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Wednesday, 22 May, 2024
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TMC देख नहीं पाई लेकिन ‘घुटन’ महसूस कर रहे दिनेश त्रिवेदी के पास पार्टी छोड़ने के कई कारण थे

तृणमूल कांग्रेस ने पार्टी में ‘दम घुटने’ के दिनेश त्रिवेदी के दावों को निराधार बताते हुए कहा है कि उन्होंने कभी किसी मतभेद को सुलझाने के लिए संपर्क नहीं किया. वहीं, भाजपा ने कहा है कि उनके साथ आने का स्वागत करेगी.

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कोलकाता: पूर्व रेल मंत्री और राज्य सभा में तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद दिनेश त्रिवेदी (70) के संसद के उच्च सदन से इस्तीफे की घोषणा करते ही भाजपा के प्रति उनकी कथित निष्ठा को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं.

तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सूत्रों ने माना कि त्रिवेदी का ‘दम घुटने’ वाला भाषण सुनकर एक झटका लगा है क्योंकि पार्टी को ‘कभी ऐसा होने का अंदाजा’ ही नहीं था. साथ ही जोड़ा, वो भी तब जबकि टीएमसी ने कोई नाराजगी होने पर ‘समय रहते उसका पता लगाने और उसे दूर करने’ का एक तंत्र बना रखा है.

शीर्ष नेताओं ने पार्टी में दम घुटने के त्रिवेदी के दावों पर यह कहते हुए सवाल उठाए कि उनकी तरफ से तो कभी ‘बातचीत’ के लिए कोई आग्रह नहीं किया गया.

तृणमूल के लोकसभा सांसद सौगत रॉय ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमें तो कभी लगा ही नहीं ऐसा कुछ हो सकता है. उन्होंने जो तरीका अपनाया वो वास्तव में अभूतपूर्व है.’

उन्होंने बताया, ‘हमने रविवार को एक ही विमान में दिल्ली के लिए उड़ान भरी. हम इतनी देर तक बात करते रहे, उन्होंने अपनी चिंताओं के बारे में मुझसे कुछ नहीं कहा. लेकिन मुझे पता चला है कि वह कल दिल्ली में विपक्ष के एक वरिष्ठ नेता से मिले थे. वह जिस नेता से मिले, वह भाजपा से नहीं हैं.’

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तृणमूल के ही एक अन्य शीर्ष नेता ने नाम न छापने के अनुरोध पर बताया कि त्रिवेदी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधने से मना कर दिया था.

तृणमूल नेता ने कहा, ‘पिछले तीन महीनों में पार्टी ने कई बार कोशिश की कि वह राष्ट्रीय मुद्दों और मौजूदा विवादों के खिलाफ कुछ बोलें. लेकिन उन्होंने स्पष्ट रूप से मोदी के खिलाफ बोलने से इनकार कर दिया.’

उक्त नेता ने कहा, ‘2019 में बैरकपुर में उन्हें हराने वाले अर्जुन सिंह (अब भाजपा में) पार्टी, खासकर ममता बनर्जी के साथ उनके मतभेद का एकमात्र कारण रहे हैं. 2019 में दीदी ने अर्जुन की बजाये उन्हें चुना. आखिरकार, हम सीट हार गए. हमें पता था कि वह मोदी और शाह के साथ संपर्क बनाए हुए हैं और हमने दीदी को आगाह भी किया था. लेकिन फिर भी दीदी ने उन पर भरोसा किया.’

हालांकि, अब बैरकपुर के भाजपा के सांसद अर्जुन सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें त्रिवेदी की ओर से संकेत मिला है कि वे जल्द भाजपा में शामिल हो जाएंगे.

अर्जुन सिंह ने कहा, ‘मैं उन्हें बधाई देने वाला संभवत: पहला व्यक्ति था. वह मेरे बड़े भाई समान हैं. जब हम तृणमूल में थे तब हमारे बीच कुछ मतभेद थे लेकिन ये दूसरों की वजह से पैदा हुए थे. जिस किसी में थोड़ा भी स्वाभिमान बचा होगा वो तृणमूल में घुटन महसूस करेगा. मेरी राजनीतिक लड़ाई ममता बनर्जी के साथ है और हम साथ मिलकर उन्हें हरा देंगे.’

शुक्रवार को फोन कॉल और टेक्स्ट के जरिये दिप्रिंट ने त्रिवेदी से संपर्क साधा लेकिन इस रिपोर्ट को प्रकाशित किए जाने तक उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.

हालांकि, पिछले महीने दिप्रिंट से बातचीत में उन्होंने कहा था, ‘मैं ममता बनर्जी को देखकर तृणमूल में शामिल हुआ था. उनकी ईमानदारी और निष्ठा पर मैंने कभी सवाल नहीं उठाया, लेकिन मैं आजकल सक्रिय नेताओं के बारे में ऐसा नहीं कह सकता.’

त्रिवेदी ने उस समय स्वीकारा था कि वह ‘तुष्टिकरण की नीतियों, भ्रष्टाचार के मामलों, जबरन वसूली संबंधी शिकायतों और इन सबसे इतर हिंसा की घटनाओं’ को लेकर पार्टी में असहज महसूस कर रहे थे.

शुक्रवार को उन्होंने संसद के बाहर संवाददाताओं से कहा, ‘पार्टी में कोई लोकतंत्र नहीं बचा है और बोलने के लिए कोई मंच नहीं है. पार्टी किसी कॉरपोरेट की तरह काम कर रही है.’


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तृणमूल में ‘मिसफिट’

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक बिस्वनाथ चक्रवर्ती का कहना है कि टेक्सास यूनिवर्सिटी से स्नातक त्रिवेदी हमेशा से ही पार्टी में ‘मिसफिट’ रहे हैं.

चक्रवर्ती ने कहा, ‘वह तृणमूल में अंतिम भद्र व्यक्ति थे. पृष्ठभूमि, योग्यता और सांस्कृतिक आधार को देखते हुए वह वास्तव में पार्टी में मिसफिट थे. वह तृणमूल के राजनीतिक विचारों के साथ बेमेल बैठते थे. यह निश्चित तौर पर तृणमूल की छवि को नुकसान पहुंचाएगा.’

त्रिवेदी के करीबी सहयोगियों में से एक ने दिप्रिंट को बताया कि पार्टी की आंतरिक बैठकों में उन्होंने एक कॉरपोरेशन (इसे प्रशांत किशोर का आईपीएसी पढ़ें) द्वारा ‘नियंत्रित’ होने के मुद्दे को उठाया था.

सहयोगी ने कहा कि त्रिवेदी ने इस पर आपत्ति जताई थी कि तृणमूल के चुनाव रणनीतिकार ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के सोशल मीडिया एकाउंट संभाल रहे हैं और हर राजनीतिक निर्णय को नियंत्रित करते हैं.

करीबी सहयोगी ने आगे यह भी कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में पार्टी जिस तरह से काम कर रही थी और जैसे कुछ ‘कुख्यात नेता’ पार्टी का चेहरा बन गए थे, उससे वह नाखुश थे.

तृणमूल के एक अन्य सूत्र ने कहा कि त्रिवेदी ने महसूस किया कि ‘वरिष्ठ सांसदों’ का एक समूह उनके खिलाफ ‘साजिश रच रहा है’ और उन्हें ममता बनर्जी से दूर रखने की कोशिश कर रहा है.

सूत्रों ने बताया कि कई मौकों पर त्रिवेदी ने अपने करीबियों से कहा था कि पार्टी में उनका ‘अपमान’ हो रहा है यहां तक कि 2012 में रेल मंत्री का कार्यकाल बिना किसी आयोजन के खत्म हो गया.

उनके करीबी एक अन्य पार्टी नेता ने कहा कि त्रिवेदी पार्टी में कई आंतरिक मुद्दों पर मुखर रहे हैं और हर बार जब उन्होंने अपनी आवाज उठाई, तो उन्हें अपना पद और कद ‘घटने’ का सामना करना पड़ा.


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ममता के साथ रिश्तों में उतार-चढ़ाव

2011 में रेल मंत्री के रूप में उनकी नियुक्ति के समय से ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ त्रिवेदी के रिश्ते कभी बहुत सौहार्दपूर्ण नहीं रहे.

रेल बजट में यात्री किराया बढ़ाने की घोषणा के बाद ही बनर्जी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर कहा था कि त्रिवेदी को हटाकर एक अन्य तृणमूल नेता मुकुल रॉय को रेल मंत्री बनाया जाना चाहिए.

ममता ने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्हें बैरकपुर से मैदान में उतारा. वह इस सीट पर जीते थे.

लेकिन एक साल बाद उन्होंने गुजरात में एक कार्यक्रम के दौरान, मोदी के भाई के साथ मंच साझा करते हुए प्रधानमंत्री मोदी को ‘दूरदृष्टि वाला व्यक्ति’ करार दिया.

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने मुख्यमंत्री को अर्जुन सिंह पर ‘भ्रष्टाचार और जबरन वसूली’ का आरोप लगाते हुए कई पत्र लिखे लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.

लेकिन ममता ने अर्जुन सिंह को टिकट देने से इनकार करके बैरकपुर से त्रिवेदी को मैदान में उतारा. इसके बाद भाजपा में शामिल हो गए अर्जुन सिंह ने चुनाव में त्रिवेदी को हरा दिया.

जुलाई 2019 में मुख्यमंत्री ने त्रिवेदी को हुगली रिवर ब्रिज कमिश्नर्स (एचआरबीसी) कार्यालय में अध्यक्ष पद की पेशकश की लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया.

पिछले साल उन्हें तृणमूल के राज्य सभा सदस्य के रूप में नामित किया गया. एक तीसरे पक्ष के नेता ने कहा कि तब से त्रिवेदी ने कई बार मुख्यमंत्री से संपर्क साधने की कोशिश की लेकिन अन्य नेता इसमें ‘बाधा’ बन गए.


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अभूतपूर्व इस्तीफा

त्रिवेदी के इस्तीफे के तरीके से तृणमूल कांग्रेस भी स्तब्ध है. पार्टी के एक वरिष्ठ राज्य सभा सांसद ने बताया कि राज्य सभा में तृणमूल के मुख्य सचेतक सुखेंदु शेखर रॉय ने बजट पर बोलने के लिए त्रिवेदी को समय नहीं दिया था.

वरिष्ठ राज्य सभा सदस्य ने कहा, ‘उन्होंने अवैधानिक तरीके से पार्टी के समय का इस्तेमाल किया. हम ऐसे आचरण के खिलाफ संसद में कार्रवाई कर सकते हैं या वैधानिक प्रस्ताव ला सकते हैं.’

तृणमूल के वरिष्ठ मंत्री सुब्रत मुखर्जी ने कहा कि त्रिवेदी के इस्तीफे का तरीका एकदम अभूतपूर्व था. मुखर्जी ने कहा, ‘मैंने अपने 40 साल के राजनीतिक जीवन में कभी ऐसा कुछ नहीं देखा. उन्होंने आधिकारिक इस्तीफा नहीं भेजा बल्कि सदन पटल पर पार्टी को बदनाम किया.’

उन्होंने कहा, ‘अगर कोई लोकतंत्र नहीं है, तो वह इतने सालों से पार्टी में क्या कर रहे थे? वह कभी जमीनी स्तर के नेता नहीं रहे और लोगों से उनका कोई सरोकार नहीं है. उनके जाने का पार्टी पर कोई असर नहीं पड़ेगा.’

इस बीच, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कोलकाता में संवाददाताओं से कहा कि त्रिवेदी का पार्टी में शामिल होने का स्वागत है.

विजयवर्गीय, जो पार्टी के पश्चिम बंगाल प्रभारी भी है, ने कहा, ‘यह फैसला करने में उन्होंने बहुत समय लगा दिया. पिछले साल जब हम एयरपोर्ट पर मिले थे तो उन्होंने मुझे बताया था कि तृणमूल का हिस्सा बने रहना उनके लिए कितना मुश्किल हो रहा. चूंकि वह एक निर्णय ले चुके हैं, उनका हमारी पार्टी में स्वागत है.’

तृणमूल सूत्रों ने दावा किया कि त्रिवेदी को गुजरात की दो राज्य सभा सीटों में से एक के लिए नामित किया सकता है, जिसके लिए उपचुनाव 1 मार्च को होने हैं.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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