कैथल (हरियाणा): ‘सुंदर’ तालाब गंदे नालों में बदल गए, टूटी-फूटी सड़कें और वादा किया गया जानवरों का मेडिकल कॉलेज जो अभी भी एक ढांचा है, हरियाणा के कैथल जिले का क्योड़क गांव एक दुखद तस्वीर बयां करता है. पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर द्वारा आदर्श ग्राम (आदर्श गांव) के तहत इसे ‘गोद लेने’ के नौ साल बाद, निवासियों का दावा है कि गांव की स्थिति अब पहले से भी बदतर है.
क्योड़क निवासी 55-वर्षीय किसान सथपाल ने कहा, “जैसे मेंढक केवल बारिश के दौरान बाहर आते हैं, वैसे ही नेता तभी बाहर आते हैं जब चुनाव होते हैं. खट्टर ने गांव को गोद लेकर उसे डुबो दिया है.”
ग्रामीणों में असंतोष है, जिनमें वो लोग भी शामिल हैं जो लंबे समय से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का समर्थन करते रहे हैं.
90 के दशक की शुरुआत से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े रहे 52-वर्षीय श्री सिवास अग्रवाल ने कहा, “गांव का विकास एक मिथक रहा है. मैं 1973 से बाबरी मस्जिद विध्वंस और संघ परिवार और भाजपा के हर बड़े मौके का हिस्सा रहा हूं. मेरे पूरे परिवार ने दशकों से भाजपा को वोट दिया है, लेकिन जब काम करने की बात आती है, तो वह अन्य पार्टियों से कैसे अलग हो सकते हैं?”
अग्रवाल के अनुसार, जब 2015 में खट्टर ने गांव को गोद लिया, तो उन्होंने कई घोषणाएं कीं, अगले तीन से चार साल तक कितना काम हुआ यह जांच करने के लिए अधिकारी आए, लेकिन उसके बाद उनका उत्साह खत्म हो गया.
हालांकि, सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र और बाज़ार सुचारु रूप से चल रहे हैं और कुछ सड़कें अच्छी स्थिति में हैं, क्योंड़क की स्थिति एक ‘आदर्श गांव’ से बहुत दूर है.
अग्रवाल ने पूछा, “2019 तक कुछ काम हुए, लेकिन उसके बाद कुछ नहीं हुआ. सब कुछ आधा-अधूरा रह गया. जगह-जगह केवल ढांचे हैं. इस आदर्श ग्राम में आदर्श कहां है?”
लगभग 14,000 (2011 की जनगणना के अनुसार) की आबादी वाले इस क्योड़क गांव को हरियाणा के तत्कालीन सीएम खट्टर ने राज्य सरकार की विधायक आदर्श ग्राम योजना (वीएजीवाई) के तहत गोद लिया था, एक योजना जिसके तहत विधायक चुनिंदा गांवों का विकास करते हैं. हालांकि, इसे सांसदों के लिए नरेंद्र मोदी सरकार की प्रमुख सांसद आदर्श ग्राम योजना (एसएजीवाई) की तर्ज पर तैयार किया गया था, लेकिन इसमें अंतर यह है कि इसके लिए अलग से राज्य के बजट में फंड आंवटित है.
वीएजीवाई के तहत, हर एक निर्वाचन क्षेत्र को विकास कार्यों के लिए सालाना 2 करोड़ रुपये दिए जाते हैं, जिसे एक या अधिक गांवों में आवंटित किया जा सकता है. 5,000 तक की आबादी वाले गांवों के लिए फंडिंग की सीमा 50 लाख रुपये है, जबकि 5,000 से 10,000 के बीच की आबादी के लिए यह 1 करोड़ रुपये और 10,000 से अधिक की आबादी के लिए 2 करोड़ रुपये है.
मार्च 2023 में खट्टर ने शहरी क्षेत्रों को भी शामिल करने के लिए 2 करोड़ रुपये के फंड का दायरा बढ़ाया और इस पहल का नाम बदलकर “आदर्श नगर एवं ग्राम योजना” कर दिया. मार्च 2024 में उनकी जगह नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया गया. अब, खट्टर करनाल से भाजपा के लोकसभा उम्मीदवार बनकर करनाल सीट से चुनाव लड़ेंगे. हरियाणा की सभी 10 सीटों पर 25 मई को चुनाव होने हैं, जिसके बाद साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं.
दिप्रिंट ने फोन और व्हाट्सएप के जरिए खट्टर से संपर्क करने की कोशिश की. जवाब आने पर रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
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‘सौंदर्यीकरण’ परियोजना स्वास्थ्य के लिए खतरा
क्योड़क में कूड़े के ढेर हर जगह हैं, यहां तक कि सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र और कुंती घाट के सामने, केंद्रीय तालाब के किनारे की जगह को भी मच्छरों और मक्खियों के प्रजनन स्थल में बदल दिया गया है.
ग्रामीण टूटी हुई सड़कों और घटिया मरम्मत के बारे में शिकायत करते रहते हैं, जो मुश्किल से चलती हैं, जिससे बाइक के टायर घिस गए हैं और छोटे कंकड़ उड़ कर कभी-कभी लोगों के चेहरे पर लग जाते हैं.
लेकिन यहां सबसे गंभीर मुद्दों में से एक जल प्रदूषण है, जो सीधे तौर पर गांव में शुरू की गई कुछ ‘विकास’ और ‘सौंदर्यीकरण’ परियोजनाओं से जुड़ा हुआ है. इससे मवेशी भी बीमार हो रहे हैं.
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के बाहर लगे बोर्ड के अनुसार, क्योड़क की सीवेज प्रणाली में इसकी आबादी की सेवा के लिए 9-मिलीमीटर पाइपलाइन शामिल हैं. पिछले साल चालू किए गए इस प्लांट का उद्देश्य अपशिष्ट जल को साफ करना और इसे क्योड़क-कैथल नाले में और फिर सिंचाई के उपयोग के लिए कैथल की मुख्य जल निकासी प्रणाली में पुनर्निर्देशित करना था.
हालांकि, वास्तव में प्लांट का पानी क्योड़क-कैथल नाले में बहता है — जो पहले से ही कूड़े और कच्चे सीवेज से दूषित है — और फिर कुंती घाट तालाब में जाता है, जहां भैंसें नहाती हैं और पानी पीती हैं.
निवासी बिंद्रा ने कहा, “गंदे पानी के कारण हमारे जानवर बीमार पड़ रहे हैं. उनके मुंह, पैर और पेट में घाव हो जाते हैं. तालाब की दीवारें भी लगभग टूट रही हैं.”
क्योड़क में जानवरों के अस्पताल के एक डॉक्टर ने ग्रामीणों के दावों की पुष्टि की कि गंदे पानी के कारण जानवर बीमार पड़ रहे हैं. हालांकि. उन्होंने यह भी कहा कि भैंसों को खुरपका-मुंहपका रोग का टीका न लगाने से समस्या बढ़ी है. पशुओं के डॉक्टर ने कहा, “उन्हें पेट और मुंह में घाव हो जाते हैं. अन्य बीमारियों में पाचन संबंधी समस्याएं शामिल हैं.”
गांव के जलस्रोतों को पुनर्जीवित करना खट्टर द्वारा किए गए प्रमुख वादों में से एक था. 2016 में उन्होंने क्योड़क के सभी चार तालाबों की मरम्मत और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने के लिए 3.5 करोड़ रुपये की घोषणा की.
निवासी फौजी इलम सिंह ने कहा, “यह कुंती घाट का कोटेश्वर तीर्थ है. यह पानी का एक भंडार हुआ करता था, लेकिन वहां एक (अल्पविकसित) विभाजक था. खट्टर द्वारा गांव को गोद लेने के बाद यहां डिवाइडर बनाया गया और तालाब का एक हिस्सा जानवरों के लिए रखा गया. घाट के दूसरी ओर का सौंदर्यीकरण किया जाना था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उन्होंने केवल परियोजनाओं की घोषणा की है, यहां कुछ भी पूरा नहीं किया है.”
2020 में चंडीगढ़ में अंडरग्राउंड नीति पर एक बैठक के दौरान, खट्टर ने दावा किया कि क्योड़क के केंद्रीय तालाब पर 95 प्रतिशत काम पूरा हो गया था.
गांव में एक और तालाब — मोतीवाला कुंड — भी कूड़े से भरा हुआ है.
निवासी सोनिया सहरावत ने कहा, “आप अपने सामने ‘विकास’ देख सकते हैं. हर तरफ गंदगी है. आप इस तालाब को अपनी आंखों के सामने देख सकते हैं. हमें हमेशा डर रहता है कि हमारे बच्चे और जानवर इस गंदे पानी में गिर जाएंगे. यह तालाब नहीं, दलदल है.”
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शिकायतें नज़रअंदाज़, आरोप-प्रत्यारोप का खेल
क्योड़क के सरपंच जसबीर सिंह के अनुसार, सीवेज मुद्दे और अन्य समस्याओं को अधिकारियों के ध्यान में लाने के प्रयास काफी हद तक अनसुने रहे हैं.
उन्होंने कहा, “मैं बहुत कुछ कर सकता हूं. मैंने सीवेज मुद्दे के बारे में चंडीगढ़ में ग्राम पंच के मुख्य कार्यालय को एक पत्र सौंपा था, लेकिन कुछ नहीं किया गया. सीवेज पाइपलाइन जाम होने के कारण टूट रही हैं क्योंकि पानी में जानवरों का मल भी शामिल है, जहां तक सड़कों पर कूड़े का सवाल है, मैंने इसे उठाने के लिए कई बार जेसीबी बुलाई है, लेकिन गांव को उचित कचरा निपटान प्रणाली की ज़रूरत है.”
दिप्रिंट द्वारा संपर्क किए जाने पर, कैथल के उप-विभागीय मजिस्ट्रेट सुशील कुमार ने सामाजिक शिक्षा पंचायत अधिकारी (एसईपीओ) अनुराग दत्त को क्योड़क में स्थिति का आकलन करने के लिए भेजा.
वहां, दत्त ने सरपंच सिंह से मुलाकात की और बताया कि सीवेज का मुद्दा सिंचाई विभाग और सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग दोनों के दायरे में आता है, क्योंकि सीवेज उपचार संयंत्र का प्रबंधन उनके द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है.
इसके बाद जन स्वास्थ्य विभाग के जूनियर इंजीनियर आकाशदीप, सिंह और दत्त के बीच जिम्मेदारी को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया, जिसका कोई समाधान नज़र नहीं आ रहा था.
आखिरकार, दत्त ने सरपंच से इन मुद्दों को रेखांकित करते हुए एक नया पत्र लिखने और इसे सिंचाई और सार्वजनिक स्वास्थ्य दोनों विभागों को सौंपने के लिए कहा. सिंह और दत्त ने सिंचाई विभाग के अधिकारियों को भी फोन किया, जिन्होंने उन्हें बताया कि आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण सीवेज मुद्दे पर काम चुनाव के बाद ही शुरू हो सकता है.
कैथल खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी राज सिंह को दिप्रिंट की ओर से की गई कॉल का कोई जवाब नहीं मिला.
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टूटे वादों का स्मारक
जर्जर भौतिक बुनियादी ढांचे के अलावा क्योड़क के शैक्षणिक संस्थान भी अलग-अलग स्तर की उपेक्षा से ग्रस्त हैं.
गांव में दो सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय और तीन सरकारी प्राथमिक विद्यालय हैं जिनमें पर्याप्त सुविधाएं हैं. हालांकि, कर्मचारियों की कमी एक मुद्दा है. दोनों वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय वर्तमान में प्राचार्यों के बिना संचालित होते हैं और शिक्षक अतिरिक्त प्रभार लेते हैं. वहीं, सीबीएसई से मान्यता प्राप्त मॉडल संस्कृति स्कूल में पिछले दो साल से 14 पद खाली हैं. मामले को बदतर बनाने के लिए स्कूल में पिछले सितंबर से कक्षा 9-12 के लिए रसायन विज्ञान का कोई शिक्षक नहीं है.
एक अधूरी और खस्ताहाल इमारत ने घाव पर नमक छिड़क दिया है, जिसे अब तक एक वेट मेडिकल यूनिवर्सिटी बन जाना चाहिए था.
2015 में खट्टर ने लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (हिसार) के एक क्षेत्रीय केंद्र की स्थापना की घोषणा की थी, लेकिन ग्रामीणों के लिए यह अब “अधूरे वादों” के स्मारक के रूप में खड़ा है.
इमारत इतनी खराब स्थिति में है कि ग्रामीणों का दावा है कि यह अगले मानसून सीज़न में भी टिक नहीं पाएगी. अंदरूनी हिस्सा खोखला है और इसमें कभी डॉक्टर या कर्मचारी नहीं दिखे. यहां तक कि इस केंद्र तक पहुंचने वाली सड़क भी कम से कम 5-6 किलोमीटर तक पथरीली है.
जबकि क्योड़क गांव में एक विशेष डॉक्टर और कुछ स्टाफ सदस्यों के साथ एक और कार्यात्मक पशु चिकित्सा केंद्र है, लेकिन यह प्रमुख सर्जरी और परीक्षणों की सुविधाओं से सुसज्जित नहीं है. जिन ग्रामीणों की भैंसें बीमार पड़ जाती हैं और बड़ी सर्जरी की ज़रूरत पड़ती है, वे कैथल से लगभग 55 किलोमीटर दूर उचाना जाते रहते हैं.
50 वर्षीय निवासी धर्मपाल लंबरदार ने कहा, “इस पशु चिकित्सा संस्थान का निर्माण नौ वर्षों से चल रहा है. दो बार दीवारें गिर चुकी हैं. अधिकारियों ने डेढ़ साल से यहां आना बंद कर दिया है. उन्होंने कहा कि केंद्र की ओर जाने वाली सड़क खराब गुणवत्ता वाली सामग्री से बनाई गई थी और इसलिए ग्रामीणों को मामले को अपने हाथों में लेना पड़ा और 2 किलोमीटर का पुनर्निर्माण करना पड़ा.”
हरियाणा सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “पशु चिकित्सालय बनाने के लिए राज्य से धनराशि जारी नहीं की गई है. डेढ़ साल से इस पर कोई आंदोलन नहीं हुआ.”
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