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Friday, 22 November, 2024
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‘वास्तविक ओबीसी के अधिकार छीने जा रहे हैं’; कर्नाटक में मुस्लिम ओबीसी कोटा पर पिछड़ा वर्ग पैनल ने उठाए सवाल

एनसीबीसी अध्यक्ष का सवाल है कि राज्य की ओबीसी नीति की श्रेणी II-बी के तहत मुसलमानों के लिए 4 प्रतिशत कोटा है, फिर उन्हें दो अन्य श्रेणियों के तहत ओबीसी कोटा क्यों दिया जाता है.

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नई दिल्ली: सभी मुसलमानों को पिछड़े वर्ग के रूप में वर्गीकृत करने वाली कर्नाटक की नीति पर सवाल उठाते हुए, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) के अध्यक्ष हंसराज अहीर ने कहा कि राज्य के मुख्य सचिव को उस रिपोर्ट को प्रस्तुत नहीं करने के लिए बुलाया जाएगा जिसके आधार पर मुसलमानों को धर्म के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल किया गया था.

अहीर ने कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार की ओबीसी आरक्षण नीति अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को उनके अधिकारों से वंचित कर रही है. यह 26 अप्रैल को राज्य में लोकसभा के लिए पहले दौर के मतदान से कुछ दिन पहले आया है.

कर्नाटक सरकार ओबीसी को पांच श्रेणियों – श्रेणी I, श्रेणी II-ए, श्रेणी II-बी, श्रेणी III-ए और श्रेणी III-बी के तहत 32 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करती है.

एनसीबीसी ने कहा कि राज्य की नीति के अनुसार, कर्नाटक के सभी मुसलमानों को श्रेणी II-बी के तहत सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा माना जाता है. इसके अलावा, उन्हें दो अन्य श्रेणियों – श्रेणी-I में सूचीबद्ध 17 मुस्लिम समुदाय और श्रेणी II-ए में 19 मुस्लिम समुदाय – के तहत भी ओबीसी कोटा का लाभ मिलता है.

पिछले साल राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले श्रेणी II-बी के तहत आरक्षण एक राजनीतिक मुद्दा बन गया था. मार्च 2023 में, तत्कालीन भाजपा सरकार ने मुसलमानों के लिए 4 प्रतिशत ओबीसी कोटा (श्रेणी II-बी के तहत) खत्म कर दिया था और इसे दो प्रमुख समुदायों – वोक्कालिगा और लिंगायतों में 2-2 प्रतिशत वितरित कर दिया था. लेकिन राज्य सरकार की अधिसूचना को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जिसने इसको लागू करने पर रोक लगा दी.

कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद श्रेणी II-बी के तहत मुसलमानों को ओबीसी कोटा जारी रहा. जुलाई 2023 में, आरक्षण नीति की जांच के लिए एनसीबीसी ने राज्य के एक क्षेत्रीय दौरे के वक्त इस मुद्दे को उठाया था. इसमें उस रिपोर्ट के साथ विस्तृत स्पष्टीकरण मांगा गया जिसके आधार पर श्रेणी II-बी के तहत मुसलमानों के लिए चार प्रतिशत आरक्षण शुरू किया गया था.

आयोग ने राज्य में संपूर्ण मुस्लिम समुदाय को पिछड़ी जाति के रूप में वर्गीकृत करने की आलोचना की. “श्रेणी II-बी के तहत मुसलमानों के लिए 4 प्रतिशत कोटा है, फिर उन्हें दो अन्य श्रेणियों के तहत ओबीसी कोटा क्यों दिया जाता है? अहीर ने बुधवार को कहा, कर्नाटक सरकार द्वारा प्रस्तुत जवाब के संदर्भ में, यह स्पष्ट है कि वास्तविक अन्य पिछड़ा वर्ग के अधिकार छीने जा रहे हैं.

2011 की जनगणना के अनुसार, कर्नाटक में मुसलमानों की आबादी 12.92 प्रतिशत है.

अहीर ने दिप्रिंट को बताया “बार-बार याद दिलाने के बावजूद, हमें अकेले मुसलमानों को ऐसा आरक्षण प्रदान करने के लिए रिपोर्ट या कोई विस्तृत स्पष्टीकरण नहीं मिला है. फरवरी में अपने आखिरी जवाब में, राज्य के पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग ने कहा कि मुस्लिम और ईसाई जैसे समुदायों को न तो जाति और न ही धर्म के आधार पर, बल्कि पिछड़े वर्गों के रूप में वर्गीकृत किया गया है. हम इस संबंध में कर्नाटक के मुख्य सचिव को बुलाएंगे.”

दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए कर्नाटक पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री शिवराज तंगदागी और विभाग सचिव जी. सत्यवती से संपर्क किया. उनकी प्रतिक्रिया का इंतजार है.

अहीर ने कहा कि राज्य की नीति के कारण मुसलमानों को चार प्रतिशत से अधिक ओबीसी कोटा मिल रहा है और वास्तविक ओबीसी समुदाय अपने अधिकारों से वंचित हो रहे हैं.

उन्होंने राज्य के मेडिकल कॉलेजों में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में ओबीसी कोटा प्रवेश से संबंधित आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि मुसलमानों को वहां लगभग 16 प्रतिशत आरक्षण मिलता है.

अहीर ने कर्नाटक सरकार की फरवरी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा, “मेडिकल कॉलेजों में 930 पीजी सीटों में से 150 सीटें मुस्लिम समुदाय के छात्रों को दी गईं, जो लगभग 16 प्रतिशत है. श्रेणी II-बी के अंतर्गत 2022-23 में मुस्लिम समुदाय के 102 लोगों को प्रवेश दिया गया. इसके अलावा, श्रेणी I के तहत 25 और श्रेणी II-ए में 23 लोगों ने भी लाभ उठाया.

एनसीबीसी अध्यक्ष ने कहा, “हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि राज्य सरकार हमें वह रिपोर्ट दिखाए जिसके आधार पर नीति तैयार की गई थी.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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