scorecardresearch
Thursday, 25 April, 2024
होमराजनीतिराष्ट्रीय स्तर पर सक्रियता, अपने राज्यों में मजबूत रहना—ठाकरे और राव की मुलाकात यही संदेश देती है

राष्ट्रीय स्तर पर सक्रियता, अपने राज्यों में मजबूत रहना—ठाकरे और राव की मुलाकात यही संदेश देती है

राजनीति पर नजर रखने वालों का कहना है कि उद्धव ठाकरे और केसीआर दोनों ही भाजपा के खिलाफ आक्रामक होकर अपने गृह राज्यों पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं.

Text Size:

मुंबई: महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने तेलंगाना के अपने समकक्ष के. चंद्रशेखर राव को रविवार दोपहर लंच पर आमंत्रित किया.

दोनों नेताओं के बीच करीब डेढ़ घंटे की इस मुलाकात के दौरान देश हित में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ ‘राज्यों के एकजुट होने की जरूरत के अलावा देश के खराब सियासी माहौल, द्वेषपूर्ण राजनीति’ आदि पर चर्चा हुई.

बाद में मीडिया से बातचीत के दौरान दोनों मुख्यमंत्रियों ने अपनी बैठक को भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने की दिशा में ‘पहला कदम’ बताया और तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) नेता चंद्रशेखर राव ने कहा कि महाराष्ट्र से शुरू होने वाला कोई भी आंदोलन आगे चलकर विशाल रूप ले लेता है.

दोनों मुख्यमंत्रियों के बीच रविवार को हुई बैठक के लिए ठाकरे ने पिछले हफ्ते ही राव को मुंबई आने का न्योता दिया था.

हालिया वर्षों में वरिष्ठ राजनेताओं के बीच ऐसी कुछ बैठकों की तरह ही इस मुलाकात का उद्देश्य भी निकट भविष्य में विपक्षी एकता का एक स्पष्ट संदेश देना था.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

राजनीतिक पर नजर रखने वालों का कहना है कि राष्ट्रीय स्तर पर उभरने की अपनी नई आकांक्षाओं के साथ शिवसेना केंद्र में भाजपा के खिलाफ मुखर होने के किसी भी प्रयास में सबसे आगे रहना चाहती है. ठाकरे और राव दोनों सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ गृह राज्यों में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में जुटे हैं, जिसे केंद्रीय एजेंसियों की तरफ से उनकी पार्टी के नेताओं के खिलाफ कार्रवाई से जोड़कर देखा जा रहा है.

शिवसेना के वरिष्ठ नेता और सांसद विनायक राउत ने दिप्रिंट से कहा, ‘देश में भाजपा विरोधी हवा चल रही है लेकिन जरूरत इस बात की है कि लोगों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा नेतृत्व का विकल्प नजर आए. ऐसा नेतृत्व बनाने की दिशा में के.सी. राव के प्रयास उल्लेखनीय हैं और उस संदर्भ में रविवार की बैठक अत्यंत महत्वपूर्ण थी. एक तरफ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हैं तो दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने अच्छी तरह मोर्चा संभाल रखा है. यदि ये सभी नेता साथ आ जाएं और एक साझा कार्यक्रम पर चुनाव लड़ें, तो राजनीतिक क्रांति अवश्य होगी.’

उन्होंने आगे कहा, ‘शिवसेना निश्चित रूप से ऐसी क्रांति में सबसे आगे रहेगी. जब किसी ने उम्मीद भी नहीं की होगी तो हमने महाराष्ट्र में यह मुमकिन कर दिखाया था, और महाराष्ट्र का प्रयोग बहुत अच्छा चल भी रहा है. लोग उद्धव जी को सुशासन में सक्षम एक मजबूत राजनीतिक चेहरे के तौर पर देखते हैं. इसलिए केंद्र में भाजपा विरोधी किसी भी मोर्चा के गठन में शिवसेना का योगदान बहुत अहम रहने वाला है.’

शिवसेना की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं

यद्यपि भाजपा के खिलाफ एकजुटता के संबंध में ठाकरे की किसी विपक्षी नेता के साथ यह पहली बड़ी बैठक थी, लेकिन शिवसेना एक साल से अधिक समय से इस तरह की चर्चाओं का अभिन्न हिस्सा बनने के संकेत देती रही है.

2020 से शिवसेना केंद्र में विपक्ष के नेतृत्व के लिए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का अध्यक्ष शरद पवार का नाम आगे बढ़ाती रही है. पिछले साल दिसंबर में ममता बनर्जी की मुंबई में पवार के साथ बैठक से भी उनके विपक्षी एकजुटता में एक महत्वपूर्ण वार्ताकार होने की अटकलें शुरू हो गई थीं. फिर रविवार को राव ने भी ठाकरे के साथ बैठक के बाद पवार से मुलाकात की और कहा कि सभी दल जल्द ही फिर मुलाकात करेंगे जो बैठक शायद पवार के गृह क्षेत्र बारामती हो सकती है.

महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ मिलकर बने महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के दो घटक शिवसेना और एनसीपी काफी करीब आ रहे हैं और एक साथ चुनाव लड़ने की प्रतिबद्धता जता रहे हैं. शिवसेना के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि पार्टी नेताओं को लगता है कि केंद्र में पवार के नेतृत्व वाले विपक्षी मोर्चे में शिवसेना को गांधी परिवार के नेतृत्व वाले किसी मोर्चे की तुलना में राष्ट्रीय राजनीति में अधिक अहमियत और बड़ी भूमिका मिल सकती है.

शिवसेना शुरू में जहां महाराष्ट्र में अपनी सहयोगी पार्टी कांग्रेस के खिलाफ जानबूझकर यह कहते हुए निशाना साध रही थी कि पार्टी की अगुआई वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) का नेतृत्व बेअसर है, पिछले कुछ महीनों में इस मामले में अधिक सतर्क रुख अपना लिया है. दरअसल महाराष्ट्र के प्रमुख शहरों में इस साल निकाय चुनाव होने हैं, और एमवीए के संयुक्त प्रयास—चाहे खुले तौर पर गठबंधन के माध्यम से हों, या फिर किसी तरह की सियासी सहमति के साथ—ही भाजपा को जीत से दूर रखने में सबसे कारगर हो सकते हैं.

ममता बनर्जी की मुंबई यात्रा के दौरान उनकी शिवसेना नेता और उद्धव के बेटे आदित्य ठाकरे और पवार से अलग-अलग हुई मुलाकातों के बाद से ही शिवसेना कहती रही है कि कांग्रेस को बाहर रखकर भाजपा विरोधी मोर्चा संभव नहीं होगा. इसी तरह, पिछले हफ्ते ठाकरे की तरफ से राव को मुंबई आने का न्योता दिए जाने के बाद शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने इस प्रस्तावित बैठक को ‘बेहद महत्वपूर्ण’ तो बताया लेकिन साथ ही कहा कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा सहित तमाम विपक्षी नेता एक-दूसरे के संपर्क में हैं.

राव के साथ प्रेस कांफ्रेंस में भी न तो ठाकरे ने और न ही तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने कांग्रेस का कोई जिक्र किया. पार्टी सूत्रों ने कहा कि दोनों नेता प्रेस की तरफ से इस पर पूछे गए किसी भी सवाल का जवाब देने को तैयार नहीं थे.

राजनीतिक स्तंभकार हेमंत देसाई ने दिप्रिंट को बताया, ‘शिवसेना की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं हैं. संजय राउत एक साल से अधिक समय से यूपीए-2 की बात कर रहे हैं. आदित्य ठाकरे भी यह घोषणा करके पार्टी की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं का संकेत दे चुके हैं कि शिवसेना अन्य राज्यों के चुनावों पर भी ध्यान केंद्रित करेगी. संजय राउत भी इस तरह का बयान दे चुके हैं कि उद्धव ठाकरे कैसे पीएम बन सकते हैं. इसी सिलसिले में के.सी. राव के साथ यह बैठक न केवल शिवसेना के लिए बल्कि टीआरएस के लिए भी राजनीतिक प्रदर्शन है.’

उन्होंने कहा, राव को आमंत्रित भले ही ठाकरे ने किया हो, लेकिन यह बैठक दोनों नेताओं की पारस्परिक जरूरत थी.


यह भी पढ़ें: संजय राउत का ‘फ्रॉड लिंक’ लगातार किरीट सोमैया-बनाम-शिवसेना लड़ाई का नया चैप्टर बना हुआ है


गृह राज्यों में अपनी स्थिति मजबूत करने की कवायद

वैसे तो ठाकरे-राव की मुलाकात राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा संदेश देने की कोशिश प्रतीत हो रही है, लेकिन इसके निहितार्थ अपने-अपने गृह राज्यों में अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत करने से भी जुड़े हैं.

शिवसेना, खासकर दोनों मुख्यमंत्रियों की बैठक का हिस्सा रहे राउत ने पिछले दो हफ्तों से भाजपा के खिलाफ खासे आक्रामक तेवर अपना रखे हैं. पहले उन्होंने उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को पत्र लिखकर कहा कि भाजपा के सियासी एजेंडे के तहत केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल किया जा रहा है. और बाद में एक हाई-प्रोफाइल प्रेस कांफ्रेंस के दौरान भाजपा नेताओं के खिलाफ तमाम आरोप लगाए. राउत ने राव के साथ ठाकरे की बैठक में हिस्सा लिया था.

यहां तक कि केसीआर भी सार्वजनिक रूप से भाजपा की कथित जनविरोधी नीतियों के खिलाफ बयान दे रहे हैं और ठाकरे ने उनके अच्छे काम और समर्थन के लिए उनकी सराहना की है.

राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश बाल ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘संजय राउत ने अपनी चर्चित प्रेस कॉन्फ्रेंस में जिस तरह से बात की, वह उद्धव ठाकरे की स्पष्ट अनुमति के बिना संभव नहीं थी.

प्रकाश बाल के मुताबिक, ‘उन्होंने कहा है कि हम इसे चुपचाप देखते नहीं रहेंगे. उन्होंने खुलकर इसका मुकाबला करने का निश्चय किया है. यह सीधे तौर पर भिड़ने की बात है और वे इसके जरिये मोदी को संकेत भेज रहे हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘इस साल होने वाले चुनावों में भाजपा पूरी आक्रामकता के साथ मुंबई सहित शिवसेना शासित नगर निकायों को हथियाने की कोशिश कर रही है, वहीं ठाकरे केसी राव, ममता बनर्जी या तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन जैसे नेताओं के साथ बैठक करके अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में लगे हैं, जिनका खुद का एजेंडा भी यही है.

देसाई ने कहा, ‘केसीआर ने 2019 में भी गैर-कांग्रेसी, गैर-भाजपा मोर्चा बनाने की कोशिश की थी. तबसे हैदराबाद में भाजपा की ताकत बढ़ी है और पार्टी तेलंगाना में आक्रामक तौर पर अपना विस्तार कर रही है.

उन्होंने कहा, ‘यह केसीआर का उसे पीछे धकेलने की कोशिश का हिस्सा है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: दो साल बाद नीतीश और प्रशांत किशोर की मुलाकात से सुगबुगाहटें तेज, लेकिन साथ आने की संभावना कम


 

share & View comments