मुंबई: कई हफ्तों से यह अटकलें थीं कि कांग्रेस बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनाव में अकेले उतरेगी. बिहार में मिली हार के एक दिन बाद ही पार्टी के महाराष्ट्र प्रभारी रमेश चेन्नितला और मुंबई अध्यक्ष वर्षा गायकवाड़ ने इसका ऐलान कर दिया.
इस ऐलान के साथ, ऐसा लग रहा है कि महा विकास आघाड़ी (एमवीए)—जो पहले से ही पिछले साल महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की हार के बाद कमज़ोर हालत में है, अब टूटती दिख रही है.
जहां सहयोगी शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) ने कांग्रेस के फैसले को गंभीरता से नहीं लिया, वहीं दूसरी साझेदार एनसीपी (एसपी) ने इसे “बिहार में हार के बावजूद अहंकार में लिया गया फैसला” बताया.
फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए उद्धव ठाकरे ने मीडिया से कहा कि हर कोई स्वतंत्र है और अपने निर्णय ले सकता है. उन्होंने रविवार को कहा, “उनकी पार्टी अलग है और मेरी पार्टी अलग है. वे अपने फैसले ले सकते हैं और मैं अपने लूंगा.”
एमवीए का गठन 2019 में कांग्रेस, एकीकृत शिवसेना और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के साथ हुआ था. 2022 में शिवसेना और 2023 में एनसीपी में विभाजन के बाद भी यह गठबंधन जारी रहा.
लोकसभा चुनाव 2024 में आघाड़ी ने अच्छा प्रदर्शन किया था और 48 में से 30 सीटें जीती थीं, लेकिन उसी साल बाद में हुए विधानसभा चुनाव में इसका प्रदर्शन बेहद खराब रहा.
तब से गठबंधन में असहजता साफ दिखाई दे रही है. एनसीपी (एसपी) के वरिष्ठ नेता शरद पवार—जो एमवीए के प्रमुख निर्माता थे—कई मौकों पर कांग्रेस से असहमति जता चुके हैं.
दूसरी ओर, शिवसेना (यूबीटी), जो 25 साल से अधिक समय तक एकीकृत बीएमसी पर नियंत्रण रखती थी, अब अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ती दिख रही है. मुंबई में बनी यह पार्टी, विभाजन के बाद से संघर्ष कर रही है और अब राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के साथ गठबंधन की कोशिश में है.
राजनीतिक विश्लेषक अभय देशपांडे ने कहा कि कांग्रेस का वोट शेयर पूरे देश में घट रहा है और अब उसकी प्राथमिकता खुद को मजबूत करना लग रही है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “उद्धव वैसे भी कांग्रेस को साथ लेने के इच्छुक नहीं थे और बीएमसी चुनाव के लिए राज के साथ गठबंधन चाहते थे. अगर गठबंधन होता भी, तो कांग्रेस को अधिकतम 50 सीटों पर लड़ने का मौका मिलता. तो वे क्या करते? हर जगह उन्होंने बीजेपी को रोकने के लिए क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन किया, लेकिन अब उन्हें लगता है कि क्षेत्रीय दल उनकी कीमत पर मजबूत हो गए हैं, इसलिए वे अपना आधार बढ़ाना चाहते हैं.”
बीएमसी के तहत 24 प्रशासनिक वार्ड और 227 पार्षद वार्ड आते हैं.
इससे पहले, शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राऊत ने कहा था कि इंडिया ब्लॉक लोकसभा चुनाव के लिए है और एमवीए विधानसभा चुनाव के लिए.
देशपांडे ने एमवीए पर किसी बड़े खतरे की आशंका से इनकार किया.
उन्होंने कहा, “हो सकता है बीएमसी चुनाव के बाद वे (एमवीए सहयोगी) फिर साथ आ जाएं. पहले भी हमने देखा है कि राज्य में सरकार में रहने के बावजूद पार्टियां स्थानीय निकाय चुनावों में अलग-अलग लड़ती हैं.”
एमवीए में मतभेद
एनसीपी (एसपी) और कांग्रेस के बीच विधानसभा चुनावों के बाद से कई बार मतभेद देखने को मिले हैं.
प्रस्तावित 130वां संविधान संशोधन विधेयक—जो संविधान के उन अनुच्छेदों में बदलाव करना चाहता है जो जेल में बंद केंद्रीय और राज्य मंत्रियों से जुड़े हैं और इस समय विवाद में है—पर एनसीपी (एसपी) ने उस संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में शामिल होने का फैसला किया, जो इसकी जांच कर रही है. जबकि अन्य विपक्षी दल, जैसे कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और आम आदमी पार्टी ने संकेत दिया कि वे इस पैनल का बहिष्कार करेंगे.
इस साल की शुरुआत में, पवार ने ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के लिए विशेष संसदीय सत्र की मांग करने के विपक्षी दलों के साथ असहमति जताई थी. पवार ने कहा था कि पहलगाम के बाद का मामला बेहद संवेदनशील है, और विशेष सत्र बुलाने की बजाय निजी बातचीत के साथ सर्वदलीय बैठक ज़्यादा उपयोगी होगी.
पिछले हफ्ते, पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने पवार पर निशाना साधा और कहा कि वे महाराष्ट्र में कांग्रेस को कमज़ोर करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं.
पटोले के आरोप उस समय आए जब पुणे लैंड केस में पवार के नरम रुख की चर्चा बढ़ रही थी. यह मामला शरद पवार के भतीजे पार्थ पवार से जुड़ा है. पार्थ, अजीत पवार के बेटे हैं, जिन्होंने एनसीपी का विभाजन किया था.
पटोले ने नागपुर में पत्रकारों से कहा, “अब यह खुलकर सामने आ गया है कि राज्य में कांग्रेस को कमज़ोर करने के लिए बीजेपी और हमारे सहयोगियों द्वारा हमेशा एक व्यवस्थित योजना रही है.”
जब उनसे पूछा गया कि क्या वे शरद पवार की ओर इशारा कर रहे हैं, तो उन्होंने कहा: “हां, बिल्कुल. यह सबको पता है.”
कांग्रेस की दुविधा
कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) के बीच तनाव साफ दिख रहा है, खासकर मुंबई में, जहां वे वर्षों से एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी रहे हैं. कांग्रेस का आरोप है कि शिवसेना (यूबीटी) के साथ गठबंधन करने से उसे अपेक्षित वोट ट्रांसफर नहीं मिला.
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि इसके बजाय मुसलमान अब उद्धव ठाकरे की पार्टी को वोट दे रहे हैं, क्योंकि अल्पसंख्यकों में उद्धव की लोकप्रियता बढ़ रही है. इससे कांग्रेस का वोट बैंक शिवसेना (यूबीटी) की ओर खिसक रहा है.
जहां तक मनसे का सवाल है, कांग्रेस मानती है कि उसका एंटी-माइग्रेंट (प्रवासी-विरोधी) रुख कांग्रेस के उत्तर भारतीय वोटरों पर असर डाल सकता है.
इसके अलावा, सीट बंटवारा भी कांग्रेस के लिए एक बड़ी समस्या है.
कांग्रेस के एक पदाधिकारी ने कहा, “पहले ही शिवसेना (यूबीटी) 100 से ज्यादा सीटों पर लड़ेगी, फिर राज ठाकरे को भी बड़ी हिस्सेदारी मिलेगी. एनसीपी (एसपी) का मुंबई में छोटा आधार है, कुछ इलाकों में ही पकड़ है, फिर भी उन्हें कुछ सीटें मिलेंगी. तो हमारे लिए क्या बचेगा?”
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