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Friday, 15 November, 2024
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कांग्रेस शासित राज्य ऐसे बना रहे हैं सरकार के कृषि कानूनों से लड़ने की योजना, भले ही वो ‘सांकेतिक’ हो

राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब, पुडुचेरी केंद्र के कृषि क़ानूनों को नकारने के लिए, विधान सभा सत्र बुलाकर विधेयक पास कर सकते हैं, लेकिन उनके विधेयकों को राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंज़ूरी चाहिए होगी.

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नई दिल्ली: अपेक्षा की जा रही है कि कांग्रेस-शासित राज्य/केंद्र-शासित क्षेत्र- राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब, पुडुचेरी- जल्द ही विधान सभा के विशेष सत्र बुलाकर ऐसे विधेयक पास करा सकते हैं, जो पिछले महीने केंद्र में बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार द्वारा लाए गए तीन विवादास्पद कृषि क़ानूनों को निरस्त कर देंगे.

ऐसा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के निर्देश के बाद हो रहा है, जिसमें उन्होंने राज्यों को संविधान की धारा 254(2) के तहत, ऐसे क़ानून पारित करने करने को कहा है, जो पिछले महीने पार्टी की ओर से जारी बयान के मुताबिक़, ‘राज्यों के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण करने वाले, कृषि-विरोधी क़ानूनों को नकार दें.’

राजस्थान जल्द ही एक अध्यादेश लाने की योजना बना रहा है, जबकि छत्तीसगढ़ और पंजाब, केंद्र के क़ानूनों से लड़ने के लिए, क़ानूनी रास्तों पर भी विचार कर रहे हैं. इस बीच, पुडुचेरी को अभी बिल का मसौदा तैयार करना है.

कांग्रेस की लीगल टीम ने बिल का एक मसौदा तैयार किया है, जिसे राज्यों को भेजा जाएगा ताकि अपने-अपने विधेयक तैयार करते समय, वो इसका पालन कर सकें.

एक कांग्रेस नेता ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘ये मसौदा अभिषेक मनु सिंघवी जैसे, पार्टी के कुछ बेहतरीन क़ानूनी विशेषज्ञों ने तैयार किया है. हमने सुनिश्चित किया है कि (केंद्र के कृषि विधेयकों की) जटिल धाराओं को हटा दिया जाए, और अनिवार्य एमएसपी जैसी चीज़ें शामिल की जाए.’

पिछले महीने केंद्र के कृषि विधेयकों ने संसद में रोष भर दिया था और देश के कई हिस्सों में, किसान इनके ख़िलाफ भड़क उठे थे, क्योंकि उन्हें ये क़ानून अन्यायी और शोषक लगते हैं. इस झगड़े के चलते बीजेपी का एक सबसे पुराना सहयोगी, शिरोमणि अकाली दल एनडीए गठबंधन से अलग हो गया.

केंद्रीय क़ानूनों को नकारने के लिए, राज्यों में बिल लाने की रणनीति, कोई नई प्रथा नहीं है. एनडीए सरकार ने 2015 में बीजेपी-शासित सूबों से कहा था कि कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार द्वारा पारित, भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 में संशोधनों पर, गतिरोध से बचने के लिए अपने क़ानून ले कर आएं.

हालांकि, सोनिया गांधी ने राज्यों को अपने विधेयक लाने की संभावना तलाशने के लिए कहा है. कांग्रेस नेताओं को चिंता है कि ऐसे बिल क़ानून का रूप कैसे ले पाएंगे चूंकि उन्हें पहले राज्यपाल और बाद में राष्ट्रपति, दोनों की मंज़ूरी लेनी होगी.

केंद्रीय क़ानूनों से लड़ने के क़ानूनी रास्ते

छत्तीसगढ़ में, अगर उनके विधेयकों को राज्यपाल या राष्ट्रपति की मंज़ूरी नहीं मिलती, तो ऐसे में कांग्रेस नेता क़ानूनी रास्ते तलाश रहे हैं.

छत्तीसगढ़ कांग्रेस विधायक विजय उपाध्याय ने दिप्रिंट से कहा, ‘कृषि राज्य का विषय है. कोई कारण नहीं है कि विधान सभा से पारित किए जाने के बाद, राज्यपाल या राष्ट्रपति उन क़ानूनों पर आपत्ति कर सकें. लेकिन अगर इस तरह की कोई बात होती है, तो हम कोर्ट जाने पर विचार करेंगे, और इसे क़ानूनी रूप से उठाएंगे.’

इस बीच राजस्थान के नेता अगले कुछ हफ्तों में, एक अध्यादेश लाने पर विचार कर रहे हैं.


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राजस्थान के एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, कहा, ‘ विधान सभा के अगले सत्र के जनवरी में होने की संभावना है. इसलिए उसकी बजाय हम एक अध्यादेश लाएंगे, जो राज्य में उन क़ानूनों की जगह ले लेंगे’.

अध्यादेश एक ऐसा क़ानून होता है, जो मंत्रिमंडल की मंज़ूरी से ऐसे समय लाया जाता है, जब सदन का सत्र नहीं चल रहा होता. लेकिन, विधान सभा के सत्र के छह हफ्ते के भीतर, अध्यादेश समाप्त हो जाता है.

इस बीच पुदुचेरी इस बात पर विचार कर रहा है, कि क्या रास्ता अपनाया जाए, क्योंकि केंद्र-शासित में कोई बिल पेश करने के लिए, मोदी सरकार की अनुमति लेनी होगी.

दिप्रिंट से बात करते हुए, पुदुचेरी के मुख्यमंत्री वी नारायणस्वामी ने कहा, कि उनके केंद्र-शासित क्षेत्र को, अभी कांग्रेस की लीगल टीम से बिल का मसौदा नहीं मिला है.

नारायणस्वामी ने कहा,‘बिल पेश करने से पहले, हमें भारत सरकार की अनुमति लेनी होगी. आज (सोमवार) हमें पार्टी की ओर से एक मॉडल लॉ, और उसपर आधारित बिल का मसौदा प्राप्त होगा’.

रूल्स ऑफ बिज़नेस ऑफ द गवर्नमेंट ऑफ पॉन्डिचेरी एक्ट 1963 के अनुसार: ‘केंद्र-शासित क्षेत्र की विधान सभा में पेश किए जाने पहले, प्रशासक किसी भी बिल के मसौदे को, केंद्र सरकार के विचारार्थ भेज सकता है. इस नियम के तहत, जब भी किसी बिल को केंद्र सरकार के पास भेजा जाता है, तो केंद्र-शासित क्षेत्र की विधान सभा में पेश किए जाने पहले, केंद्र सरकार की सलाह का इंतज़ार किया जाएगा’.

राज्यों के विधेयक एक ‘सांकेतिक लड़ाई’ होंगे

पंजाब भी, जो कृषि क़ानूनों का विरोध करने वाले अग्रणी राज्यों में से एक है, केंद्र के क़ानूनों से लड़ने के लिए, क़ानूनी रास्ते अपनाने जा रहा है.

सूबे के एक सीनियर कांग्रेसी नेता ने, नाम न बताने की शर्त पर कहा, कि वैसे तो मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा है, कि वो कृषि क़ानूनों का विरोध करेंगे, लेकिन वो राज्य विधान सभा में कोई बिल पेश करने के, ज़्यादा इच्छुक नज़र नहीं आ रहे हैं.

नेता ने आगे कहा, ‘उन्हें यक़ीन है कि राज्यपाल ऐसे किसी विधेयक पर दस्तख़त नहीं करेंगे, और अगर वो नहीं करते, तो फिर राष्ट्रपति भी शायद नहीं करेंगे. इसलिए इन क़ानूनों से लड़ने के लिए, उनका झुकाव कोई दूसरा क़ानूनी रास्ता तलाशने की तरफ हो रहा है’.

राज्य विधान सभा में बिल पास किए जाने के विषय पर दिए एक इंटरव्यू में, सिंह ने कहा: ‘इसके लिए राष्ट्रपति की सहमति लेनी होगी. ये राष्ट्रपति उसे मंज़ूरी नहीं देंगे…यहां (पंजाब में) राज्यपाल भी पंजाब असैम्बली से पारित, ऐसे किसी बिल पर दस्तख़त नहीं करेंगे. अगर वो दस्तख़त नहीं करते, तो ये बिल राष्ट्रपति के पास नहीं जाएगा’.

दिप्रिंट से बात करते हुए पंजाब के कांग्रेस नेता, और राज्यसभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा ने कहा, कि ऐसा विधेयक पेश करना, एक ‘सांकेतिक लड़ाई’ होगी.

उन्होंने कहा, ‘हो सकता है कि इसके वांछित परिणाम न निकलें, लेकिन अगर हम एक सत्र बुलाते हैं, तो वो पूरे सूबे की भावनाओं को जोड़ने का काम करेगा. हो सकता है कि हम कामयाब न हों, लेकिन ये एक सांकेतिक लड़ाई होगी’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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