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शुक्रवार, 30 मई, 2025
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अपना दल (एस) के दलित अध्यक्ष बनाने की घोषणा के पीछे BSP के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश

इस महीने की शुरुआत में ओबीसी नेता राज कुमार पाल के इस्तीफा देने के बाद अनुप्रिया पटेल की पार्टी ने अब अपने पुराने वफादार जाटव आर.पी. गौतम को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है.

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लखनऊ: केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की पार्टी अपना दल (सोनेलाल) ने गुरुवार को जाटव आर.पी. गौतम को अपनी उत्तर प्रदेश इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया. इस कदम को दलित समुदाय को लुभाने की पार्टी की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.

इस महीने की शुरुआत में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राज कुमार पाल ने अनुप्रिया और उनके पति आशीष पटेल (उत्तर प्रदेश कैबिनेट में मंत्री) पर उन्हें दरकिनार करने और पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाते हुए पद से इस्तीफा दे दिया था.

पार्टी के पुराने वफादार और सहकारिता विंग के प्रमुख गौतम ने अब यह जिम्मेदारी संभाली है. 60 साल के गौतम सीतापुर जिले के रहने वाले हैं और पिछले दो दशकों से दलित अधिकार कार्यकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं.

पार्टी पदाधिकारियों के मुताबिक, पहले प्रदेश अध्यक्ष का पद एक ओबीसी नेता (पाल) के पास था, लेकिन अब पार्टी ने अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए पहली बार जाटव (दलित समुदाय का एक हिस्सा) नेता को इस पद के लिए चुना है.

आशीष पटेल ने दिप्रिंट से कहा, “यह पहली बार है जब हमने अपनी सोशल इंजीनियरिंग योजना के अनुरूप जाटव को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है. हमें अच्छे परिणाम की उम्मीद है.”

नाम न बताने की शर्त पर एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि पार्टी ओबीसी पार्टी की छवि से बाहर निकलना चाहती है.

नेता ने दिप्रिंट से कहा, “यह कदम ऐसे समय उठाया गया है, जब जाटवों की पहली पसंद मानी जाने वाली बहुजन समाज पार्टी का जनाधार पिछले कुछ सालों से कम होता जा रहा है. जाटव विकल्प की तलाश में हैं. इसलिए हमारे नेतृत्व ने अपना आधार बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया है. राज्य में जाटवों की आबादी 12 प्रतिशत से अधिक है, जो चुनावी राजनीति में प्रभाव पैदा करने के लिए महत्वपूर्ण है.”

अब, जबकि पार्टी इस साल होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों और 2027 के विधानसभा चुनावों की तैयारी पर ध्यान केंद्रित कर रही है, गौतम को यह बड़ी जिम्मेदारी दी गई है.

हालांकि, अपना दल (एस) अकेली पार्टी नहीं है, जो बीएसपी के मुख्य वोट बैंक पर नजर गड़ाए हुए है.

समाजवादी पार्टी के “पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक” नारे को इस साल अप्रैल में पूर्व मंत्री और बीएसपी के संस्थापक सदस्य दद्दू प्रसाद के साथ-साथ कुछ अन्य स्थानीय बीएसपी नेताओं के शामिल होने से काफी बढ़ावा मिला. इससे पहले, सपा ने पिछले साल भी बसपा के कई नेताओं को पार्टी में शामिल किया था.

इसके अलावा, सपा की जिला इकाइयों ने इस साल भीमराव आंबेडकर की जयंती के उपलक्ष्य में एक हफ्ते तक चलने वाला “स्वाभिमान सम्मान समारोह” भी आयोजित किया था. इसका उद्देश्य ज़मीनी स्तर पर दलित समुदाय के प्रमुख सदस्यों तक पहुंचना और उन्हें सम्मानित करना था.

इसी तरह, नगीना के सांसद चंद्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व वाली आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) भी अपने आधार का विस्तार करने की योजना बना रही है, जिसने राज्य के सभी 75 जिलों में स्थानीय इकाइयों की नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी कर ली है.

यूपी स्थित राजनीतिक विश्लेषक शिल्प शिखा सिंह ने बताया कि बसपा के “पतन” ने दलित मतदाता आधार के मामले में अन्य दलों के लिए जगह खोल दी है.

“यूपी में लोकसभा के नतीजों के बाद हर पार्टी को एहसास हो गया है कि बीएसपी के इस ‘वफादार’ वोट बैंक को हासिल करने की गुंजाइश है क्योंकि पुरानी पार्टी चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रही है. पिछले महीने आंबेडकर जयंती पर भव्य समारोह की घोषणाओं ने भी संकेत दिया है कि हर पार्टी दलित वोटों पर नज़र रख रही है. फिलहाल, यह बीजेपी सहयोगी (अपना दल) की एक चतुर चाल लगती है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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