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Friday, 22 November, 2024
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सिद्धारमैया सरकार ने पाठ्यपुस्तकों में किए बदलाव, धर्मांतरण विरोधी कानून को निरस्त करने को दी मंजूरी

कांग्रेस के फैसले ने बीजेपी को परेशान कर दिया है, जिसने सिद्धारमैया सरकार पर कर्नाटक में ‘धर्मांतरण कारखानों को सुरक्षित आश्रय’ देने की कोशिश करने का आरोप लगाया है.

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बेंगलुरु: कर्नाटक के प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मंत्री मधु बंगारप्पा द्वारा राज्य में स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में संशोधन की बात कहने के कुछ दिनों बाद, कैबिनेट ने गुरुवार को औपचारिक रूप से इस पर फैसला सुनाया है.

गौरतलब है कि कैबिनेट ने राज्य में पिछली बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार द्वारा विवादास्पद धर्मांतरण विरोधी कानून को भी रद्द करने का निर्णय लिया है.

सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने धर्मांतरण विरोधी कानून को निरस्त करने के फैसले को “पिछली सरकार की गलतियों को ठीक करने” की कोशिश करार दिया है.

धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का कर्नाटक संरक्षण विधेयक, या धर्मांतरण विरोधी विधेयक, पिछले साल कर्नाटक विधानसभा में पारित किया गया था. तब राज्य में विपक्ष में रही कांग्रेस ने सदन से वॉकआउट कर दिया था.

पिछले महीने सत्ता में आई कांग्रेस ने बिल को निरस्त करने के फैसले से बीजेपी को परेशान कर दिया है और दोनों दलों के बीच तनाव को बढ़ा दिया है, भाजपा ने सिद्धारमैया सरकार पर राज्य में “धर्मांतरण कारखानों को सुरक्षित आश्रय” देने की कोशिश करने का आरोप लगाया.

कर्नाटक के कानून और संसदीय मामलों के मंत्री एच.के. पाटिल ने गुरुवार को बेंगलुरु में मीडिया को बताया, “हमने 2022 में उनके (बीजेपी सरकार) द्वारा लाए गए परिवर्तनों (धर्मांतरण विरोधी कानून) को निरस्त करने के लिए विधेयक को मंजूरी दे दी है. इसे 3 जुलाई से शुरू होने वाले सत्र के दौरान पेश किया जाएगा.”

उन्होंने कहा, “पाठ्यपुस्तक संशोधन के संबंध में कैबिनेट ने विभाग द्वारा लाए गए प्रस्ताव पर चर्चा की, किताबों में कुछ हिस्सों को हटाया गया है कुछ नए को जोड़ा गया और नए निर्णयों पर चर्चा के बाद उन्हें स्वीकृति दी गई.”

राज्य में सत्ता में रहते हुए पिछली भाजपा सरकार द्वारा किए गए परिवर्तनों को हटाने के लिए स्कूली पाठ्यपुस्तकों को संशोधित करना 10 मई के चुनावों के लिए कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा था, जिसे उसने स्पष्ट बहुमत से जीता था.

बंगारप्पा ने गुरुवार को मीडिया से कहा, “पिछली भाजपा सरकार द्वारा बदलाव किए जाने से पहले जो कुछ था, उसे ही हमने बहाल किया है. हमने उनके द्वारा किए गए बदलावों को हटा दिया है.”

उन्होंने कहा, “हमने हेडगेवार (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक), (विनायक दामोदर) सावरकर पर एक अध्याय और हिंदू कार्यकर्ता और विचारक चक्रवर्ती सुलिबेले द्वारा लिखित एक अध्याय को हटा दिया है. साथ ही कुछ कठोर शब्दों में बदलाव किया गया है.”

पिछले साल की शुरुआत में पाठ्यपुस्तकों में किए गए संशोधन को लागू करने पर कांग्रेस ने विरोध किया था और इसे भाजपा द्वारा स्कूली शिक्षा का “भगवाकरण” करने की कोशिश करार दिया था.

जबकि कर्नाटक में नया शैक्षणिक वर्ष शुरू हो चुका है, कांग्रेस सरकार ने कहा है कि वह पाठ्यपुस्तकों की समीक्षा करने की व्यवस्था करेगी.

बंगारप्पा ने कहा, “पहले की तरह पूरक पुस्तकों का प्रावधान है, इसलिए हम एक पूरक पुस्तक के बारे में सही-गलत सोच रहे हैं कि कहीं ये किसी गलत सोच का कारण तो नहीं बन सकता है. हमने उन हिस्सों को हटा दिया है जिनकी ज़रूरत नहीं थी.”

पूरक पाठ्यपुस्तकों में कुछ अध्याय होंगे जिन्हें पिछली सरकार द्वारा पाठ्यक्रम पूरा करने के लिए हटा दिया गया था.

उन्होंने कहा कि राजप्पा दलावई, रवीश कुमार, टी. आर. चंद्रशेखर, अश्वथ नारायण और राजेश सहित शैक्षिक विशेषज्ञों और लेखकों की पांच सदस्यीय विशेषज्ञ समिति ने इस वर्ष के लिए पाठ्यपुस्तक को संशोधित करने पर काम किया है.

बंगारप्पा ने कहा कि हालांकि, पाठ्यपुस्तकों में “बड़े बदलाव” करने की कोशिश की गई थी, सरकार कक्षा 6 से 10 की पाठ्यपुस्तकों में आवश्यक बदलाव करने के लिए प्रयास करेगी.


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धर्मांतरण माफिया के दबाव में कांग्रेस

इस बीच, कांग्रेस सरकार के धर्मांतरण विरोधी कानून को निरस्त करने के फैसले ने राज्य में व्यापक रूप से अलग-अलग प्रतिक्रियाएं दी हैं.

बोम्मई के नेतृत्व वाली सरकार ने विधायिका में ‘कर्नाटक प्रोटेक्शन ऑफ राइट टू रिलिजन बिल’ पारित होने से पहले धर्मांतरण के खिलाफ एक अध्यादेश लाया था.

कानून में “गलत बयानी, बल, धोखाधड़ी, प्रलोभन या विवाह” द्वारा किसी भी धर्म परिवर्तन की कोशिश को अपराध की नज़र से देखना और दंडित करने का प्रावधान है. इसके अलावा दोषियों पर भारी जुर्माना, जिसमें 10 साल तक की जेल की सजा और 1 लाख रुपये का जुर्माना भी शामिल है.

कथित तौर पर बिल के पारित होने से अल्पसंख्यक समूहों पर हमला करने वाले सतर्कता समूहों में तेज़ी से वृद्धि देखी गई थी, उन पर हाशिए के समूहों को परिवर्तित करने का आरोप लगाया गया था.

आर्चबिशप, रेवरेंड डॉ पीटर मचाडो बेंगलुरु और कर्नाटक क्षेत्र के कैथोलिक बिशप काउंसिल के अध्यक्ष ने गुरुवार को एक बयान में कहा, “इस विवादास्पद बिल को निरस्त करना चर्च और समुदाय द्वारा उठाए गए लगातार रुख के सत्यापन के रूप में कार्य करता है. यह इस विश्वास की पुष्टि करता है कि कानून न केवल व्यक्ति की धर्म की स्वतंत्रता के लिए हानिकारक था, बल्कि भारतीय संविधान (धर्म की स्वतंत्रता) के अनुच्छेद-25 में निहित प्रावधानों के सीधे विरोधाभास में भी खड़ा था.”

सिद्धारमैया सरकार के इस कदम के कारण, भाजपा ने कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा.

राज्य भाजपा उपाध्यक्ष और शिवमोग्गा के शिकारीपुरा से विधायक बी.वाई. विजयेंद्र ने ट्विटर पर एक पोस्ट में कहा, “धर्मांतरण विरोधी विधेयक का उद्देश्य ‘लालच’, ‘जबरदस्ती’, ‘बल’, ‘कपटपूर्ण साधन’ और ‘सामूहिक रूपांतरण’ के माध्यम से धर्मांतरण को रोकना है. कानून को निरस्त करके, कांग्रेस ने धर्मांतरण माफिया के दबाव के आगे घुटने टेक दिए हैं और धर्मांतरण कारखानों को एक सुरक्षित आश्रय दिया है.”

उन्होंने कहा कि कानून को निरस्त करने से “कुछ राष्ट्र-विरोधी विदेशी तत्वों को खुली छूट मिलती है” जिसका उद्देश्य “नापाक मंसूबों” के साथ देश की जनसांख्यिकी को बदलना था. उन्होंने कहा कि यह ‘लव जिहाद’ के लिए मददगार साबित होगा, एक ऐसा शब्द जो अक्सर हिंदुत्व संगठनों द्वारा अंतरधार्मिक संबंधों को लक्षित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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