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Thursday, 25 April, 2024
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30 साल तक बालासाहेब के साथ ‘साये की तरह’ रहे, थापा का शिंदे के साथ आना एक अच्छा संकेत क्यों है

चंपा सिंह थापा एक लंबे समय तक बाल ठाकरे के निजी सहायक रहे थे और उन्हें एक तरह से ‘शिवसेना परिवार का हिस्सा’ ही माना जाता था. वह सोमवार को ठाकरे के एक अन्य पूर्व सहयोगी मोरेश्वर राजे के साथ शिंदे गुट में शामिल हो गए.

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मुंबई: 18 नवंबर, 2012 को जब ठाकरे परिवार के सदस्य अपने संरक्षक और शिवसेना सुप्रीमो बालासाहेब ठाकरे के निधन के बाद अंतिम संस्कार की रस्में निभा रहे थे तो उनके बेटे उद्धव ने घर में काम करने वाले स्टाफ के एक सदस्य को परिवार की तरह ही इसमें शामिल किया.

यह थे चंपा सिंह थापा, जो पार्टी हलकों में ‘बालासाहेब का साया’ माने जाते थे और जिन्होंने एक लंबे अरसे तक शिवसेना सुप्रीमो की हर छोटी-मोटी जरूरत का पूरा ख्याल रखा.

थापा सोमवार को ठाणे में औपचारिक रूप से शिवसेना के एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट में शामिल हो गए. उनके साथ लंबे समय तक बाल ठाकरे के सहयोगी रहे मोरेश्वर राजे भी शिंदे गुट का हिस्सा बन गए.

वैसे तो थापा का शिंदे खेमे में शामिल होना न तो उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना के लिए कोई राजनीतिक झटका है और न ही विद्रोही गुट के लिए यह कोई बहुत बड़ा राजनीतिक लाभ है.

हालांकि, यह इस लिहाज से जरूर मायने रखता है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शिंदे ये दिखाने की कोशिश करते रहे हैं कि बाल ठाकरे के सबसे करीबी लोग कैसे उद्धव की जगह उनके गुट को चुन रहे हैं.

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‘बालासाहेब की छाया’

ठाकरे खेमे के एक शिवसेना नेता ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि थापा ने करीब 30 वर्षों तक बाल ठाकरे के निजी सहायक के तौर पर काम किया था.

उन्होंने बताया, ‘वह बालासाहेब के खाने के समय का ख्याल रखते थे, उन्हें समय पर दवाएं देते थे, और उनके लिए और उनके पास आने वालों के लिए चाय-पानी की व्यवस्था करते थे. वह हमेशा बालासाहेब के साथ ही नजर आते थे.’

उन्होंने आगे बताया, ‘मां साहेब (बाल ठाकरे की पत्नी मीनाताई ठाकरे) के निधन (1995 में) के बाद थापा किसी भी दौरे के समय साये की तरह ही बालासाहेब के साथ रहते थे.’

ठाकरे खेमे के ही एक दूसरे शिवसेना नेता ने कहा, ‘बालासाहेब के जीवन के अंतिम कुछ वर्षों में मोरेश्वर राजे तो उनसे दूर हो गए थे. (लेकिन) थापा हर समय उनके आसपास ही रहते थे, जैसा आमतौर पर कोई भी निजी स्टाफ करता है. बालासाहेब अपने आसपास सभी लोगों को शिवसेना परिवार का हिस्सा मानते थे.

ठाकरे खेमे के सूत्रों ने कहा कि नेपाली मूल के थापा काम की तलाश में मुंबई आए थे, और मुंबई के भांडुप उपनगर से शिवसेना के पूर्व पार्षद के.टी. थापा ने उन्हें ठाकरे परिवार से मिलवाया था.

चंपा सिंह थापा 2012 में बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद भी कुछ महीनों तक ठाकरे के निजी आवास मातोश्री में रहते रहे थे. यद्यपि बाल ठाकरे के साथ अपने जुड़ाव के बावजूद थापा कभी राजनीति में सक्रिय नहीं रहे, लेकिन जैसा ठाकरे खेमे के सूत्र बताते हैं कि उन्होंने अपने मूल देश नेपाल में शिवसेना की इकाई शुरू कराने में कुछ मदद जरूर की थी.

थापा ने 2013 में एक इंटरव्यू में मिड-डे को बताया था, ‘मैं दो साल के अंतराल में केवल 15-20 दिनों की छुट्टी लेता था. कभी-कभार ही ऐसा होता था कि मैं एक महीने की छुट्टी पर जाऊं. मैं सुबह 6.30 बजे उठता, साहब को उनकी पसंदीदा चाय देता, और रात को सोने के बाद ही अपने बिस्तर पर जाता था.’

शिंदे गुट के एक नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘थापा और शिंदे साहब के बीच अच्छे संबंध थे क्योंकि शिंदे साहब शिवसेना के वरिष्ठ नेता के रूप में अक्सर मातोश्री आते थे. महा विकास अघाड़ी के गठन के बाद थापा बहुत खुश नहीं थे, और शिंदे के सीएम बनने से पहले कई बार उनसे मिले भी थे.’

उद्धव ने 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के बाद भाजपा के साथ शिवसेना का लंबे समय से जारी गठबंधन तोड़ दिया और वैचारिक रूप से बेमेल कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर महा विकास अघाड़ी गठबंधन बनाया.

इसके बाद वह राज्य के मुख्यमंत्री बने, लेकिन इस साल 29 जून को शिंदे के विद्रोह के बाद उन्हें इस्तीफा देने को बाध्य होना पड़ा. शिवसेना के अधिकांश विधायकों का समर्थन हासिल करने के बाद शिंदे ने एमवीए सरकार को गिरा दिया. एक दिन बाद शिंदे ने महाराष्ट्र के सीएम के तौर पर पद संभाला और भाजपा के देवेंद्र फडणवीस डिप्टी सीएम बने.

शिंदे ने सोमवार को थापा को एक शॉल, एक गुलदस्ता और एक भगवा सैश भेंट करके औपचारिक रूप से अपने गुट में शामिल किया. थापा ने संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने शिंदे के साथ जाने का फैसला किया क्योंकि वह ‘बालासाहेब की विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं.’

शिंदे ने कहा, ‘थापा ने बालासाहेब के विचारों का पालन करने वाली शिवसेना को अपना समर्थन देने का फैसला किया है.’


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‘मनोवैज्ञानिक युद्ध’

शिंदे के नेतृत्व वाला शिवसेना गुट बाल ठाकरे की विचारधारा को आगे बढ़ाने वाला असली उत्तराधिकारी होने का दावा करता है, और थापा को शामिल करने के पीछे संदेश यही है कि सीनियर ठाकरे के करीबी और उनके परिवार से जुड़े लोग किस तरह इस गुट को मान्यता दे रहे हैं.

गौरतलब है कि जुलाई में बाल ठाकरे की बहू और उनके बेटे जयदेव ठाकरे की पूर्व पत्नी स्मिता ठाकरे ने शिंदे से मुलाकात की थी. उन्होंने इसे शिष्टाचार भेंट बताया था. उसी महीने, बाल ठाकरे के पोते निहार ठाकरे भी शिंदे से मिले और उन्होंने उनके गुट को समर्थन का वादा किया. निहार ठाकरे बाल ठाकरे के सबसे बड़े बेटे बिंदुमाधव के बेटे हैं, जिनकी 1996 में मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे पर एक हादसे में मृत्यु हो गई थी.

राजनीतिक टिप्पणीकार हेमंत देसाई ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह एक तरह से मनोवैज्ञानिक युद्ध जैसा है. शाखा प्रमुख (शिवसेना की सबसे निचली प्रशासनिक इकाई के प्रमुख) से लेकर वरिष्ठ नेता तक, हर कोई जब बालासाहेब ठाकरे से मिलने मातोश्री जाता था, वो थापा को एक कोने में खड़ा देखता था. हर किसी को पता है कि वह थापा बालासाहेब के कितने करीब रहे हैं.’

उन्होंने कहा कि विचार संभवत: यही संदेश देने का है कि अगर बाल ठाकरे का कोई इतना करीबी भी साथ छोड़ सकता है, तो निश्चित तौर पर उद्धव जिस तरह से चीजों को संभाल रहे हैं, उसमें कुछ न कुछ खामी है.

हालांकि, देसाई का मानना है कि ‘शिंदे की रणनीति शायद बहुत कारगर न रहे. क्योंकि ठाकरे परिवार इस सब में नहीं पड़ रहा है, और उन्होंने किसी तरह की प्रतिक्रिया न देने का विकल्प ही चुना है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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