scorecardresearch
Monday, 1 September, 2025
होमराजनीति‘वोट चोरी’ अभियान को मजबूती देने के लिए कांग्रेस का फोकस बूथ स्तर पर कमज़ोर मौजूदगी और गायब एजेंटों पर

‘वोट चोरी’ अभियान को मजबूती देने के लिए कांग्रेस का फोकस बूथ स्तर पर कमज़ोर मौजूदगी और गायब एजेंटों पर

बिहार चुनाव से पहले कांग्रेस अपनी चुनावी रणनीति की आंतरिक खामियों को दुरुस्त करने में जुटी, संगठनात्मक कमज़ोरियों को मानते हुए कई स्तरों पर उन्हें दूर करने के उपाय कर रही है.

Text Size:

नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ज़ोरदार अभियान चला रही है. पार्टी का आरोप है कि चुनाव आयोग (ईसीआई) और बीजेपी के बीच मिलीभगत है, जिसके ज़रिए कई राज्यों में मतदाता सूची से छेड़छाड़ कर चुनाव नतीजों को प्रभावित किया जा रहा है.

हालांकि, जनता की नज़रों से दूर, कांग्रेस अपनी चुनावी रणनीति की आंतरिक खामियों को दुरुस्त करने पर भी काम कर रही है. पार्टी ने संगठनात्मक कमज़ोरियों को स्वीकार करते हुए उन्हें कई स्तरों पर ठीक करने के उपाय सुझाए हैं.

पार्टी के ट्रेनिंग विभाग द्वारा चुनावी तैयारियों पर तैयार की गई पुस्तिकाओं (ब्रॉशर) में इन खामियों का खुला ज़िक्र है—जैसे मतदाताओं तक कम पहुंच, बूथ स्तर पर मज़बूत मौजूदगी की कमी और चुनाव के दिन प्रशिक्षित पोलिंग एजेंटों का न होना. ये दस्तावेज़ राज्य इकाई से लेकर जमीनी कार्यकर्ताओं तक पूरे संगठनात्मक ढांचे को उपलब्ध कराए गए हैं.

ब्रॉशर में चुनाव से जुड़ी कई गतिविधियां शामिल हैं: घर-घर जाकर संपर्क करना, मतदाता सूची की जांच करना, बूथ लेवल एजेंट (बीएलए) और पोलिंग एजेंट नियुक्त करना और मतदान के दौरान इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की निगरानी करना.

ऐसा ही एक दस्तावेज़, जो डोर-टू-डोर कैंपेनिंग पर केंद्रित है, मानता है कि कांग्रेस व्यक्तिगत स्तर पर मतदाताओं से जुड़ने में पिछड़ गई है. हाल के वर्षों में बीजेपी के बूथ स्तर पर आक्रामक अभियान के मुकाबले यह कमी और स्पष्ट दिखती है.

दस्तावेज़ में कहा गया है, “हाल के चुनाव अभियानों में पाया गया कि मतदाताओं तक पहुंचने के मामले में हमारा प्रदर्शन बेहद कमज़ोर है. हमारे अभियान अक्सर सामुदायिक स्तर तक ही सीमित रहते हैं और परिवारों व व्यक्तियों से सीधा जुड़ाव नहीं बन पाता. इसका नतीजा यह होता है कि हमारे पक्ष में वोट कम पड़ते हैं. दूसरी ओर, विभाजनकारी राजनीति टीवी चैनलों और सोशल मीडिया के ज़रिए परिवारों और व्यक्तियों तक पहुंच जाती है. हमारे लिए यह एक राजनीतिक चुनौती है कि चुनाव अभियानों के दौरान हम परिवारों और व्यक्तियों तक सीधी पहुंच बना सकें.”

इस दस्तावेज़ में परिवार स्तर पर पहुंच मजबूत करने और सीधे मतदाताओं से जुड़ाव बनाने की विस्तृत योजना दी गई है. वहीं, कांग्रेस का ईवीएम पर पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए तैयार किया गया साहित्य भी आत्म-आलोचनात्मक है.

दस्तावेज़ में लिखा है, “हाल के समय में EVM के ख़राब होने की शिकायतें सामने आई हैं. आम तौर पर कई मतदाताओं ने इनके सही ढंग से काम करने पर संदेह जताया है, जब भी ईवीएम में गड़बड़ी हो या शिकायत आए, पोलिंग एजेंट को आपत्ति दर्ज कर जांच की मांग करनी चाहिए, लेकिन ज़्यादातर बार पोलिंग एजेंट बूथ पर मौजूद ही नहीं होते, या उन्हें यह नहीं पता होता कि आपत्ति कैसे और कहां दर्ज की जाए. मतदान के दिन पोलिंग एजेंटों की गैरमौजूदगी की वजह से संभावित धांधली और गड़बड़ी पर कोई निगरानी नहीं हो पाती, जिससे चुनाव हारने तक की नौबत आ सकती है.”

ब्रॉशर “पोलिंग एजेंट कैसे बनें और ईवीएम की निगरानी कैसे करें” कार्यकर्ताओं के लिए स्टेप-बाय-स्टेप गाइड देता है—ईवीएम की सील की जांच से लेकर फॉर्म 17-C इकट्ठा करने तक, जिसमें बूथवार वोटिंग का आंकड़ा दर्ज होता है.

कांग्रेस ने बीएलए (बीएलए) की गतिविधियों पर भी एक बुकलेट तैयार की है. यह पद चुनाव आयोग (ईसीआई) ने राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के लिए बनाया है, ताकि वे मतदाता सूची तैयार होने के दौरान नाम हटाने, जोड़ने और सुधार की प्रक्रिया पर निगरानी रख सकें. बुकलेट में कहा गया है कि हाल के समय में मतदाता सूची से अचानक नाम हटाए जाने की बड़ी संख्या में रिपोर्टें आई हैं.

बुकलेट के मुताबिक, “कड़ी टक्कर वाले चुनावों में इसे एक सोची-समझी रणनीति के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है…ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जहां मतदाता सूची में फर्ज़ी नाम जोड़े गए. चुनाव जीतने के लिए धोखाधड़ी से फर्ज़ी मतदाता प्रविष्टियां की जाती हैं. बीएलए हमारा कार्यकर्ता होता है जिसे फर्ज़ी मतदाताओं पर आपत्ति दर्ज करने और बीएलओ की मदद से मतदाताओं का ज़मीनी स्तर पर सत्यापन करने का कानूनी अधिकार होता है.”

बिहार में मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के दौरान बीएलए पर काफी ध्यान केंद्रित हुआ है. ज़मीनी स्तर पर काम कर रहे 1.6 लाख बीएलए को चुनाव आयोग ने मान्यता दी है. इनमें बीजेपी के 53,338, आरजेडी के 47,506, कांग्रेस के 17,549 और सीपीआई (एमएल) के 1,496 बीएलए हैं.

हालांकि, चुनाव आयोग का दावा है कि 31 अगस्त तक आरजेडी और सीपीआई (एमएल) के बीएलए ने सिर्फ 25 दावे (नए नाम जोड़ने के लिए) और 103 आपत्तियां (नाम हटाने के लिए) दर्ज कराई हैं, जबकि अंतिम तारीख 1 सितंबर है. चुनाव आयोग के रिकॉर्ड बताते हैं कि व्यक्तिगत मतदाताओं ने 33,326 दावे और 2,07,565 आपत्तियां दाखिल की हैं.

पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने भी हैरानी जताई थी कि इतनी विरोध की आवाज़ों के बावजूद राजनीतिक दलों की ओर से दावे और आपत्तियां कम क्यों आई हैं.

रविवार को पटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पवन खेड़ा ने आरोप लगाया, “चुनाव आयोग अपने स्रोतों के ज़रिए खबरें प्लांट कराता है कि किसी राजनीतिक दल की ओर से कोई शिकायत नहीं आई.”

खेड़ा ने कहा, “सच यह है कि कांग्रेस ने एसआईआर में गड़बड़ियों को लेकर चुनाव आयोग को 89 लाख शिकायतें सौंपी थीं.” उनका दावा है कि कांग्रेस द्वारा नियुक्त बीएलए की शिकायतों को चुनाव आयोग ने खारिज कर दिया.

पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, चुनाव आयोग ने पहले तो कहा कि किसी बीएलए ने कोई दावा या आपत्ति दाखिल नहीं की, लेकिन कुछ घंटों बाद एक और बयान जारी कर कहा कि कांग्रेस की शिकायतें निर्धारित प्रारूप (फॉर्मेट) में नहीं मिली थीं और ज़रूरी कदम उठाए जा रहे हैं.

सीपीआई (एमएल) के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट से कहा कि आपत्ति दाखिल करना इतना आसान नहीं है, क्योंकि “मैदान पर तैनात चुनाव आयोग के अधिकारी ऐसी कोशिशों को रोकते हैं.” इसी वजह से दलों को लोगों से व्यक्तिगत स्तर पर आपत्तियां दाखिल करवानी पड़ रही हैं.

इस बीच, कांग्रेस का ब्रॉशर अपने कार्यकर्ताओं को फॉर्म-6 (नए मतदाता नामांकन), फॉर्म-7 (मृत मतदाताओं का नाम हटाने) और फॉर्म-8 (सुधार और नाम स्थानांतरण) की तकनीकी जानकारी से अवगत कराता है.

कांग्रेस के ट्रेनिंग विभाग के एक वॉलंटियर, जो इन बुकलेट्स की तैयारी में शामिल थे, उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि मतदाता सूची संशोधन की बारीकियां समझने के लिए इन पुस्तिकाओं और ट्रेनिंग सेशनों की मांग ज़मीनी स्तर पर काफी बढ़ गई है, खासकर तब से जब राहुल गांधी ने 2024 लोकसभा चुनाव के दौरान बेंगलुरु की एक विधानसभा सीट पर मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: ‘पद पर बने रहने की 75 कोई सीमा नहीं, मैंने कभी नहीं कहा कि मैं या कोई और रिटायर हो’—RSS प्रमुख


 

share & View comments