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Sunday, 22 December, 2024
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चुनाव लड़ने के लिए पैसे नहीं है लेकिन फिर भी उत्तराखंड के CM बनने को तैयार हैं कांग्रेस के हरीश रावत

यह कहने के कुछ दिनों बाद कि वह उत्तराखंड में एक दलित सीएम देखना चाहते हैं, हरीश रावत कहते हैं कि वह अपने बयान पर कायम हैं, लेकिन अगर पार्टी और मतदाता उन्हें जनादेश देते हैं, तो वह संकोच नहीं करेंगे.

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देहरादून: उत्तराखंड में दलित मुख्यमंत्री बनाये जाने की वकालत करने के कुछ ही दिनों बाद, कांग्रेस महासचिव और राज्य के पूर्व सीएम हरीश रावत ने अब कहा है कि अगर 2022 के विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो वह भी सरकार का नेतृत्व करने के इच्छुक होंगे.

शनिवार को दिप्रिंट को दिए एक साक्षात्कार में, रावत ने कहा कि वह विधानसभा चुनाव लड़ने के प्रति इच्छुक नहीं हैं क्योंकि उनके पास ‘फंड (पैसों) की कमी’ है और उनके मुख्यमंत्री रहते हुए उनके पैसों की देखरेख करने वाले लोगों ने उनका साथ छोड़ दिया है.

रावत, जो अक्टूबर 2021 तक पंजाब में कांग्रेस पार्टी के प्रभारी थे, ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री के पद से हटाए जाने को भी यह आरोप लगाते हुए सही ठहराया कि वह ‘भाजपा-अकाली दल के एजेंट’ की तरह काम कर रहे थे.

सीएम कौन होगा, इस पर अभी कोई प्रतिबद्धता नहीं

उत्तराखंड में आगामी चुनावों के बारे में बात करते हुए, हरीश रावत इस बात पर प्रतिबद्धता दिखाने को राजी नहीं थे कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई तो राज्य का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा.

हरिद्वार के लक्सर निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा के दौरान एक जनसभा को संबोधित करते हुए, रावत ने 25 अक्टूबर को कहा था कि, ‘चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब के पहले दलित सीएम के रूप में नियुक्त किये जाने के बाद, मैं ईश्वर से प्रार्थना करना चाहता हूं कि मुझे इस बात का भी गवाह बनने दें की कोई दलित मेरे जीवनकाल में ही उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बने.’

दिप्रिंट से बात करते हुए, उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस राज्य में 2022 के होने वाले विधान सभा चुनाव में जीतती है तो वह सरकार का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं, मगर वह अभी भी सामाजिक न्याय और सभी के लिए समान अवसर पर कांग्रेस के रुख को ध्यान में रखते हुए एक दलित सीएम की अपनी इच्छा के साथ खड़े हैं. रावत ने कहा, ‘जब हम सामाजिक न्याय की बात करते हैं, तो हमें इसके समानांतर नेतृत्व को भी बनाना होता है.’

रावत ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘अगर उत्तराखंड के लोग कांग्रेस पार्टी को अपना जनादेश देते हैं, और हमारा केंद्रीय नेतृत्व चाहता है तो मैं सरकार का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी स्वीकार करने से हिचकिचाऊंगा नहीं. दो दिन पहले मैं केदारनाथ मंदिर गया और किसी ने पूछा कि मैंने भगवान से क्या मांगा है? अचानक, मेरे पास कहने के लिए कुछ नहीं था, लेकिन मेरा जवाब था, ‘काश भगवान मुझे फिर से मुख्यमंत्री बना देते.’

साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ‘मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार चुनना कांग्रेस के लिए कोई बड़ा मुद्दा नहीं है, क्योंकि पार्टी में कई सक्षम नेता मौजूद हैं’.

हालांकि रावत का कहना था कि वह ‘पैसों की कमी’ के कारण अगले साल का विधानसभा चुनाव लड़ने के प्रति इच्छुक नहीं हैं, मगर उन्होंने यह भी दोहराया कि, ‘अगर पार्टी नेतृत्व चाहेगा कि वह चुनाव के लिए खड़े हों, तो वह मना नहीं कर पाएंगे.‘

रावत कहते हैं, ‘चुनावों के लिए बड़े फंड (पैसों) की जरूरत होती है. मेरे करीबी सहयोगी जो मेरे वित्तीय मामले संभालते थे (उनके सीएम रहते हुए उनके पैसों और अन्य वित्तीय लेनदेन की देखरेख करते थे)  वह मुझे छोड़कर चले गए हैं. मैं इस विभाग की देखरेख कैसे कर सकता हूं? हालांकि मैं यह विधानसभा चुनाव लड़ने के प्रति इच्छुक नहीं हूं, लेकिन अगर पार्टी नेतृत्व मुझे ऐसा करने को कहता है तो मैं इससे भाग भी तो नहीं सकता.’

उत्तराखंड के पूर्व सीएम ने यह विश्वास व्यक्त किया कि 2022 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी  राज्य की सत्ता में वापसी करेगी, क्योंकि, उनके दावे के अनुसार, उत्तराखंड के मतदाताओं का भाजपा, मोदी-अमित शाह की जोड़ी और राज्य की पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार से मोहभंग हो चुका है.

रावत ने कहा, ‘वे (मतदाता) 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हिंदुत्व के फेर में पड़ गए है, यह सोचकर कि दोनों को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता. लेकिन अब वे समझ गए हैं कि यह एक मिथ्या धारणा थी. नहीं तो बीजेपी को उत्तराखंड में दो बार अपना सीएम क्यों बदलना पड़ता?.’

इस साल मार्च में, भाजपा ने तीरथ सिंह रावत को हटा कर त्रिवेंद्र सिंह रावत को उत्तराखंड का सीएम बनाया था. कुछ ही महीनों बाद, त्रिवेंद्र रावत को भी पुष्कर सिंह धामी से बदल दिया गया.  रावत ने दावा किया कि उत्तराखंड में बड़ी संख्या में भाजपा के विधायक कांग्रेस में शामिल होने के लिए कतार लगाए खड़े हैं, लेकिन पार्टी केवल उन्हीं को पार्टी में लेगी, जिनमें चुनाव जीतने की क्षमता है.

उन्होंने कहा, ‘लगभग 25-30 भाजपा विधायक और नेता पालाबदल कर कांग्रेस में आने के लिए उतावले हैं, लेकिन उनकी जीतने की क्षमता के आधार पर उन्हें चुना जाएगा. हम अपने उन नेताओं और (टिकट के) उम्मीदवारों की अनदेखी नहीं कर सकते, जिन्होंने संगठन को मजबूत करने के लिए कड़ी मेहनत की है.’


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‘धामी और उनकी सरकार, अवैध खनन में ही सबसे अच्छी है’

रावत ने भाजपा और उत्तराखंड के सीएम धामी पर हमला करते हुए यह दावा किया कि उनकी अब तक की एकमात्र उपलब्धि नदी-तल से अवैध खनन है. उन्होंने इस साल राज्य में हुई मूसलाधार बारिश की वजह से उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा के दौरान लोगों की जान बचाने में उनकी कथित विफलता के लिए भी उन्हें दोषी ठहराया.

रावत ने आरोप लगाते हुए कहा, ‘पुष्कर सिंह धामी के दो महीने पहले मुख्यमंत्री बनने के बाद से राज्य में नदी तल से होने वाला अवैध खनन कई गुना बढ़ गया है. बीजेपी सरकार सिर्फ इसी मामले में सबसे अच्छी है. कुमाऊं में हुई बारिश के दौरान कम-से-कम चार पुल ढह गए, जिसमें कई लोगों की जान चली गई. यह सब इस तथ्य के बावजूद हुआ जब अमित शाह ने दावा किया है कि केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को इस आसन्न आपदा के बारे में कई घंटों पहले ही सचेत कर दिया था. पुलों के ढहने का एक कारण यह है कि नदी तल में अंधांधुंध खनन से उनके बेस कमजोर हो गए थे. आज हमारे पास एक खनन विशेषज्ञ सीएम और उनकी सरकार है. उनसे कुछ भी अच्छे की उम्मीद नहीं की जा सकती है.’

रावत ने कुमाऊं की पहाड़ियों और मैदानी इलाकों में हाल ही में हुई बारिश की वजह से आई बाढ़ और भूस्खलन के प्रबंधन में धामी सरकार की कथित विफलता को एक ‘आपराधिक कृत्य’ करार दिया.

रावत ने नैनीताल के रामगढ़ इलाके में भारी बारिश के दौरान एक पुल के ढहने का जिक्र करते हुए आरोप लगाया, ‘उनकी विफलता की भयावहता की जरा कल्पना तो कीजिए- यह सरकार मुश्किल से 8-10 मीटर चौड़े पुल के नीचे फंसे लोगों को लगभग डेढ़ दिन के समय तक भी नहीं बचा सकी.’

वे कहते हैं, ‘मुख्यमंत्री ने इस आपदा से निपटने के लिए राज्य द्वारा की जा रही तैयारियों का जायजा लेने के लिए एक बैठक तक नहीं बुलाई. यह आम लोगों की भलाई के प्रति उनकी चिंता की कमी को दर्शाता है. अमित शाह ने इस आपदा से निपटने के लिए उनकी सराहना की है, लेकिन उन्होंने किसी भी तरह के राहत कोष की घोषणा नहीं की, जबकि उनकी ओर से ऐसा करना अनिवार्य था. यह राज्य सरकार द्वारा एक किया गया एक आपराधिक कृत्य था.’

रावत ने यह भी दावा किया कि कांग्रेस पार्टी आगामी चुनावों में धामी सरकार के आपदा प्रबंधन की इस विफलता को चुनावी मुद्दा बनाएगी. कांग्रेस नेता का कहना था, ‘हम लोगों के पास जाएंगे और उन्हें बताएंगे कि कैसे हमारी सरकार ने 2013 की हिमालयी सुनामी और 2021 के दौरान काम किए और कैसे भाजपा सरकार ने कुमाऊं बारिश आपदा में फंसे लोगों की जान बचाने में ढुलमुल रवैये के साथ काम किया.’

रावत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी निशाना बनाते हुए उनकी 5 नवंबर को निर्धारित केदारनाथ यात्रा को एक ‘नौटंकी’ बताया. रावत ने कहा, ‘उत्तराखंड के लोग अच्छी तरह जानते हैं कि प्रधानमंत्री की केदारनाथ यात्रा केवल एक लोकलुभावन और राजनीतिक कदम है. इसका इस राज्य से कोई लेना-देना नहीं है.’

पीएम की केदारनाथ यात्रा सर्दियों के लिए मंदिर के पट बंद होने और आदि शंकराचार्य की 25 टन की प्रतिमा के उद्घाटन का प्रतीक होगी.


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‘कांग्रेस की आतंरिक गुटबाजी कोई चिंता की बात नहीं’

यह पूछे जाने पर कि कांग्रेस की राज्य इकाई में व्याप्त घोर अंदरूनी कलह के बावजूद कांग्रेस राज्य में सत्ता में वापस आने की उम्मीद कैसे कर सकती है? रावत ने कहा कि उन्हें पार्टी में आतंरिक विभाजन के बारे में कोई चिंता नहीं है, क्योंकि आवश्यकता पड़ने पर सारी कांग्रेस पार्टी एकजुट रहेगी.

रावत ने कहा कि. ‘यह सच है कि कांग्रेस पार्टी के नेताओं के बीच आंतरिंक मतभेद हैं, लेकिन आज हमारे लिए नैरेटिव कांग्रेस के बारे में नहीं है, बल्कि उत्तराखंड राज्य और इसकी समस्याओं का समाधान किसके पास इस बारे में है.’

वे कहते हैं, ‘अगर कांग्रेस में आतंरिक मतभेद हैं, तो हमारे पास राज्य का नेतृत्व करने में सक्षम काफी सारे नेता भी हैं. मुझे पार्टी के आंतरिक मामलों की कोई चिंता नहीं है, क्योंकि कांग्रेस का हर नेता चुनाव के दौरान एकजुट होकर एक ही लक्ष्य, पार्टी की जीत,  के साथ काम करेगा.’

उन्होंने दावा किया कि कई कांग्रेसी नेता जिन्होंने 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी छोड़ दी थी और बड़ी-बड़ी उम्मीदों के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे, अब वापस लौटना चाहते हैं.

‘अमरिंदर भाजपा के एजेंट, चन्नी-सिद्धू को एक साथ चलना चाहिए’

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को राज्य में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के इतने करीब उनके पद से हटाए जाने के पीछे के कारण को समझाते हुए रावत ने आरोप लगाया कि वह कांग्रेस के मुख्यमंत्री के रूप में नहीं, बल्कि ‘भाजपा-अकाली दल’ के एजेंट के रूप में काम कर रहे थे.

रावत ने आरोप लगाया,‘कैप्टन को कई बार कहा गया कि उन्हें एक कांग्रेस के मुख्यमंत्री के रूप में काम करना चाहिए, न कि भाजपा और अकाली दल के एजेंट के रूप में. वे एक ऐसे मुख्यमंत्री थे जिन्होंने चार साल तक राज्य सचिवालय का कभी दौरा नहीं किया और पंजाब में कांग्रेस को बंधक रखने की कोशिश की. यह सब हाल के घटनाक्रमों से और स्पष्ट हो गया है, क्योंकि वह पंजाब में भाजपा का चेहरा बनने के प्रति काफी उत्सुक हैं.’

वे कहते हैं, ‘सवाल समय के बारे में नहीं है, बल्कि इस निर्णय के बारे में है, और यह एआईसीसी नेतृत्व द्वारा उठाया गया सही कदम था.’

रावत ने यह भी आरोप लगाया कि अमरिंदर सिंह पंजाब कांग्रेस के कार्यकर्ता समूह (कैडर) को खत्म करने की कोशिश कर रहे थे.

उन्होंने यह भी कहा कि पंजाब कांग्रेस के वर्तमान प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू एक लोकप्रिय नेता हैं, जो आम जनता को प्रभावित कर सकते हैं. रावत ने यह भी विश्वास जताया कि सिद्धू पंजाब के नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के साथ मिलकर 2022 में कांग्रेस की जीत सुनिश्चित कर सकते हैं. साथ ही रावत का यह भी कहना था, ‘मगर इसके लिए दोनों को अपने आपसी मतभेद को खत्म करना होगा और साथ काम करने के तरीके तलाशने होंगे.’


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