अगरतला: त्रिपुरा के नवनियुक्त मुख्यमंत्री डॉ माणिक साहा ने रविवार को शपथ ली और कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की राज्य इकाई ‘पूरी तरह संगठित’ है. उनके मुताबिक ‘परिवार में ऐसी-छोटी-मोटी बातें’ होती रहती हैं.
यह पूछे जाने पर कि क्या उनका ध्यान अब बढ़ती गुटबाजी की खबरों के बीच पार्टी को एकजुट बनाए रखने पर होगा, उन्होंने दिप्रिंट को दिए अपने एक इंटरव्यू में कहा, ‘बिल्कुल, …पार्टी और सरकार दोनों को एक साथ आगे बढ़कर, लोगों की समस्याओं का समाधान करेंगे.’
भाजपा ने शनिवार को त्रिपुरा में नेतृत्व में बदलाव की घोषणा की थी. यह एक ऐसा कदम था जिसने पूरे पूर्वोत्तर में राजनीतिक गहमागहमी बढ़ा दी. 2018 के विधानसभा चुनावों के बाद सीएम नियुक्त किए गए बिप्लब कुमार देब ने अपना इस्तीफा दे दिया और उसके बाद उनकी जगह बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद साहा को चुना गया.
दिप्रिंट ने अपनी पहली एक रिपोर्ट में बताया था कि पार्टी के भीतर बढ़ते मतभेदों और देब के नेतृत्व को लेकर उठे असंतोष के चलते केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें अगले साल होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले हटा दिया है.
विधायकों सुदीप रॉय बर्मन और आशीष साहा के फरवरी में कांग्रेस में शामिल होने और पार्टी में गुटबाजी पर किए गए सवाल पर साहा ने कहा, ‘2018 से पहले पार्टी का वोट शेयर 1.6 प्रतिशत था. अन्य लोग भी हमारी पार्टी में शामिल हुए और वोट शेयर बढ़कर 44 प्रतिशत हो गया. लोगों की अलग-अलग फिलॉसफी और विचार हैं. एक बार में उनके विचार बदलना मुमकिन नहीं है, इसमें समय लगेगा.’
पेशे से दंत चिकित्सक 69 वर्षीय साहा, कांग्रेस छोड़ने के बाद 2016 में वापस भाजपा में शामिल हुए थे. 2018 में उन्हें बूथ प्रबंधन समिति का प्रभारी बनाया गया. 2020 में वह पार्टी की राज्य इकाई के प्रमुख बनाए गए और इस साल मार्च में राज्यसभा के लिए चुने गए.
दिप्रिंट ने पहले खबर की थी कि साहा को मुख्यमंत्री पद के लिए इसलिए चुना गया है क्योंकि पार्टी के नेता उन्हें ऐसा व्यक्ति मानते हैं जो पार्टी में चल रही आंतरिक कलह को दूर करने का मद्दा रखते हैं और सभी गुटों को एक साथ ला सकते है. वैसे भी उन्होंने पिछले साल के त्रिपुरा निकाय चुनावों में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसमें भाजपा ने शानदार जीत हासिल की थी.
‘कभी-कभार छोटी-मोटी बातें हो जाती हैं’
पार्टी के कार्यक्रम में जहां भाजपा ने शनिवार को सीएम बदलने की घोषणा की, राज्य के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री राम प्रसाद पॉल को कथित तौर पर अपने सहयोगियों के साथ बहस करते हुए और सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो में प्लास्टिक की कुर्सी को तोड़ते हुए देखा गया. अन्य विधायक भी कथित तौर पर इस कार्यक्रम में बहस करते नजर आए थे.
साहा ने राज्य भाजपा इकाई में दरार की खबरों का खंडन किया. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘हम पूरी तरह से संगठित हैं. सुबह भी सभी विधायक और नेता एक साथ आए थे. कभी-कभार छोटी-मोटी बातें हो जाती हैं. यह हर परिवार में होता है. लेकिन, अंततः यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम इन्हें रोक सकते हैं या नहीं, उन्हें मना सकते हैं या नहीं’
भाजपा के एक सूत्र ने हालांकि संकेत दिया कि राज्य सरकार के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है. ‘सभी कैबिनेट मंत्रियों के लिए शपथ ग्रहण समारोह में आने की योजना बनाई गई थी, लेकिन डिप्टी सीएम जिष्णु देव वर्मा और राम प्रसाद पॉल नजर नहीं आए.’
वर्मा ने अपने ट्विटर बायोडाटा में बदलाव करते हुए को ‘भारत के उप मुख्यमंत्री, त्रिपुरा ’ की जगह ‘विधायक, 19 चरिलम निर्वाचन क्षेत्र’ कर दिया.’
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‘बिप्लब देब के साथ अच्छी केमिस्ट्री’
पूर्व मुख्यमंत्री देब के साथ उनके समीकरण के बारे में पूछे जाने पर, साहा ने कहा कि जिस तरह से रिले रेस में बैटन को आगे वाले साथी को पास कर दिया जाता है, बस वही हुआ है. मुझे छड़ी पकड़ा दी गई है. उन्होंने कहा, ‘मेरे साथ उनकी बहुत अच्छी केमिस्ट्री है और यह हमेशा बनी रहेगी.’
‘पार्टी में हमेशा (हमारे काम पर) निगाह रखी जाती है और उसी आधार पर कार्यभार सौंपा जाता है. पार्टीं में इसी तरह से निर्णय लिया जाता रहा है. यहां यह बहुत महत्वपूर्ण नहीं है कि कौन किस पद पर है. भाजपा में सभी कार्यकर्ता हैं.’
‘2023 के चुनावों पर कोई असर नहीं’
अगले साल के राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा का सामना तृणमूल कांग्रेस, क्षेत्रीय पार्टी टीआईपीआरए मोथा (स्वदेशी प्रगतिशील क्षेत्रीय गठबंधन) के साथ-साथ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) से भी है. यह त्रिपुरा के पूर्व और सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले माणिक सरकार के नेतृत्व में मुख्य विपक्षी दल है.
सभी दल भाजपा के लिए किस तरह की चुनौतियां पेश कर सकते हैं, इस पर साहा ने कहा, ‘कोई चुनौती नहीं है. पिछले चुनाव में हमारे पास वोट थे और भविष्य में भी वोट हमारे पास ही रहेंगे.’
यह पूछे जाने पर कि क्या नेतृत्व बदलने से 2023 के चुनावों के लिए भाजपा की संभावनाओं पर असर पड़ेगा, उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं होगा.
उधर त्रिपुरा के पूर्व शाही परिवार के वंशज प्रद्योत माणिक्य देबबर्मा के नेतृत्व में टीआईपीआरए मोथा भी राज्य की 20 आरक्षित आदिवासी सीटों पर मुख्य चुनौती के रूप में उभर रही है. 2021 के त्रिपुरा ट्राइबल एरिया ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल (TTAADC) के चुनावों में पार्टी ने 28 में से 18 सीटें जीती थीं.
सरकार में भाजपा की गठबंधन सहयोगी, इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी), पिछले आदिवासी परिषद चुनावों में एक भी सीट सुरक्षित नहीं कर सकी. हाल ही में पार्टी के भीतर अध्यक्ष की कुर्सी को लेकर आंतरिक दरार का सामना करना पड़ा और दो मौजूदा मंत्रियों के नेतृत्व में पार्टी दो धड़ों में बंटती नजर आई.
भाजपा 20 आरक्षित आदिवासी सीटों के लिए कैसे मुकाबला करेगी, इस सवाल के जवाब में साहा ने कहा, ‘हमारे पास पहले से ही 10 आदिवासी विधायक और एक आदिवासी सांसद है. इसी तरह से हमारे पास 10 एमडीसी (जिला परिषद के सदस्य) हैं. हम पहाड़ी और एडीसी क्षेत्रों में जीत हासिल करने के लिए काफी मजबूत हैं.’
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