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शुक्रवार, 27 जून, 2025
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हिंदी थोपने के खिलाफ राज-उद्धव की साझा रैली से गठबंधन की अटकलें फिर तेज़

महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी थोपने के विरोध में होने वाली संयुक्त रैली को बीएमसी चुनाव से पहले शिवसेना (यूबीटी) और मनसे के बीच संभावित गठबंधन की ओर एक बड़ा संकेत माना जा रहा है.

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मुंबई: करीब दो दशक बाद, राज और उद्धव ठाकरे 5 जुलाई को एक मंच पर साथ नज़र आएंगे. ये रैली स्कूलों में हिंदी थोपे जाने के खिलाफ होगी.

यह एक दुर्लभ मौका है जब दोनों चचेरे भाई एक साथ मंच साझा करेंगे. मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनावों से पहले इसे शिवसेना (उद्धव गुट) और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के बीच संभावित गठबंधन की ओर एक बड़ा कदम माना जा रहा है.

शिवसेना (UBT) सांसद संजय राउत ने मीडिया से कहा, “इस रैली का कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है. ये सिर्फ और सिर्फ मराठी भाषा के लिए है. जैसे ‘संयुक्त महाराष्ट्र’ की लड़ाई बिना किसी राजनीतिक स्वार्थ के लड़ी गई थी, वैसे ही मुंबई को एक और लड़ाई लड़नी होगी और इस बार भी इसे एक ठाकरे ही लीड करेगा.”

राउत ने कहा कि इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों को आमंत्रण भेजा जाएगा.

MNS नेता संदीप देशपांडे ने कहा कि महाराष्ट्र में मराठी भाषा पर हमले बढ़ रहे हैं और अब वक्त आ गया है कि इसका विरोध किया जाए.

उन्होंने कहा, “हमने तय किया है कि 5 जुलाई को मराठी के लिए एक रैली की जाएगी. इसमें साहित्य, सिनेमा और राजनीति से जुड़े लोग हिस्सा लेंगे. हम दिखाना चाहते हैं कि मराठी लोगों की ताकत क्या है. अगर कोई मराठी मानूस पर हमला करेगा, तो हम उसका जवाब देना जानते हैं. यह एक सकारात्मक कदम है.”

पिछले कुछ महीनों से यह चर्चा तेज़ हो गई थी कि ठाकरे बंधु BMC चुनावों में साथ आ सकते हैं, क्योंकि दोनों तरफ से मेल-मिलाप के संकेत मिले.

मराठी गौरव और मराठी पहचान के मुद्दे पर दोनों नेताओं की राय मिलती दिखी. पिछले दो महीनों में वे कम से कम चार बार गैर-राजनीतिक मौकों पर मिले, जिससे उनके रिश्तों में बदलाव के संकेत मिले.

मुंबई और महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में दोनों दलों के कार्यकर्ताओं ने पोस्टर-बैनर लगाकर राज और उद्धव के फिर से एक होने की अपील की.

हालांकि, राज ठाकरे की हाल ही में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात ने ये संकेत भी दिया कि MNS अभी अपने सभी विकल्प खुले रखे हुए है.

इसी बीच, शिवसेना की स्थापना दिवस रैली में उद्धव ठाकरे ने कार्यकर्ताओं से कहा, “मैं वही करूंगा जो महाराष्ट्र की जनता चाहती है.”

उन्होंने यह भी कहा कि सही समय पर गठबंधन पर फैसला लिया जाएगा — जो एक बार फिर इस गठबंधन की संभावना को मजबूत करता है.


यह भी पढ़ें: अकेले या साथ-साथ? BMC चुनाव से पहले महाराष्ट्र गठबंधन के लिए बड़ा सवाल


एक बार की बात या भविष्य की झलक?

राज और उद्धव ठाकरे की संयुक्त रैली की घोषणा को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं कि शायद दोनों चचेरे भाई बीएमसी चुनावों में साथ आ सकते हैं, लेकिन मंत्री और शिंदे गुट के शिवसेना विधायक उदय सामंत ने इसे सिर्फ एक बार की घटना बताया.

उन्होंने मीडिया से कहा, “अगर कोई एक मुद्दे पर एक साथ आता है, तो इसका मतलब यह नहीं कि राजनीतिक गठबंधन भी होगा. हमें इंतज़ार करना होगा कि क्या उनकी विचारधारा भी मेल खाती है. चुनाव में ही असली तस्वीर सामने आएगी कि कौन किसके साथ है. फिलहाल गठबंधन की बात करना बेकार है.”

राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश बाल ने दिप्रिंट से कहा कि मराठी भाषा एक भावनात्मक मुद्दा है और ठाकरे बंधु इस पर एक साथ आ रहे हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे बीएमसी चुनाव के लिए गठबंधन कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, “मनसे हमेशा से मराठी भाषा का मुद्दा उठाती रही है, ये कोई नई बात नहीं है. शिवसेना (यूबीटी) के लिए भी यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर वो चुनाव से पहले ध्यान खींच सकती है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि गठबंधन हो गया है. अब देखना होगा कि क्या वे इस रैली के बाद बनी गति को आगे बढ़ा पाते हैं और वैसे भी, बीजेपी ऐसा नहीं होने देगी कि ये मुद्दा बीएमसी चुनाव में छा जाए.”

बीजेपी प्रवक्ता केशव उपाध्याय ने इस रैली को केवल राजनीतिक दिखावा बताया और उद्धव ठाकरे की मंशा पर सवाल उठाया.

उन्होंने कहा, “यह अपनी खोई हुई राजनीतिक ज़मीन को वापस पाने की एक बेहद बौखलाहट भरी कोशिश है. उन्हें मराठी भाषा से कोई लेना-देना नहीं है.”

उन्होंने ये भी कहा, “जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने माशेलकर समिति की त्रिभाषा नीति को स्वीकार किया था, जिसमें तीसरी भाषा के तौर पर हिंदी की सिफारिश की गई थी. तब उन्होंने उसे क्यों स्वीकार किया? अब इसे मुद्दा क्यों बना रहे हैं? यह कोई मुद्दा ही नहीं है, फिर रैली निकालने का क्या मतलब?”

महाराष्ट्र की भाषाई पहचान पर बहस

जून की शुरुआत में महाराष्ट्र सरकार ने एक सरकारी प्रस्ताव जारी किया, जिसमें कहा गया कि राज्य के स्कूलों में पहली से चौथी कक्षा तक तीन-भाषा नीति लागू की जाएगी, जैसा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) में सुझाया गया है.

इस फैसले के बाद विपक्षी दलों और भाषा विशेषज्ञों ने इसका जोरदार विरोध किया और कहा कि इससे महाराष्ट्र की भाषाई पहचान कमजोर हो जाएगी.

इसके बाद सरकार ने GR से “अनिवार्य” शब्द हटा दिया और कहा कि छात्र तीसरी भाषा चुन सकते हैं, लेकिन केवल तभी जब कम से कम 20 छात्र उस भाषा को चुनें. वरना उन्हें स्वतः हिंदी पढ़नी होगी.

विपक्ष ने इस पर भी आपत्ति जताई और सरकार पर राज्य पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया. इसके बाद सरकार ने कहा कि वह अंतिम फैसला लेने से पहले शिक्षाविदों और भाषाविदों के साथ एक विस्तृत प्रस्तुति करेगी.

इसी बीच, राज ठाकरे ने 6 जुलाई को दक्षिण मुंबई में गिरगांव चौपाटी से आज़ाद मैदान तक एक रैली निकालने की घोषणा की, जो हिंदी थोपे जाने के खिलाफ और मराठी भाषा की रक्षा के समर्थन में होगी.

उसी समय उद्धव ठाकरे एक अलग बैठक कर रहे थे, जिसमें उन्होंने मराठी अभ्यास केंद्र के प्रमुख दीपक पवार की अगुआई वाली समिति से मुलाकात की और 7 जुलाई की रैली के लिए समर्थन दिया.

संजय राउत ने कहा, “जब हम राज ठाकरे की रैली के बारे में नहीं जानते थे, तब मैंने बैठक खत्म की ही थी कि राज ठाकरे का फोन आया. उन्होंने कहा कि एक ही मुद्दे पर दो रैली करने का कोई मतलब नहीं है, क्यों न हम एक संयुक्त रैली करें. मैंने यह बात उद्धव जी को बताई और वह तुरंत तैयार हो गए, लेकिन उन्होंने कहा कि 6 जुलाई को आषाढ़ी एकादशी है, जो महाराष्ट्र का बड़ा त्योहार है, इसलिए उस दिन रैली रखना ठीक नहीं. फिर तय हुआ कि रैली या तो 5 जुलाई को हो या 7 को.”

संदीप देशपांडे ने भी इस बात की पुष्टि की और कहा, “7 जुलाई सोमवार है, और उस दिन माता-पिता, शिक्षकों को आना मुश्किल हो सकता है, इसलिए हमने 5 जुलाई तय की.”

शिवसेना (UBT) और मनसे दोनों ने कहा कि इस रैली में सभी राजनीतिक दलों और मराठी भाषा से जुड़े लोगों को आमंत्रित किया जाएगा — चाहे वे बीजेपी से हों या शिंदे गुट से.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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