत से अधिक है.
कविराज ने बताया कि मौजूदा समय में भाजपा उत्तर प्रदेश में अपने प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (सपा) के नैरेटिव का मुकाबला करने के लिए ओबीसी, खासकर गैर-यादव ओबीसी पर फोकस कर रही है.
यूपी भाजपा के एक नेता और कल्याण सिंह के पूर्व करीबी राजेंद्र तिवारी ने कहा, ‘कल्याण सिंह हमारे पहले प्रमुख ओबीसी नेता थे. वह एक गैर-यादव ओबीसी थे, जिनका न केवल लोधों के बीच बल्कि कई अन्य ओबीसी के साथ भी गहरा संबंध था.’
उन्होंने कहा, ‘कुम्हार, कश्यप, कुर्मी, मौर्य, तेली, सैनी, साहू और अन्य ओबीसी उन्हें सबसे बड़ा ओबीसी नेता मानते थे. राज्य की कम से कम 20 फीसदी आबादी पर उनकी पकड़ थी. इन 20 प्रतिशत लोगों के करीब 15 फीसदी सवर्णों के साथ मिलकर भाजपा के पक्ष में मतदान किए जाने के कारण ही 1990 के दशक में पार्टी दो बार सत्ता में आई. हमें अपनी पार्टी और (राम) मंदिर आंदोलन के लिए उनके योगदान को बार-बार याद करना चाहिए.’
हालांकि, राज्य के पूर्व भाजपा मंत्री आई.पी. सिंह, जो अब सपा नेता हैं, ने कथित अवसरवाद के लिए भाजपा पर निशाना साधा. उन्होंने कहा, ‘कल्याण सिंह सबसे बड़े ओबीसी नेता थे लेकिन शीर्ष भाजपा नेतृत्व की तरफ से उन्हें लगातार अपमानित और उपेक्षित किया गया था, यह हम सभी जानते हैं. उन्हें पिछले साल राम जन्मभूमि पूजन (शिलान्यास के मौके पर) में भी आमंत्रित नहीं किया गया था.’
उन्होंने कहा, ‘अगर भाजपा को ओबीसी से इतना ही लगाव है, तो उन्होंने उनके बेटे राजवीर को कैबिनेट बर्थ क्यों नहीं दी, जो अभी एटा से सांसद हैं?’
भाजपा ने विपक्ष पर साधा निशाना
भाजपा ने यह भी मुद्दा उठाया कि कोई विपक्षी नेता, खासकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह और कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा श्रद्धांजलि देने के लिए कल्याण सिंह के आवास पर नहीं पहुंचे.
डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने कहा, ‘पूरा देश देख रहा है कि विपक्ष ने कल्याण जी को श्रद्धांजलि नहीं दी. यह उनकी ओछी राजनीति को दर्शाता है. वे ‘राजनीतिक शिष्टाचर’ में भी विश्वास नहीं करते हैं.’
यूपी भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा, ‘समाजवादी परिवार (यादव परिवार) और गांधी परिवार अंतिम श्रद्धांजलि देने नहीं आए.’
उन्होंने कहा, ‘हमने 2017 के चुनावों से पहले यादव परिवार के सदस्यों के बीच आपसी झगड़ा देखा है, इसलिए जो अपने परिवार के सदस्यों का सम्मान नहीं कर सकते, वो दूसरों का सम्मान क्या करेंगे, खासकर अगर कोई ओबीसी है. वे खुद को केवल ओबीसी नेता मानते हैं.’
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