नई दिल्ली: शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के संपादकीय में बिहार में नीतीश कुमार के एक बार फिर मुख्यमंत्री बनने पर तंज़ कसते हुए लिखा है कि ‘यह हारे हुए पहलवान को जीत का पदक देने जैसा समारोह साबित होगा.’
सामना का तर्क है कि बिहार का जनमत दो अलग-अलग विचारधाराओं को मिला है -एक भाजपा को और दूसरा राष्ट्रीय जनता दल को. नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के साथ जनता नहीं थी.
ऐसे में नीतीश को मुख्यमंत्री बनाना ‘जनता द्वारा झिड़क दिए गए मुख्यमंत्री पद पर उन्हें लादना एक प्रकार से जनमत का अपमान है.’
सामना ने आज अपने संपादकीय में आगे लिखा है कि भारतीय जनता पार्टी का ‘खेल’ यशस्वी हुआ. भाजपा का डंका बजा. नीतीश कुमार कमजोर पड़े. अब कुछ दिन नीतीश कुमार की बारात निकालकर उनके ‘घोड़ों’ को नचाया जाएगा. लेकिन यह तात्कालिक व्यवस्था है, ऐसा कहने के लिए किसी राजनीतिक पंडित की आवश्यकता नहीं है.
कुर्सी पर नीतीश कुमार को बैठाकर ‘बादशाही’ लगाम भाजपा के हाथ में ही रखी जाएगी. लेकिन उस बादशाही पर ‘110’ के आंकड़े वाले दमदार विरोधी दल का अंकुश रहेगा.’
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नंबर वन है राजद-तेजस्वी
सामना ने संपादकीय में यह भी कहा कि चाहे इसे भाजपा मोदी की जीत मान रही हों पर ये रेत सी सरकती जीत है. असली जीत इन चुनावों में 31 साल के तेजस्वी यादव की हुई है जिन्होंने अपनी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल को पहले नंबर की पार्टी के रूप में राज्य में स्थापित किया.
संपादकीय में कहा गया है कि ‘तेजस्वी यादव की तेजतर्रार प्रतिभा बिहार के विधानसभा चुनाव में तप कर निखरी है. तेजस्वी के रूप में सिर्फ बिहार ही नहीं, बल्कि देश को एक जुझारू युवा नेता मिला है. वह अकेले लड़ता रहा. वह विजय के शिखर पर पहुंचा. वह भले जीता ना हो लेकिन उसने हार नहीं मानी.’
तेजस्वी की तारीफ से भरे इस संपादकीय में उन्हें संघर्ष करने वाला बताया है और लिखा है, देश के राजनीतिक इतिहास में इस संघर्ष (तेजस्वी) को लिखा जाएगा. बिहार में रोटी सेंकी जा सकेगी, ऐसा लग रहा था. लेकिन रोटी जल चुकी है. तेजस्वी यादव थोड़ी प्रतीक्षा करें, भविष्य उनका ही है.’
मोहरे
साथ ही शिवसेना का आरोप है कि भाजपा के इशारों पर असदुद्दीन ओवैसी और चिराग पासवान चले और दोनों ने परोक्ष रूप से भाजपा की मदद की.
हालांकि यहां यह देखना होगा कि चिराग पासवान ने खुलकर भाजपा का समर्थन किए जाने की बात स्वीकारी है और खुद को मोदी का भक्त भी बार-बार कहा है.
संपादकीय में आरोप लगाया गया है कि ‘इस बाजी के लिए भाजपा ने चुनाव के मैदान में जिन मोहरों को घुमाया, उनमें ‘ओवैसी’ को पहला नंबर देना होगा. ओवैसी पर मोदी या भाजपा के प्यादे होने का आरोप हमेशा से लगाए जाते हैं. बिहार में भी यही आरोप लगे. ओवैसी द्वारा उम्मीदवार खड़े किए जाने के कारण तेजस्वी यादव और उनके महागठबंधन के लगभग 15 उम्मीदवार हार गए.’
साथ ही इस संपादकीय में आरोप लगाया गया कि चिराग पासवान को चुनाव में नीतीश कुमार के पंख कतरने के लिए ही उतारा गया. और उनके कारण जदयू के 20 उम्मीदवारों को हार का मुंह देखना पड़ा. सामना कहता है कि ‘चिराग पासवान का प्रचार नीतीश कुमार के विरोध में था. वह प्रचार विषैला था. ऐसा विषैला प्रचार तेजस्वी यादव नहीं कर रहे थे. इतने के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने चिराग पासवान को कभी नहीं समझाया और चिराग भैया आज भी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सहयोगी हैं.’
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नीतीश जी हारे हुए खिलाड़ी है ,काफी आश्चर्य है कि इस विपरीत परिस्थिति में मुख्यमंत्री के शपथ लेने के लिए तैयार है । ऐसे अच्छे नेता को शोभा नही देता ,