नई दिल्ली: त्रिपुरा में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रमुख राजीब भट्टाचार्जी ने वाम मोर्चे और तिप्राहा स्वदेशी प्रगतिशील क्षेत्रीय गठबंधन (टिपरा मोथा) के बीच ‘गोपनीय समझौते’ का आरोप लगाया है. साथ ही कहा है कि भाजपा ने इस माह होने जा रहे विधानसभा चुनाव के लिए अपने घोषणापत्र में आदिवासियों पर ध्यान केंद्रित किया है क्योंकि उन्हें विकास की आवश्यकता है. भट्टाचार्जी ने शुक्रवार को दिप्रिंट से कहा, ‘बंगाली जानते हैं कि हम सबका ध्यान रखते हैं, हमारा उद्देश्य—सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास है.’
त्रिपुरा में मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग बंगाली और आदिवासी है, राज्य के कुल 28 लाख से अधिक मतदाताओं में लगभग 10 लाख आदिवासी हैं.
भाजपा की तरफ से गुरुवार को जारी किए गए घोषणापत्र में आदिवासियों के लिए मासिक वित्तीय सहायता कार्यक्रम, आदिवासी क्षेत्रों में समुदाय के नेताओं के लिए उच्च मानदेय और अधिक स्वायत्तता के लिए आदिवासी जिला परिषदों के पुनर्गठन सहित कई वादे किए गए हैं.
वहीं, बंगाली हिंदुओं के लिए एक तीर्थयात्रा योजना और एक प्रमुख धार्मिक नेता के नाम पर रियायती भोजन कैंटीन के वादे के अलावा कुछ खास वादा नहीं किया गया, जिनकी आबादी राज्य में 2011 की जनगणना के मुताबिक 30 लाख से अधिक है.
भाजपा ने त्रिपुरा का पिछला चुनाव 2018 में एक आदिवासी संगठन इंडीजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा के साथ गठबंधन करके जीता था. जबकि आदिवासी क्षेत्रों में परंपरागत रूप से मजबूत जनाधार रखने वाला वाम मोर्चा उन 20 सीटों में से केवल दो पर सिमट गया था जहां आदिवासी मतदाताओं का वर्चस्व है.
हालांकि, 2021 के स्वायत्त जिला परिषद चुनाव में टिपरा मोथा ने भाजपा को हरा दिया था, यही पार्टी के लिए आदिवासियों के मुद्दों को जोरदारी से उठाने की एक बड़ी वजह रही, और अन्य राजनीतिक दल भी आदिवासी मुद्दों पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं.
राष्ट्रीय पार्टियों की तरफ से लुभाए जाने की कोशिशों को बीच अब राज्य में एक किंगमेकर के तौर पर देखे जा रहे मोथा ने अकेले ही विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. हालांकि भाजपा और कांग्रेस-वाम मोर्चा दोनों की तरफ से इसे अपने साथ लाने की हरसंभव कोशिश की गई थी, लेकिन मोथा प्रमुख प्रद्योत देबबर्मा की ‘ग्रेटर तिप्रालैंड’ की मांग के कारण वार्ता आगे नहीं बढ़ पाई. दरअसल देबबर्मा चाहते थे कि त्रिपुरा के मूल निवासियों के लिए एक अलग राज्य के गठन का वादा लिखित तौर पर किया जाए.
भट्टाचार्य ने कहा, ‘यह सही नहीं है कि पिछले पांच सालों में आदिवासियों का कोई विकास नहीं हुआ है. सच तो यह है कि हमने विकास किया है ना कि नारेबाजी की है. हम समझते हैं कि आदिवासियों का विकास राज्य के विकास के लिए महत्वपूर्ण है. अतीत में उग्रवाद की भावनाओं को भड़काने के लिए आदिवासियों का इस्तेमाल किया गया था. भारी जनजातीय आबादी वाला धलाई एक आकांक्षी जिला है.’
उन्होंने कहा, ‘बंगाली और पहाड़ी लोग लंबे समय से त्रिपुरा में एक साथ रहते आ रहे हैं. हम लोगों को अलग-अलग वर्गों के तौर पर नहीं देखते; हम समग्र विकास पर ध्यान देते हैं. घोषणापत्र में आदिवासियों के लिए अलग प्रावधान है क्योंकि उन्हें विकास की जरूरत है. यह कहना कतई सही नहीं है कि इसमें बंगालियों के लिए कुछ नहीं है.’
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‘आदिवासियों को गुमराह कर रहा मोथा’
भट्टाचार्जी ने आरोप लगाया कि मोथा के सुनियोजित अभियान के कारण भाजपा को त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (टीटीएएडीसी) में हार का सामना करना पड़ा था और लोग अब अपनी गलती समझ गए हैं.
खुद बनमालीपुर निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा चुनाव लड़ रहे भट्टाचार्जी ने कहा, ‘हम इसलिए नहीं जीते क्योंकि मोथा ने आदिवासियों को गुमराह किया. लेकिन अब वे समझ गए हैं कि डबल इंजन सरकार (राज्य और केंद्र दोनों में भाजपा सरकारों के संदर्भ में) क्या हासिल कर सकती है. हम अकेले ही विकास की बात करने की हिम्मत रखते हैं और कोरी नारेबाजी नहीं करते हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘ब्रू शरणार्थियों (जो मुख्यत: जातीय उत्पीड़न के कारण पड़ोसी राज्य मिजोरम से भागकर यहां आए) के पुनर्वास में 23 साल लग गए और यह भारत सरकार की तरफ से मिजोरम सरकार से बात किए जाने के बाद ही संभव हुआ. लोग इन बातों को समझते हैं. मोथा ने मूल रूप से माकपा वोटों पर जीत हासिल की थी. अब भी वे एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं. पीठ पीछे एक-दूसरे को गाली देते हैं, लेकिन एक-दूसरे की मदद के लिए गुप्त रूप से हाथ मिलए रखते हैं.’
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने यह भी कहा कि 1993 से 2018 तक वाम मोर्चा शासित राज्य होने के बावजूद ‘त्रिपुरा में अब कभी माकपा से जुड़े किसी भी व्यक्ति को स्वीकार नहीं करेगा.’
देबबर्मा के साथ गठबंधन की कोशिश में गृह मंत्री अमित शाह और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा सहित भाजपा नेताओं की कई बैठकों के बारे में पूछे जाने पर भट्टाचार्जी ने कहा, ‘ऐसा इसलिए क्योंकि हम गठबंधन में विश्वास करते हैं. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में 23 घटक थे, मोदी सरकार में भी सहयोगी हैं. वार्ता विफल रही क्योंकि किसी भी तरह हम मां त्रिपुरेश्वरी के राज्य को विभाजित करने को तैयार नहीं हो सकते थे (तिप्रालैंड की मांग के संदर्भ में).
यह दावा करते हुए कि टिपरा मोथा ने भले ही एडीसी चुनाव जीते हों लेकिन शासन के मामले में उनका प्रदर्शन खराब रहा है, भट्टाचार्जी ने यह आरोप भी लगाया, ‘कुमलंग, जहां त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद है, में हमने एक अस्पताल भवन को मंजूरी दी है और सरकार ने इसके लिए 30 करोड़ रुपये दिए. लेकिन अस्पताल बनना तो दूर की बात, उस जगह पर आज तक एक ईंट भी नहीं रखी गई है.’
सीएम बदलने से फायदा मिलेगा
चुनाव से बमुश्किल 10 महीने पहले मई 2022 में भाजपा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री बिप्लव देब को बदलकर माणिक साहा को कुर्सी को बैठा दिया था, जिन्होंने बाद में विधायक बनने के लिए टाउन बरदौली से उपचुनाव लड़ा. वह इस बार फिर उसी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. भट्टाचार्जी के मुताबिक, सीएम बदलने को किसी भी तरह से बिप्लव देब के प्रदर्शन से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि ऐसा लगता है कि उन्होंने ‘कुछ बड़ी’ जिम्मेदारी दी जानी है.
उन्होंने कहा, ‘मुख्यमंत्री बदलने से जाहिर तौर पर हमें फायदा होगा. सीएम बदलने का फैसला दिल्ली ने किया था, लेकिन अब जबकि उन्हें बड़ी भूमिका दी गई है तो कोई भी उनके प्रदर्शन पर सवाल नहीं उठा सकता. वह सांसद हैं और उन्होंने हरियाणा जैसे राज्य की जिम्मेदारी संभाली है. नरेंद्र मोदी जैसे व्यक्ति के नेतृत्व में ही त्रिपुरा ने भारत के मानचित्र पर अपनी जगह बनाई है. स्पष्ट तौर पर आगे और भी बेहतर चीजें हमारे सामने आएंगी.’
त्रिपुरा भाजपा प्रमुख हालांकि, सीधे तौर पर इस सवाल का जवाब टाल गए लेकिन उन्होंने इस तरह की अटकलों को पूरी तरह खारिज नहीं किया कि अगर भाजपा अगला चुनाव जीती तो राज्य में फिर से कोई नया मुख्यमंत्री हो सकता है. गौरतलब है कि जिस नाम पर चर्चा चल रही हैं, वो उसमें सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में केंद्रीय राज्य मंत्री प्रोतिमा भौमिक का है, जिन्हें धौनपुर निर्वाचन क्षेत्र से मैदान में उतारा गया है.
उन्होंने कहा, ‘नेतृत्व जो तय करेगा वही होगा. यहां तक कि मेरा उस पार्टी का अध्यक्ष होना, जिसका मैं 1991 से सदस्य हूं या मेरा बनमालीपुर से लड़ना नेतृत्व की इच्छा का ही नतीजा है. हम सभी पार्टी के अनुशासित सिपाही हैं.’
(अनुवादः रावी द्विवेदी | संपादनः ऋषभ राज)
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