scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होमराजनीतिबिहार में बराबरी का मुकाबला, तेलंगाना में 'कड़ी लड़ाई', ओडिशा, हरियाणा में जीत के BJP के लिए मायने

बिहार में बराबरी का मुकाबला, तेलंगाना में ‘कड़ी लड़ाई’, ओडिशा, हरियाणा में जीत के BJP के लिए मायने

भाजपा ने बिहार, तेलंगाना, यूपी, ओडिशा और हरियाणा में दांव पर लगी 6 में से 4 सीटों पर हुए उपचुनाव में जीत हासिल की. इससे पहले इनमें से 3 पर इसका कब्ज़ा था. भाजपा-जद(यू) के संबंध टूटने के बाद से बिहार में पहले उपचुनावों में इस पार्टी ने एक सीट जीती और एक पर मात मिली.

Text Size:

नई दिल्ली: पिछले हफ्ते छह राज्यों की सात सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव के नतीजे पहली नजर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पक्ष में गए लगते हैं, क्योंकि पार्टी ने इनमें से चार सीटें जीती हैं, जबकि इससे पहले उसके पास इनमें से केवल तीन हो सीटें थीं.

रविवार को घोषित चुनाव परिणामों के अनुसार, भाजपा ने बिहार के गोपालगंज, उत्तर प्रदेश के गोला गोकर्णनाथ और ओडिशा के धामनगर की विधानसभा सीटों को अपने पास बरकरार रखा है. तेलंगाना के मुनुगोड़े और हरियाणा के आदमपुर में भाजपा ने अपनी पिछली पार्टी से इस्तीफा देने वाले मौजूदा विधायकों को भाजपा में शामिल किया था. हालांकि, उसने आदमपुर सीट फिर से जीत ली, पर मुनुगोड़े में अपनी प्रतिद्वंद्वी तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) से हार गई.

महाराष्ट्र में, वर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के एक बागी गुट द्वारा शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस के गठबंधन वाली महाविकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार को गिराने के लिए भाजपा से हाथ मिला लेने के बाद हुए पहले उपचुनाव में भाजपा ने आखिरी क्षणों में हाथ खींचते हुए अपना उम्मीदवार देने से मना कर दिया था.

उधर, बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जनता दल (यूनाइटेड) द्वारा इसी साल कुछ समय पहले एनडीए गठबंधन छोड़ कर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ हाथ मिलाने के बाद से यह पहला चुनाव था और इसमें भाजपा तथा जद (यू)-राजद गठबंधन दोनों को एक बराबरी के मुकाबले के साथ संतोष करना पड़ा.

राजद ने मोकामा विधानसभा सीट को अपने पास बरकरार रखा, जबकि गोपालगंज सीट भाजपा के खाते में गयी. राजद को गोपालगंज सीट पर महज 1,794 वोटों से हार मिली. यह सीट साल 2005 से भाजपा के पास है, लेकिन राजद प्रत्याशी मोहन प्रसाद गुप्ता ने पूर्व सांसद और राजद नेता तेजस्वी यादव के मामा साधु यादव की पत्नी और बहुजन समाज पार्टी की उम्मीदवार इंदिरा यादव और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के उम्मीदवार द्वारा राजद के परंपरागत यादव और मुसलमान वोट बैंक में की गई सेंधमारी के बावजूद भाजपा की कुसुम देवी को कड़ी टक्कर दी. बसपा और एआईएमआईएम के मैदान में न होने पर राजद शायद भाजपा को इस सीट पर भी हरा देती.

राजद और भाजपा के बीच हुई कड़ी टक्कर के बीच जहां इंदिरा यादव को कुल 1,68,396 वोटों में से 8,853 वोट मिले, वहीं एआईएमआईएम उम्मीदवार अब्दुल इस्लाम को 12,212 वोट प्राप्त हुए.

भाजपा ने गोपालगंज उपचुनाव के लिए दिवंगत भाजपा विधायक सुभाष सिंह की पत्नी कुसुम देवी को मैदान में उतारा था, लेकिन उसकी जीत का अंतर साल 2020 से काफी कम हो गया, जब सुभाष सिंह ने भाजपा की तरफ से लड़ते हुए अपने निकटम प्रतिद्वंद्वी – बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के अनिरुद्ध प्रसाद उर्फ साधु यादव – को 36,000 से अधिक मतों के अंतर से हराकर यह सीट जीती थी.


यह भी पढ़ें: ‘खूनी संघर्ष, लंबा इंतजार’: जमीन का डिजिटलीकरण शुरू होते ही नए विवादों से घिरीं बिहार की जिला अदालतें


मोकामा में राजद प्रत्याशी नीलम देवी ने भाजपा की सोनम देवी को हराया. भाजपा नेतृत्व ने सोनम देवी को उनके पति और बाहुबली नेता ललन सिंह के पार्टी में शामिल होने के सिर्फ एक दिन बाद चुनावी मैदान में उतारा था. भाजपा ने एक अन्य बाहुबली नेता सूरजभान सिंह और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के चिराग पासवान को भी अपने उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार करने के लिए उतारा था. यह पहली बार है जब भाजपा ने मोकामा सीट पर चुनाव लड़ा था, जबकि आमतौर पर वह इसे अपने सहयोगियों के लिए छोड़ देती थी.

हालांकि, नीलम देवी ने राजद के लिए यह सीट बरकरार रखी, लेकिन उनकी जीत का अंतर साल 2020 (जब उनके पति अनंत सिंह ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी जद(यू) के राजीव लोचन नारायण सिंह को हराकर राजद के लिए इसे जीता था) के 35,757 के मुकाबले 16,741 वोटों तक गिर गया. बाहुबली नेता अनंत सिंह ने जद(यू), निर्दलीय और राजद उम्मीदवार के रूप में बार-बार यह सीट जीती है. उन्होंने साल 2005 और 2010 में जद(यू) के उम्मीदवार के रूप में, 2015 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में और 2020 में राजद के झंडे तले मोकामा सीट जीती थी. मोकामा सीट निवर्तमान विधायक अनंत सिंह को इस साल की शुरुआत में एक आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने के कारण अयोग्य घोषित किए जाने के बाद खाली हुई थी.

भाजपा ने इन उपचुनाव परिणामों का इस्तेमाल राजद-जद(यू) महागठबंधन के नाम पर इन सीटों से चुनाव लड़ने वाले राजद को निशाना बनाने के बजाय नीतीश कुमार को बनाया.

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं महागठबंधन को एक कड़ा संदेश भेजने के लिए लोगों को धन्यवाद दूंगा कि उन्हें खारिज कर दिया गया है. 27 साल बाद मोकामा में चुनाव लड़ने के बावजूद हमें वहां अब तक के सबसे ज्यादा मत मिले. भविष्य में, हमारा प्रदर्शन और बेहतर होगा.’

बिहार के ये उपचुनाव भाजपा और राजद-जद(यू) दोनों के द्वारा बड़ी उत्सुकता से देखे जा रहे थे क्योंकि यह 2024 के महत्वपूर्ण लोकसभा चुनावों से पहले हो रहा था. यह भाजपा के लिए और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि यह पहली बार होगा जब वह जद(यू) के साथ अपने गठबंधन समाप्त होने के बाद लोकसभा चुनाव लड़ रही होगी और इसी वजह से वह इन चुनावों को ‘टेस्ट के मैदान’ के रूप में देख रही थी.

लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी की तैयारियों का जायजा लेने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह समेत भाजपा के तमाम केंद्रीय मंत्री राज्य का दौरा कर रहे हैं.

हालांकि, सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के संजय कुमार के अनुसार इन उप-चुनाव परिणामों को साल 2024 के लोकसभा चुनाव परिणामों, या यहां तक कि साल 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव के लिए भी, किसी संकेत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘जहां तक इन चुनावों का सवाल है, चाहे वह बिहार हो या तेलंगाना, मैं इनके परिणाम से साल 2024 के लिए कोई निष्कर्ष नहीं निकालता. हालांकि ये चुनाव संबंधित पार्टियों के मनोबल को बढ़ाते हैं. मगर टीआरएस पहले से ही राज्य की सत्ता में है इसलिए तेलंगाना में इसका कोई असर नहीं होगा.‘

कुमार ने कहा: ‘अगर भाजपा जीत जाती, तो इससे भाजपा का मनोबल बढ़ता और इसे अपने विस्तार में थोड़ी मदद मिलती. बिहार में, निश्चित रूप से भाजपा को कुछ हद तक एक ‘सांत्वना पुरस्कार’ मिला है क्योंकि वह अब जद(यू) के साथ गठबंधन में नहीं है और यह जीत भाजपा कार्यकर्ताओं को कुछ हद तक विश्वास दिलाएगी कि वे अपने दम पर भी सीट जीत सकते हैं. हालांकि इस बात की कोई गारंटी नहीं देता है कि यह भविष्य में भी जीत ही जाएगी.’


यह भी पढ़ें: पिलर और गार्टर तैयार होने के साथ गुजरात में कैसे गति पकड़ रही है 348 किलोमीटर लंबी बुलेट ट्रेन परियोजना


हरियाणा, तेलंगाना, महाराष्ट्र और ओडिशा की लड़ाइयां

हरियाणा के आदमपुर में, भाजपा उम्मीदवार भव्य बिश्नोई – जो हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल के पोते हैं – प्रतिष्ठित आदमपुर उपचुनाव में विजयी हुए. यह सीट साल 1968 से ही भजनलाल के परिवार के पास थी, पर यह पहली बार है जब भाजपा ने इसे जीता है.

इस सीट पर उपचुनाव भव्य के पिता और मौजूदा कांग्रेस विधायक कुलदीप बिश्नोई को कांग्रेस द्वारा पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ क्रॉस वोटिंग की सजा देते हुए जून में पार्टी से निष्कासित किए जाने के बाद अहम था. कुलदीप बिश्नोई, अगस्त में भाजपा में शामिल हो गए थे.

भव्य के पक्ष में काम करने वाले कारकों में से एक यह भी था कि इस सीट पर प्रमुख माने जाना वाला जाट वोट आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और इंडियन नेशनल लोक दल (इनेलो) के बीच विभाजित हो गया, क्योंकि इन सभी ने जाट उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था. भव्य ने आदमपुर सीट पर कांग्रेस के दिग्गज नेता जय प्रकाश को 16,000 से अधिक मतों के अंतर से हराया, और उन्हें कुलदीप बिश्नोई से बेहतर मत प्रतिशत प्राप्त हुए.

भव्या को 67,492 वोट मिले, जबकि साल 2019 के विधानसभा चुनाव में उनके पिता कुलदीप को 63,693 वोट ही मिले थे. साल 2014 में, कुलदीप को हरियाणा जनहित कांग्रेस पार्टी – जो उनके पिता भजन लाल ने साल 2007 में कांग्रेस छोड़ने के बाद बनाई थी – के उम्मीदवार के रूप में 48,224 वोट मिले थे.

तेलंगाना के मुनुगोड़े में, इस उपचुनाव के परिणाम ने टीआरएस के लिए एक बड़ी राहत के रूप में काम किया, खासकर इस साल की शुरुआत में ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम (जीएचएमसी) चुनावों में भाजपा के प्रभावशाली प्रदर्शन के बाद.

भाजपा ने जीएचएमसी के 150 वार्डों में से 48 वार्डों में जीत हासिल की थी, जबकि राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी टीआरएस ने 55 और एआईएमआईएम ने 44 वार्ड्स जीते थे.

जीएमसी में मिली हार ने टीआरएस को इस उपचुनाव को ‘प्रतिष्ठा’ की लड़ाई के रूप में देखने के लिए प्रेरित किया था.

टीआरएस उम्मीदवार कुसुकुंतला प्रभाकर रेड्डी को 97,006 वोट मिले और उन्होंने भाजपा के कोमाटिरेड्डी राज गोपाल रेड्डी, जिन्हें 86,697 वोट मिले, को 10,000 से अधिक वोटों के अंतर से हराया. इस निर्वाचन क्षेत्र में पहले काबिज रही कांग्रेस को केवल 23,906 वोट मिले.

इस सीट से निवर्तमान विधायक कोमाटिरेड्डी राज गोपाल रेड्डी ने इस साल अगस्त में कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी और अपने पद से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद यह उपचुनाव कराना पड़ा. फिर रेड्डी भाजपा में शामिल हो गए और उसी पार्टी के लिए उपचुनाव लड़े.

हालांकि, जहां मुनुगोड़े की जीत को टीआरएस के लिए एक ‘प्रोत्साहन’ के रूप में देखा जा रहा है, वहीं भाजपा नेताओं को उनके द्वारा टीआरएस को दी गई ‘कठिन लड़ाई’ में सांत्वना मिल रही है.

इन नतीजों पर टिपण्णी करते हुए, राज्यसभा सांसद और भाजपा के संसदीय बोर्ड के सदस्य पी लक्ष्मण ने कहा, ‘जहां तक इस चुनाव का सवाल है, हालांकि उपचुनाव 7 सीटों के लिए हुए थे, पर हमने सिर्फ छह सीटों पर चुनाव लड़ा और चार में जीत हासिल की. पहले हमारे पास इनमें से तीन सीटें थीं. बिहार में हमने पहली बार जद(यू) के समर्थन के बिना चुनाव लड़ा, और इस तथ्य के बावजूद कि जद(यू)-राजद और अन्य पार्टियों के पूरे गठबंधन ने एक साथ चुनाव लड़ा, हमने बिहार में जीत हासिल की. आप बदलाव को साफ तौर पर देख सकते हैं. हमने इस बार बिहार में सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ी, जबकि पहले जब हमने चुनाव लड़ा था तो हम सरकार का हिस्सा थे. इसी तरह पूरे देश में प्रधानमंत्री मोदी की छवि काम कर रही है.’

उन्होंने कहा: ‘तेलंगाना में कांग्रेस उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई. कुल मिलाकर यह केवल भाजपा है जिसने सभी बाधाओं के बावजूद जीत हासिल की है. तेलंगाना में हमारे पास पहले सिर्फ 12,000 वोट (8%) थे, और अब हमें 87,000 वोट (40%) मिले हैं. यह स्पष्ट संकेत है कि राज्य में भाजपा ही एकमात्र विकल्प है. राहुल की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बावजूद, वे तेलंगाना जीत नहीं पाए हैं.‘

मुनुगोड़े के नतीजे ऐसे समय आए हैं जब भाजपा खुद को तेलंगाना में पमुख विपक्षी दल के रूप में पेश करने में व्यस्त है और राज्य में कथित रूप से फैले कुशासन और भ्रष्टाचार को लेकर कलवाकुंतला चंद्रशेखर राव (केसीआर) के नेतृत्व वाली टीआरएस सरकार को लगातार निशाना बना रही हैं.

उपचुनाव के नतीजों से पहले दोनों दलों के बीच एक विधायक को तोड़े जाने से संबंधित विवाद को लेकर भीषण झड़प भी हुई थी.

महाराष्ट्र में, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) ने इस साल की शुरुआत में पार्टी में हुए विभाजन – जिसके बाद एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले बागी गुट ने भाजपा से हाथ मिला लिया- के बाद अपना पहला चुनाव जीता.

भाजपा ने अंतिम समय में इस उपचुनाव, जिसे संभवत: भाजपा और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट के बीच अपनी-अपनी ताकत दिखाने की पहली चुनावी लड़ाई माना जा सकता था, से अपना हाथ खींच लिया. अंधेरी पूर्व सीट के लिए चुनावी लड़ाई शिवसेना विधायक रमेश लटके की असामयिक मृत्यु के बाद हुई थी और उद्धव ठाकरे ने उनकी पत्नी को इस सीट से मैदान में उतारा था.

ओडिशा के धामनगर में, निवर्तमान विधायक विष्णु चरण सेठी की मृत्यु के पश्चात हुए चुनाव में भाजपा ने यह सीट अपने पास बरकरार रखी. सेठी के बेटे सूर्यवंशी सूरज ने भाजपा के टिकट पर यह चुनाव लड़ा था. इस सीट से भाजपा के सूर्यवंशी सूरज को 80,351 वोट मिले, जबकि बीजू जनता दल (बीजद) के अबंती दास को 70,470 वोट मिले.

इस साल की शुरुआत में हुए पंचायत चुनावों में मिली करारी हार के बाद रविवार को मिली यह जीत निश्चित रूप से भाजपा के आत्म-विश्वास को मजबूत करेगी. बता दें कि 852 जिला परिषद क्षेत्रों में हुए चुनावों में बीजद ने 766 सीटें जीती थीं, जबकि भाजपा ने केवल 42 और कांग्रेस ने 37 सीटें जीती थीं.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: पंजाब में बासमती की कम लागत-अच्छी उपज वाली नई किस्मों को एक ‘क्रांति’ मान रहे धान उत्पादक


 

share & View comments