नई दिल्ली: स्वामी प्रसाद मौर्य- उत्तर प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार में एक पूर्व मंत्री- जो इस साल जनवरी में इस्तीफा देकर समाजवादी पार्टी (एसपी) में शामिल हो गए थे, फाज़िलनगर से पीछे चल रहे हैं.
मौर्य, जो एक प्रभावशाली अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) नेता और पांच बार के विधायक हैं.
भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) की वेबसाइट के मुताबिक दोपहर 2 बजे बीजेपी के उम्मीदवार सुरेंद्र कुमार कुशवाहा ने 32,000 से ज्यादा वोट (52.89 फीसदी) हासिल किए.
68 वर्षीय मौर्य ने इस साल के चुनावों के लिए, अपना चुनाव क्षेत्र पडरौना से बदलकर फाज़िलनगर कर लिया था. ऐसा माना जा रहा था कि मौर्य पडरौना में विरोधी लहर का सामना कर रहे थे, और बीजेपी ने पूर्व कांग्रेस नेता और केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह को- जो एक अन्य ओबीसी नेता हैं जिन्होंने 1996 और 2007 के बीच इस सीट का प्रतिनिधित्व किया था- इस सीट से अपने प्रचार के लिए मैदान में उतार दिया था.
राजनीतिक पार्टियों के अनुमान के अनुसार, फाज़िलनगर की मतदाता आबादी में 90,000 मुसलमान, 55,000 मौर्य-कुशवाहा, 50,000 यादव, 30,000 ब्राह्मण, 40,000 कुर्मी-सैंतवाड़, 30,000 वैश्य, और क़रीब 80,000 दलित हैं.
बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने- जो मौर्य को हराने के लिए मुसलमान वोटों, और अपने पारंपरिक दलित जनाधार पर भरोसा करते हुए- पूर्व एसपी नेता इलयास अंसारी को मैदान में उतारा है. इस बीच बीजेपी ने अपना टिकट सुरेंद्र सुशवाहा को दिया है, जो फाज़िलनगर के मौजूदा बीजेपी विधायक, गंगा सिंह कुशवाहा के बेटे हैं.
बीजेपी उम्मीदवार मौर्य कुशवाहा समुदाय से ही आते हैं, और आरपीएन सिंह उनके लिए कुर्मी-सैंतवाड़ वोट जुटा रहे हैं, इसलिए विशेषज्ञों ने हिसाब लगाया था, कि मौर्य के लिए सबसे अच्छा अवसर एसपी का मुस्लिम-यादव वोट बैंक था, जिसमें बीएसपी के अंसारी के द्वारा सेंध लगाने का ख़तरा था.
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कौन हैं स्वामी प्रसाद मौर्य?
मौर्य, जिन्हें ज़मीन से जुड़ा नेता माना जाता है, मौजूदा उप-मुख्यमंत्री और पूर्व बीजेपी मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के उदय से पहले, उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा ग़ैर-यादव ओबीसी चेहरा माने जाते थे. उनका कुशवाहा संप्रदाय – जो विश्लेषकों के अनुमान के मुताबिक़, राज्य की आबादी का क़रीब 6 प्रतिशत है- पूर्वी यूपी में ही केंद्रित और प्रभावशाली है.
पांच बार के विधायक ने अपने पहले दो विधान सभा चुनाव राय बरेली ज़िले के दलमाउ, और आख़िरी तीन चुनाव पडरौना से जीते थे. उन्होंने अपना राजनीतिक करियर 1980 के शुरुआती दशक में, युवा लोक दल के संयोजक के तौर पर शुरू किया था, और कुछ समय जनता दल में रहने के बाद, 1995 में जब मायावती मुख्यमंत्री बनीं, तो वो बीएसपी में शामिल हो गए.
1996 में वो बीएसपी टिकट पर विधायक चुने गए, और 1997 में बीजेपी-समर्थित मायावती सरकार में एक मंत्री बन गए.
2007 में फिर से हुए चुनाव में हारने के बाद, 2009 के एक उप-चुनाव में वो पडरौना से विधान सभा के लिए चुने गए. उन्होंने अपनी पूर्व दलमाउ सीट- जो अब ऊंचाहार कही जाती है- अपने बेटे उत्कृष्ट मौर्य अशोक को सौंप दी, लेकिन उत्कृष्ट 2012 और 2017 में इस चुनाव क्षेत्र से जीत नहीं पाए.
बीएसपी में अपने दो दशकों के दौरान, स्वामी प्रसाद मौर्य ने, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय महासचिव की हैसियत से काम किया था, और उन्हें मायावती का नंबर दो माना जाता था.
2016 में, जब मौर्य विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष थे, तो वो अपनी पार्टी छोड़कर बीजेपी में आ गए, जिसे बीजेपी के लिए एक बड़ी उपलब्धि माना गया. पिछले विधान सभा चुनावों से पहले, तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने ख़ुद उन्हें पार्टी में शामिल किया था.
उन्होंने योगी आदित्यनाथ सरकार में श्रम, रोज़गार, और समन्वय मंत्री के रूप में काम किया. उनकी बेटी संघमित्रा मौर्य एक मौजूदा बीजेपी सांसद हैं, जो 2019 में लोकसभा के लिए चुनी गईं थीं.
इस साल चुनावों से पहले बहुत से नेताओं के दल-बदल के बीच, मौर्य के एसपी में आने से बीजेपी में हलचल पैदा हो गई है.
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