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Friday, 26 April, 2024
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BJP के साथ त्रिपुरा पीपुल्स फ्रंट का विलय भविष्य में राज्य की जनजातीय राजनीति में बदलाव ला सकता है

TPF, प्रद्योत देबबर्मा के नेतृत्व वाली TIPRA मोथा की पूर्व सहयोगी रही है. TPF की संस्थापक पताल कन्या जमातिया स्थानीय तौर पर एक जुझारू कार्यकर्ता के रूप में जानी जाती हैं. उनका यह कदम 2023 के राज्य चुनावों में बीजेपी के लिए मददगार साबित हो सकता है.

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गुवाहाटी: त्रिपुरा में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. राज्य के कुल 31.78 प्रतिशत जनजातीय वोटों को अपने पक्ष में लाने के लिए खींचातानी शुरू हो गई है. वहां के स्थानीय राजनीतिक दल त्रिपुरा पीपुल्स फ्रंट का विलय बीजेपी के साथ हो गया है. इस कदम को TIPRA मोथा (टिपराहा इंडिजिनस प्रोग्रेसिव रीजनल एलायंस) को पटकनी देने के रूप में देखा जा रहा है. वहीं, बीजेपी राज्य में अपनी सरकार बनाए रखने की कवायद में जुट गई है.

TPF का बीजेपी के विलय की घोषणा एक रैली में की गई, जिसमें TPF अध्यक्ष पताल कन्या जमातिया, त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब, केंद्रीय मंत्री प्रतिमा भौमिक और बीजेपी के अन्य वरिष्ठ नेता शामिल थे. ‘बांग्लादेशी घुसपैठियों’ के बारे में अपने विवादित बयानों के लिए मशहूर जमातिया ने कहा, ‘यह राजनीतिक कदम उठाने के पीछे का उद्देश्य पहाड़ में रह रहे लोगों की सुरक्षा और शांति सुनिश्चित करना है.’

दिप्रिंट ने जमातिया से इस विलय को लेकर बातचीत करनी चाही और कई मैसेज भी भेजे. हालांकि, उन्होंने टिप्पणी करने से इंकार कर दिया.

TPF का TIPRA मोथा के साथ गठबंधन था. लेकिन, कुछ मतभेदों के चलते दोनों में अलगाव हो गया. TIPRA मोथा 2019 में गठन के बाद से ही राज्य के जनजातीय इलाकों में एक बड़ी ताकत रही है. TIPRA मोथा के प्रमुख त्रिपुरा राजघराने के प्रद्योत मानिक्य देबबर्मा हैं.

दिप्रिंट ने इसकी पड़ताल की है कि इस विलय का असर राज्य की 20 जनजातीय बाहुल्य वाली सीटों पर क्या होगा और जमातिया का बीजेपी में शामिल होना क्या रंग दिखाएगा. त्रिपुरा विधानसभा में कुल 60 सीटें हैं.

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डेमोग्राफिक और राजनीति पर असर

त्रिपुरा में कम से कम 19 जनजातियां हैं. इनमें त्रिपुरी, रियांग, जमातिया और नोआतिया खास हैं. बांग्लादेशी प्रवासियों के आने की वजह से जनजातियों का पलायन पहाड़ी इलाकों में हुआ और वहां पर इनकी आबादी घटकर 64 फीसदी रह गई. साल 1874 में इन इलाकों में इनकी आबादी 64 फीसदी थी.

त्रिपुरा की कुल 60 विधान सभा सीटों में से 20 सीटें जनजातीय उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं, जबकि अन्य 10 सीटों पर जनजातीय वोटरों का असर रहता है. साल 1972 से यहां सीपीआई(एम) का दबदबा रहा था. पार्टी ने राज्य में सबसे लंबे समय तक राज किया. इसके अलावा, कांग्रेस के प्रभाव वाली जनजातीय पार्टियों जैसे त्रिपुरा उपजाति जूबा समिति (टीयूजेएस) का असर यहां दिखता था. लेकिन, 2018 के चुनावों में यहां की ज्यादातर सीटों पर बीजेपी और उसके गठबंधन दल इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (IPFT) का कब्जा हो गया.

राज्य की आरक्षित सीटों में से IPFT को आठ सीटें मिलीं और बीजेपी 10 सीटें जीतने में कामयाब रही.

हालांकि, साल 2021 में होने वाले त्रिपुरा ट्राइबल एरियाज़ ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल (TTAADC) के चुनावों के पहले बीजेपी और IPFT गठबंधन में दरार आ गई. इस स्थानीय पार्टी ने TIPRA मोथा के साथ गठबंधन करके अपने पुराने साथी (बीजेपी) को करारा झटका दिया. बीजेपी के साथ ‘मतभेदों’ की बात बाद के महीनों में देखने को मिली, जब IPFT के नेताओं ने कहना शुरू किया कि बीजेपी स्थानीय लोगों के अधिकारों के लिए कोई काम नहीं कर रही है.

हालांकि, IPFT और TIPRA मोथा का गठबंधन भी ज्यादा दिनों तक नहीं चला. TIPRA ने आरोप लगाया कि IPFT ने ‘बिना उससे सलाह किए’ उम्मीदवारों की घोषणा की है. IPFT का कहना था कि यह TIPRA की गलती है क्योंकि देबबर्मा ने सीटों की साझेदारी को लेकर ‘किए गए वादे को तोड़ा’ है.

IPFT और बीजेपी के बीच मतभेद बने रहे, क्योंकि इस जनजातीय पार्टी ने अलग राज्य की अपनी मांग जारी रखी है. हालांकि, अभी भी वह बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार का हिस्सा है.

इसी बीच TIPRA मोथा को अप्रैल 2021 में हुए TTAADC चुनावों में जीत मिली और वह 28 में से 18 सीटों पर विजयी हुई. यह नतीजा जनजातीय बेल्ट में चुनावी राजनीति में बदलाव का संकेत था. ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल का गठन 1985 में किया गया जिसका उद्देश्य जनजातीय इलाकों को आंतरिक स्वायत्तता प्रदान करना था. साथ ही, लोगों को सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक सुरक्षा प्रदान करना था. इसका मकसद राज्य के दो तिहाई भौगोलिक इलाकों पर शासन करना था जिसमें राज्य में रह रही कुल 87 प्रतिशत से ज्यादा जनजातियां आ जाती हैं.

नवंबर 2021 में IPFT ने TIPRA मोथा की नई दिल्ली में होने वाली रैली में हिस्सा लिया जिसमें स्थानीय लोगों के लिए अलग राज्य या ग्रेटर टिपरालैंड (जो IPFT के पहले की टिपरालैंड की मांग का विस्तार थी) की मांग की गई थी. इसके प्रभाव से यह संकेत मिला कि बीजेपी सरकार अपना रणनीतिक जनजातीय हिस्सा गवां सकती है.

TPF की जुझारू नेता

TPF का गठन साल 2014 में पताल कन्या जमातिया ने एक नागरिक संगठन के रूप में किया था जो आगे चलकर एक स्थानीय राजनीतिक दल में बदल गई.

धीरे-धीरे TPF ने स्थानीय लोगों के अधिकारों को लेकर राजनीतिक गतिविधियां शुरू कर दीं. उसके बाद TTAADC के चुनावों में TPF ने TIPRA के साथ अपने उम्मीदवार चुनाव में उतार दिए. उस समय जमातिया को TIPRA का मुख्य सलाहकार भी बनाया गया था.

जमातिया पहली बार 2018 में उस समय सुर्खियों में आईं जब उन्होंने त्रिपुरा में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की. उसके बाद साल 2019 में सिटीजनशिप (एमेंडमेंट) एक्ट के खिलाफ याचिका दायर की और कहा कि इससे ‘गैरकानूनी  बांग्लादेशी घुसपैठियों’ को नागरिकता प्राप्त हो जाएगी.

जमातिया ने 2018 में बीजेपी और IPFT की सरकार बनने के बाद कहा, ‘प्रशासन पर अवैध घुसपैठियों का नियंत्रण है, यहां तक कि वर्तमान मुख्यमंत्री भी बांग्लादेश के गैरकानूनी प्रवासी हैं.’

पिछले साल दिसंबर में, TPF और TIPRA के कार्यकर्ताओं के बीच खुमुलवंग के TTAADC मुख्यालय में स्थानीय चुनावों के दौरान झड़प हुई देबबर्मा ने चुनाव-चिन्ह के बिना चुनाव करवाने का प्रस्ताव दिया था, जिसके बाद यह झड़प हुई. उस समय देबबर्मा ने कहा, ‘भले ही हमारी पार्टियां अलग-अलग हों, लेकिन दिल से हम सब एक ही हैं.’

रिपोर्टों के मुताबिक TPF और बीजेपी का विलय जमातिया, बीजेपी नेतृत्व वाली नॉर्थ-ईस्ट डिमोक्रेटिक अलायंस के चेयरमैन और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा और त्रिपुरा के मुख्यमंत्री देब के बीच बातचीत के बाद हुआ है.

अगरतला के राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार जयंत भट्टाचार्जी ने कहा, ‘जमातिया एक तेज-तर्रार और जुझारू नेता हैं, जिन्होंने बीजेपी की आलोचना भी की थी. बीजेपी को लगा कि वह उनका उपयोग TIPRA मोथा के खिलाफ नारे लगवाने के लिए कर सकती है.’


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बीजेपी के लिए एक जनजातीय चेहरा?

दिप्रिंट ने जिन राजनेताओं और विशेषज्ञों से बातचीत की उन्होंने TPF के साथ बीजेपी के विलय को लेकर पड़ने वाले राजनीतिक प्रभावों को लेकर मिलेजुले बयान दिए.

एक रैली को संबोधित करते हुए जमातिया ने कहा, उनकी पार्टी ‘विकास और शांति का प्रतीक है’, और ‘शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व’ की बात कही. उन्होंने कहा, ‘वे ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ की बात करते हैं, मैं आपसे ग्रेटर यूनिटी की बात करती हूं, जो जनजातीय और गैर-जनजातीय लोगों के बीच होनी चाहिए, जिससे समग्र जनता का विकास होगा.’

TIPRA प्रमुख देबबर्मा ने दिप्रिंट को बताया कि इस विलय का लाभ उनके संगठन को होगा.

दिप्रिंट से अपनी बातचीत में उन्होंने कहा, ‘इससे हमारे जनजातीय वोट और इकठ्ठे होंगे, क्योंकि वह (जमातिया) एक स्वतंत्र नेता के रूप में ज्यादा ताकतवर थी लेकिन बीजेपी के साथ जाने के कारण उसने अपनी साख गवां दी है.’

IPFT के महासचिव और बिप्लब देब की सरकार में जनजातीय कल्याण और वन मंत्री मेवार कुमार जमातिया का कहना है कि वोटर जनजातीय क्षेत्रों में उस पार्टी को प्रमुखता देगा, जो टिपरालैंड का समर्थन करेगी.

मेवार ने कहा, ‘ज्यादातर स्थानीय लोग राज्य की मांग कर रहे हैं और जो भी इस मांग के खिलाफ होंगे उन्हें वोट नहीं मिलेगा. जिस तरह से महाराज (प्रद्योत देबबर्मा) टिपरालैंड के समर्थक हैं, हम भी हैं. यह बात कोई खास मायने नहीं रखती कि हम इसे हासिल करेंगे कि नहीं लेकिन जो लोग इस मांग के खिलाफ रहेंगे उनको इस जनजातीय इलाके में वोट नहीं मिलेगा.’

त्रिपुरा यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ जर्नलिज्म के असिस्टेंट प्रोफेसर, सुनील कलाई  का मानना है कि जमातिया का अनिश्चित रवैया उनके राजनीतिक कैंपेन पर गलत असर डाल सकता है.

उन्होंने कहा, ‘पताल कन्या को एक स्थानीय कार्यकर्ता माना जाता था लेकिन जिस तरह से उन्होंने पाला बदला है उसका गलत असर देखने को मिल सकता है.’

उन्होंने कहा, ‘यह भी एक सच्चाई है कि सभी छोटी पार्टियों या स्थानीय स्तर की राजनीतिक पार्टियों के सामने देश भर में बीजेपी के अलावा किसी दूसरी पार्टी में जाने का कोई विकल्प नहीं है.’

इस विलय के बाद देबबर्मा ने अपने एक वीडियो संदेश में कहा,  ‘उनकी पार्टी बीजेपी के साथ कोई गठजोड़ नहीं करेगी. बीजेपी की एक नई नेता (पताल कन्या जमातिया) ने कहा है कि TIPRA मोथा इतनी छोटी पार्टी है कि वह चल नहीं सकती और उन्होंने हमारे ग्रेटर टिपरालैंड की संवैधानिक मांग को लेकर भी मजाक उड़ाया है.’

कांग्रेस के एक पूर्व नेता ने कहा, ‘हां, बीजेपी एक बड़ी पार्टी है. देश की पार्टियों में सबसे ज्यादा पैसा उसी के पास है. उनके संगठन की ताकत हमसे ज्यादा है. लेकिन, हम पहाड़ की एक छोटी पार्टी हैं. इसलिए, बीजेपी को सभी 60 सीटों पर लड़ने दिया जाए. हम 30-35 पर ही चुनाव लड़ेंगे. अंत में जनता ही यह फैसला करेगी कि कौन बड़ी पार्टी है और कौन छोटी पार्टी.’

भट्टाचार्जी का कहना है, ‘इस विलय के बाद हो सकता है कि जनजातीय वोट बीजेपी और TIPRA के बीच बंट जाएं. बीजेपी एक बड़ी पार्टी है और जनजातीय लोगों के बीच उनके संगठन की अच्छी पहुंच है और अब वे उनका (जमातिया) का सहयोग भी करेंगे.’

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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