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Thursday, 19 December, 2024
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18वीं लोकसभा में NDA ‘अल्पसंख्यक मुक्त’ है, जिसमें कोई मुस्लिम, ईसाई या सिख सांसद नहीं है

भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए की तुलना में, 18वीं लोकसभा में इंडिया ब्लॉक के 235 सांसदों में 7.9% मुस्लिम, 5% सिख और 3.5% ईसाई सांसद हैं.

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नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) तीसरी बार सरकार बनाने के लिए तैयार है. लेकिन 293 लोकसभा सांसदों की संयुक्त ताकत वाले एनडीए में ईसाई, मुस्लिम या सिख समुदायों का एक भी सांसद नहीं है.

हालांकि, इसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू के रूप में एक बौद्ध सांसद हैं, जिन्होंने अरुणाचल पश्चिम की अपनी संसदीय सीट को बरकरार रखने के लिए कांग्रेस के नबाम तुकी को हराया.

हिंदुस्तान टाइम्स में छपे विश्लेषण के अनुसार, एनडीए के 33.2 प्रतिशत सांसद उच्च जातियों से, 15.7 प्रतिशत मध्यवर्ती जातियों से और 26.2 प्रतिशत अन्य पिछड़ी जातियों से हैं, लेकिन इनमें से कोई भी मुस्लिम, ईसाई या सिख समुदाय से नहीं है.

साथ ही, राजनीतिक वैज्ञानिक गिल्स वर्नियर्स के विश्लेषण से पता चलता है कि इंडिया ब्लॉक के 235 सांसदों में से मुस्लिम 7.9 प्रतिशत, सिख 5 प्रतिशत और ईसाई 3.5 प्रतिशत हैं.

विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि निचले सदन में इंडिया ब्लॉक के सांसदों में उच्च जातियां, मध्यवर्ती जातियां और ओबीसी क्रमशः 12.4 प्रतिशत, 11.9 प्रतिशत और 30.7 प्रतिशत हैं.

18वीं लोकसभा में मुस्लिम सांसद

18वीं लोकसभा के लिए चुने गए 24 मुस्लिम सांसदों में से 21 इंडिया ब्लॉक से हैं. इनमें कांग्रेस के सात, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के पांच, समाजवादी पार्टी (एसपी) के चार, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) के तीन और जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के दो सांसद शामिल हैं.

शेष तीन मुस्लिम सांसदों में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख और हैदराबाद से पांच बार के सांसद असदुद्दीन ओवैसी और दो निर्दलीय शामिल हैं – बारामूला में अब्दुल रशीद शेख या ‘इंजीनियर रशीद’ और लद्दाख में मोहम्मद हनीफा.

इंडियन एक्सप्रेस के विश्लेषण के अनुसार, 11 प्रमुख दलों ने कुल 82 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, जिनमें से 16 ने जीत दर्ज की. 82 में से पांच एनडीए के घटक दलों द्वारा मैदान में उतारे गए, जिनमें से एक भाजपा द्वारा था.

भाजपा के एक मात्र मुस्लिम उम्मीदवार डॉ. अब्दुल सलाम केरल की मलप्पुरम लोकसभा सीट पर आईयूएमएल के ई.टी. बशीर और सीपीआई (एम) के वी वसीफ के बाद तीसरे स्थान पर रहे. सलाम को बशीर के 6.44 लाख और वसीफ के 3.43 लाख वोटों के मुकाबले केवल 85,361 वोट मिले.

जुलाई 2022 में मुख्तार अब्बास नकवी का कार्यकाल खत्म होने के बाद, नरेंद्र मोदी की मंत्रिपरिषद में मुस्लिम समुदाय से कोई भी व्यक्ति नहीं है. नकवी ने 2014 से 2022 तक अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के रूप में कार्य किया.

ईसाई वोट और भाजपा

ईसाई समुदाय की बात करें तो, केरल में भाजपा के एक मात्र ईसाई उम्मीदवार अनिल एंटनी पथनमथिट्टा सीट पर कांग्रेस के एंटो एंटनी और सीपीआई (एम) के डॉ. टी.एम. थॉमस आइज़ैक के बाद तीसरे स्थान पर रहे. अनिल वरिष्ठ कांग्रेसी और पूर्व रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी के बेटे हैं.

पथनमथिट्टा में उनकी हार तब हुई जब बिलीवर्स ईस्टर्न चर्च – जो कथित तौर पर 2020 से आयकर जांच का सामना कर रहा है – ने लोकसभा चुनावों से पहले उनके लिए समर्थन की घोषणा की.

हालांकि, भाजपा केरल में अपनी पहली लोकसभा सीट जीतने में सफल रही. अभिनेता सुरेश गोपी ने सीपीआई के वी.एस. सुनील कुमार और कांग्रेस के के. मुरलीधरन को 74,000 से अधिक मतों के अंतर से हराकर पार्टी के लिए त्रिशूर सीट जीती.

केरल भाजपा के महासचिव जॉर्ज कुरियन ने दिप्रिंट को बताया कि ईसाई समुदाय ने त्रिशूर सहित कई सीटों पर पार्टी का “समर्थन” किया. “हमें त्रिशूर में 30 प्रतिशत ईसाई वोट मिले और कई अन्य सीटों पर 10-12 प्रतिशत वोट मिले. हमने त्रिवेंद्रम में भी अच्छा प्रदर्शन किया.”

हालांकि, उन्होंने कहा कि पार्टी को केरल के प्रभावशाली ईसाई समुदाय को जीतने के लिए अभी बहुत कुछ करना है. केरल में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के बेहतर प्रदर्शन के बारे में पूछे जाने पर कुरियन ने कहा, “जैसे सबरीमाला मुद्दे ने 2019 में हिंदू वोटों को एकजुट किया था, इस बार कांग्रेस के पक्ष में मुस्लिमों के एकजुट होने से फर्क पड़ा.”

केरल के अलावा, भाजपा और उसके सहयोगियों को पूर्वोत्तर के ईसाई बहुल राज्यों, खासकर नागालैंड और मेघालय में भी झटका लगा.

ईसाइयों का नाम लिए बिना, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा, जो भाजपा के नेतृत्व वाले नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (NEDA) के संयोजक भी हैं, ने यहां तक ​​दावा किया कि इन राज्यों में “एक खास धर्म” ने एनडीए के घटकों के खिलाफ वोट दिया था.

एनडीए के लिए, पूर्वोत्तर में एक मात्र अपवाद अरुणाचल प्रदेश था, जहां उसने न केवल राज्य की दो लोकसभा सीटें जीतीं, बल्कि एक साथ हुए विधानसभा चुनावों में सत्ता में भी वापसी की.

मणिपुर के एक भाजपा नेता ने दिप्रिंट से कहा, “यहां तक ​​कि हमारे मजबूत राज्य मंत्री (बसंत कुमार सिंह) भी चुनाव नहीं जीत सके क्योंकि आदिवासी और ईसाई दोनों मतदाता नाराज थे.

हमारे सहयोगियों को भी मेघालय और नागालैंड में हार का सामना करना पड़ा. हम न तो ईसाइयों के बीच इस आक्रोश को महसूस कर पाए और न ही सुधार के लिए आगे बढ़ पाए.

जॉन बारला जो 2019 में पश्चिम बंगाल की अलीपुरद्वार सीट से लोकसभा के लिए चुने गए थे, मोदी की मंत्रिपरिषद में एक मात्र ईसाई मंत्री थे. उन्होंने 2021 से इस साल तक अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री (MoS) के रूप में कार्य किया.

भाजपा के सिख उम्मीदवार

इस बार, भाजपा ने पंजाब में छह सिख उम्मीदवारों को मैदान में उतारा: पटियाला में परनीत कौर; बठिंडा में परमपाल कौर सिद्धू; लुधियाना में रवनीत सिंह बिट्टू; अमृतसर में तरनजीत सिंह संधू; फिरोजपुर में राणा गुरमीत सिंह सोढ़ी; और खडूर साहिब में मंजीत सिंह मन्ना.

1998 के बाद यह पहली बार था जब पार्टी ने शिरोमणि अकाली दल (SAD) के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन किए बिना पंजाब में लोकसभा चुनाव लड़ा.

पंजाब के बाहर भी, भाजपा के सिख उम्मीदवार एसएस अहलूवालिया को पश्चिम बंगाल के आसनसोल में टीएमसी के शत्रुघ्न सिन्हा ने हराया.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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