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Friday, 1 November, 2024
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गैर-निर्वाचित मुख्यमंत्री तीरथ रावत के लिए पद पर बने रहने में कई बाधाएं हैं, और समय तेजी से गुजर रहा है

नियमों के मुताबिक, लोकसभा सांसद तीरथ सिंह रावत के पास इस्तीफा देने और विधानसभा सदस्य चुने जाने के लिए केवल 10 सितंबर तक का समय है, क्योंकि राज्य में कोई विधान परिषद नहीं है.

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नई दिल्ली: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के लिए राज्य विधानसभा का सदस्य चुने जाने और मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिहाज से समय तेजी से बीतता जा रहा है.

10 मार्च को इस पर्वतीय राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह लेने वाले तीरथ रावत पौड़ी गढ़वाल से लोकसभा सदस्य हैं. उन्होंने अभी संसद सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया है.

लेकिन मुख्यमंत्री बने रहने के लिए उन्हें लोकसभा से इस्तीफा देना होगा और निर्वाचित होकर राज्य विधानसभा पहुंचना होगा.

संविधान के मुताबिक, जो नेता विधायिका के सदस्य नहीं हैं, उन्हें मंत्री के रूप में नियुक्त तो किया जा सकता है लेकिन उन्हें शपथ लेने के छह महीने के भीतर विधायी सदस्यता हासिल करनी होगी, या फिर पद छोड़ना होगा.

तीरथ रावत के लिए यह समयसीमा 10 सितंबर को पूरी हो रही है.

लेकिन इसमें कई बाधाएं हैं. एक तो यह कि उत्तराखंड में विधान परिषद नहीं है, जिसके लिए एक परोक्ष चुनाव और राज्यपाल की तरफ से सीधी नियुक्ति होती है. नवंबर 2019 में शपथ लेने वाले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने पिछले साल यही रास्ता अपनाया था.

इसलिए तीरथ सिंह रावत के पास सीधे निर्वाचन ही एकमात्र रास्ता है. इस मोर्चे पर मुख्यमंत्री के पास दो विकल्प हैं—गंगोत्री और हल्द्वानी की विधानसभा सीट. इन दोनों सीटों पर उपचुनाव होने हैं, जो इस साल अप्रैल और जून से खाली पड़ी हैं.

लेकिन कोविड की स्थिति को देखते हुए निर्वाचन आयोग चुनाव कराने से पीछे हट सकता है. चुनाव आयोग को दूसरी कोविड-19 लहर के बीच बंगाल विधानसभा चुनाव और यूपी में पंचायत चुनाव कराने के लिए पहले ही खासी आलोचना का सामना करना पड़ चुका है.

जनप्रतिनिधित्व कानून में उपचुनाव की संभावनाओं को लेकर एक कैविएट ने भी इस मामले और जटिल बना दिया है जिसमें कहा गया है कि किसी सीट के लिए उपचुनाव तभी होना चाहिए जब निर्वाचित प्रतिनिधि के पास चुने जाने के बाद सेवाएं देने के लिए कम से कम एक साल का समय हो.

उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव होने में एक साल से भी कम का समय बाकी है—2017 में निर्वाचित मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 23 मार्च 2022 को पूरा होना है.

हालांकि, भारतीय चुनाव कानून के जानकार विशेषज्ञों ने पूर्व में दिप्रिंट को बताया था कि इस कैविएट से मुश्किल होने की संभावना नहीं है क्योंकि वैधानिक नियमों के मुताबिक किसी मुख्यमंत्री का एक निर्वाचित प्रतिनिधि होना अनिवार्य है. उन्होंने बताया था कि इससे पहले 1999 में ओडिशा में ऐसा किया जा चुका है.


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निर्वाचन आयोग की दुविधा

संविधान के अनुच्छेद 164(4) के मुताबिक, ‘कोई मंत्री अगर लगातार छह महीने की अवधि तक राज्य विधानमंडल का सदस्य नहीं रहता है तो उस अवधि की समाप्ति के बाद मंत्री पद पर नहीं रहेगा.’

2020 में मध्य प्रदेश के दो कैबिनेट मंत्रियों तुलसीराम सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत को राज्य विधानसभा का सदस्य चुने जाने में विफल रहने के बाद इस्तीफा देना पड़ा था. यह दोनों नेता कांग्रेस के दलबदलुओं में शामिल थे, जिन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामा था. नवंबर में उपचुनाव जीतने के बाद उन्हें फिर से कैबिनेट में शामिल किया गया.

चुनाव आयोग के सूत्रों ने कहा कि उत्तराखंड में उपचुनाव कराने में एक और समस्या यह है कि चुनाव निकाय को 25 अन्य विधानसभा सीटों, तीन संसदीय सीटों और एक राज्यसभा सीट पर चुनाव कराना होगा, जिसे महामारी के कारण लंबित रखा गया है.

खाली सीटों में से छह उत्तर प्रदेश में हैं, जहां 2022 में उत्तराखंड के साथ विधानसभा चुनाव होने हैं.

सूत्र ने कहा, ‘आप एक राज्य में उपचुनाव कराने और दूसरे राज्य में नहीं कराने को सही नहीं ठहरा सकते. उत्तराखंड में उपचुनाव कराने से पहले कई फैक्टर पर ध्यान देना होगा. इस बारे में अभी कोई विचार-विमर्श भी शुरू नहीं हुआ है.’

पांच दशकों तक चुनाव आयोग के कानूनी सलाहकार के तौर पर काम करने वाले एस.के. मेंदीरत्ता ने कहा कि आयोग को ‘अधिसूचना के बाद चुनाव कराने के लिए केवल 28 दिनों के समय की जरूरत होती है और यह काम दो महीने की अवधि में आसानी से हो सकता है.’

उन्होंने कहा, ‘निर्वाचन आयोग उपचुनावों को विधानसभा चुनावों के साथ अनुच्छेद 151 के तहत मिली शक्तियों से जोड़ सकता है.’

लोकसभा के पूर्व महासचिव पी.डी.टी आचारी ने कहा कि अब चुनाव कराना निर्वाचन आयोग पर निर्भर है. उन्होंने कहा, ‘उपचुनाव कराना पूरी तरह से निर्वाचन आयोग पर निर्भर करता है लेकिन नियम स्पष्ट हैं—कोई भी मंत्री 164 (4) को दरकिनार कर दूसरी बार शपथ नहीं ले सकता. सुप्रीम कोर्ट ने 2001 के अपने एक फैसले में कांग्रेस के एक मंत्री की सदस्यता को रद्द कर दिया था जिसने छह महीने का कार्यकाल पूरा होने के बाद दूसरी बार शपथ ली थी.’

कांग्रेस नेता तेज प्रकाश सिंह को 1995 में पंजाब में मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था. उन्होंने छह माह की अवधि खत्म होने पर इस्तीफा दे दिया, और 1996 में राज्य विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए बिना फिर से मंत्री नियुक्त किए. 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था.


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भाजपा के लिए कैच-22 की स्थिति

इन सबने भाजपा को मुश्किल स्थिति में डाल दिया है. पार्टी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को उनके खिलाफ बढ़ते असंतोष के चलते हटा दिया था.

इसके सामने अब संवैधानिक बाध्यताओं के कारण तीरथ सिंह रावत को हटाने का संकट आ सकता है.

भाजपा के एक नेता ने कहा, ‘केंद्रीय नेतृत्व स्थिति और संवैधानिक व्यवस्थाओं से अवगत है. इस मामले पर निर्णय लेने के लिए अभी भी समय है क्योंकि चुनाव आयोग ने बिहार और पश्चिम बंगाल में सोशल डिस्टेंसिंग प्रोटोकॉल का पालन करने हुए शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव कराए थे. चुनाव कराने और प्रक्रिया पूरी करने के लिए केवल 28 दिनों की आवश्यकता होती है.’

हालांकि, भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने स्वीकार किया कि कोविड की स्थिति वास्तव में एक बड़ी चिंता रही है.

भाजपा नेता ने कहा, ‘यह निर्वाचन आयोग नहीं है, बल्कि कोविड की मौजूदा स्थिति है जो चुनाव कराने या न कराने में निर्णायक फैक्टर साबित होगी. जब बंगाल विधानसभा चुनाव और यूपी पंचायत चुनाव हुए तो चुनाव आयोग की कड़ी आलोचना की गई, इसलिए, न केवल सरकार बल्कि निर्वाचन आयोग भी सावधानी बरतते हुए स्थिति सामान्य होने पर ही चुनाव कराएगा.

उन्होंने कहा, ‘मुख्यमंत्री को (फिर से) बदलने के अपने राजनीतिक जोखिम हैं, लेकिन कोई अंतिम फैसला जुलाई मध्य में किया जाएगा क्योंकि अब भी 70 दिन बाकी हैं.’

उत्तराखंड भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अजय भट्ट ने दिप्रिंट को बताया कि पार्टी उपचुनाव के लिए तैयार है. उन्होंने कहा, ‘पार्टी चुनाव के लिए तैयार है क्योंकि दोनों सीटों पर हमारी तैयारियां चल रही हैं. मुख्यमंत्री दो खाली सीटों में से किसी से भी चुनाव लड़ सकते हैं बस चुनाव आयोग इसकी अधिसूचना जारी कर दे.’


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