नई दिल्ली: जब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) केरल के राज्य सचिव एम.वी. गोविंदन ने पिछले महीने सांप्रदायिकता के खिलाफ ‘राजनीतिक एकता’ की जरूरत को रेखांकित करते हुए इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) को एक ‘लोकतांत्रिक’ संगठन बताया तो अचानक से काफी अटकलों को बल मिल गया. ऐसा इसलिए है क्योंकि IUML पांच दशकों से अधिक समय से कांग्रेस की सहयोगी रही है. हालांकि अतीत में इसने वामपंथियों के साथ भी गठबंधन किया है. मुस्लिम आधार वाली आईयूएमएल को केरल राज्य के दल के रूप में मान्यता मिली हुई है.
गोविंदन की टिप्पणियों की कई हलकों में आईयूएमएल के प्रति ‘सहानुभूति’ के रूप में देखा जा रहा है. उनके बयानों के बाद हाल-फिलहाल में जो कोलाहल मचा है, उसकी तुलना शायद उस बेचैनी से की जा सकती है जो आईयूएमएल ने अपने सहयोगी कांग्रेस के अंदर पैदा कर दी थी, जब नवंबर में तिरुवनंतपुरम के सांसद शशि थरूर ने आईयूएमएल प्रमुख सैयद सादिक अली शिहाब थंगल से मुलाकात की थी.
थरूर और थंगल की यह बैठक केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) के अध्यक्ष के. सुधाकरन के इस दावे के ठीक बाद हुई थी कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के नेता एस.पी. मुखर्जी को अपने मंत्रिमंडल में शामिल करके ‘उदारता’ दिखाई थी. सुधाकरन की टिप्पणी की आईयूएमएल ने खुली आलोचना की थी.
तथ्य यह है कि थरूर के केरल दौरे को राज्य कांग्रेस इकाई की तरफ से काफी अड़चनों का सामना करना पड़ा था. इसके बाद आईयूएमएल, थरूर और केरल की स्थिति के बारे में पार्टी में मंथन भी हुआ था. दिल्ली में वरिष्ठ नेताओं ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा था कि क्या बैठक से यह संकेत मिलता है कि थरूर मौजूदा समय में केरल के राज्य नेतृत्व की तुलना में अधिक स्वीकार्य कांग्रेसी चेहरा हैं.
गोविंदन के 10 दिसंबर 2022 को दिए गए बयान ने एक बार फिर से राजनीतिक उथल-पुथल मचा दी थी. उन्होंने कहा था, ‘वे (आईयूएमएल) ऐसी चीजों को एक धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण से देख सकते हैं. सीपीआई(एम) लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) को मजबूत करना चाहती है. दक्षिणपंथी राजनीति को छोड़ने के लिए तैयार किसी भी पार्टी के लिए दरवाजे खुले हैं. धार्मिक फासीवाद से लड़ने के लिए सभी धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक पार्टियों और ताकतों को एक साथ आना चाहिए. एलडीएफ एक स्पष्ट नीति वाला राजनीतिक गठबंधन है, लेकिन हमने किसी पार्टी को आमंत्रित नहीं कर रहे है.’
LDF में दूसरे सबसे बड़े दल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) सहित कई लोगों ने गोविंदन की टिप्पणियों की व्याख्या CPI (M) द्वारा IUML के लिए एक प्रस्ताव के रूप में की थी.
कांग्रेस और वाम दलों से जुड़ी दोनों घटनाएं और उनके परिणाम बताते हैं कि चाहे आप किसी भी राजनीतिक विचारधारा के साथ जुड़े हों, अगर आप केरल की राजनीति में हैं, तो आप IUML की उपेक्षा नहीं कर सकते हैं.
1948 में मद्रास (अब चेन्नई) में गठित IUML केरल में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) गठबंधन का एक हिस्सा है. यह दल केंद्र में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार से भी जुड़ा रहा था. उत्तर केरल के मुस्लिम बहुल जिलों में इसका बहुत मजबूत प्रभाव है, जैसे कि मलप्पुरम, कन्नूर (मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन का गृह जिला), और कासरगोड.
जब तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले वायनाड से अपना नामांकन दाखिल किया, तो झंडों की भीड़ में प्रमुख रूप से IUML के हरे झंडे दिखाई दे रहे थे, जिसे लेकर एक विवाद खड़ा हो गया था. भाजपा ने आरोप लगाया कि ये पाकिस्तानी झंडे थे. मौजूदा समय में पार्टी के पास 140 सदस्यीय केरल विधानसभा में 15 सीटें हैं. इसके अलावा राज्यसभा में एक और लोकसभा में तीन (तमिलनाडु के एक सांसद सहित) सीटें हैं.
दिप्रिंट ने आईयूएमएल के लोकसभा सदस्य और आयोजन सचिव (राष्ट्रीय समिति) ई.टी. मोहम्मद बशीर और महासचिव (राष्ट्रीय समिति) पी.के. कुन्हालीकुट्टी से फोन और व्हाट्सएप के जरिए संपर्क किया था. प्रतिक्रिया मिलने पर इस लेख को अपडेट कर दिया जाएगा. दिप्रिंट ने कई वामपंथी नेताओं, राज्य के मंत्रियों और सांसदों से भी उनका रुख जानने की कोशिश की है. उनकी तरफ से मिलने वाली प्रतिक्रिया का इंतजार है.
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वामपंथी गठबंधन की अफवाहें कुछ महीने पुरानी
हालांकि गोविंदन की टिप्पणियों ने आईयूएमएल के सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल होने की अटकलों को हवा दी है, लेकिन एलडीएफ की तरफ से 2021 में लगातार दूसरी बार विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद से ही इस विचार का दौर शुरू हो गया था.
एलडीएफ के संयोजक ईपी जयराजन ने अप्रैल 2021 में गठबंधन में शामिल होने के लिए आईयूएमएल को खुला निमंत्रण देने के साथ ही विजेताओं तक पहुंच बनाई. यह नई पार्टियों को शामिल करने के साथ LDF का विस्तार करने की योजना का हिस्सा था. मुस्लिम लीग के नेताओं ने तब इसे ‘आकस्मिक प्रस्ताव’ कहते हुए अस्वीकार कर दिया था, जिस पर एलडीएफ के भीतर भी चर्चा नहीं हुई थी.
राजनीतिक टिप्पणीकार जे. प्रभाष के अनुसार, IUML आउटरीच वामपंथियों की तरफ से खुद को संभावित सत्ता-विरोधी लहर से बचाने का एक प्रयास है. दरअसल यह लगातार दो कार्यकालों के बाद 2026 में फिर से लोगों के जनादेश की तलाश कर रहा है. उन्होंने कहा कि यह वास्तव में दोनों दलों के लिए विन-विन सिचुएशन है.
प्रबाश कहते हैं, ‘ अतीत में, IUML एक वामपंथी सहयोगी रहा था, लेकिन 1967 में इसने अपने हाथ खींच लिए. वामपंथियों ने तब से किसी भी ऐसे प्रमुख दलों के साथ गठबंधन करने से परहेज बनाए रखा है, जिसका आधार किसी खास धर्म से है. लेकिन ऐसा लगता है कि अब यह सब बदल रहा है. अपने पहले के कार्यकाल में केरल कांग्रेस (मणि), जिसका मुख्य रूप से ईसाई आधार है ने आईयूएमएल तक अपनी पहुंच बनाई थी. अब वामपंथी इस तरफ जा रहे हैं. इसके दो मकसद हैं- एक तो वे कांग्रेस के सबसे बड़े सहयोगी को शिकार बनाकर केरल में कांग्रेस को खत्म करना चाहते हैं और दूसरा, निश्चित रूप से सत्ता हथियाने की मंशा है. यह काफी हद तक साफ है कि आईयूएमएल भी सत्ता से बाहर एक और कार्यकाल का सामना नहीं कर सकता है.’
राजनीतिक पर्यवेक्षक एक मुस्लिम पार्टी की पहुंच में पर्यटन मंत्री और मुख्यमंत्री विजयन के दामाद पीए मोहम्मद रियास की पदोन्नति की संभावित योजना के बारे में भी बात करते हैं. हालांकि कई लोगों का मानना है कि रियास सीएमओ में उत्तराधिकारी बनने के लिए बहुत छोटे हैं, लेकिन कुछ टिप्पणीकारों का कहना है कि एक शक्तिशाली सहयोगी का दबाव उसे कुर्सी पर पहुंचा सकता है.
कांग्रेस दुविधा में
दूसरी ओर कांग्रेस के लिए, इसकी अंदरूनी राजनीति अपने सबसे पुराने सहयोगियों में से एक के साथ अपने संबंधों पर बाहरी दबाव डालती दिख रही है. कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने और हारने के बाद से राज्य में काफी सक्रिय रहे थरूर ने राज्य का दौरा किया था. खुद थरूर के कुछ ट्वीट्स समेत ऐसे कई अकाउंट्स हैं, जिनसे पता चलता है कि पार्टी की राज्य इकाई संयुक्त राष्ट्र के पूर्व अधिकारी और हाई प्रोफाइल सांसद के बार-बार घर लौटने को लेकर पूरी तरह से सहज नहीं हैं.
इन यात्राओं में से एक के दौरान थरूर ने IUML प्रमुख से मुलाकात की थी, जिससे दिल्ली में पार्टी मुख्यालय में बहुत खलबली मच गई. एक वर्ग ने महसूस किया कि उनके दौरों का विरोध कुछ शक्तिशाली AICC पदाधिकारियों की वजह से हुआ था, भले ही वह IUML के लिए स्वीकार्य चेहरे के रूप में उभर कर सामने आए थे.
एआईसीसी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह पार्टी के लिए अच्छा नहीं है. अगर कोई ऐसा नेता हो जिसका लोगों से जुड़ाव हो, जिसकी लोकप्रियता बढ़ रही हो, तो उसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. वह पार्टी के लिए बेशकीमती संपत्ति है. इस प्रकार की तुच्छता का सहारा लेने से न सिर्फ कांग्रेस को नुकसान होगा बल्कि आईयूएमएल जैसे सहयोगियों के साथ संबंध भी प्रभावित हो सकते हैं. इससे राज्य में गुटबाजी भी होगी – ऐसा कुछ जिसे कांग्रेस बर्दाश्त नहीं कर सकती.’
(संपादन: आशा शाह)
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