लखनऊ: पिछले महीने जब राहुल गांधी मध्यप्रदेश के पंचमढ़ी में एक ट्रेनिंग प्रोग्राम में देर से पहुंचे, तो कांग्रेस की ट्रेनिंग डिपार्टमेंट के प्रमुख सचिन राव ने उन्हें प्रतीकात्मक सज़ा के रूप में पुश-अप्स करने को कहा. राहुल ने यह कर भी दिया.
कई पार्टी नेताओं को यह बात अजीब लगी, लेकिन यह इशारा अहम था क्योंकि इससे राव और गांधी के सीधे रिश्ते का पता चलता है.
राव उस समूह के अहम सदस्य हैं जिसे ‘जय जगत ग्रुप’ कहा जाता है—यह नेताओं का एक अनौपचारिक सर्कल है, जिन्हें राहुल गांधी के करीबी माना जाता है. यह समूह कांग्रेस में एक पावर सेंटर बनकर उभरा है और इसके कई सदस्य विभिन्न राज्यों में बड़े संगठनात्मक पदों पर हैं.
सीनियर एआईसीसी अधिकारियों का कहना है कि इस अनौपचारिक समूह के सदस्य पार्टी के बड़े फैसलों में अहम भूमिका निभाते हैं—चाहे वह जाति जनगणना की मांग हो या ‘वोट चोरी’ अभियान.
इस समूह की बढ़ती ताकत ने कुछ पार्टी नेताओं में नाराज़गी भी बढ़ा दी है, जो कहते हैं कि इस समूह का असर बहुत ज़्यादा हो गया है और यह कांग्रेस की हाल की राजनीतिक गिरावट के लिए जिम्मेदार है.
नाम न बताने की शर्त पर कांग्रेस के एक सांसद ने दिप्रिंट से कहा, “राहुल गांधी के क़रीब होना तो एक बात है, लेकिन इस तथाकथित जय जगत ग्रुप की जो ताकत है, वही कुछ सीनियर नेताओं को परेशान कर रही है.”
सचिन राव के अलावा जो लोग इस समूह का हिस्सा माने जाते हैं, उनमें शामिल हैं: मीनाक्षी नटराजन (तेलंगाना की एआईसीसी इंचार्ज); बिहार इंचार्ज कृष्णा अल्लावरू; के. राजू (झारखंड इंचार्ज); ऑल इंडिया प्रोफेशनल्स कांग्रेस के चेयरमैन प्रवीण चक्रवर्ती; राहुल गांधी के करीबी अलंकार सवाई; यूथ कांग्रेस इंचार्ज मनीष शर्मा; और महाराष्ट्र कांग्रेस प्रमुख हर्षवर्धन सपकाल शामिल हैं.
पार्टी नेताओं का कहना है कि ‘जय जगत’ कोई समूह नहीं, बल्कि एक नारा है जिसकी जड़ें सर्वोदय आंदोलन में हैं.
पार्टी के एक नेता ने दिप्रिंट से कहा, “जय जगत कांग्रेस के अंदर कोई औपचारिक गुट नहीं है. यह सिर्फ एक अभिवादन है जिसे ये लोग आपस में इस्तेमाल करते हैं.”
उन्होंने आगे कहा, “मैंने पहली बार यह दो साल पहले सुना, जब मैं एआईसीसी ऑफिस में गया और देखा कि हमारे एक सीनियर नेता सचिन राव को ‘जय जगत’ कहकर संबोधित कर रहे थे. बाद में मुझे बताया गया कि राव अपने वर्धा (महाराष्ट्र) के ट्रेनिंग कैंपों में अक्सर इसी नारे का इस्तेमाल करते हैं.”
सपकाल ने भी यही बात दोहराई. उन्होंने कहा, “जय जगत न तो कोई समूह है, न ही कोई खास नारा; यह एक सरल और समावेशी अभिवादन है, जिसकी जड़ें 1948 के सर्वोदय आंदोलन में हैं, जो अहिंसा और सामाजिक न्याय की बात करता था.”
उन्होंने कहा, “जैसे हिंदी बेल्ट में लोग ‘नमस्कार’ कहते हैं, हम ‘जय जगत’ कहते हैं. इसमें गलत क्या है? जय जगत का मतलब ही है—‘सारे जगत की जय’. इसका जाति या धर्म से कोई लेना-देना नहीं, यह एक ऐसा सोच है जो इन विभाजनों से ऊपर उठती है.”
सपकाल के व्हाट्सऐप स्टेटस में भी ‘जय जगत’ लिखा हुआ है.
ट्रेनिंग सेशन और ‘जय जगत’
‘जय जगत’ सचिन राव के ट्रेनिंग सेशनों में अक्सर सुनने को मिलता है, जिन्हें ‘अहिंसा के रास्ते’ या ‘अहिंसक मार्ग’ कहा जाता है.
इन सेशनों में राव गांधीवादी सोच के बारे में बात करते हैं और बताते हैं कि यह कांग्रेस के मूल मूल्यों से कैसे जुड़ी है. वह प्रतिभागियों से कहते हैं कि वे जाति और धर्म से ऊपर सोचें, लेकिन इसके साथ ही वह वंचित समुदायों के लिए कल्याणकारी कदमों की ज़रूरत पर भी जोर देते हैं.
ये सेशन पार्टी के ‘संगम’ प्रोग्राम के बैनर तले आयोजित किए जाते हैं. संगम खुद को इस तरह बताता है कि उसका लक्ष्य “ऐसी लीडरशिप और राजनीति को तैयार करना है, जो भारत को संविधान की दिशा में और मानवता को सर्वोदय की ओर ले जाए.”
संगम के बोर्ड में सीनियर कांग्रेस नेता जैसे सैम पित्रोदा और मीनाक्षी नटराजन शामिल हैं.
‘अहिंसा के रास्ते’ के अलावा, जो सभी के लिए खुला है, संगम वर्धा में युवा नेताओं और उभरते कांग्रेस नेताओं के लिए खास ट्रेनिंग भी आयोजित करता है.
इन ट्रेनिंग सेशनों के अंत में अक्सर ‘जय जगत’ का नारा लगाया जाता है.
राव, जो एक्स पर अधिकतर अपने पोस्ट का अंत ‘जय जगत’ से करते हैं, कहते हैं कि यह नारा उन्होंने बनाया नहीं है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “कांग्रेस पार्टी के संविधान में लिखा है कि हमारा लक्ष्य विश्व शांति और भाईचारा बढ़ाना है. जब मैंने ‘जय जगत’ नारा सुना, तो मुझे लगा कि यह कांग्रेस की इस आकांक्षा को अच्छी तरह व्यक्त करता है. इसलिए मैं इसका इस्तेमाल करता हूं. मैंने यह नारा नहीं बनाया; सर्वोदय आंदोलन इसे लंबे समय से इस्तेमाल करता आ रहा है.”
उन्होंने ‘जय जगत ग्रुप’ की मौजूदगी को पूरी तरह फर्जी और काल्पनिक बताया.
राव मूल रूप से उडुपी के रहने वाले हैं और उनकी परवरिश मुंबई में हुई. उनके पास कंप्यूटर साइंस की डिग्री और एमबीए है.
वह लगभग 18 साल से युवाओं पर केंद्रित राजनीतिक काम में सक्रिय हैं. वह यूपीए दौर से राहुल गांधी के काफी करीब काम कर रहे हैं.
राव की तरह, अल्लावरू, चक्रवर्ती और मनीष शर्मा भी कॉर्पोरेट पृष्ठभूमि से आते हैं.
पार्टी के फैसलों को ‘प्रभावित’ करना
इसी बीच, पार्टी के अंदर इस तथाकथित ‘जय जगत ग्रुप’ के खिलाफ नाराज़गी बढ़ रही है.
पार्टी के कुछ नेताओं का कहना है कि इस समूह के सदस्यों को बड़े पद दिए गए हैं, लेकिन वे हमेशा ज़मीनी राजनीति से जुड़े नहीं होते.
उक्त कांग्रेस सांसद ने पिछले एक साल में हुई नियुक्तियों पर सवाल उठाया.
उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश के रहने वाले अल्लावरू को बिहार का इंचार्ज बनाया गया, लेकिन उन पर पार्टी के कई सहयोगियों ने आरोप लगाए कि वह उनसे सलाह नहीं लेते और विधानसभा चुनाव में टिकटों के बंटवारे को मनमाना बताया गया.
2010 में इंडियन यूथ कांग्रेस में नेशनल एग्ज़िक्यूटिव सदस्य बनने से पहले, अल्लावरू पांच साल तक सिंगापुर में बॉस्टन कंसल्टिंग ग्रुप में कंसल्टेंट थे.
उससे पहले, वह KPMG India में सीनियर कंसल्टेंट थे और अपने LinkedIn प्रोफाइल के अनुसार मुंबई में Shaadis.com Pvt Ltd के सह-संस्थापक भी रहे.
एक अन्य सदस्य, के. राजू, जो आंध्र प्रदेश के पूर्व आईएएस अधिकारी हैं, उन्हें झारखंड का इंचार्ज बनाया गया है. मनीष शर्मा को इंडियन यूथ कांग्रेस का इंचार्ज नियुक्त किया गया है.
एक सांसद ने कहा, “इन लोगों को उन राज्यों की कितनी समझ है? भाषा की दिक्कत भी होगी. स्वाभाविक है कि नेताओं में यह भावना है कि ‘जय जगत ग्रुप’ को ज़रूरत से ज़्यादा और अनुचित तरक्की मिल रही है.”
एक अन्य सांसद ने दिप्रिंट को बताया कि राहुल गांधी उन लोगों को पसंद करते हैं जो “नम्र और ज़मीन से जुड़े हों, लेकिन ये ‘जय जगत’ वाले सिर्फ दिखावा करते हैं.”
उन्होंने कहा, “कुछ लोग एआईसीसी ऑफिस ऑटो या कैब से आते हैं और घिसी हुई चप्पलें पहनते हैं, लेकिन बाकी समय लग्ज़री कारों में घूमते हैं.”
दूसरे नेता ने कहा, “इनमें से कई लोग ज़मीनी राजनीति से जुड़े भी नहीं हैं, फिर भी बड़े संगठनात्मक पदों पर बैठे हैं. वे ग्राउंड पॉलिटिक्स के लिए कॉर्पोरेट जैसी रणनीति बताते हैं. इससे पार्टी में नाराज़गी बढ़ रही है.”
प्रियंका गांधी की टीम के एक सदस्य ने भी इस समूह के नए पावर सेंटर बनने पर नाराज़गी जताई और कहा कि इसने कोई ठोस नतीजे नहीं दिए.
उन्होंने कहा, “पहले हम पर आरोप था कि हमने लेफ्टिस्टों को पार्टी चलाने दी. लेकिन असल में ‘जय जगत ग्रुप’ ही असली पावर सेंटर बन गया है. हाल की नियुक्तियां देखें—महाराष्ट्र पीसीसी प्रमुख, IYC इंचार्ज, और इससे पहले बिहार, झारखंड और तेलंगाना के इंचार्ज. ये किसकी सिफारिश पर हुए? साफ है, एक ही लॉबी के लोग. क्या ये कोई नतीजे दे रहे हैं?”
कुछ लोग इस आलोचना को खारिज करते हैं कि ये नेता पार्टी की हार के जिम्मेदार हैं. बिहार में अल्लावरू के एक प्रमुख सहयोगी ने दिप्रिंट से कहा, “‘जय जगत ग्रुप’ के बारे में बहुत बातें हो रही हैं, और कुछ लोग उन्हें पार्टी की लगातार हार का जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, लेकिन यह सच नहीं है. वे कांग्रेस और राहुल गांधी दोनों के वफादार हैं, इसलिए वे आगे आए हैं.”
उन्होंने आगे कहा, “राहुल गांधी के कई पुराने वफादार अब भाजपा में चले गए हैं; इसलिए वे स्वाभाविक रूप से सिर्फ उन्हीं पर भरोसा करते हैं जो अब भी वैचारिक रूप से उनके साथ खड़े हैं. इस समूह में कृष्णा, सचिन, मीनाक्षी और बाकी सभी पूरी तरह पार्टी और राहुल गांधी के प्रति समर्पित हैं. इसलिए उनका प्रमोशन होना स्वाभाविक है.”
सहयोगी ने कहा, “वे युवा भी हैं और राहुल गांधी उनमें निवेश करना चाहते हैं. इसमें गलत कुछ नहीं है; बस पार्टी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही, इसलिए उन्हें गलत तरीके से निशाना बनाया जा रहा है.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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