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Friday, 1 November, 2024
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बंगाल के वो मंत्री जो कभी ममता की सियासत में खास हुआ करते थे, अब उनके खिलाफ बगावत पर उतारू हैं

ममता के नंदीग्राम आंदोलन के पीछे परिवहन मंत्री शुभेंदु अधिकारी ही थे, लेकिन पिछले 3-4 महीने से उन्होंने, एक भी कैबिनेट या प्रशासनिक बैठक में शिरकत नहीं की है.

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कोलकाता: ऐसा लगता है कि इस चुनावी सीज़न में गुटीय झगड़े और नाटकीय ध्रुवीकरण की रणनीति पश्चिम बंगाल राजनीति का सार बन गए हैं.

इस बहती गंगा में हाथ धोने वाली बीजेपी ताज़ा तरीन पार्टी है, जिसके दो नेता खुले तौर पर अपने मतभेद ज़ाहिर कर रहे हैं, जबकि सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस बहुत समय से आंतरिक कलह का शिकार रही है.

लेकिन बंटवारे की शिकार पार्टी के लिए भी ताज़ा घटनाक्रम मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए एक बड़ा सरदर्द साबित हो रहा है.

2021 विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले ही ममता को एक आदमी -शुभेंदु अधिकारी की बग़ावत का सामना कर पड़ रहा है- जो राज्य के परिवहन मंत्री, पूर्व सांसद और महत्वपूर्ण रूप से नंदग्राम में मुख्यमंत्री के 2007 के भूमि अधिग्रहण- विरोधी आंदोलन के पीछे एक ख़ास किरदार थे, जिसकी वजह से ममता को राज्य में 34 साल से चले आ रहे वामपंथी शासन का ख़ात्मा करने में मदद मिली.

अधिकारी, जो पिछले 3-4 महीने में मुख्यमंत्री द्वारा बुलाई गई, एक भी कैबिनेट या प्रशासनिक बैठक में शरीक नहीं हुए हैं, अब अपने बैनर ‘आमरा दादार अनुगामी’ (हम दादा के अनुयायी) तले जनसभाओं को संबोधित कर रहे हैं.

बुद्धवार को उन्होंने पूर्वी मिदनापुर ज़िले के कोलाघाट में एक बैठक की जिसमें उन्होंने कहा कि उन्हें किसी ‘पद की चाह’ नहीं है और वो बस जनता सेवा करना चाहते हैं.

लेकिन उन्होंने जो कहा, उससे ज़्यादा भौंहें उन्होंने क्या किया इस पर तन रही हैं. न तो कहीं ममता बनर्जी के नाम का ज़िक्र था, और न ही बैठक में कहीं टीएमसी का कोई झंडा था. किसी टीएमसी लीडर ने कभी ऐसा नहीं किया.

इस सब से अटकलें शुरू हो गई हैं कि अधिकारी अपनी राजनीतिक निष्ठा बदलने की तैयारी कर रहे हैं. बीजेपी भी इसमें कूद पड़ी है और दावा कर रही है कि टीएमसी मंत्री ने उससे संपर्क किया है.

दिल्ली से बीजेपी के एक शीर्ष नेता ने दिप्रिंट से कहा कि अधिकारी पार्टी के ‘लगातार संपर्क’ में बने हुए हैं, तृणमूल कांग्रेस के कुछ बड़े नाताओं ने स्वीकार किया कि मंत्री के फैसले ‘असहमति और अनुशासनहीनता’ की श्रेणी में आते हैं.

एक सीनियर टीएमसी लीडर ने कहा, ‘शुभेंदु पार्टी अनुशासन तोड़ रहे हैं. वो पार्टी और सरकार के कार्यक्रमों में शामिल नहीं हो रहे हैं, लेकिन नियमित रूप से अपनी जन सभाएं कर रहे हैं.

लेकिन पार्टी ने अधिकारिक रूप से टिप्पणी करने से मना कर दिया.


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एक वरिष्ठ नेता और राज्य के मंत्री तपस रॉय ने कहा, ‘केवल हमारी लीडर (ममता) ही इस पर टिप्पणी कर सकती हैं. हम इस बारे में कुछ नहीं कह सकते.’

दिप्रिंट ने कॉल्स, टेक्स्ट और व्हाट्सएप संदेशों के ज़रिए अधिकारी से संपर्क की कोशिश की लेकिन अभी तक उनका जवाब नहीं मिला है.

लेकिन पिता, पूर्व केंद्रीय मंत्री और एर वरिष्ठ टीएमसी सांसद, सिसिर अधिकारी ने कहा कि वो और उनका बेटा अभी भी ममता बनर्जी के साथ हैं और ‘कम बुद्धि के कुछ राजनेता अपने निहित स्वार्थों की ख़ातिर’ ये अफवाहें फैला रहे हैं.

सिसिर ने कहा, ‘शुभेंदु तृणमूल कांग्रेस में हैं. मैं आगे की भविष्यवाणी नहीं कर सकता, लेकिन अभी हम सब ममता बनर्जी के साथ हैं.’

पार्टी कार्यक्रम छोड़कर एक नए संगठन के बैनर तले, सभाएं करने के उनके बेटे के फैसले पर उन्होंने कहा, ‘शुभेंदु एक अनुभवी राजनेता हैं और वो अपने फैसले ख़ुद लेते हैं. उनके अपने चाहने वाले हैं और उन्हीं लोगों ने एक संगठन खड़ा किया है.

‘कम बुद्धि के कुछ राजनेता हैं, जो उनके खिलाफ अफवाहें फैलाते हैं. कुछ नाज़ुक और भावनात्मक मुद्दे हैं, जिन्हें सुलझाया जा सकता है. ’

एक प्रमुख टीएमसी नेता

अधिकारी का शुमार तृणमूल कांग्रेस के उन गिने चुने नेताओँ में होता है, जिनका अपना एक ठोस जनाधार है.

वो पूर्वी मिदनापुर और पश्चिम मिदनापुर, पुरूलिया व बांकुरा के तीन ज़िलों में फैले पूरे जंगलमहल इलाक़े में, ममता के प्वाइंट्समैन रहे थे.

अधिकारी इन चार ज़िलों में पार्टी प्रभारी थे, जिनमें कुल मिलाकर आठ लोकसभा सीटें, और 56 विधान सभा क्षेत्र आते हैं, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद, उन्हें हटा दिया गया था.

तृणमूल कांग्रेस की युवा विंग के पूर्व अध्यक्ष अधिकारी, दो बार के सांसद और मंत्री हैं. लेकिन 2014 में एक बड़ा फेरबदल करते हुए, ममता बनर्जी ने अपने भतीजे अभिषेक को, युवा विंग का प्रमुख बना दिया था.

एक दूसरे सीनियर तृणमूल लीडर ने कहा, ‘तृणमूल कांग्रेस में शुभेंदु अकेले ऐसे नेता हैं, जिनका अपना एक जनाधार है, और जो ममता बनर्जी के नाम के बिना चुनाव जीत सकते हैं’.

लेकिन सभाओं से ग़ायब रहने के अलावा, टीएमसी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा, कि मंत्री मुख्यमंत्री पर छिपे रूप से हमले करते रहे हैं.

बुद्धवार को अपनी कोलाघाट सभा में उन्होंने कहा, ‘कुछ राजनेता चुनावों से पहले अपने चुनाव क्षेत्रों में आते हैं. वो प्रवासियों की सहायता के लिए नहीं आए.

‘सब कुछ हो जाने के बाद वो सस्ता भोजन और सामान बांटने के लिए आए. वो सब ख़ुदग़र्ज़ लोग हैं; वो सिर्फ अपनी बात करते हैं. अकेले रहकर कोई नहीं जीत सकता. ये एक सामूहिक प्रयास है. जो लोग सिर्फ मै और मेरा कहते रहते हैं, वो सब कुछ तबाह कर देते हैं’.

इसे 2016 चुनावों से पहले मुख्यमंत्री के, उस बयान पर चोट की तरह देखा जा रहा है, जिसमें उन्होंने कहा था कि राज्य की सभी 294 सीटों पर वो ही उम्मीदवार हैं.

अधिकारी के ममता बनर्जी से दूर होने को लेकर, पार्टी में चिंता पैदा हो गई है. एक तीसरे वरिष्ठ तृणमूल लीडर ने दिप्रिंट से कहा, ‘शुभेंदु को कभी उनका हक़ नहीं मिला. शुभेंदु का मतभेद जायज़ है’.

‘बीजेपी के संपर्क में’

बीजेपी के एक शीर्ष केंद्रीय नेता ने दिप्रिंट से कहा, कि अधिकारी पार्टी के ‘लगातार संपर्क’ में बने हुए थे. ‘वो हमारे संपर्क में हैं. उन्हें अपने कुछ पारिवारिक मसले सुलझाने हैं. उनके परिवार में कुछ सीनियर राजनेता हैं’.

हालांकि, आधिकारिक रूप से बीजेपी अपने पत्ते नहीं खोल रही है.

बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कहा, ‘तृणमूल के अंदर बहुत से असंतुष्ट नेता हैं. उनका ममता बनर्जी से मोहभंग हो चुका है’.

लेकिन अधिकारी नारद स्टिंग घोटाले में एक अभियुक्त हैं और उन्हें कथित रूप से रिश्वत लेते हुए कैमरे में क़ैद किया गया था. सीबीआई ने इस घोटाले के सिलसिले में मुक़दमा चलाने की मंज़ूरी लेने के लिए उनका नाम लेकसभा स्पीकर के पास भेजा हुआ है. नारद और शारदा दोनों घोटालों के सिलसिले में केंद्रीय एजेंसियां- सीबीआई और ईडी- उनसे पूछताछ कर चुकी है.’

(इस खबर को अंग्रजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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