कर्नाटक के तीन पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा, जेएच पटेल और एस बंगारप्पा के बेटे तीन नवंबर को शिवमोगा में होने वाले लोकसभा के उपचुनाव में आमने-सामने हैं.
बेंगलुरु: शिवमोगा लोकसभा सीट के लिए तीन नवंबर को हो रहे उपचुनाव में कर्नाटक के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों के विरासत की परीक्षा होने वाली है. इस सीट के लिए हो रहे उपचुनाव में उनके बेटे एक-दूसरे के सामने हैं.
मई में विधानसभा चुनाव के बाद पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के द्वारा सांसद के रूप में पद छोड़ने के बाद से यह सीट खाली थी.
केंद्रीय कर्नाटक में स्थित शिवमोगा राजनीति के केंद्र के साथ-साथ बौद्धिक केंद्र के रूप में भी जाना जाता है. इसने बीएस येदुरप्पा, शांतिवेरा गोपाल गौड़ा, जेएच पटेल, के थिमप्पा और एस बंगारप्पा जैसे कई राजनेताओं को जन्म दिया है और साथ ही राज्य के कुछ महान लेखकों, यूआर अनंतमूर्ति और कुवेम्पु की जन्मस्थली है.
एक दूसरा भी महत्वपूर्ण कारक है जो शिवमोगा को एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बनाता है. वह यह है कि यह दक्षिण भारत में समाजवादी आंदोलन का जन्मस्थान था.
यही ही खेतिहर जमीन के लिए लड़ाई शुरू हुई थी जो पूर्व मुख्यमंत्री देवराज उर्स द्वारा एक कानून बनाने के बाद खत्म हुई. इस कानून ने भारत में सामंतवादियों के खिलाफ इस तरह के कई आंदोलनों के लिए एक उदाहरण स्थापित किया.
हाल में यह जिला हिंदुत्व राजनीति के केंद्र के रूप में उभरा और यह कर्नाटक भाजपा अध्यक्ष बीएस येदियुरप्पा का गढ़ है. येदियुरप्पा को यहां से सिर्फ दो बार 1991 के विधानसभा और 1999 के संसदीय चुनाव में ही हार का सामना करना पड़ा है.
यहां पर यह ध्यान देने वाली बात है कि ये उपचुनाव लोकसभा चुनाव से कुछ ही महीने पहले हैं. और यह स्पष्ट है कि तीनों उम्मीदवारों येदियुरप्पा, पटेल और बंगारप्पा के बेटों को खुद के लिए जमीन तैयार करनी होगी.
जो भी चुना जाएगा वह केवल छह महीने के लिए ही प्रतिनिधि होगा. उम्मीदवारों की एक संक्षिप्त प्रोफाइल यहां पर दी गयी है.
बीवाई राघवेंद्र
पिता: बीएस येदियुरप्पा
पार्टी: भाजपा
येदियुरप्पा के सबसे बड़े बेटे बुकनकेरे येदियुरप्पा राघवेंद्र ने हमेशा अपने पिता की छत्रछाया में काम किया है. हालांकि उन्होंने राजनीति में करीब एक दशक बिताया है. लेकिन पूर्व सांसद और विधायक राघवेंद्र अपने बूते पर राजनीति में स्थापित होने अभी तक असफल रहे हैं. अपने सभी चुनाव अभियानों में उन्होंने अपने पिता के नाम का ही इस्तेमाल किया है.
राघवेंद्र सक्रिय रूप से लगातार शिवमोगा में काम कर रहे हैं, लेकिन भाजपा में कई लोग मानते हैं कि उन्होंने अभी भी राजनीतिक कौशल या अपने पिता के कद से मेल खाने की क्षमता विकसित नहीं की है. उन्हें अभी भी “येदियुरप्पा का बेटा” कहा जाता है, वह इस टैग को हटाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं.
अगर किसी को राघवेंद्र की नेता के रूप में किसी एक विशेषता की पहचान करनी पड़े तो यह है कि उन्होंने खुद को ‘लोगों का नेता’ के रूप में पेश करने की कोशिश की है, एक आदमी जो आसानी से लोगों से मिल सके और अपने राजनीतिक वंशावली का कोई फायदा नहीं लेता हो.
उनका प्रशिक्षण ऐसे हुआ है कि उन्होंने अपने पिता की रैलियों और चुनावी तैयारियों में धक्के खाये हैं, जिससे उन्हें स्थानीय लोगों से बेहतर तरीके से जुड़ने में मदद मिली. 2013 में उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण भाजपा से निलंबित कर दिया गया था, लेकिन उन्हें वापस लाया गया क्योंकि वह येदियुरप्पा के भरोसेमंद लेफ्टिनेंटों में से एक हैं.
इस साल के विधानसभा चुनाव में अपने प्रदर्शन को देखते हुए, जहां पर भाजपा एकमात्र सबसे बड़े दल के रूप में उभरी है, पार्टी को विश्वास है कि राघवेंद्र सीट जीतेंगे.
मधु बंगारप्पा
पिता: एस.बंगारप्पा
पार्टी: जनता दल (सेक्युलर)
भाजपा के पूर्व सदस्य मधु बंगारप्पा अभी जेडीएस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. वह उपचुनाव में अपनी जीत का दावा यह कहते हुए कर रहे हैं कि शिवमोगा में भाजपा विरोधी लहर है.
इस साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव में उन्हें शिवमोगा की एक विधानसभा सीट सोरबा पर भाजपा उम्मीदवार और उनके बड़े भाई कुमार ने पराजित किया था. सोरबा इससे पहले उनके पिता का निर्वाचन क्षेत्र था.
शिवमोगा लोकसभा सीट भी सीनियर बंगारप्पा द्वारा जीती गयी थी. 2009 में राघवेंद्र ने उनको चुनाव में हरा दिया. सीनियर बंगारप्पा का दो साल बाद निधन हो गया था.
बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों ने बताया कि आरएसएस येदियुरप्पा से काफी नाखुश है. और वे इस बार राघवेंद्र के पीछे अपना पूरा दांव नहीं लगाना चाहते हैं. मधु का आत्मविश्वास इस बात से भी बढ़ा हुआ है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में जेडी (एस) आठ विधानसभा क्षेत्रों में दूसरे स्थान थी. इन आठों विधानसभा से मिलकर शिवमोगा निर्वाचन क्षेत्र बनता है. इसके अलावा बंगारप्पा इडिगा समुदाय से संबंध रखते हैं जो सोरबा, तीर्थहल्ली, बायांदूर और आसपास के क्षेत्रों में बहुमत में है.
माहिमा पटेल
पिता: जेएच पटेल
पार्टी: जनता दल (यू)
महिमा वर्तमान में कर्नाटक में नीतीश कुमार की जेडी (यू) के प्रमुख नेता हैं.
पटेल एक व्यापारी हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि उनका राजनीति में उतरने का मकसद पिता की विरासत को जीवित रखना है. महिमा ने दावा किया है कि वह पैसे और बाहुबल के दम के बिना चुनाव लड़ेंगे.
जेएच पटेल वरिष्ठ समाजवादी थे. उनको उनकी अग्रणी नीतियों और एक मझे हुए हुए नेता के रूप में जाना जाता था. अपने पिता की विचारधारा की वजह से महिमा पटेल जदयू में स्थान बनाने में सफल रहे. वह लिंगायत समुदाय से आते हैं जोकि कर्नाटक में एक बड़ा समुदाय है. भाजपा प्रत्याशी राघवेंद्र भी इसी समुदाय के हैं.
कहा जा रहा है कि कांग्रेस सावधानीपूर्वक और रणनीतिक रूप से पटेल की उम्मीदवारी का समर्थन कर रही है ताकि जाति के आधार पर वोट उनके और राघवेंद्र के बीच विभाजित हो जाएं, जिससे बंगारप्पा को फायदा मिले. कांग्रेस और जेडी (एस) राज्य में सहयोगी है.
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