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Tuesday, 5 November, 2024
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कर्नाटक में राजनीतिक सचिव तो थे, कानूगोलू के ‘मुख्य सलाहकार’ पद पर CM सिद्धारमैया की मुहर लग सकती है

पिछले महीने पदभार ग्रहण करने के बाद से कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने राजनीतिक रणनीतिकार सुनील कानूगोलू सहित 5 लोगों को कैबिनेट रैंक का दर्जा दिया है जो राज्य मंत्रिपरिषद का हिस्सा नहीं हैं.

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बेंगलुरु: सिद्धारमैया ने जब राजनीतिक रणनीतिकार और कांग्रेस सदस्य सुनील कानूगोलू को अपना ‘मुख्य सलाहकार’ नियुक्त किया, तो कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, 76-वर्षीय मुख्यमंत्री अपने पूर्ववर्तियों के लिए अज्ञात स्थिति बनाकर आदर्श से अलग हो सकते हैं. कानूगोलू सहित चार अन्य को भी कैबिनेट रैंक का दर्जा भी दिया गया, जो मंत्रिपरिषद का हिस्सा भी नहीं है.

कर्नाटक कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, “संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है और न ही ऐसा करने के लिए कोई प्रतिबंध है.”

चूंकि, उन्होंने पिछले महीने पदभार ग्रहण किया था, कर्नाटक में मई विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की निर्णायक जीत के बाद, सिद्धारमैया ने उन पांच लोगों को कैबिनेट रैंक का दर्जा दिया है जो राज्य मंत्रिपरिषद का हिस्सा भी नहीं हैं. इसमें नसीर अहमद औक के. गोविंदराज को कैबिनेट रैंक वाले राजनीतिक सचिवों के रूप में विधान परिषद का सदस्य बनाया गया और उनके लंबे समय से सहयोगी के.वी. प्रभाकर को मीडिया सलाहकार बनाया गया.

कानूगोलू की ‘मुख्य सलाहकार’ के रूप में नियुक्ति के अलावा, सिद्धारमैया ने विराजपेट से पहली बार विधायक बने ए.एस. पोन्नाना को उनका ‘कानूनी सलाहकार’ नियुक्त किया है.

ये कैबिनेट नियुक्तियां मंत्रिपरिषद के हिस्से के रूप में 34 से ऊपर और परे हैं – जिनमें खुद सिद्धारमैया और डिप्टी सीएम डी.के. शिवकुमार शामिल हैं.

पिछले साल फरवरी में कार्यकर्ता एस.आर. हिरेमथ ने एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर कर पिछले मुख्यमंत्री द्वारा राजनीतिक सचिवों की नियुक्ति पर सवाल उठाया था, जिसके कारण कर्नाटक हाई कोर्ट ने इस संबंध में सरकार को नोटिस जारी किया था.

बेंगलुरु स्थित राजनीतिक विश्लेषक ए. नारायण ने दिप्रिंट को बताया कि कर्नाटक में उन लोगों की नियुक्ति एक मिसाल थी, जिन्हें विभिन्न कारणों से राजनीतिक सचिवों के रूप में कैबिनेट में समायोजित नहीं किया जा सकता था. मसलन, पूर्व मुख्यमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा, जे.एच. पटेल, धर्म सिंह, बी.एस. येदियुरप्पा और बसवराज बोम्मई, राजनीतिक सचिव भी थे.

नारायण ने दिप्रिंट को बताया, “लगभग सभी मुख्यमंत्रियों ने ऐसा किया है (राजनीतिक सचिवों की नियुक्ति). इस नियम को दरकिनार करने का यह एक तरीका है कि मंत्रालय की कुल संख्या विधानसभा के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए. जब से यह नियम अस्तित्व में आया है, सभी सरकारों ने राजनीतिक सचिवों की नियुक्ति की है और यह संख्या बढ़ गई है.”

संविधान के 91वें संशोधन (2003) के अनुसार, मुख्यमंत्री सहित राज्य मंत्रिमंडल में मंत्रियों की कुल संख्या, विधायिका की कुल संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए.

नारायण, जो बेंगलुरु के अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में एक फैकल्टी हैं, ने बताया कि हालांकि, कर्नाटक में राजनीतिक या संसदीय सचिवों और यहां तक कि ‘आर्थिक सलाहकारों’ का इतिहास रहा है, राज्य में ‘मुख्य सलाहकार’ की स्थिति एक नई अवधारणा है.

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता, वी.एस. उग्रप्पा ने दिप्रिंट को बताया, हालांकि, “सलाहकार नियुक्त करने की पूर्वता है और यह अच्छा प्रशासन प्रदान करने के अच्छे इरादे से किया गया है.”


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कैबिनेट रैंक की स्थिति क्या है

पार्टी सूत्रों ने कहा कि कानूगोलू की नियुक्ति, हालांकि, इस बात पर अधिक संकेत देती है कि सिद्धारमैया मुख्यमंत्री के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान किस पर भरोसा करना चाहते हैं. सूत्रों ने बताया कि जब सरकार अपने आधे कार्यकाल के करीब पहुंचेगी और अगले साल आम चुनाव होंगे, तब शिवकुमार के मुख्यमंत्री के रूप में अपनी बारी का दावा करने की संभावना है. सिद्धारमैया इस बार अपने प्रति वफादार लोगों को पुरस्कृत करते दिख रहे हैं.

एक कैबिनेट मंत्री को वेतन के रूप में प्रति माह लगभग 3.22 लाख रुपये मिलते हैं, इसके अलावा 1.2 लाख रुपये का किराया भत्ता और 2,500 रुपये दैनिक भत्ता मिलता है. व्यक्ति राजकोष की कीमत पर एक आधिकारिक निवास, वाहन और अलग कर्मचारियों का भी हकदार है.

जुलाई 2021 में मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बावजूद बी.एस. येदियुरप्पा ने कैबिनेट रैंक का दर्जा हासिल करना जारी रखा और ‘कावेरी’ में रहते रहे—महलनुमा बंगला जिसे पिछले महीने तक कर्नाटक में सरकार के प्रमुख के अनौपचारिक निजी निवास के रूप में देखा जाता था.

मई 2018 और अक्टूबर 2019 के बीच, सिद्धारमैया भी एच.डी. के कार्यकाल के दौरान समन्वय समिति के अध्यक्ष के रूप में. कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार के दौरान ‘कावेरी’ में रहे, जो ‘कृष्णा’ यानी मुख्यमंत्री के गृह कार्यालय के बगल वाली इमारत है.

हालांकि, पार्टी सूत्रों ने दावा किया कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) ने कानूगोलू की नियुक्ति के लिए जोर दिया, लेकिन 41-वर्षीय रणनीतिकार की अब मुख्यमंत्री के आंतरिक सर्कल तक अभूतपूर्व पहुंच होगी.

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इसी तरह से कानूगोलू के पूर्व सहयोगी राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर को 2021 में कैबिनेट रैंक के दर्जे के साथ अपना ‘प्रमुख सलाहकार’ नियुक्त किया था.

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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