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Friday, 22 November, 2024
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मध्य प्रदेश के सियासी ड्रामे के वो सात किरदार जिन्होंने सत्ता के लिए खेला शह और मात का खेल

इस सियासी उठापटक में सबसे अहम किरादार ज्योतिरादित्य सिंधिया का रहा और इस पूरे घटनाक्रम के लिए जिम्मेदार कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह को माना जा रहा है.

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नई दिल्ली: मध्य प्रदेश में चल रही सियासी उठापटक पर शुक्रवार को कमलनाथ के इस्तीफे के साथ विराम लग गया. इस पूरे मामले में सात अहम बड़े किरादार हैं जिनके इर्द-गिर्द ही पूरी राजनीति हुई है. इस सियासत में सबसे अहम किरादार ज्योतिरादित्य सिंधिया का निकलकर सामने आया है. उनके कांग्रेस छोड़ते और भाजपा में शामिल होते ही राज्य का सियासी ग​णित बदल गया.

इसका सबसे ज्यादा नुकसान कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को हुआ, तो सबसे ज्यादा फायदा सूबे के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान को. वहीं नई दिल्ली, गुरुग्राम में बड़ा रोल निभाने में सबसे अहम भूमिका पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा, भाजपा प्रवक्ता ज़फर इस्लाम और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की रही.

मध्य प्रदेश की पूरी राजनीति में सबसे अहम रोल ज्योतिरादित्य सिंधिया का ही रहा. कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों की कांग्रेस छोड़ने की धमकी पर उनकी चुप्पी ने कई सवाल खड़े किए हैं. इसके अलावा उनका कांग्रेस पार्टी छोड़ना और समर्थक विधायकों के इस्तीफे ने पूरी सियासत को पलट कर रख दी. भाजपा का दामन थामने के बाद सिंधिया राज्य से पार्टी के राज्यसभा के दावेदार भी हो गए.

इस खेल में दूसरा बड़ा अहम रोल भाजपा प्रवक्ता ज़फर इस्लाम ने निभाया. ज़फर और सिंधिया के बहुत ही पुराने रिश्ते हैं. सिंधिया जब भी दिल्ली में रहते थे तो ज़फर से उनकी मुलाकात होती रहती थी. भाजपा में सिंधिया को शामिल कराने में ज़फर को अहम​ कड़ी माना जा रहा है.

प्रदेश में हुई इस पूरी उठापटक में अगर सबसे ज्यादा फायदे में हैं तो पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान. विधानसभा चुनाव के बाद केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें प्रदेश से दूर रखने कई जतन किए लेकिन शिवराज मध्य प्रदेश से दूर नहीं गए. वे कमलनाथ सरकार के 15 माह के कार्यकाल में लगातार हमलावर रहे. कई बार वे लोगों को सभा में यह कहते भी नजर आए कि टाइगर अभी जिंदा है. केंद्रीय नेतृत्व उनके नाम पर तैयार होता है तो फिर वे राज्य के सीएम पद की बागडोर संभाल सकते हैं.

कांग्रेस के बागी विधायकों को बेंगलुरु भेजना. वहीं भाजपा विधायकों को एकजुट करके रखने में सबसे अहम रोल पूर्व मंत्री डॉ.नरोत्तम मिश्रा का था. कांग्रेस की तरफ से जब भी भाजपा पर विधायकों के खरीद-फरोख्त का आरोप लगाया गया तो मिश्रा ने आगे आकर पार्टी का बचाव किया. मिश्रा दिल्ली से लेकर भोपाल तक लगातार सभी बड़े भाजपा नेता और केंद्रीय नेतृत्व से संपर्क में रहे. वहीं सभी विधायकों को गुरुग्राम में ठहराने और वापस भोपाल लाने का नेतृत्व भी वह ही कर रहे थे. नई सरकार में मिश्रा को अहम पद मिल सकता है.

केंद्रीय नेतृत्व ने राज्य में हो रहे उठापटक की जानकारी के लिए केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को नियुक्त किया था. तोमर राज्य के समीकरण पर नजर बनाए हुए थे. वहीं सिंधिया को भोपाल ले जाने और राज्यसभा का पर्चा भराने की जिम्मेदारी भी तोमर को ही सौंपी गई थी. कई अहम मसलों पर रणनीति तोमर के दिल्ली ​के निवास पर ही बनाई गई.

इस दौरान जिसे सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है वह हैं कमलनाथ. कांग्रेस के कद्दावर नेता कमलनाथ पर विधानसभा चुनाव के पहले हाईकमान ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का दायित्व सौंपा. वहीं राज्य में सरकार बनाने में वे कामयाब रहे. लेकिन लोकसभा चुनाव में पार्टी को यहां सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा. केवल उनकी छिंदवाड़ा सीट पर कोई भी नहीं जीत सका. यह सीट उनके बेटे ने जीती. सीएम रहते हुए भी कमलनाथ को पार्टी की अंतरकलह का कई बार सामना करना पड़ा. राज्य के नेताओं की गुटबाजी का असर यह रहा कि सीधे उनकी कुर्सी पर आ बनी और अब उन्हें सीएम का पद गंवाना पड़ा.

मध्य प्रदेश की राजनीति में इस पूरे उठापटक के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले किरादार दिग्विजय सिंह ही हैं. सिंधिया समर्थकों को नजरंदाज करना और राज्यसभा में जाने की लड़ाई के पीछे पूर्व सीएम सिंह ही रहे हैं. पार्टी के अंंदर ही अंदर कई बार सिंह को लेकर सवाल भी खड़े होते रहे हैं, लेकिन उनके कद और कमलनाथ से उनकी दोस्ती के आगे किसी की नहीं चली. वे कई बार सरकार बचाने के दावे भी करते रहे लेकिन बेंगलुरु में जब बागी विधायकों को उनसे नहीं मिलने दिया गया तो इसके बाद ही उनके दावे हवा निकल गई.

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1 टिप्पणी

  1. यदि ऐसा ही चलता रहा तो भारत ज़रूर कांग्रेस मुक्त हो जाएगा। मध्यप्रदेश में जो कुछ भी हुआ उसका मुख्य कारण भाजपा के पास अकूत‌ दौलत का होना है और नेताओं का देश से ऊपर अपनी दौलत और सम्पत्ति का लालच है।

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