मुंबई: शिवसेना के 55 विधायकों में से बमुश्किल एक-चौथाई महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खेमे में रहने के कारण, पार्टी ने पिछले 24 घंटों में राज्य विधानसभा के डिप्टी स्पीकर के पास दो याचिकाएं दायर कीं. इसमें 16 बागी विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग की गई थी.
अध्यक्ष की अनुपस्थिति में, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के उपाध्यक्ष नरहरि जिरवाल को इन याचिकाओं पर फैसला लेना है.
ठाकरे की सेना ने महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार को बचाने और बचाने के लिए दाम और दंड की नीति अपनाई है, जिसमें एनसीपी और कांग्रेस भी शामिल हैं. शिवसेना के लगभग 40 विधायकों के गुवाहाटी में बागी नेता एकनाथ शिंदे के साथ डेरा डाले हुए ठाकरे सरकार लड़खड़ा रही है.
इसलिए, इसने दोहरी रणनीति का सहारा लिया है. पहले एमवीए का गठन करने वाली धर्मनिरपेक्ष पार्टियों को छोड़ने की पेशकश की और फिर शिव सैनिकों की नाराजगी के बीच विधायकों के रूप में अयोग्यता की धमकी दी है, जो बड़े पैमाने पर ठाकरे के साथ ‘भावनात्मक रूप से जुड़े’ हुए हैं. यहां तक कि एमवीए छोड़ने की पेशकश भी बागी विधायकों के मुंबई लौटने पर निर्भर थी. यह एक ऐसा परिदृश्य है जो ठाकरे खेमे को पैंतरेबाज़ी करने की बहुत अधिक गुंजाइश देगा.
अयोग्य ठहराए जाने के कदम को बागी विधायकों के लिए एक संदेश के रूप में देखा जा सकता है कि क्या वे फिर से चुनाव लड़ने की संभावना का सामना कर सकते हैं. इस विधानसभा के कार्यकाल में अभी दो साल से अधिक का समय बचा है. शिवसेना नेतृत्व का यह विचार उन विधायकों को, जो अभी ये फैसला नहीं कर पाए हैं कि उन्हें किस खेमे की तरफ रहना है, परेशान कर सकता है. उनको भी जो गुवाहाटी में हैं.
एमवीए नेताओं की राय है कि विद्रोही शिंदे के साथ इस उम्मीद में चले गए हैं कि ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार को हटाने के बाद, भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार का उन्हें हिस्सा बनाया जाएगा. एमवीए के एक वरिष्ठ नेता और सांसद ने दिप्रिंट को बताया, ‘लेकिन क्या होगा अगर वे अयोग्य घोषित कर दिए जाते हैं या भाजपा के पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या नहीं होगी? यह कर्नाटक या मध्य प्रदेश नहीं है कि अयोग्य होने के बाद वे फिर से निर्वाचित हो जाएंगे. अगर उन्हें चुनाव लड़ना पड़ा तो चुनाव में उनका सामना एमवीए और नाराज सैनिकों से होगा. आपको क्या लगता है कि वे इसके लिए तैयार होंगे?’
कर्नाटक और मध्य प्रदेश दोनों के मामले में, विद्रोह करने वाले विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया गया था और उनमें से अधिकांश को विधानसभा के लिए फिर से निर्वाचित होना पड़ा.
शिवसेना के आकाओं की ओर से भी कोई सीधा संदेश नहीं है कि जब भी विद्रोही मुंबई लौटेंगे उन्हें शिवसैनिकों से निपटना होगा. पार्टी नेता संजय राउत ने कहा है कि पहले उन विधायकों को मुंबई लौटने का मौका दिया गया था और अब हम उन्हें मुंबई आने की चुनौती देते हैं.
जैसा दिप्रिंट ने मुंबई में सेना शाखाओं का दौरा करने के बाद बताया था कि सामान्य शिव सैनिक कुल मिलाकर ठाकरे के प्रति वफादार रहते हैं और जब भी बागी विधायक शहर लौटेंगे तो उन चिंतित सैनिकों से निपटना पड़ सकता है.
उधर उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य सैनिकों को लामबंद करने की कोशिश कर रहे हैं. आदित्य शुक्रवार सुबह मुंबई के सेना भवन में पार्षदों और अन्य नेताओं से मिलने गए थे. उद्धव ने बाद में उन्हें दिन में वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए संबोधित किया था.
पार्टी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि बैठक में उद्धव ने नगरसेवकों और शिवसेना के जिला अध्यक्षों से कहा कि उनके ‘दृढ़ संकल्प’ ने उनका साथ अभी तक नहीं छोड़ा है.
सीएम ने आगे कहा कि जब कुछ लोगों ने साजिश रची और गंदा खेल खेला, तब उनकी सेहत ठीक नहीं थी और वह सर्जरी के बाद उबर रहे थे. उधर आदित्य आधिकारिक उद्देश्यों के लिए यूरोप में थे उन्होंने कहा, ‘महामारी और मेरे ऑपरेशन के कारण मैं विधायकों से नहीं मिल सका, लेकिन विपक्ष ने इस अवसर का फायदा उठाते हुए हम पर हमला किया.’
शिवसेना प्रमुख ने विद्रोहियों को ठाकरे के नाम का इस्तेमाल किए बिना जीतने की कोशिश करने की भी चुनौती दी.
एकनाथ शिंदे के बारे में बोलते हुए वह कहते हैं कि उन्होंने बागी विधायक के लिए क्या नहीं किया. ‘मैंने उन्हें यूडी (शहरी विकास) विभाग भी दिया है …’
शिवसेना ने बुधवार शाम 5 बजे बुलाई गई बैठक से अनुपस्थित रहने के लिए पार्टी के 16 विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिका दायर की है.
शिवसेना के मुख्य सचेतक सुनील प्रभु ने पार्टी के सभी विधायकों को पत्र लिखकर उनसे सीएम के आधिकारिक आवास वर्षा में एक बैठक में भाग लेने के लिए कहा था.
बैठक के लिए सभी को सूचना दी गई थी. प्रभु के पत्र में लिखा था, ‘अगर कोई विधायक शामिल नहीं होता है, यह माना जाएगा कि वे स्वेच्छा से पार्टी छोड़ रहे हैं और उनकी पार्टी की सदस्यता रद्द कर दी जाएगी.
कानून के मुताबिक, अगर कोई विधायक पार्टी से इस्तीफा दिए बिना ‘पार्टी विरोधी’ गतिविधियों में शामिल होता है, तो इसे ‘स्वैच्छिक इस्तीफा’ माना जाएगा. और उसे अयोग्य घोषित किया जा सकता है.
अगर डिप्टी स्पीकर शिवसेना के किसी भी विधायक को पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए अयोग्य घोषित करते, तो उसके पास इसे अदालत में चुनौती देने का विकल्प होगा. लेकिन यह एक लंबी प्रक्रिया होगी और उसका भविष्य अनिश्चितता में लटक जाएगा.
दो साल बाद अगले राज्य विधानसभा चुनाव में इनमें से अधिकांश विधायक मतदाताओं का सामना नहीं कर पाएंगे और यही शिवसेना का गेमप्लान है.
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संविधान के तहत अयोग्य ठहराना
संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत किसी भी राजनीतिक दल से संबंधित सदन के सदस्य को दो आधारों पर अयोग्य ठहराया जा सकता है – यदि उसने पार्टी की ‘स्वेच्छा से सदस्यता छोड़ दी है’, या वह जिस राजनीतिक दल से संबंधित है, उसके किसी भी निर्देश के विपरीत सदन में वोट करता है.
संवैधानिक विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व महासचिव पी.डी.टी. आचार्य ने बुधवार को (शिवसेना की निर्धारित बैठक से पहले) दिप्रिंट को बताया था कि ‘पहली स्थिति सदन के बाहर और दूसरी सदन के अंदर पैदा होती है. उन्होंने समझाया कि अपनी इच्छा से छोड़ी गई सदस्यता को कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है और यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है.
आचारी ने आगे कहा, ‘राज्य में मौजूदा राजनीतिक परिस्थिति में अगर शिवसेना के असंतुष्ट सदस्य पार्टी की बैठक में शामिल नहीं होते हैं, तो पार्टी अध्यक्ष कह सकते हैं कि उन्होंने स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता छोड़ दी है क्योंकि वे एक महत्वपूर्ण बैठक में शामिल नहीं हुए हैं. ऐसा आधार अध्यक्ष के पास याचिका दायर करने के लिए बनाया जा सकता है, जिसमें उन्हें अयोग्य घोषित करने के लिए कहा जा सकता है’
उन्होंने कहा, ‘यह हर मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है. उसके लिए कोई निश्चित नियम नहीं हैं. लेकिन यह पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण बैठक है और सरकार का अस्तित्व इस पर निर्भर करता है, इसलिए इसे एक आधार बनाया जा सकता है.’
दलबदल विरोधी प्रावधानों से बचने के लिए शिंदे के खेमे के पास शिवसेना के 55 विधायकों में से कम से कम 37 (दो-तिहाई बहुमत) होना चाहिए. वैसे भी विद्रोही खेमे के पास अयोग्यता प्रावधानों के बिना पार्टी को विभाजित करने की पर्याप्त संख्या है.
सुनील प्रभु के पत्र के तुरंत बाद, शिंदे ने ट्वीट किया था कि पार्टी विधायक भरत गोगावले को शिवसेना का मुख्य सचेतक नियुक्त किया गया है और इसलिए प्रभु का पत्र अमान्य है. एक दिन बाद बागी विधायकों ने एकनाथ शिंदे को विधायक दल के नेता के रूप में फिर से पुष्टि करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया और इसे राज्यपाल और डिप्टी स्पीकर को भेज दिया.
डिप्टी स्पीकर इससे प्रभावित नहीं थे, क्योंकि जब उन्होंने शिंदे की जगह अजय चौधरी को विधायक दल के नेता के रूप में मान्यता देने के ठाकरे के नेतृत्व वाली सेना के अनुरोध को मंजूरी दे दी.
एमवीए जो हासिल करने की कोशिश कर रहा है, वह या तो सरकार को बचाने के लिए विद्रोहियों को डराना और धमकाना है, या शिवसेना के विद्रोहियों, छोटे दलों के अन्य विधायकों और निर्दलीय विधायकों के साथ भाजपा को बहुमत से वंचित करके विधानसभा को भंग करना सुनिश्चित करना है.
भाजपा ने अपने पत्तों को अभी अपने सीने से लगाकर रखा हुआ है. वह इन्हें खोलना नहीं चाहती है. पार्टी सबसे पहले ये देखना चाहती है कि एकनाथ शिंदे इन विधायकों को अपने साथ बनाए रख पाते हैं या नहीं. एक बार यह सुनिश्चित हो जाने के बाद वे एमवीए सरकार से समर्थन वापस लेने के लिए राज्यपाल को लिख सकते हैं.
राज्यपाल तब एमवीए सरकार से विश्वास मत साबित करने के लिए कह सकते हैं. और ऐसे में अगर सरकार गिरती है, तो भाजपा सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए तुरंत आगे बढ़ सकती है या कुछ हफ्तों तक इंतजार कर सकती है.
बेशक, अदालतों और राजभवन में अभी कुछ और एपिसोड चले बिना राजनीतिक नाटक के खत्म होने की संभावना नहीं है.
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