दस्क्रोई (गुजरात): मूल रूप से दक्षिण अमेरिका और मैक्सिको जैसी जगहों पर पाई जाने वाली प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा फिलहाल तो गुजरात विधानसभा चुनावों में भाजपा के चुनावी अभियान में एक विदेशी एंगल बन गई है. अब चाहे बात अयोध्या में राम मंदिर की हो, पाकिस्तान, बांग्लादेश, रोहिंग्या शरणार्थियों की, या फिर 2002 के दंगों से जुड़ा बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार और हत्या का मामले की या बलिदान, युग पुरुष (पीएम नरेंद्र मोदी), जैसे शब्दों की, ये विलायती कीकड़ सब पर हावी है.
यहां के लोग इससे काफी नफरत करते हैं. शायद इसी कारण भाजपाई नेता इसका इस्तेमाल कांग्रेस पर निशाना साधने के लिए एक उपमा की तरह कर रहे हैं. वह कहते हैं कि लोग जाने कि कांग्रेस और इस विलयाती कीकर ने क्या गलत किया है. दरअसल इसके पीछे एक बड़ी वजह है. गुजरात में आम धारणा है कि 60 के दशक की शुरुआत में तत्कालीन कांग्रेस सरकार प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा को राज्य में लेकर आई थी.
सरकारी अधिकारियों ने बताया, ‘हालांकि कच्छ के रेगिस्तान को बढ़ने से रोकने के लिए इस तेजी से बढ़ने वाले मोटे तने वाले कीकड़ के पेड़ को लाने के लिए तब उनका विचार ईमानदार था. लेकिन समय के साथ पेड़ इतनी तेजी से और इतनी आक्रामक रूप से फैले कि अब यह परेशानी का सबब बन गए हैं.’
प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा को यहां की स्थानीय भाषा में गंडो बावड़ यानी पागल पेड़ कहा जाता है. फिलहाल यह भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के लिए एक ऐसा हथियार बन गया है जिसका वह कांग्रेस पर निशाना साधने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं. राज्य में सत्ताधारी पार्टी इसे ‘वायरस’ और ‘परदेशी बावड़’ (विदेशी पेड़) कहकर बुलाती है. उनका कहना है कि कांग्रेस ने गुजरात की स्वदेशी खेती को बर्बाद करने के लिए इसे दूसरे देशों से मंगाया था.
केंद्रीय मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता पुरुषोत्तम रूपाला विपक्षी दल पर निशाना साधने के लिए बार-बार मैक्सिकन पौधे (विलायती कीकर) को एक उपमा की तरह इस्तेमाल करते आए है. राज्य में पिछले साल हुए निकाय चुनाव से पहले रूपाला ने कहा था कि जिस तरह से हम इस पौधे को उखाड़ फेंकते हैं उसी तरह कांग्रेस को भी उखाड़ फेंकना चाहिए.
रूपाला ने बुधवार को एक रैली को संबोधित करते हुए कहा, ‘उन्होंने (कांग्रेस) जमीनी स्तर पर ज्यादा कुछ नहीं किया हैं, फिर भी ‘काम बोले छे’ का दावा करते रहते हैं. रैलियां करते समय मैं अक्सर बैठकर सोचता हूं कि क्या उन्होंने राज्य या इसके लोगों के लिए सचमुच में कुछ किया है. फिर मैं इस एक निष्कर्ष पर पहुंचा कि वे विलायती कीकर को राज्य में ले आए. मैं क्यों झूठ बोलूं या छिपांऊ? जब भी मैं किसी गांव या शहर में कीकड़ का पेड़ देखता हूं, तो मुझे उनका किया हुआ ‘काम’ नजर आने लगता है.’
Commenting on Congress campaign 'Kaam bole chhe', Union Minister Parshottam Rupala today said Prosopis juliflora(Gaando Baaval) is one work by Congress, visible in every village. (The Then Congress govt in 1960s had began to introduce Gando Baval from South America in Gujarat). pic.twitter.com/1CjsSbOaa1
— DeshGujarat (@DeshGujarat) November 30, 2022
उन्होंने आगे कहा, ‘वो सभी पार्टी कार्यकर्ता और शहरवासी जो अपनी कारों को ग्रामीण इलाकों में लेकर गए होंगे और उनकी कारों पर जब ट्री सेप गिरा होगा, तो वे जान गए होंगे कि राज्य में कांग्रेस ने क्या काम किया है. हमारे बुजुर्गों हमेशा सलाह देते रहे कि इस पेड़ को मत लगाओ. अब हमें इन पेड़ों को हटाने के लिए पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं. कांग्रेस के हमारे मित्र यह नहीं समझ पाएंगे कि हम इसे पागल क्यों कहते हैं.’
पौधे के कटने के बाद भी बढ़ने और फिर से उग आने की प्रवृत्ति का जिक्र करते हुए रूपाला ने कहा, ‘इस पागल पेड़ को कभी न चाहने की वजह ये है कि जब भी इसे काटते हैं यह वापस उग जाता है. अगर इसे फिर से बढ़ने से रोकना है तो इसे जड़ से उखाड़कर फेंकना होगा. ग्रामीणों ने मुझे इसे जेसीबी से गिराने की सलाह दी है. इसे पूरी तरह से खत्म करने का यही एकमात्र तरीका है.’
इसके बाद भाजपा नेता ने मतदाताओं से कांग्रेस के साथ भी ऐसा ही करने की अपील की.
उन्होंने कहा, ‘ठीक इसी तरह, इस बार कांग्रेस को सतही रूप से काटने की कोशिश न करें. बड़ी संख्या में भाजपा को वोट दें और जेसीबी को ठोक दें ताकि पार्टी पेड़ की तरह यह भी अपनी जड़ों से अलग हो जाए.’
हालांकि कांग्रेस ने राज्य में खेती की जमीन पर तेजी से बढ़ते विलायती पौधे के लिए जिम्मेदार होने के बीजेपी के आरोपों को खारिज कर दिया है. इसकी बजाय उन्होंने इस तथ्य की ओर इशारा किया है कि यह बीजेपी है जो 1995 के बाद से, पिछले 27 सालों से राज्य में सत्ता में है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और प्रदेश प्रवक्ता आलोक शर्मा ने कहा, ‘यह और कुछ नहीं बल्कि लोगों को गुमराह करने के लिए कांग्रेस के खिलाफ उसे बदनाम करने के लिए चलाया जा रहा एक अभियान है. वे जानते हैं कि हमने (चुनाव के) पहले चरण में अच्छा प्रदर्शन किया है और इसलिए वे अब गोल पोस्ट बदल रहे हैं.’
2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान एक दिसंबर को हुआ था. दूसरे चरण का मतदान 5 दिसंबर को होना है. नतीजे 8 दिसंबर को घोषित किए जाएंगे.
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‘उखाड़ते रहे, बढ़ते रहे’
आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, गुजरात राज्य के वन विभाग ने कच्छ के रेगिस्तान को बढ़ने से रोकने के लिए 1960-61 में राज्य में लगभग 31,550 हेक्टेयर जमीन पर खासतौर पर प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा को रोपा था. उस समय कांग्रेस नेता जीवराज नारायण मेहता राज्य के मुख्यमंत्री थे.
राज्य के लोगों के अनुसार, तब से ये विलायती कीकड़ पूरे गुजरात में फैल गई. कुछ इलाकों में यह दूसरों की तुलना में अधिक तेजी से फैली है. उनके मुताबिक, ऐसी ही एक जगह अहमदाबाद जिले का दस्क्रोई है, जहां सोमवार को दूसरे चरण के मतदान होने हैं.
दिप्रिंट ने जिले के गांवों में यात्रा की और यह जानने की कोशिश की कि कैसे इस कीकड़ ने खेती की जमीन पर अपना कब्जा लिया और उन्हें हटाने के लिए क्यों पैसा खर्च करना पड़ रहा है.
डस्करोई के ओडे गांव के एक किसान विशाल भाई पटेल के ने बताया कि इस झाड़ी ने उनके खेत का 50 फीसदी से ज्यादा का हिस्सा हड़प लिया है और उसे बंजर बना दिया है.
पटेल ने कहा, ‘मेरे पास 20 बीघे जमीन है. लेकिन गांडो बावड़ की बढ़ती संख्या ने मेरी आधी जमीन को बेजान बना दिया है. यह खास झाड़ी अपनी जड़ें जमीन में गहराई तक फैला लेती है और पानी को सोख लेती हैं. स्वाभाविक रूप से अन्य पौधों या फसलों को नष्ट कर देती है. और जब इन झाड़ियों को काटा जाता है तो यह और तेजी से बढ़ने लगती है. इसलिए हम इसे खास मशीनों से उखाड़ने में हजारों रुपये खर्च करने पड़ते हैं.’
ओडे पंचायत के सरपंच जसवंत सिंह ने दावा किया कि पंचायत हर महीने झाड़ियों को हटाने के लिए मशीनों को किराए पर लेने में लाखों रुपये खर्च करती है.
सिंह ने कहा, ‘हम इसे उखाड़ते रहते हैं और यह बढ़ता रहता है. राज्य के सिंचाई विभाग के पास नहर के किनारे के पौधों को उखाड़ने के लिए विशेष जेसीबी हैं. यह झाड़ी जैव विविधता को नष्ट कर देती है और वहां का पानी सूख जाता है. हम लंबे समय से इस प्रजाति पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं.’
सरगुजा यूनिवर्सिटी में पर्यावरण विज्ञान के तत्कालीन सहायक प्रोफेसर जॉयस्तु दत्ता ने 2016 में प्रकाशित ‘बन्नी ग्रासलैंड, एन ओवरव्यू’ नामक एक शोध पत्र में कहा था, ‘(प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा के) बीज पशुओं के गोबर के साथ फैलेंगे. क्योंकि उन्हें पेड़ की फली खिलाई जाती है. रण के दक्षिणी किनारे पर बन्नी के निचले खारे क्षेत्रों पर इसने अपना आक्रमण कर दिया है.’
पेपर में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के एक अनुमान का जिक्र किया गया था, जिसमें दावा किया गया था कि यह झाड़ी गुजरात में हर साल लगभग 25 वर्ग किमी की दर से फैल रही है. पेपर में यह भी कहा गया कि प्रोसोपिस ने अपनी उच्च आक्रामक क्षमताओं के कारण स्थानीय वनस्पतियों और जीवों के लिए एक प्राकृतिक खतरा पैदा कर देगी और पौधे की फली गायों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है.
भाजपा के वरिष्ठ नेता इन झाड़ियों को ‘स्वदेशी खेती’ को खत्म करने के लिए कांग्रेस द्वारा विदेशों से लाया गया ‘वायरस’ कहते हैं.
विधायक और भाजपा के उम्मीदवार बाबूलाल पटेल ने कहा, ‘हमारे यहां स्वदेशी बावड़ बढ़ रहा है, जो उसी झाड़ी की एक स्थानीय किस्म है. इसकी पत्तियां छोटी होती हैं. लेकिन स्थानीय किस्म की कुछ उपयोगिता है. इसका उस्तेमाल जलाऊ लकड़ी के रूप में किया जाता है और इसका कुछ औषधीय महत्व भी है. लेकिन दक्षिण अमेरिकी या मैक्सिकन किस्म, जिसे कांग्रेस सरकार ने यहां लेकर आई थी, वह एक खतरनाक प्रजाति है. यह पारिस्थितिकी तंत्र को मार रही है और क्षेत्र में सूखे का कारण बन रही है. रूपाला जी ने सच बोला है.’
हालांकि कांग्रेसी नेताओं ने दावा किया कि उनकी पार्टी का ऐसी प्रजातियों से कोई लेना-देना नहीं है और कम से कम 60 साल पहले सरकार ने इसका इस्तेमाल प्रायोगिक आधार पर किया था.
कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष पंकज पटेल से सवाल किया, ‘पिछले 27 सालों से कांग्रेस गुजरात में सत्ता में नहीं आई है. भाजपा तब से राज्य पर शासन कर रही है. उन्होंने इस प्रजाति को क्यों नहीं उखाड़ा या इसका कोई वैज्ञानिक समाधान क्यों नहीं निकाला?’
(अनुवाद: संघप्रिया मौर्या)
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