नई दिल्ली: चुनावी मौसम के गरमाने के साथ ही अक्खड़ बयान, भड़काऊ दावे और शिष्टता की खुली उपेक्षा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष अमित शाह के सार्वजनिक भाषणों की विशिष्ट पहचान बन गए हैं.
पर टेलीविज़न पर साक्षात्कारों में वह अलग किस्म की शख्सियत नज़र आते हैं – वही शाह पर अधिक संयमित, शांत और तर्कसंगत.
अपना नाम नहीं बताने की शर्त पर भाजपा के एक नेता ने कहा, ‘शाह जानते हैं कि कैसे भावनाएं भड़काई जाती हैं, और उससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह कि ऐसा करने के लिए कौन सा मंच सबसे बेहतर है.’
‘वह जनसभाओं में तमाम भावनात्मक और भड़काऊ वक्तव्यों का इस्तेमाल करते हैं – खासकर इस बात के मद्देनज़र कि प्रधानमंत्री होने के नाते मोदी को अपेक्षाकृत अधिक संयत रहना होता है. इससे हमारे वोटबैंक को संगठित करने और साथ ही अपने कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने में मदद मिलती है.’
पार्टी सूत्रों ने बताया कि शाह को इस बात का अहसास है कि रैलियों में कही गई उनकी बातें सोशल मीडिया और समाचार माध्यमों में छा जाती हैं और भाजपा के बुनियादी वोट बैंक को मज़बूती प्रदान करती हैं.
भारत की सत्तारूढ़ पार्टी का अध्यक्ष होना उन्हें अपने आक्रामक राजनीतिक भाषणों में भड़काऊ और विवादास्पद टिप्पणियों की छौंक लगाने से नहीं रोकता, जोकि ज़्यादातर धर्म को लेकर होती हैं.
शाह ने रविवार को तेलंगाना में ऐलान किया, ‘कांग्रेस पार्टी ने अपने घोषणा-पत्र में मस्जिदों और चर्चों को मुफ्त बिजली देने का वायदा किया है, मंदिरों के लिए नहीं. इसी तरह उर्दू शिक्षकों को आरक्षण दिए जाएंगे. टीआरएस और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां मुस्लिम तुष्टिकरण में लगी हुई हैं.’
भाजपा के हिंदुत्व और बहुमत की राजनीति के अनुरूप भावनाएं भड़काने के स्पष्ट उद्देश्य से दिया गया यह बयान न सिर्फ उकसाने वाला बल्कि गलत भी है. अपने घोषणा-पत्र में कांग्रेस ने कहा है कि ‘मंदिरों, मस्जिदों, चर्चों और पूजा के अन्य स्थलों को मुफ्त बिजली दी जाएगी.’
तेलंगाना का भाषण शाह की अपनी विशिष्ट शैली का है – आक्रामक और राजनीतिक परिचर्चा को बिल्कुल निचले स्तर पर ले जाने के संकोच के बिना, पार्टी को अतिरिक्त वोट दिलाने के एकमात्र उद्देश्य वाला. विभिन्न मंचों पर पिछले साल भर में दिए गए उनके भाषण इस बात के गवाह हैं.
बांग्लादेशी घुसपैठियों को खदेड़ना नया पसंदीदा मुद्दा
इस संबंध में उनका सर्वाधिक उत्साह असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को लेकर है जिसे बांग्लादेश से मार्च 1971 के बाद आए अवैध आप्रवासियों की पहचान करने के लिए अपडेट किया जा रहा है.
शाह विवादित शब्द ‘घुसपैठिए’ का ताबड़तोड़ इस्तेमाल करते हैं. इस बात से बेपरवाह कि असम में जारी प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में है तथा न तो कोर्ट और न ही सरकार ने एनआरसी से बाहर रह जाने वाले लोगों के भविष्य के बारे में चर्चा की है, शाह खुलकर ऐलान करते हैं कि हर घुसपैठिए की निशानदेही होगी और उन्हें देश से बाहर खदेड़ा जाएगा.
शाह ने सितंबर में दिल्ली में एक रैली में कहा, ‘करोड़ों की संख्या में अवैध रूप से रह रहे ये आप्रवासी दीमकों की तरह हैं और वे हमारे गरीबों के हिस्से का अनाज खा रहे हैं, हमारी नौकरियां ले रहे हैं. वे हमारे देश में बम धमाके कराते हैं जिनमें बड़ी संख्या में अपने लोग मारे जाते हैं.’
अक्टूबर में रतलाम में एक रैली में एक बार फिर दीमकों की उपमा देकर उन्होंने आलोचनाएं झेली.
नवंबर के अंत में में राजस्थान के नागौर में एक बार फिर शाह ने अपनी धमकी दोहराई, ‘कश्मीर से कन्याकुमारी, कोलकाता से कच्छ, एक-एक घुसपैठिए को चुन-चुन कर देश से बाहर निकाल देंगे.’
भाजपा अध्यक्ष इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि एनआरसी के उल्लेख के साथ ही वे हिंदू आप्रवासियों की सुरक्षा की अपनी पार्टी की प्रतिबद्धता का भी ज़िक्र करें, ताकि धार्मिक विभेद की बात स्पष्ट हो सके.
पश्चिम बंगाल में अगस्त में हुई एक रैली में शाह ने कहा, ‘नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 के ज़रिए भाजपा पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से आए हिंदू, बौद्ध एवं ईसाई शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए प्रतिबद्ध है. झूठ फैलाने के बजाय कांग्रेस और तृणमूल को स्पष्ट करना चहिए कि वे इस विधेयक का समर्थन करेंगे कि नहीं.’
‘बांग्लादेशी आप्रवासियों को खदेड़ा जाना चाहिए कि नहीं?’ उसी रैली में उन्होंने नाटकीयता के साथ पूछा.
राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई का मानना है कि शाह और भाजपा लगातार सीमाओं का विस्तार करते रहते हैं.
ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में विज़िटिंग फेलो किदवई कहते हैं, ‘एक तरह से सफलता अनेक बातों को निर्धारित करती है. सफल लोगों की कुछ भी कहकर बच निकलने की प्रवृति होती है.’
उन्होंने कहा, ‘काफी दिनों से भाजपा सामान्य और असामान्य के बीच की विभाजक रेखा को बदलती रही है, यह सीमाओं का विस्तार करती रही है. और शाह जो कहते हैं वह भी इसी प्रक्रिया में आता है.’
किदवई मानते हैं कि भाजपा की सफलता इसके समर्थकों के कारण है क्योंकि ‘हमारी दूसरे समुदाय के बारे में बुरी बातों पर विश्वास करने की प्रवृति होती है. साथ ही, राहुल गांधी की कांग्रेस की समाज में जड़ें नहीं होने के कारण, भाजपा के लिए कुछ भी कहकर बच निकलना आसान हो जाता है.’
भावनात्मक मुद्दों का चुनाव
शाह भावनात्मक मुद्दों के ज़रिए उत्तेजना फैलाने में यकीन करते हैं, और ऐसा करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते.
सबरीमाला विवाद पर उनका बयान, जब सुप्रीम कोर्ट ने हर उम्र की महिलाओं को मंदिर में जाने की अनुमति दे दी, लापरवाही भरा और एक हद तक भड़काऊ था.
केरल के कन्नूर में एक सभा में शाह ने कहा, ‘हम (भाजपा) इस सरकार को उखाड़ फेंकेंगे यदि इसने (सबरीमाला पर) सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध कर रहे लोगों को गिरफ़्तार करना जारी रखा.’
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करने वालों को ज़ोरदार समर्थन का वादा करते हुए कहा कि सरकारों और अदालतों को ‘लागू करने लायक आदेश देने चाहिए.’
इसी साल कर्नाटक में चुनावों से पूर्व शाह अपना पसंदीदा मुद्दा – पाकिस्तान – लेकर आए और उसे मैसूर के पूर्व शासक टीपू सुल्तान से जोड़ दिया.
उन्होंने ट्वीट किया, ‘कांग्रेस और पाकिस्तान के बीच ज़ोरदार टेलीपैथी है. कल, पाकिस्तान सरकार ने टीपू सुल्तान को याद किया जिसकी जयंती कांग्रेस धूमधाम से मनाती है और आज मणिशंकर अय्यर ने जिन्ना की तारीफ की. गुजरात के चुनाव हों या कर्नाटक के, मुझे समझ नहीं आता कि कांग्रेस इनमें पाकिस्तान को क्यों शामिल करती है.’
शाह कर्नाटक की कांग्रेस सरकार को 10 नवंबर को टीपू सुल्तान जयंती मनाने के लिए फटकार लगाते रहे हैं. भगवा दल टीपू सुल्तान को ‘हिंदू विरोधी’ बतलाता है.
शाह ने कर्नाटक में एक अन्य जनसभा में कहा, ‘वे (कांग्रेस) कुछ नहीं करते, बस टीपू सुल्तान, टीपू सुल्तान, टीपू सुल्तान. अब तो वे बहमनी साम्राज्य का उत्सव मनाने की बात भी कर रहे हैं. मुझे नहीं मालूम उन्हें क्या हो गया है. उन्हें और कुछ नहीं दिखता.’
गुजरात के विधानसभा चुनावों के दौरान 2017 में प्रचार की कमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों में थी. उन्होंने अपने इर्दगिर्द प्रचार अभियान को बुनते हुए पूरे राज्य में जमकर रैलियां की. परंतु शाह, मौक़े को यूं ही गंवाने वालों में से नहीं हैं.
पिछले साल दिसंबर में एक संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा, ‘अब यह तथ्य सामने आ रहा है कि विदेश मंत्रालय को अंधेरे में रखते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी और अय्यर ने पाकिस्तानी उच्चायुक्त के साथ तीन घंटों तक मुलाक़ात की है. मैं इस मुलाक़ात के कारण का अंदाज़ा नहीं लगा सकता.’
राजनीतिक विश्लेषक और दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर अपूर्वानंद का मानना है कि यह भाजपा की रणनीति का हिस्सा है कि जब तक कोई चुनावी रैली नहीं हो प्रधानमंत्री ‘गरिमामयी चुप्पी’ ओढ़े रहेंगे, जबकि शाह के लिए ऐसा कोई निषेध नहीं है.
अपूर्वानंद ने कहा, ‘पिछले करीब चार वर्षों से, अमित शाह ने लगातार भावनात्मक मुद्दों को उठाया है. उन्होंने ऐसा सिर्फ जनसभाओं में ही नहीं, बल्कि छोटी-छोटी बैठकों में भी किया है. सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष के रूप में, उनका यह कृत्य सिर्फ गैरज़िम्मेदाराना ही नहीं, बल्कि आपराधिक है.’
‘अल्पसंख्यक तुष्टिकरण’ कार्ड
विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस पर अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण का आरोप लगाना एक और पसंदीदा शगल है.
तेलंगाना में नवंबर में एक रैली में उन्होंने कहा, ‘आप चिंता नहीं करें. यदि केसीआर, कांग्रेस, टीडीपी, कम्युनिस्ट, सारे एक हो जाएं तो भी, मैं गारंटी देता हूं कि जब तक केंद्र में भाजपा की सरकार है, धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिए जाएंगे.’
शाह तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली सरकार के मुस्लिम पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण बढ़ाकर 12 प्रतिशत करने के कदम पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे.
मध्य प्रदेश के बालाघाट में 23 नवंबर को अपने भाषण में शाह ने आरोप लगाया कि ‘कांग्रेस शासन के दौरान घुसपैठिए लगातार देश में आते रहे क्योंकि कांग्रेस उन्हें वोट बैंक के तौर पर देखती थी.’
उन्होंने कहा, ‘जब भाजपा एनआरसी लेकर आई और 40 लाख घुसपैठियों की पहचान हुई, कांग्रेस आगबबूला हो गई. उन्हें देश के नागरिकों से ज़्यादा घुसपैठियों के मानवाधिकारों की चिंता सताने लगी.’
विरोधियों पर बेलगाम हमला
भाजपा अध्यक्ष विपक्ष पर हमले का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते.
पिछले सप्ताह राजस्थान के जालौर में उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस पार्टी को, जिसे देश से ज्यादा एक परिवार की चिंता है और जिसे भारत माता की जय के नारों से शर्मिंदगी होती है, वोट मांगने का कोई अधिकार नहीं है.’
कांग्रेस ने बीकानेर में प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ भड़काऊ बयान देकर आदर्श आचारसंहिता का उल्लंघन करने के आरोप में शाह के खिलाफ़ चुनाव आयोग से शिकायत की है.
कांग्रेस प्रवक्ता सुशील शर्मा के अनुसार शाह ने लोगों से वोट मांगने आने वाले ‘विपक्षी नेताओं के कॉलर पकड़ने’ को कहा था.
हाल ही में जयपुर में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधन में उन्होंने बबुआ बताते हुए राहुल गांधी का मजाक उड़ाया.
हाल के दिनों में विपक्ष पर अब तक के संभवत: सबसे अशिष्ट हमले में शाह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ एक महागठबंधन बनाने के प्रयासों का उल्लेख विभिन्न जानवरों से विपक्षी दलों की तुलना करते हुए किया.
अप्रैल में भाजपा के स्थापना दिवस पर मुंबई में आयोजित एक रैली में शाह ने कहा, ‘2019 (के चुनावों) की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. विपक्षी एकता के प्रयास होने लगे हैं. जब बड़ी बाढ़ आती है, सब कुछ बह जाता है.’
‘सिर्फ एक बरगद का पेड़ बच जाता है और सांप, नेवले, कुत्ते, बिल्लियां और अन्य जानवर बढ़ते जलस्तर से बचने के लिए उस पर लटक जाते हैं. मोदी की बाढ़ के कारण, सारे कुत्ते, बिल्ली, सांप और नेवले चुनाव लड़ने के लिए साथ आ रहे हैं.’
हालांकि बाद में उन्होंने स्पष्टीकरण दिया कि उनका मतलब सिर्फ विभिन्न विचारधाराओं के दलों के एकजुट होने से था, पर नुकसान तो हो चुका था.
राजनीतिक यथार्थता के आभास या ज़िम्मेदारी भरे बयान देने के प्रयास के प्रति शाह के स्पष्ट उपेक्षा भाव को देखते हुए, संभावना यही है कि अति महत्वपूर्ण लोकसभा चुनाव के करीब आते-आते उनके भाषण अधिक कड़वे और गैरज़िम्मेदारी भरे होते जाएंगे.
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