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Sunday, 3 November, 2024
होमराजनीति‘वे अपनी गलतियों से सीखेंगे’ — राजस्थान के डिप्टी सीएम RERA पद पर सिफारिश को लेकर विवादों में घिरे

‘वे अपनी गलतियों से सीखेंगे’ — राजस्थान के डिप्टी सीएम RERA पद पर सिफारिश को लेकर विवादों में घिरे

प्रेम चंद बैरवा पर रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण के रजिस्ट्रार के लिए सेवानिवृत्त अधिकारी का नाम आगे बढ़ाने के लिए सत्ता का दुरुपयोग करने का आरोप है. भाजपा का कहना है कि वे कुछ मामलों में सिफारिशें कर सकते हैं.

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नई दिल्ली: राजस्थान के उप-मुख्यमंत्री प्रेम चंद बैरवा राज्य सरकार के सेवानिवृत्त कर्मचारी को रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण (RERA) का रजिस्ट्रार बनाने की सिफारिश करने को लेकर फिर मुसीबत में हैं.

इससे पहले, बैरवा सामुदायिक संपर्क समूह (CLG) के सदस्यों की नियुक्ति से जुड़े एक ऐसे ही विवाद में फंस गए थे.

पिछले हफ्ते राजस्थान के डिप्टी सीएम तब चर्चा में थे, जब उनके बेटे आशु को एक वायरल वीडियो में पुलिस द्वारा एस्कॉर्ट किए जाने के दौरान बारिश में ऑपन-जीप चलाते हुए देखा गया था.

जानकारी मिली है कि गाड़ी कांग्रेस नेता पुष्पेंद्र भारद्वाज के बेटे कार्तिकेय की है, जिन्होंने इंस्टाग्राम पर क्लिप शेयर की है. बैरवा ने अपने बेटे का बचाव करते हुए कहा, “मेरा बेटा सीनियर सेकेंडरी में पढ़ता है और वायरल वीडियो में उसके साथ जो लोग हैं, वह उसके स्कूल के दोस्त हैं…यह केवल मेरी स्थिति के कारण था कि अमीर लोगों ने मेरे बेटे को सवारी की पेशकश की और जिज्ञासा से उसने स्वीकार कर लिया. वे महज़ एक बच्चा है जो अभी 18 साल का भी नहीं है.”

बाद में उपमुख्यमंत्री ने अपने बेटे का बचाव करते हुए यह बयान देने के लिए माफी मांगी.

अब बैरवा पर 23 अगस्त को मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को पत्र लिखकर अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग करने का आरोप है, जिसमें पूर्व आरएएस अधिकारी राम चंद्र बैरवा को रेरा रजिस्ट्रार बनाने पर विचार करने की सिफारिश की गई है.

दिप्रिंट ने पत्र को देखा है, जिस पर राजस्थान के उपमुख्यमंत्री कार्यालय की आधिकारिक मुहर लगी है.

RERA राज्य में रियल एस्टेट क्षेत्र के विनियमन और संवर्धन के लिए काम करता है. यह ज़मीन और रियल एस्टेट इंडस्ट्री से संबंधित विवादों के त्वरित समाधान के लिए एक निर्णायक तंत्र के रूप में भी काम करता है.

राजस्थान सरकार के सूत्रों के अनुसार, जब मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) ने शहरी विकास मंत्रालय को पत्र भेजा, तो कथित तौर पर पाया गया कि 13 आवेदकों ने रजिस्ट्रार के पद के लिए आवेदन किया था.

हालांकि, सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी को इस पद के लिए उपयुक्त पाया गया, बाद में पता चला कि राम चंद्र बैरवा ने विज्ञापित पद के लिए आवेदन ही नहीं किया था.

चूंकि, राम चंद्र बैरवा द्वारा कथित तौर पर कोई आवेदन नहीं किया गया था, इसलिए RERA ने शहरी विकास मंत्रालय को पत्र लिखकर इस बात पर सहमति मांगी कि क्या उपमुख्यमंत्री द्वारा अनुशंसित उम्मीदवार की नियुक्ति के साथ आगे बढ़ना है, या मौजूदा प्रोटोकॉल का पालन करना है.

यह नियुक्ति कभी नहीं हुई क्योंकि मंत्रालय और प्राधिकरण कथित तौर पर नियमों को दरकिनार कर उपमुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की नियुक्ति के बारे में कोई स्पष्ट निर्देश दिए बिना पत्रों का आदान-प्रदान करते रहे.

राजस्थान शहरी विकास मंत्रालय के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “कोई भी व्यक्ति कोर्ट में जा सकता है क्योंकि रिक्ति विज्ञापित है और यह (सिफारिश) अब सार्वजनिक है. उपमुख्यमंत्री की सिफारिश को स्वीकार करने में यही मुख्य समस्या है. सरकार इस आधार पर आवेदनों को खारिज कर सकती है कि कोई उपयुक्त उम्मीदवार नहीं था, लेकिन इससे (उचितता के बारे में) सवाल उठेंगे.”

अधिकारी ने कहा, “एक व्यक्ति का पक्ष लेने के अलावा, नौकरशाही हलकों में चर्चा यह भी है कि कैसे सिविल सेवक मुख्यमंत्री और उनके उपमुख्यमंत्री दोनों की बातों को हल्के में ले रहे हैं क्योंकि कई मंत्रियों के पास अनुभव की कमी है.”

दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय और उपमुख्यमंत्री से संपर्क किया, लेकिन इस रिपोर्ट के छापे जाने तक कोई बयान नहीं मिल पाया है. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

रेरा द्वारा उपमुख्यमंत्री की सिफारिश को नज़रअंदाज करने के बाद एक नया मोड़ सामने आया है, जिसमें शहरी विकास मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने रेरा अध्यक्ष से यह बताने के लिए कहा है कि रजिस्ट्रार का चयन करने के लिए इंटरव्यू क्यों नहीं लिया गया और उम्मीदवार के चयन के लिए स्क्रीनिंग कमेटी को क्यों शामिल नहीं किया गया.

सूत्रों ने बताया कि पत्र के सार्वजनिक होने के बाद रेरा चेयरमैन और मंत्रालय के बीच विवाद के बाद खर्रा बैरवा का पक्ष ले रहे थे.

सूत्रों में से एक ने कहा, “वह (रेरा चेयरमैन) सिफारिश की अवहेलना कर रहे हैं, लेकिन इससे प्रशासनिक खामियां सामने आई हैं क्योंकि अधिकारी मंत्रियों की बात नहीं सुन रहे हैं.”

इस ताज़ा प्रकरण ने पहले ही वाकयुद्ध छेड़ दिया है, विपक्षी कांग्रेस ने बैरवा पर वरिष्ठ पदों पर अपने लोगों को धकेलने का आरोप लगाया है.

कांग्रेस प्रवक्ता स्वर्णिम चतुर्वेदी ने दिप्रिंट से कहा, “उपमुख्यमंत्री पैसे कमाने के लिए नियम पारित करके अपने लोगों को नियुक्त करते हैं. आप आवेदन या इंटरव्यू के बुनियादी स्थापित मानदंडों का पालन किए बिना अधिकारियों को कैसे नियुक्त करना चाहते हैं.”

इस बीच राजस्थान भाजपा के प्रवक्ता मुकेश पारीख ने बैरवा का बचाव करते हुए कहा कि उपमुख्यमंत्री “किसी भी अधिकारी की नियुक्ति की सिफारिश कर सकते हैं, अगर किसी व्यक्ति ने पद के लिए आवेदन नहीं किया है”.

उन्होंने कहा, “संबंधित विभाग और अधिक नामों को शामिल करने या उन्हें हटाने के लिए और अधिक आवेदन भी मांग सकता है. ऐसी शक्ति सरकार के पास मौजूद है.”


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भजनलाल सरकार के लिए सिरदर्द

पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के लिए इन विवादों का समय इससे बुरा नहीं हो सकता था.

चाहे कैबिनेट मंत्री किरोड़ी लाल मीणा के पत्रों की बाढ़ हो, जिनके “इस्तीफे” की स्थिति अज्ञात है या भाजपा के राज्य प्रभारी राधा मोहन दास अग्रवाल द्वारा राजपूत संगठनों को गलत तरीके से भड़काना, भाजपा की राज्य इकाई राज्य में अकेले ही लड़ाई लड़ रही है.

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौर ने सितंबर में सरकार को उस समय मुश्किल में डाल दिया, जब उन्होंने पिछली कांग्रेस सरकार द्वारा “तुष्टिकरण” के लिए कथित तौर पर तैयार किए गए छह-सात जिलों को खत्म करने की बात कही.

भाजपा के एक वरिष्ठ राज्य नेता ने दिप्रिंट से कहा, “सीएम की तरह बैरवा के पास भी पूर्व प्रशासनिक अनुभव की कमी है. वे पहले कभी मंत्री नहीं रहे हैं और सीधे उपमुख्यमंत्री बन गए, कुछ ऐसा ही जैसे भजनलाल दूसरों को दरकिनार करके सीधे सीएम बन गए.”

भाजपा नेता ने समझाया, “ऐसी स्थिति में कई बार मंत्रियों को यह नहीं पता होता कि प्रशासनिक मामलों में कैसे आगे बढ़ना है. अगर आप किसी को नियुक्त करना चाहते हैं, तो भी ऐसे काम निजी सचिव या ओएसडी को सौंप देना चाहिए…ऐसी शर्मनाक स्थिति तब पैदा होती है जब अनुभव की कमी होती है. वह अपनी गलतियों से सीखेंगे.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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