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Friday, 26 April, 2024
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मध्य प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर से पार पाने के लिए BJP की दलित और आदिवासी सीटों पर नज़र

मध्य प्रदेश के मतदाताओं में 21.5 प्रतिशत आदिवासी आबादी है और 15.6 प्रतिशत दलित हैं लेकिन 2018 में इन समुदाय की बड़ी आबादी ने भाजपा को वोट नहीं दिया था.

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नई दिल्ली: मध्य प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा आलाकमान ने राज्य ईकाई को निर्देश दिया है कि वो आदिवासी और दलित बहुल सीटों पर जोर दे, जहां पिछले चुनाव में पार्टी की स्थिति काफी खराब रही थी. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.

भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और महासचिव (संगठन) बीएल संतोष ने मंगलवार को नई दिल्ली में आगामी चुनाव के मद्देनज़र मध्य प्रदेश की पार्टी कोर कमिटी के साथ मुलाकात की.

बैठक में शामिल पार्टी के सूत्रों के मुताबिक भाजपा ने न केवल राज्य ईकाई से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति बहुल सीटों पर ज्यादा जोर लगाने के लिए कहा बल्कि ज्यादा से ज्यादा आदिवासी नेताओं को कैबिनेट में शामिल कराने का भी सुझाव दिया.

सूत्रों ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जो कि भाजपा की विचारधारा की स्तंभ है, उसने ये सुझाव दिया है कि एससी और एसटी समुदाय पर ज्यादा जोर दिया जाए. बैठक में एक आरएसएस के सदस्य ने कथित तौर पर मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल इलाकों में इस्लामिस्ट पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया जैसे संगठन की पैठ को लेकर चिंता जाहिर की.

इस बैठक में शामिल मध्य प्रदेश के नेताओं में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा, भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, मध्य प्रदेश के पार्टी प्रभारी मुरलीधर राव और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर शामिल थे.

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आरएसएस के वरिष्ठ सदस्य अरुण कुमार, जो कि भाजपा और संघ के बीच समन्वय का काम देखते हैं- वो भी इस बैठक में शामिल थे.


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‘दलितों और आदिवासियों का विश्वास जीतने पर जोर देने की जरूरत’

दिप्रिंट से बात करते हुए भाजपा सूत्रों ने बताया कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शााह ने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के अपने दौरे के दौरान कई सुझाव दिए थे जिसका चुनाव के दौरान पालन किए जाने की बात कही गई है. 22 अप्रैल के अपने दौरे के दौरान शाह ने राज्य में बड़े स्तर पर आदिवासी कार्यक्रम कराने की बात भी कही थी.

भाजपा नेता ने कहा था, ‘जैसा कि हमने आने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी है, ऐसे में हमारी सबसे बड़ी चिंता है आदिवासी बहुल इलाकों में पिछले चुनाव में खराब प्रदर्शन. इसे मजबूत करने की जरूरत है और दलितों और आदिवासी समुदाय के लिए काफी कुछ करने की जरूरत है.’

उनके अनुसार संघ ने भी इस बात पर जोर दिया है कि इन समुदाय के लोगों का समर्थन हासिल करना जरूरी है और ऐसा करने के लिए कुछ सुझाव भी दिए हैं.

एक और भाजपा नेता ने कहा कि सांगठनिक पहुंच के जरिए सत्ता विरोधी लहर से पार पाने पर जोर दिया जा रहा है जिससे उत्तर प्रदेश की तरह सत्ता के पक्ष में माहौल तैयार हो.

इसके अलावा सूत्रों ने कहा कि सुलोचना रावत जो कि कांग्रेस से भाजपा में आई है और उन्होंने पिछले साल हुए उपचुनाव में आदिवासी बहुल जोबाट सीट से जीत हासिल की है, उन्हें कैबिनेट में जगह दी जा सकती है. कैबिनेट में एससी समुदाय को भी प्रतिनिधित्व देने पर विचार किया जा सकता है.


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भूल सुधार

मध्य प्रदेश के मतदाताओं में 21.5 प्रतिशत आदिवासी आबादी है और 15.6 प्रतिशत दलित हैं लेकिन 2018 में इन समुदाय की बड़ी आबादी ने भाजपा को वोट नहीं दिया था.

बीते कुछ समय से राज्य में जातिगत अपराध में तेजी आई है, जिसने भाजपा के लिए ये जरूरी बना दिया है कि वो 2023 के विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र इस धाराणा को बदले.

राज्य की 230 विधानसभा सीटों में 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं वहीं 35 सामान्य सीटें है जहां आदिवासी आबादी तकरीबन 50 हज़ार है. राज्य में 35 सीटें अनुसूचित जाति के लिए भी आरक्षित है.

2013 और 2018 के बीच भाजपा कई दलित और आदिवासी बहुल इलाकों में हारी थी. 2018 में 47 सीटों में भाजपा को केवल 18 सीटें मिली थी वहीं 2013 में पार्टी को 31 सीटें मिली थी. वहीं कांग्रेस ने 2018 में 31 सीटें जीती थी.

इसी तरह एससी की 35 आरक्षित सीटों में भाजपा को 17 सीटें मिली थी वहीं 2013 में ये आंकड़ा 13 सीटों का था.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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