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Monday, 4 November, 2024
होमराजनीति'ब्रांड मोदी पर बहुत भरोसा, ‘400 पार’ का नारा और दलबदलुओं को पार्टी में लाना'; BJP राजस्थान में क्यों हारी

‘ब्रांड मोदी पर बहुत भरोसा, ‘400 पार’ का नारा और दलबदलुओं को पार्टी में लाना’; BJP राजस्थान में क्यों हारी

जानकारी के मुताबिक पहलवानों के विरोध प्रदर्शन, कांग्रेस से दलबदलुओं को लाने और राज्य भाजपा इकाई के भीतर जातिगत समीकरणों को भी 11 सीटों पर पार्टी की हार के कारणों के रूप में पहचाना गया है.

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नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अत्यधिक निर्भरता, ‘400 पार’ के नारे का नकारात्मक प्रभाव, किसानों और पहलवानों के विरोध प्रदर्शन का प्रभाव और कांग्रेस से दलबदलुओं को लाना – भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा की गई समीक्षा ने इन्हें राजस्थान में 25 लोकसभा सीटों में से 14 पर सिमटने के प्रमुख कारणों के रूप में इंगित किया है.

यह पिछले दो आम चुनावों में इसकी जीत से बहुत बड़ी गिरावट है. इसने 2014 में सभी 25 सीटों पर क्लीन स्वीप किया और 2019 में 24 सीटें हासिल कीं, जबकि एक सहयोगी ने शेष सीट जीती.

पार्टी सूत्रों के अनुसार, इस झटके के बाद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने राज्य इकाई से रिपोर्ट मांगी है. मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने भी सोमवार को नई दिल्ली में प्रधानमंत्री से मुलाकात की.

पिछले सप्ताह राज्य इकाई ने समीक्षा बैठक की थी. बैठक में सीएम शर्मा, प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी, पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौर और चुनाव हारने वाले उम्मीदवारों समेत पार्टी के वरिष्ठ नेता शामिल हुए थे.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “चर्चा के दौरान यह स्पष्ट हो गया कि अनुसूचित जाति (एससी) का वोट बैंक जो हमें वोट दे रहा था, वह ‘400 पार’ नारे के कारण हमसे दूर चला गया, क्योंकि कांग्रेस ने उसका इस्तेमाल यह नैरेटिव सेट करने के लिए किया कि संविधान में संशोधन कर दिया जाएगा और आरक्षण को खत्म कर दिया जाएगा. जबकि कांग्रेस कार्यकर्ता अपने एजेंडे को लेकर काफी सक्रिय और आक्रामक थे, वहीं भाजपा कार्यकर्ता उदासीन दिखे.”

उन्होंने कहा कि ‘400 पार’ नारे का यह भी मतलब था कि कई लोगों को लगा कि वे केवल मोदी की ब्रांड वैल्यू पर भरोसा करके जीत हासिल कर लेंगे. उन्होंने कहा, “कार्यकर्ता उस तरह से काम नहीं कर रहे थे, जैसा उन्हें करना चाहिए था. विधानसभा चुनाव जीतने की वजह से हमें बेहतर प्रदर्शन करने में मदद मिलनी चाहिए थी, लेकिन कार्यकर्ता थोड़े से लापरवाह हो गए.”

उन्होंने आगे कहा: “सभी ने सोचा था कि मोदी जी के नाम पर उन्हें वोट मिलेंगे. उन्होंने उतना काम नहीं किया जितना किया जाना चाहिए था, और परिणाम साफ दिख रहे हैं.”

पार्टी अब पांच विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव की तैयारी कर रही है. भाजपा के एक अन्य पदाधिकारी ने कहा कि “गलत” टिकट वितरण, किसान आंदोलन का असर, अग्निपथ योजना और पहलवानों के विरोध प्रदर्शन, इन सभी के कारण पार्टी की सीटें कम हुईं, खासकर शेखावाटी क्षेत्र में.

पदाधिकारी ने कहा, “शेखावाटी क्षेत्र में कांग्रेस द्वारा भाजपा को किसान विरोधी बताए जाने का पार्टी मुकाबला नहीं कर पाई और विपक्ष कृषि कानूनों और अग्निपथ योजना पर ही ध्यान केंद्रित करने में सफल रहा.”

जातिगत समीकरण, दलबदलुओं को शामिल करना

एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा कि राज्य इकाई के भीतर जातिगत समीकरणों ने भी पार्टी के एक वर्ग को परेशान कर दिया है.

नेता ने कहा, “मुख्यमंत्री ब्राह्मण हैं, प्रदेश अध्यक्ष ब्राह्मण हैं, शीर्ष पदों पर आसीन कई अन्य नेता ब्राह्मण हैं, इसलिए अब पार्टी इस बात पर विचार कर रही है कि प्रदेश अध्यक्ष को बदला जाए या नहीं. इस पर चर्चा चल रही है.”

उन्होंने कहा: “यह भी उजागर हुआ कि राज्य इकाई में अभी भी मतभेद की स्थिति है. स्थानीय पार्टी कार्यकर्ता बाहर से पार्टी नेताओं को शामिल किए जाने और उन्हें पार्टी में सीटें या महत्वपूर्ण पद दिए जाने से परेशान हैं.”

इससे पहले दिप्रिंट से बात करते हुए, पार्टी के एक अन्य पदाधिकारी ने कहा कि पार्टी द्वारा चूरू के मौजूदा सांसद राहुल कासवान को टिकट न दिए जाने से – जो कांग्रेस में चले गए और अपनी सीट जीती भी – यह भी एक धारणा बनी कि जाट समुदाय के साथ भाजपा द्वारा “अच्छा व्यवहार” नहीं किया गया.

कस्वां को पैरालंपिक स्वर्ण पदक विजेता देवेंद्र झाझरिया के पक्ष में टिकट देने से मना कर दिया गया. हालांकि दोनों जाट समुदाय से हैं, लेकिन कस्वां ने राजपूत नेता राजेंद्र राठौर पर टिकट न दिए जाने के पीछे होने का आरोप लगाया, जिससे जातिगत आधार पर ध्रुवीकरण बढ़ गया.

नेता ने कहा, “जाट-राजपूत विवाद 1 मार्च को भाजपा द्वारा लोकसभा उम्मीदवारों की पहली सूची जारी किए जाने के साथ शुरू हुआ और पुरुषोत्तम रूपाला के विवादास्पद बयान ने इसे और हवा दे दी.” गुजरात से केंद्रीय मंत्री रूपाला द्वारा मार्च में की गई टिप्पणियों ने उनके राज्य और अन्य जगहों पर राजपूतों की तीखी प्रतिक्रिया को जन्म दिया था.

सूत्रों ने आगे बताया कि राज्य इकाई में मौजूदा स्थिति ऐसी है कि पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह नहीं बन पा रहा है. एक नेता ने कहा, “कई पार्टी उम्मीदवारों ने भी अंदरूनी तोड़फोड़ की बात कही है.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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